Saturday 7 March 2015

जब ,मारे गए मुसलमानों कि बेवाओं को देखता हूँ

मुझे भी बहुत दुःख होता है जब ,मारे गए मुसलमानों कि बेवाओं को देखता हूँ .. या फिर उनके छोटे छोटे यतीम बच्चों को देखता हूँ ... आखिर इनका क्या दोष था? सचमुच इनका दोष तो नहीं था... एक बीवी अगर अपने पति कि सच्चाई जानती भी होगी तो क्या कर लेगी... ?
लेकिन फिर मेरी नजर दूसरी ओर हिन्दुओं कि तरफ घुमती है और वहाँ देख कर कलेजा मुंह को आ जाता है.. क्यूंकि अगर इस तरफ एक आतंकी मारा गया है तो उस तरफ १०० हिन्दू को उसी आतंकी ने मारा हैं ....अगर उधर एक बेवा नजर आती है तो इधर १०० विधवा नजर आती है .... अगर आतंकी के मासूम बच्चो पर रहम आ रही है तो इधर हिन्दुओं के मासूम बच्चों पर भी दया आ रही है...
क्या किया जाए ? सेक्युलर बनता हूँ तो सिर्फ मुसलमानों कि तकलीफ देखना चाहिए और अगर निष्पक्ष बनता हूँ तो हिन्दुओं कि तकलीफ ज्यादा नजर आती है... और यहाँ पर एक बड़ा अंतर भी है.. कि वो आतंकी दूसरों को मारने के लिए ही निकला था लेकिन वो हिन्दू किसी को मारना भी नहीं चाहता था... उल्टा उसने आतंकी को भी भाई बंधू मान कर रखा था .. (शायद इसी वजह से मारा भी गया )
दोनों में से किसी एक ही के तरफ खड़ा हुआ जा सकता है.. उदहारण के लिए आप ईराक में या तो आई एस आई एस के तरफ खड़े हो सकते हैं या यजिदियों के तरफ ... क्या आप दोनों के तरफ खड़े हो सकते हैं ?
अगर कोई आपके बच्चे कि हत्या कर रहा हो तो आप या तो बच्चे कि तरफ खड़े होंगे या बच्चे के हत्यारे के साथ ... यहाँ दोनों कि जमीन ही अलग है.. दोनों पर पैर रखा ही नहीं जा सकता.. अंतत मैंने हिन्दुओं के लिए ही खड़ा होने का फैसला किया ...क्यूंकि मैं भी हिन्दू ही हूँ.... कभी मेरी भी तो बारी आ सकती है..