ना जाने ये कितने लोगों से सुना हूँ.. यहां तक कि शुरू शुरु में मेरा भी यही मानना था कि अगर कश्मीरी हिंदुओं ने संगठित होकर मुकाबला किया होता और हथियार उठाये होते तो आज कश्मीर की कहानी कुछ और होती...
चलिए एक काल्पनिक कहानी का सहारा लेते हैं.. 1990 का दौर शुरू हुआ... मदन नाम के हिन्दू को भी परिवार सहित घर छोड़कर भाग जाने को कहा गया है... उसने करीब 100 हिंदुओं के साथ बैठक की..
बैठक में विचार हुआ कि वो लोग भागने की जगह इनका मुकाबला करेंगे...
ज्यादातर हिंदुओं का कहना था ..
1. हम सबने पुलिस को तो कह ही दिया है.. लिखित भी दिया है.. पुलिस और एसएसपी ने भरोसा दिलाया है.. यही नहीं.. कुछ पुलिस वाले गश्ती भी कर रहे हैं... तो डरने की क्या बात है..? क्या मुस्लिम पुलिस के रहते इतनी हिम्मत करेंगे ?
2. ठीक है पर हम भी हथियार रखेंगे.. (किसी ने तलवार, किसी ने चाकू, किसी ने डंडे रखने की बात की)
3. इतने में एक युवक ने कहा हमें पिस्तौल रखनी होगी..
दूसरे ने कहा .." अच्छा तो लाएंगे कहां से?"
"ये तो गैरकानूनी है"
"नहीं नहीँ.. भरोसा रखो.. इतना ही काफी है.. ये तो कुछ मुस्लिम है .. बाकी सारे मुसलमानों ने सहयोग का वादा किया है.."
खैर, वो दिन भी आ ही गया.. लेकिन उसके पहले एक घटना हो गयी..
"पुलिस ने छापे मारे और कुछ युवकों को पिस्तौल आदि के साथ गिरफ्तार कर लिया"
कोर्ट में उनपर गैरकानूनी हथियार रखने का आरोप पत्र दाखिल हो गया..
उधर जब इलाके में हमले हुए और हिन्दू लाठी डंडों से लैस हुए तो मुस्लिमों के हाथों में एक47 से चलती गोली देख कर भौंचक्के रह गए... उनके हाथों से लाठी छूट गयी.. दरवाजे लगा लिए..
अब तो बस एक ही उम्मीद थी कि पुलिस आएगी और बचाएगी...
थोड़ी देर में उनके घर का दरवाजा टूट चुका था.. बेटियां बहनें उन राक्षसों के चंगुल में थी.. हिन्दू भाई गिड़गिड़ा रहा था.. अपने लिए नहीं.. बहनों की अस्मत के लिए... मगर दरिंदों के तो मजहब में ही काफिरों से बलात्कार जायज कहा है तो वो क्यों छोड़ते.. बलात्कार होने लगे.. और उसके बाद उनकी लाशें पेड़ों पर टांगी जाने लगी ताकि बाकी हिन्दू अगले दिन ये वीभत्स मंजर देख भाग जाएं...
पुलिस नहीं आयी.. ऐसे मौके पर आज तक पुलिस आई भी नही है... लाठी लेकर लड़ने की सोचने वाले के सीने में 2 गोलियां मारी गयी थी... उसके आखिरी समय में उसके अच्छे वाले मुस्लिम चचाजान वगैरह भी आये तो थे.. पर मरते हुए आखिरी बार उनींदी आंखों से देखा वो पड़ोसी मुस्लिम भी घर के जेवर आदि उठा रहे थे.... कहानी खत्म हो चुकी थी....
(अब बताइये कैसे लड़ते कश्मीरी हिन्दू..? वो हथियार नहीं रख सकते, मुसलमानों को एक47 मिला था, पाकिस्तान से आतंकियों से... इनको कौन देता.. और छुपाते कहां )
लड़ाई हो सकती थी पर तभी जब बीच मे से सरकार हट जाए..याने कानून खत्म हो जाये... कांग्रेस का पूरा साथ उनके तरफ था.. आतंकियों का संगठन भी उनके ही साथ था.. ऐसे में कश्मीरी अकेले पड़ गए थे... क्या हो सकता था ? सरकार किसी एक साइड में झुक जाए तो पूरा खेल बदल जाता है...