Monday 23 November 2015

कब कहेंगे लोग "मुस्लिम आतंकवाद"

असीमानंद का नाम लेकर (जिसपर आरोप साबित नहीं).... या दादरी के गौभक्षक अखलाख वाली एक दो घटना का नाम लेकर अगर ....
"हिन्दू आतंकवाद"....."हिन्दू तालिबान" जैसे शब्द गढ़े जा सकते हैं...
तो....
देश विभाजन के समय के दंगे से शुरू हुए अबतक के हज़ारो हज़ार दंगे में...

मुम्बई बम ब्लास्ट के समय में...

कश्मीर..आसाम..बंगाल के भयंकर नरसंहार में...

देश के अंदर हुए कई बम ब्लास्टों में...

और लाखों लोगो के याकूब मेमन..जैसे आतंकियों के शवयात्रा में ...

भाग लेने पर.... भी हमेशा ये कुछ " भटके हुए मुसलमानो" का कार्य ही क्यों रह जाता है ? क्या याकूब मेमन के शवयात्रा में भटक भटक के लाखों लोग कब्रिस्तान तक पहुच गए थे?

आखिर इसे कब " मुस्लिम आतंकवाद" कहा जाएगा जो हर तरह से साबित हो चूका है ?

कौन थे प्रकांड हिन्दू विद्वान् अष्टावक्र

अष्टावक्र की माता का नाम सुजाता था। उनके पिता कहोड़ वेदपाठी और प्रकांड पंडित थे तथा उद्दालक ऋषि के शिष्य और दामाद थे। राज्य में उनसे कोई शास्त्रार्थ में जीत नहीं सकता था। अष्टावक्र जब गर्भ में थे तब रोज उनके पिता से वेद सुनते थे। एक दिन उनसे रहा नहीं गया और गर्भ से ही कह बैठे- 'रुको यह सब बकवास, शास्त्रों में ज्ञान कहाँ? ज्ञान तो स्वयं के भीतर है। सत्य शास्त्रों में नहीं स्वयं में है। शास्त्र तो शब्दों का संग्रह मात्र है।'
यह सुनते ही उनके पिता क्रोधित हो गए। पंडित का अहंकार जाग उठा, जो अभी गर्भ में ही है उसने उनके ज्ञान पर प्रश्नचिह्न लगा दिया। पिता तिलमिला गए। उन्हीं का वह पुत्र उन्हें उपदेश दे रहा था जो अभी पैदा भी नहीं हुआ। क्रोध में अभिशाप दे दिया- 'जा...जब पैदा होगा तो आठ अंगों से टेढ़ा होगा।' इसीलिए उनका नाम अष्टावक्र पड़ा।

पिता ने क्रोध में शरीर को विक्षप्त कर दिया। उन्हें जरा भी दया नहीं आई। ऐसे पिता के होने का क्या मूल्य, जो अपने पुत्र को शाप दे। अष्टावक्र का कोई बहुत बड़ा अपराध नहीं था। उन्होंने तो अपना विचार ही प्रकट किया था, लेकिन इससे यह सिद्ध होता है कि लोग अपने-अपने शास्त्रों के प्रति कितने कट्टर होते हैं।
पिता के इस शाप के बावजूद अष्टावक्र पिताभक्त थे। जब वे बारह वर्ष के थे तब राज्य के राजा जनक ने विशाल शास्त्रार्थ सम्मेलन का आयोजन किया। सारे देश के प्रकांड पंडितों को निमंत्रण दिया गया, चूँकि अष्टावक्र के पिता भी प्रकांड पंडित और शास्त्रज्ञ थे तो उन्हें भी विशेष आमंत्रित किया गया। जनक ने आयोजन स्थल के समक्ष 1000 गायें बाँध ‍दीं। गायों के सींगों पर सोना मढ़ दिया और गले में हीरे-जवाहरात लटका दिए और कह दिया कि जो भी विवाद में विजेता होगा वह ये गायें हाँककर ले जाए।

संध्या होते-होते खबर आई कि अष्टावक्र के पिता हार रहे हैं। सबसे तो जीत चुके थे ‍लेकिन वंदनि (बंदी) नामक एक पंडित से हारने की स्थिति में पहुँच गए थे। पिता के हारने की स्थिति तय हो चुकी थी कि अब हारे या तब हारे। यह खबर सुनकर अष्टावक्र खेल-क्रीड़ा छोड़कर राजमहल पहुँच गए। अष्टावक्र भरी सभा में जाकर खड़े हो गए। उनका आठ जगहों से टेढ़ा-मेढ़ा शरीर और अजीब चाल देखकर सारी सभा हँसने लगी। अष्टावक्र यह नजारा देखकर सभाजनों से भी ज्यादा जोर से खिलखिलाकर हँसे।

जनक ने पूछा, 'सब हँसते हैं, वह तो मैं समझ सकता हूँ, लेकिन बेटे, तेरे हँसने का कारण बता?
अष्टावक्र ने कहा, 'मैं इसलिए हँस रहा हूँ कि इन चमारों की सभा में सत्य का निर्णय हो रहा है, आश्चर्य! ये चमार यहाँ क्या कर रहे हैं।'
सारी सभा में सन्नाटा छा गया। सब अवाक् रह गए। राजा जनक खुद भी सन्न रह गए। उन्होंने बड़े संयत भाव से पूछा, 'चमार!!! तेरा मतलब क्या?'
अष्टाव्रक ने कहा, 'सीधी-सी बात है। इनको चमड़ी ही दिखाई पड़ती है, मैं नहीं दिखाई पड़ता। ये चमार हैं। चमड़ी के पारखी हैं। इन्हें मेरे जैसा सीधा-सादा आदमी दिखाई नहीं पड़ता, इनको मेरा आड़ा-तिरछा शरीर ही दिखाई देता है। राजन, मंदिर के टेढ़े होने से आकाश कहीं टेढ़ा होता है? घड़े के फूटे होने से आकाश कहीं फूटता है? आकाश तो निर्विकार है। मेरा शरीर टेढ़ा-मेढ़ा है लेकिन मैं तो नहीं। यह जो भीतर बसा है, इसकी तरफ तो देखो। मेरे शरीर को देखकर जो हँसते हैं, वे चमार नहीं तो क्या हैं?
अब भगवान् राम के श्वसुर पश्चाताप से भर उठे.. एक मिनट में अष्टावक्र ने सबका अभिमान उतार दिया था...

दोस्तों इसके बाद इस मेधावी बालक ने पंडित वंदिनी को शाश्त्रार्थ के लिए ललकारा.. वेदों को आधार बना मुकाबला शुरू हुआ और देखिये पहले के जमाने में कैसे यह होता था .. अगले पोस्ट में..शस्त्रार्थ के अंश..
(22 नवम्बर 2014 का पोस्ट)

मोदी जी 40 बच्चे पैदा करने वाले को भी घर देंगे?

मोदी जी .... ये आप क्या बार बार सभी को घर दूंगा ... सभी को घर दूंगा ......क्यों बोलते रहते हो ? क्या 40 बच्चे पैदा करने वाले को भी घर मिलेगा ? अगर हाँ तो क्यों ? क्या सरकार का पैसा उन जिहादियों को घर मुहैया करायेगा जिसने 'जनसंख्या जिहाद ' के लिए पैदा किया है ?

ऐसे तो एक पिता के पास 40 घर हो जायेंगे ? एक खानदान के पास 200 से 300 सरकारी घर हो जायेंगे।

जिसके भी चार से ज्यादा बच्चे हो उसे घर ना दिया जाए क्योंकि जाहिर वो अमीर आदमी है क्योंकि बिना पैसे के कोई 40 बच्चे थोड़े पाल सकता है।

सबसे गंदे खानपान का धर्म बौद्ध??

सबसे हिंसात्मक और गन्दा धर्म है बौद्ध धर्म । किसी भी धर्म में उसके अनुयायियों का खानपान उस धर्म के बारे में बहुत कुछ बताता है। इसी विधानसभा चुनाव के दौरान आसाम आदि जगहों से चुनावके लिए गोरखा जवान आये थे तो नवादा के मेरे दोस्त ने बताया कि वो लोग शाम होते ही कुत्ते को पकड़ कर मार देते खूब स्वाद के साथ खाते थे।
कल डिस्कवरी में देखा... चीन जो एक बौद्ध देश है वहाँ जिन्दा सांपो के शरीर से जिन्दा रहते उसके पथरी को निकाल कर निचोड़ कर चाय में डाल कर पीते है और साँपों का सूप बना दिया जाता है...

कुछ जगहों पर इंसानो का भ्रूण भी शौक से खाया जाता है.... देखा जाए तो इसे क्या कहेंगे? क्या यही बुद्ध का अहिंसा वाला धर्म ? यही धर्म दलित भी मानते हैं जो चूहा छुछन्दर सब खाते हैं।

नौटंकीबाज धर्म के लोगो क्या यही खाने को बताया था बुद्ध ने ...

(तस्वीरों के लिए क्षमा चाहता हूँ पर सबूत देना भी मज़बूरी है।)

जाड़े का दिन शक्तिवर्धक जड़ीबूटियों का समय

जाड़े का दिन आ गया है। ये तीन महीने शक्तिवर्धक जड़ी बूटियों के सेवन का समय होता है जिससे फिर साल भर आपका शरीर ताकत महसूस करता रहे। और अगर नहीं कर सकते तो बनी बनाई आंवला एलो वेरा के साथ स्वर्णभस्म युक्त कोई अच्छी दवाई ले लें .. या फिर चंद्रप्रभा वटी और बादाम पाक का सेवन भी उपयुक्त है। (विवाहित भाई 'कौंच पाक'  ले सकते हैं)

भाइयों सिर्फ चावल दाल और रोटी ही पर्याप्त नहीं हैं..शरीर की जितनी सेवा कर सकते हो उतनी करनी चाहिए.. शरीर के इंजन हमेशा नयी गाडी की तरह रखो वरना पुरानी गाड़ी की इंजन से गाडी किस तरह चलती है ये तो आप भी जानते हैं।

(अगर सर्दी जुकाम खांसी आदि जाड़े के दिन में होता हो तो गिलोय घन वटी का सेवन करें एलोपैथिक सीरुप की जगह पतंजलि का सीरप स और ्वसारि रस का सेवन कीजिये)

Thursday 19 November 2015

इतिहास का सबसे खतरनाक कमांडो ऑपरेशन

27 जून 1976 को तेल अवीव से पेरिस जा रही एयर फ़्रांस की फ़्लाइट 139 ने एथेंस में रुकने के बाद फिर से उड़ान भरी ही थी कि चार यात्री एकदम से उठे. उनके हाथों में पिस्टल और ग्रेनेड थे.
उन्होंने विमान पर नियंत्रण करने के बाद पायलट को लीबिया के शहर बेनग़ाज़ी चलने का आदेश दिया. इन चार अपहरणकर्ताओं में दो फ़लस्तीनी थे और दो जर्मन.
उस विमान में सफ़र कर रहे जियान हारतुव याद करते हैं कि उन चारों में से एक महिला ब्रिजेत कुलमान ने हैंड ग्रेनेड की पिन निकालकर सारे यात्रियों को धमकाया कि अगर किसी ने भी प्रतिरोध करने की कोशिश की तो वो विमान में धमाका कर देगी.
बेनग़ाज़ी में सात घंटे रुकने और ईंधन लेने के बाद अपहरणकर्ताओं ने पायलट को आदेश दिया कि विमान को युगांडा के एन्तेबे हवाई अड्डे ले जाया जाए.

उस समय युगांडा में तानाशाह इदी अमीन का शासन था. उनकी पूरी सहानुभूति अपहरणकर्ताओं के साथ थी. एन्तेबे हवाई अड्डे पर चार और साथी उनसे आ मिले.
उन्होंने यहूदी बंधकों को अलग कर दिया और दुनिया के अलग अलग देशों की जेलों में रह रहे 54 फ़लस्तीनी कैदियों को रिहा करने की मांग की और धमकी दी कि ऐसा नहीं किया गया तो वे यात्रियों को एक-एक करके मारना शुरू कर देंगे.
एन्तेबे इसराइल से करीब 4000 किलोमीटर दूर था, इसलिए किसी बचाव मिशन के बारे में सोचा तक नहीं जा सकता था. यात्रियों के संबंधियों ने तेल अवीव में प्रदर्शन करने शुरू कर दिए थे.
बंधक बनाए गए लोगों में से कुछ इसराइली प्रधानमंत्री रबीन के क़रीबी भी थे. उन पर बहुत दबाव था कि बंधकों को हर हालत में छुड़ाया जाए.
'यहूदी बंधकों को अलग किया'
बंधकों में से एक सारा डेविडसन याद करती हैं कि अपहरणकर्ताओं ने बंधकों को दो समूहों में बांट दिया था, ''उन्होंने लोगों के नाम पुकारे और उन्हें दूसरे कमरे में जाने के लिए कहा. थोड़ी देर बाद पता चल गया कि वो सिर्फ यहूदी लोगों के नाम पुकार रहे हैं.''
इस बीच अपहरणकर्ताओं ने 47 ग़ैर यहूदी यात्रियों को रिहा कर दिया. उन्हें एक विशेष विमान से पेरिस ले जाया गया. वहाँ मोसाद के जासूसों ने उनसे बात कर एन्तेबे के बारे में छोटी से छोटी जानकारी जुटाने की कोशिश की.
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एन्तेबे हवाई अड्डा
मोसाद के एक एजेंट ने कीनिया में एक विमान किराए पर लेकर एन्तेबे के ऊपर उड़ान भरकर उसकी बहुत सारी तस्वीरें खींची. दिलचस्प बात यह थी कि एन्तेबे हवाई अड्डे के टर्मिनल को जहाँ बंधकों को रखा गया था, एक इसराइली कंपनी ने बनाया था.
कंपनी ने उस टर्मिनल का नक्शा उपलब्ध कराया और रातों रात इसराइल में एक नकली टर्मिनल खड़ा कर लिया गया ताकि इसराइली कमांडो उस पर हमले का अभ्यास कर सकें.
मिशन के लिए सर्वश्रेष्ठ सैनिक
इसराइली सेना के 200 सर्वश्रेष्ठ सैनिकों को इस मिशन के लिए चुना गया. कमांडो मिशन में सबसे बड़ी अड़चन इस बात की थी कि कहीं एन्तेबे हवाई अड्डे के रनवे की बत्तियाँ रात में बुझा तो नहीं दी जाएंगी और इदी अमीन के सैनिक विमान को उतरने से रोकने के लिए रनवे पर ट्रक तो नहीं खड़ा कर देंगे.
इस बीच इसराइल की सरकार ने संकेत दिया कि वो अपहरणकर्ताओं से बातचीत करने के लिए तैयार है ताकि कमांडोज़ को तैयारी के लिए थोड़ा समय मिल जाए. इदी अमीन के दोस्त समझे जाने वाले पूर्व सैनिक अधिकारी बार लेव को उनसे बात करने के लिए लगाया गया.
उन्होंने अमीन से कई बार फ़ोन पर बात की लेकिन वो बंधको को छुड़ा पाने में असफल रहे. इस बीच इदी अमीन अफ़्रीकी एकता संगठन की बैठक में भाग लेने के लिए मॉरिशस की राजधानी पोर्ट लुई चले गए जिससे इसराइल को और समय मिल गया.

उस समय जनरल अशोक मेहता भारतीय सेना में लेफ़्टिनेंट कर्नल हुआ करते थे और अमरीका में पोर्ट लैवनवर्थ के कमांड एंड जनरल स्टाफ़ कालेज में प्रशिक्षण ले रहे थे.
उड़ते विमान में ईंधन भरा
जनरल अशोक मेहता बताते हैं कि इस पूरे मिशन की सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि 4000 किलोमीटर जाकर 4000 किलोमीटर वापस भी आना था. इसलिए हवा में ही उड़ते विमान से दूसरे विमान में ईधन भरा गया.
ब्रिगेडियर जनरल डैम शॉमरॉन को पूरे मिशन की ज़िम्मेदारी दी गई, जबकि लेफ़्टिनेंट कर्नल योनाथन नेतन्याहू को फ़ील्ड ऑपरेशन का इंचार्ज बनाया गया.
इसराइल के पास तीन विकल्प थे. पहला हमले के लिए विमानों का सहारा लिया जाए. दूसरा नौकाओं से वहाँ पहुंचा जाए और तीसरा कीनिया से सड़क मार्ग से युगांडा में घुसा जाए.
अंतत: तय हुआ कि एन्तेबे पहुंचने के लिए विमानों का इस्तेमाल होगा और युगांडा के सैनिकों को ये आभास दिया जाएगा कि इन विमानों में राष्ट्रपति अमीन विदेश यात्रा से लौट रहे हैं.

4 जुलाई को इसराइल के साइनाइ बेस से चार हरक्यूलिस जहाज़ों ने उड़ान भरी. सिर्फ़ 30 मीटर की ऊंचाई पर उड़ते हुए उन्होंने लाल सागर पार किया ताकि मिस्र, सूडान और सऊदी अरब के रडार उन्हें न पकड़ पाएं. रास्ते में इसराइली कमांडोज़ ने युगांडा के सैनिकों की वर्दी पहन ली.
सिर्फ़ छह मिनट का समय
विमानों के उड़ान भरने के बाद ही प्रधानमंत्री राबीन ने इस मिशन की जानकारी मंत्रिमंडल को दी.
सात घंटे लगातार उड़ने के बाद रात के एक बजे पहला हरक्यूलिस विमान एन्तेबे के ऊपर पहुंचा.
उसके पास लैंड करने और अपहरणकर्ताओं पर काबू पाने के लिए सिर्फ छह मिनट का समय था.
उस समय रनवे की लाइट जल रही थी. लैंड करने से आठ मिनट पहले ही हरक्यूलिस के रैंप खोल दिए गए ताकि कम से कम समय जाया हो.
लैंड करते ही पायलट ने विमान को रनवे के बीचोंबीच रोक लिया ताकि पैराट्रूपर्स के एक दल को नीचे उतारा जा सके और वो रनवे पर पीछे आ रहे विमानों के लिए एमरजेंसी लाइट लगा सकें.
मर्सिडीज़ कार का धोखा
जहाज़ से एक काली मर्सिडीज़ कार उतारी गई. यह उस कार से बहुत मिलती-जुलती थी जिसे राष्ट्रपति अमीन इस्तेमाल किया करते थे.
उसके पीछे कमांडोज़ से भरी हुई दो लैंड रोवर गाड़ियाँ भी उतारी गईं. इन वाहनों ने तेज़ी से टर्मिनल की तरफ बढ़ना शुरू किया.
कमांडोज़ को आदेश थे कि वो तब तक गोली न चलाएं जब तक वो टर्मिनल तक नहीं पहुंच जाते.
इसराइली उम्मीद कर रहे थे कि काली मर्सिडीज़ कार देखकर युगांडा के सैनिक समझेंगे कि इदी अमीन बंधकों से मिलने आए हैं.
लेकिन इसराइलियों को पता नहीं था कि कुछ दिन पहले ही अमीन ने अपनी कार बदल दी थी और अब वो सफेद मर्सिडीज़ का इस्तेमाल कर रहे थे.
यही वजह थी कि टर्मिनल के बाहर खड़े युगांडा के सैनिकों ने अपनी राइफ़लें निकाल लीं. इसराइली कमांडोज़ ने उन्हें साइलेंसर लगी बंदूकों से वहीं उड़ा दिया. उनका भेद खुल चुका था.

गोली चलते ही कमांडर ने आदेश दिया कि वाहनों से उतरकर पैदल ही उस टर्मिनल के भवन पर धावा बोल दिया जाए जहाँ यात्रियों को रखा गया था. कमांडोज़ ने बुल हॉर्न के ज़रिए बंधकों से अंग्रेज़ी और हिब्रू में कहा कि वो इसराइली सैनिक हैं और उन्हें बचाने के लिए आए हैं.
उन्होंने यात्रियों से फ़ौरन लेट जाने के लिए कहा. उन्होंने यात्रियों से हिब्रू में पूछा कि अपहरणकर्ता कहाँ हैं.
यात्रियों ने मुख्य हॉल में खुलने वाले दरवाज़े की तरफ़ इशारा किया. कमांडोज़ हैंड ग्रेनेड फेंकते हुए हॉल में घुसे. इसराइली कमांडोज़ को देखते ही अपहरणकर्ताओं ने गोलियाँ चलाना शुरू कर दिया.

गोलियों के आदान-प्रदान में सभी अपहरणकर्ता मारे गए. माता-पिता अपने बच्चों को बचाने के लिए उनके ऊपर लेट गए.
तीन बंधक भी गोलियों का निशाना बने. इस बीच दो और इसराइली विमान वहाँ उतर चुके थे. उनमें भी इसराइली सैनिक थे.
चौथा विमान पूरी तरह से खाली था ताकि उसमें बचाए गए बंधकों को ले जाया जा सके.
एन्तेबे पर उतरने के बीस मिनटों के भीतर ही बंधकों को लैंडरोवर्स में भरकर खाली विमान में पहुंचाया जाने लगा था. इस बीच युगांडाई सैनिकों ने गोलियाँ चलानी शुरू कर दी थी और पूरे हवाई अड्डे की बत्ती गुल कर दी गई थी.
चलने से पहले हर एक सैनिक की गिनती की गई. इस पूरे अभियान में इसराइल का सिर्फ एक सैनिक मारा गया. कंट्रोल टॉवर के ऊपर से चलाई गई एक गोली लेफ़्टिनेंट कर्नल नेतन्याहू के सीने में लगी और वो वहीं गिर गए.

सैनिकों ने घायल नेतन्याहू को विमान में डाला और एन्तेबे में लैंड करने के 58 मिनट बाद बचाए गए यात्रियों को विमान में लाद वहाँ से टेक आफ़ किया. इससे पहले उन्होंने एन्तेबे पर खड़े 11 मिग जहाज़ों को नष्ट कर दिया ताकि वो उनका पीछा नहीं कर सकें.
नेतन्याहू ने वापसी उड़ान के दौरान दम तोड़ दिया. इस मिशन में सभी सात अपहरणकर्ता और 20 युगांडाई सैनिक मारे गए. एक बंदी डोरा ब्लॉक को वापस नहीं लाया जा सका क्योंकि वो हमले के समय कंपाला के मुलागो अस्पताल में थी.
बाद में युगांडा के अटॉर्नी जनरल ने वहाँ के मानवाधिकार आयोग को बताया कि इस मिशन के बाद इदी अमीन के आदेश पर दो सैनिक अफ़सरों ने डोरा ब्लॉक की अस्पताल के पलंग से खींचकर हत्या कर दी थी.

4 जुलाई की सुबह बचाए गए 102 यात्री और इसराइली कमांडो नैरोबी होते हुए तेल अवीव पहुंचे. इस पूरे अभियान को इसराइल के इतिहास का सबसे दुस्साहसी मिशन माना गया.
कमांडो दल के सदस्य लेफ़्टिनेंट कर्नल मोर याद करते हैं, ''जब हमने बेन गुरियों हवाई अड्डे पर लैंड किया तो इसराइल-वासियों का अथाह सागर उनके सम्मान में खड़ा था. स्वयं इसराइल के प्रधानमंत्री राबीन और मंत्रिमंडल के सभी सदस्य उनके स्वागत के लिए वहाँ पहुंचे हुए थे.''

जनरल अशोक मेहता याद करते हैं कि प्रधानमंत्री राबीन ने जब विपक्ष के नेता मेनाखिम बेगिन को बधाई और खुशखबरी देने के लिए बुलवाया तो बेगिन ने कहा, ''मैं शराब नहीं पीता, इसलिए मैं चाय पीकर इसे सेलेब्रेट करूंगा. राबीन ने उन्हे सिंगल मॉल्ट शराब सर्व की और कहा कि समझ लीजिए आप रंगीन चाय पी रहे हैं. बेगिन ने कहा कि आज के दिन मैं कुछ भी पी सकता हूँ. ये इसराइल के इतिहास का सबसे बड़ा दिन था. इस तरह का दु:साहसी अभियान न तो पहले सफल हुआ था और न शायद कभी होगा.''

Friday 13 November 2015

क्या दलित देशद्रोही हो गए हैं ?

मुस्लिम और दलितों में क्या समानता है ?

**दुर्भाग्य से दोनों ही अपनी आबादी बढ़ाने में विश्वास रखते हैं ...

**दोनों का एक ही झूठ है कि दोनों को पूर्व में सताया गया है इसलिए हिंदुओं से बदला लेना है ..

**दोनों में देशभक्ति की जगह सिर्फ अपना फायदा देखने की प्रवृत्ति है..

**दोनों ही भारत को भ्रष्ट और सबसे ख़राब नेता देने में अपना योगदान करते रहे हैं जो आज भी जारी है...

**अगर मुस्लिम जिहाद के तहत हिंदुओं को मिटाना चाहते हैं तो दलित बुद्ध या अम्बेडकर के नाम पर हिंदुओं को मिटाना ही अपना लक्ष्य बना चुके हैं ...

**मुस्लिम आतंकी संगठन के जरिये कत्लेआम करते है तो दलित ...नक्सली सन्गठन के जरिये कत्लेआम अंजाम देते हैं।

**मुस्लिम कितना भी पढ़ लिख ले आप इनको अच्छी बातें नहीं समझा सकते और बिलकुल यही बात दलितों के साथ भी है। भैंस के आगे बीन बजाना यही है।

**दोनों ही आरक्षण और लोन आदि के माध्यम से देश को लूटना ही अपना अधिकार समझते हैं।

**दोनों ही के पास एक भी अच्छा नेता नहीं है..दोनों की तरफ से जो भी नेता पैदा लेते हैं वो भारतीय संस्कृति का और हिंदुओं का दुश्मन ही होता है।

ये भी दुर्भाग्य है कि सच्चे देशभक्त हिंदूवादी की जनसंख्या अब इतनी कम हो चुकी है कि किसी अच्छे नेता को सत्ता में लाना उनके हाथ में नहीं रह गया है।
(हो सकता है एक हज़ार में एक दलित अच्छा हो लेकिन उससे कोई फायदा नहीं इसलिए उसकी बात करना बेकार है)

टीपू सुल्तान ने भारत के लिए नहीं खुद के लिए लड़ाई लड़ी

टीपू सुल्तान ने अगर अंग्रेजों के खिलाफ लोहा लिया तो महान हो गया ? जो जानता था कि अँगरेज़ से ना लड़ने पर हिंदुओं की लाशों से गुजर कर जो सत्ता उसने हासिल की थी वो चला जाता...और इसलिए उसने भारत पर मुस्लिम शासन को बचाने के लिए अंग्रेज़ो से लोहा लिया...
ब्रिटिश गवर्मेंट के अधिकारी और लेखक विलियम लोगान ने अपनी किताब 'मालाबार मैनुअल' में लिखा है कि टीपू सुल्तान नेे 30,000 सैनिकों के दल के साथ कालीकट में हाथी पर सवार था और उसके पीछे उसकी विशाल सेना चल रही थी. पुरुषों और महिलाओं को सरेआम फांसी दी गई. उनके बच्चों को उन्हीं के गले में बांध पर लटकाया गया. ऐसा क्रूर शासक सुना था आपने ?

शहर के मंदिर और चर्चों को तोड़ने के आदेश दिए गए. यहीं नहीं, हिंदू और इसाई महिलाओं की शादी जबरन मुस्लिम युवकों से कराई गई. इस्लाम अपनाने का आदेश जारी हुआ जिसमे इनकार करने पर हत्या का आदेश शामिल था। उसने तब अफगान शासक जमान शाह को भारत पर चढ़ाई करने का निमंत्रण दिया, ताकि यहां इस्लाम को और बढ़ावा मिल सके.

उसने जो कुछ भी किया वो सब सिर्फ इस्लाम के लिए किया .. भारत के लिए और हिन्दुओ के लिए नहीं... गिरीश कर्नाड आदि वामपंथी मूर्खो को कम से कम इतिहास तो पहले पढ़ना चाहिए था।

एलोरा की गुफाएं क्या इंसान ने बनायीं है ?

एलोरा की गुफाएं सबसे प्राचीन मानी जाती हैं। इसमें पत्थर को काटकर बनाई गईं 34 गुफाएं हैं और एक रहस्यमयी प्राचीन हिन्दू मंदिर है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे कोई मानव नहीं बना सकता और इसे आज की आधुनिक तकनीक से भी नहीं बनाया जा सकता। इस विशालकाय अद्भुत मंदिर को सभी देखने आते हैं। इसका नाम कैलाश मंदिर है।

आर्कियोलॉजिस्टों के अनुसार इसे कम से कम 4 हजार वर्ष पूर्व बनाया गया था। 40 लाख टन की चट्टानों से बनाए गए इस मंदिर को किस तकनीक से बनाया गया होगा? यह आज की आधुनिक इंजीनियरिंग के बस की बात नहीं है। माना जाता है कि एलोरा की गुफाओं के अंदर नीचे एक सीक्रेट शहर है।

आर्कियोलॉजिकल और जियोलॉजिस्ट की रिसर्च से यह पता चला कि ये कोई सामान्य गुफाएं नहीं हैं। इन गुफाओं को कोई आम इंसान या आज की आधुनिक तकनीक नहीं बना सकती। यहां एक ऐसी सुरंग है, जो इसे अंडरग्राउंड शहर में ले जाती है।

(13 नवम्बर 2014 को पोस्ट किया गया मेरे पुराने वाल से)