Wednesday 3 August 2016

दोस्तों मेरी शादी हो गयी।

मैं शायद पहला ऐसा लड़का था जिसने शादी के पहले होने वाली संगिनी की तस्वीर तक नहीं देखी थी, ना मैं ये जानता था कि वो कितनी पढ़ी लिखी है, या क्या उम्र है, कुछ भी नहीं ? बस माँ की इच्छा पूरी करने हेतु कह दिया था, ठीक है जिससे चाहती हो मेरी शादी करवा दो। इसके पहले कई राउंड इमोशनल ब्लैकमेलिंग के फ़िल्मी सीन घर में हो चुके थे। घर में ऐसा माहौल बना हुआ था कि अगर मेरी शादी नहीं हुई तो पूरा परिवार तबाह हो जायेगा, महंगाई बढ़ जायेगी, बाढ़ का पानी इधर आ जायेगा, भूकम्प इस घर के नीचे जरूर आयेगा, सारी लडकियां कुंवारी रह जायेगी, माँ तो तभी हंसेंगी जब बहु आ जायेगी, परिवार के लोग तभी अच्छे से बात करेंगे जब वो मुझे शादीशुदा देख लेंगे। समस्या बहुत विकट हो चली थी।

बाजार का हाल बहुत बुरा था, जितने दोस्त मिलते वो पहले नमस्ते के बाद यही कहते ..."और शादी वादी हो गयी ?"
मेरी समझ में नहीं आता क्या कहूँ ? जब सच बोलता तो बहुत बुरा मुंह बना कर 'रायचंद' बन जाते, और कहते...
"अरे भैया , कर लो, बुढ़ापे में कौन देखेगा, तेरी माँ को कौन देखेगा, कभी बीमार पड़ गए तो क्या होगा, ऐसा नहीं चलता जिंदगी यार, ये तू क्या कर रहा है दोस्त......"

हालात ऐसे थे कि दोस्तों के घर जाना मिलना छोड़ दिया था, सभी मेरे ऊपर हावी हो गए थे, और माँ.... की कहानी...
मेरे जितने दोस्त हैं सबको माँ मेरे पीछे चुपके से मिलती और कहती...कैसा दोस्त है आपलोग, समझाते नहीं इसको, समझाइये ना,

फिर मेरे परिवार के जितने लोग है, मौसा मौसी चाचा चाही मामा मामी भैया भाभी फूफा फूफी ..... सबको घर तक बुला कर लाती और (लाने के पहले योजना समझा देती) सब मुझे घर में बस यही समझाने का प्रयास करते,
पहले किराए के मकान में था, गाँव में वहाँ के मकान मालिक, आस पड़ोस वाले सब मुझे समझाने आते, इस बात की इन्तिहाँ भी हुयी जब मुम्बई में दो दिन के लिए आई तो, मेरे रूम पार्टनर को मेरे पीछे में विनती करके गयी कि आप साथ रहते हो इसको समझाओ, बाप रे बाप।

हालात इतने ख़राब थे, किसी को सिर्फ बातों से , भावनाओ से इस प्रकार घेरा जा सकता है ये पहली बार जिंदगी में अनुभव हुआ, दिन रात बस यही एक सोच,लेकिन मैं अड़ा हुआ था...

पर मैं उस वक़्त टूट जाय करता था जब माँ रोने लगती, उसका रोना सुन मकान मालिक, बाकी लोग घर में आ जाते तब मैं खुद को दुनिया का सबसे गिरा हुआ आदमी समझता, पापी समझता, फिर एक दोस्त ने कहा, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि तुम अपनी जिंदगी माँ के नाम कर दो, ऐसी भावना से शादी कर लो। बस एक दिन हाँ कर दिया मैंने और कहा, जिससे करनी हो शादी कर दो।

कमाल है सिर्फ एक हफ्ते में सब ठीक हो गया, महीने भर के अंदर बारात भेज दी, जैसे आधा काम करके रखी हो, जैसे उसे पता था कि वो मुझे तैयार कर ही लेगी। खैर, शादी के समय पहली बार मुझे लगा कि जोकर वाली हालात होती है लड़के की। गुलाम हो जाता है दो तीन दिन के लिए। जो जैसा कहता , करना पड़ता है। अब ये पहन लो, अब वो पहन लो, दाएं चलो, बाएं घूमो, बैठ जाओ, खड़े हो जाओ, नहीं बस आज फल ही खाना है। शादी के दो दिन तो लगा मैं खुद से अपना हाथ भी नहीं हिला सकता जब वो कहेंगे पास में मौजूद लोग तभी कुछ होगा।

शादी करने कहीं सुदूर क्षेत्र में गया था, बिलकुल गाँव की लेकिन हिन्दू संस्कारों वाली लड़की तो अब इधर ही मिलती है, मिली। पहली बार उसका चेहरा वरमाला में ही देखा। चूँकि शादी मर्जी से थी नहीं, तो शादी के बाद बात करने का दिल नहीं था पर एक दिन देखा मेरे इस व्यवहार से वो दुखी थी, फिर उसके चेहरे को देखते हुए मैंने सोचा, इसमें इसकी क्या गलती है ? ? फिर मैंने खुद को ही दोष दिया और बातें की।

शादी में मैंने शर्त रख दी थी कि मैं कुछ भी नहीं लूंगा। एक रुपये भी जिसे दहेज़ कहते हैं नहीं लिया, ना कोई टीवी, फ्रिज, बाइक, पलंग, कुर्सी, बर्तन कुछ भी नहीं, यहाँन तक कि शादी के पहले उसके पिताजी और चाचा आये थे कि लड़के को बाजार लेजाकर उसके लिए कपडे जूते आज खरीदने हैं तो मैं घर से भाग गया, मैंने फोन करके कहा, मुझे कुछ नहीं चाहिए मैं अपने पैसे से ख़रीदे कपडे जूते पहनूंगा, सभी हैरान परेशान शाम तक इंतज़ार के बाद लौट गए। लड़की कितनी पढ़ी है या नहीं पढ़ी है इस बात को कहना ठीक नहीं, उसका व्यवहार अच्छा है, बस इससे ज्यादा ठीक नहीं।

बस इतनी सी है कहानी। माँ खुश तो मैं खुश। हाँ शादी के बाद वो कहती है कि शायद मैं दुनिया की सबसे लकी लड़की हूँ, ऐसा तो मैंने सपने में सोचा था, अब ये तारीफ़ सुनकर मुझे भी अच्छा ही लगेगा ना । ☺

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