Thursday 30 June 2016

हिन्दुराष्ट्र स्थापित करने के लिए एक योजना

मेरा एक विचार है:
कोई बड़ी हस्ती पहल करे, और एक संसद बनाये। इसके लिए एक बड़ी जगह पर संसद जैसा भवन हो। इसमें हरेक हिन्दू सम्प्रदाय के मठाधीश या संत सदस्य हों। यहां कोई अपने सम्प्रदाय के बारे में बात ना करे... ना उसके लिए जमा हो बल्कि मुस्लिम जिहाद, आतंकवाद , कैराना, कश्मीर, दिल्ली में डॉक्टर नारंग की हत्या, राम मंदिर आदि जैसे मुद्दे पर गंभीर चिंतन करते हुए प्लान बनाये जाएँ। इस धर्म संसद में राजनीतिज्ञों का प्रवेश बंद हों।

यहां स्वामी कुमार जैसे संतो से पूछा जाए कि वो किस आधार पर प्रवचन में "कुरआन ए पाक" जैसे शब्द बोलते हैं ? यहां प्रमोद कृष्णन जैसे लोगों से पूछा जाए कि किस आधार पर वो हिन्दूओ की बुराई करते हैं ? बाबा रामदेव से पूछा जाए कि वो क्यों अपने आश्रम में हज़ारों मुस्लिमो को नौकरी देते हैं ? एक लिस्ट बनायीं जाए कि कौन कौन गलत कार्य कर रहे हैं और उसका आभास उसे करवाया जाए। तर्क सुनकर उसे सुधरने को कहा जाये वरना घोषित कर दिया जाये कि ये हिन्दू के भेष में छदमधारी दुश्मन है। यहां चर्चा हो कि कौन से नेता को समर्थन दिया जाए .. किस पार्टी पर भरोसा रखा जाए और किस पार्टी या नेता को किस कार्य के बदले समर्थन दिया जाए ।

ये संसद भवन पूरी तरह से हिन्दू प्रतीकों से सजी हो, लेकिन पूरी तरह से आधुनिक भी हो, सोशल मीडिया भी इसका बड़ा अंग हो, एक पत्रिका निकाली जाए, एक चैनल भी शुरू की जाए, हिन्दू को जगाने के लिए छोटे पम्पलेट, पोस्टर और किताब का प्रकाशन हो। इसका अपना एक बैंक हो जो देश के अंदर बड़े से लेकर आम गरीब हिंदुओं तक को किसी मामले में फंसने पर या किसी बुरे हालात में वित्तीय सहायता प्रदान करे। तुरंत क़ानूनी सहायता भी उपलब्ध करवाया जाए। इसके लिए पुरे देश में नेटवर्क बिछाया जाए। पल पल की जानकारी यहां मौजूद डिजिटल टीम को मिलती रहे। यहां हरेक मुद्दे पर सोशल मीडिया, एसएमएस या सर्वे द्वारा हिंदुओं से भी राय ली जाए।

मेरे पास पूरा एक प्लान है पर सारे साधू संत योगी महंथ बिखरे पड़े हैं। मैं आश्वस्त करता हूँ महज 6 से 7 सालों में हिन्दुराष्ट्र की नींव रख दूंगा और इस्लाम उजड़ना शुरू हो जायेगा। #हिंदुराष्ट्र #हिंदुत्व

Wednesday 29 June 2016

प्रशांत किशोर :: एक देशद्रोही

अगर आपने विशाखदत्त रचित मुद्राराक्षस नाटक पढ़ा होगा तो देखा होगा कि उसमें दो पक्ष हैं-एक का नेतृत्व चंद्रगुप्त मौर्य के हाथों में है और दूसरे की बागडोर है घनानंद के हाथों में। दोनों के पास एक-एक महान रणनीतिकार है चंद्रगुप्त के लिए चाणक्य सारी योजनाएँ बनाते हैं तो घनानंद के लिए मुद्राराक्षस रणनीति बनाते हैं। यद्यपि मुद्राराक्षस भी महान राजनीतिज्ञ है लेकिन वह अन्यायी का साथ दे रहा है,एक ऐसे राजा का साथ दे रहा है जिसका उद्देश्य भोग-विलास मात्र है। दूसरी तरफ चाणक्य अखण्ड भारत के निर्माण हेतु चन्द्रगुप्त का साथ देते हैं।

अगर हम वर्तमान भारत के परिदृश्य को देखें तो कुछ वैसी ही स्थिति देखने को मिलेगी। एक तरफ नरेंद्र मोदी खुद ही अपनी रणनीतियाँ बना रहे हैं तो प्रतिगामी घनानंद सदृश शक्तियों को सहारा है महान रणनीतिकार प्रशांत किशोर का। निश्चित रूप से प्रशांत अपने काम में गजब के माहिर हैं और उन्होंने बिहार के चुनावों में इसको साबित भी किया है लेकिन सवाल उठता है कि क्या प्रशांत जो कर रहे हैं वह देशहित में है? महान तो शुक्राचार्य भी थे,रावण भी था लेकिन वे लोग पूज्य तो नहीं हैं। क्यों? क्योंकि उनके कृत्य समाजविरोधी,धर्मविरोधी थे।

हम मानते हैं कि हमारे लिए भी पैसा बहुत बड़ी चीज है लेकिन पैसा न तो कभी सबकुछ रहा है और न ही हो सकता है। प्रशांत को कदाचित पैसे के साथ-साथ शुक्राचार्य की तरह पावर भी चाहिए था जो दर्जा प्राप्त कैबिनेट मंत्री बनने से मिल भी गया है। परंतु इन तमाम उपलब्धियों के बावजूद सवाल उठता है प्रशांत जो कुछ भी कर रहे हैं उससे देश का भला होगा? अगर भला नहीं होगा तो फिर उनको क्या कहा जाए?

अगर उनकी अंतरात्मा मानसिंह की अंतरात्मा की तरह उनको नहीं धिक्कारती है तो क्या यह देशभक्त प्रबुद्ध लोगों का कर्तव्य नहीं है कि उनकी निंदा करे और उनको आत्मावलोकन के लिए बाध्य करने का प्रयास करे? आखिर अपना भारत आज भी घास की रोटी खाकर देश के लिए लड़नेवाले प्रताप की ही पूजा करता है न कि सोने-चांदी की थाली में छप्पन भोग खानेवाले मानसिंह की।

Monday 13 June 2016

कैराना पर एबीपी, आजतक, एनडीटीवी की गुप्त मीटिंग

अखिलेश : hallo hallo हाँ रविश, अरे क्या यार ये ज़ी न्यूज वाले क्या चला रहे हैं ? अगर ये साबित हो गया कैराना वाली तो कौन हिन्दू हमें वोट देगा ?

रविश : अरे महाराज, क्या करें बोलिये...

अखिलेश : ज़ी न्यूज़ के इस रिपोर्ट को झूठ बना दो....

रविश : उसमें तो हम माहिर हैं, बस वो...

अखिलेश : फ़िक्र मत करो, घर भर दूंगा हमेशा की तरह...

रविश : बाकी चैनल वालों से भी डीलिंग कर लो, दो तीन चैनल वाले कहेंगे तो पब्लिक सुतिया है मान लेगी।

अखिलेश : बात हो गयी है, एबीपी आजतक के रिपोर्टर पहुँचते होंगे तेरे पास मीटिंग कर ले, आपस में। चुनाव है यार, पैर पड़ता हूँ इस न्यूज़ को झूठा बना दे।

(थोड़ी देर में एक जगह मीटिंग होती है, अंजना, पूण्य प्रसून, रविश, दिबांग आदि पहुँचते हैं )

रविश : पता तो चल ही गया होगा, क्यों ?

प्रसून : हाँ ज़ी न्यूज़ ने फिर से प्रताड़ित हिंदुओं की आवाज उठाई है।

दिबांग : ज़ी न्यूज़ हमेशा हमें माल कमाने का रास्ता देती है। हम सबके लिए सपा से करोड़ों कमाने का मौका है।

रविश : पर करेंगे कैसे ?

प्रसून : करना क्या है ? कैराना जायेंगे इंटरव्यू ले लेंगे कि हिन्दू नही भागे हैं .. मर्जी से गए हैं या मुस्लिम भी पलायन किये है बस।

अंजना : पर कौन बोलेगा ऐसा ?

रविश : एक्का दुक्का जो हिन्दू बचे हैं वो मुस्लिम आतंक की वजह से कभी उनकी बुराई वाली बातें बोलने की हिम्मत नहीं करेंगे .. एक दो सेक्युलर पकड़ लेंगे।

दिबांग : अखिलेश से बात हुयी है वो चार पांच ऐसे अफसर भेज देंगे जो झूठी रिपोर्ट बना कर कैमरे पर बोल देंगे कि कैराना से पलायन मर्जी से हुआ है या कुछ मर गए हैं ..

रविश : पब्लिक विश्वास करेगी ?

प्रसून : हाहा इशरत मामले में, जेएनयू मामले में विश्वास किया था या नहीं ? पब्लिक सुतिया है, विश्वास करेगी ही।

अंजना : हम सब की वैसे भी हिन्दू शब्द से घृणा है, सोशल मीडिया पर बहुत गाली पड़ती है, हम इसे मिटा कर दम लेंगे।

सब एक साथ : हाँ हाँ मिटा के ही दम लेंगे।

Friday 10 June 2016

हिन्दू पलायनवादी है इसलिए कैराना और कश्मीर होता है।

अच्छा चलो, मान लो कल मामले के हाईलाइट होने की वजह से अखिलेश सरकार पुलिस का जमघट लगवा देती है कैराना में। दुसरी तरफ मोदी जी भी सेना के जवानो को भेज देते हैं कैराना में। और तो और आरएसएस, बजरंग दल, विहिप आदि के लोग भी पहुँच जाते हैं कैराना में।

सभी हिंदुओं को उनके घर वापिस दिला दिए जाते हैं, उनकी दुकानें वापिस खुलवा दी जाती हैं, आने जाने के रास्ते पर पुलिस खड़ी कर दी जाती है, और इस तरह से कैराना के हिंदुओं को वापिस बसा दिया जाता है।

एक दिन गुजरा, दो दिन गुजरा, सप्ताह गुजरे, महीना भी गुजरा........ तो क्या अब सेना के जवान, पुलिस सब जिंदगी भर वहीँ रहेंगे ? जाहिर है वो चले जाएंगे........ उसके बाद ? ? फिर भाग जाओगे ?.... फिर पुलिस आएगी ? फिर भाग जाओगे.... फिर पुलिस आएगी.... फिर.... फिर....

फिर तो हिंदुओं तुम्हारा पलायनवादी दृष्टिकोण उचित ही है।

कैराना और कश्मीर का जवाब रणवीर सेना के इतिहास से सीखिये

मैं बार बार रणवीर सेना के इतिहास के बारे में बताता हूँ जो आज हिंदुओं की जरुरत है। 90 के दशक में जब नक्सलियों ने याने दलितों और मुल्लों ने चुन चुन कर भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण जैसे अगड़ी जातियों का सामूहिक नरसंहार शुरू कर दिया था। बिहार में हाहाकार मचा था। जो सवर्ण अपने गाँव जाता वो लौट कर नहीं आता था। जो गाँव में थे सब भाग कर शहर आ गए थे। पूरा बिहार कश्मीर और कैराना बन चुका था। अपनों की लाश जलाने के लिए भी गाँव  में जाने की हिम्मत नहीं थी। लाखों एकड़ जमीन परती पड़ी थी। प्रशासन लालू की थी इसलिए सुनने वाला कोई नहीं था। ये वर्ग लालू का वोटर नहीं था इसलिए लालू वामपंथियों के साथ मिलकर इसका नामोनिशान मिटा देना चाहता था।

लेकिन सवर्णों में एक बुजुर्ग ने सीना ठोंका, एक छोटी सी जगह पर कुछ लोगों के साथ बैठक की, और हाथों में हथियार उठाने का संकल्प लिया। इतना अपमान बर्दाश्त ना था। सबसे पहले कुछ सवर्णों ने अपने लाइसेंसी हथियार आगे किये और सहायता दी। इसके बाद जो हुआ वो इतिहास बन गया। खून की नदी बाह चली। नक्सलियों की क्रूरता भी इनकी क्रूरता के सामने बौनी पड़ गयी। उस वक़्त बिहार सरकार में हाशिये पर गए कई बीजेपी नेताओ का समर्थन मिलना शुरू हो गया। रणवीर सेना का नाम सुनकर बड़े बड़े पुलिस अधिकारीयों के हाथ पाँव फूल जाते थे। मंत्री विधायक सांसदों में खौफ समा गया था।

नक्सली जो कल तक कहीं भी किसी सवर्ण को मारकर निश्चिन्त रहते थे, वो अब एक भी सवर्ण को मारने के पहले दस बार सोचते थे, क्योंकी एक के बदले दस अपने मारे जाएंगे ये तय था। पुरे बिहार में अमन चैन लौट आया। नक्सली वापिस भाग कर बंगाल में घुस गए। लाखों सवर्ण अपने गाँव लौट कर खेती करने लगे। सभी के अंदर गर्व का भाव था, सभी निर्भय हो चुके थे। वह बुजुर्ग आदमी ब्रह्मेश्वर मुखिया लोगों के लिए अवतार बन कर आये।
आज का कोई भी हिन्दू संगठन रणवीर सेना जैसा नहीं। ये भी सच है कि यहां रणवीर सेना की स्थापना तब हुयी जब पानी सर से ऊपर गुजर चूका था और जीने का रास्ता सिर्फ हथियारों से होकर जाता था।

यही एकमात्र तरीका है, कोई पार्टी कोई नेता साथ नहीं देगा। लेकिन जब खड़े होंगे तो मैं आस्वस्त हूँ पूरी दुनिया से समर्थन मिलेगा। हिंसा का जवाब अहिंसा पहले भी कभी नहीं था, ना आज है।

Sunday 5 June 2016

गौमाता की आवाज सुनिए। दिल तड़प उठेगा।

मै कत्लखानों मै कसाइयों के सम्मुख ठेल दी जाती हूँ। चार दिनों तक मुझे भूखा  रखा जाता है ताकि मेरा हीमोग्लोबिन गलकर माँस से चिपक जाये। फिर मुझे घसीट कर लाया जाता है क्योंकी मै मूर्छित रहती हूँ। मुझ पर 200 डिग्री सेल्सियस वाष्प में उबलता हुआ पानी डाला जाता है। मै तडप उठती हूँ ।

हे मेरा दूध पीने वालों मै तुम्हे याद करती हूँ ।मुझे कठोरता से पीटा जाता है ताकि मेरा चमडा आसानी से उतर जाये। मेरी दौनो टाँगे बाँध कर मुझे उल्टा लटका दिया जाता है। फिर मेरे बदन से सारा चमडा निकाल लिया। जाता है। सुनों जीव धारियों अभी भी मैने प्राण नहीं त्यागे है। मै कातर निगाहों से देखती हूँ शायद इन कसाइयों के मन में मनुष्यता का जन्म हो। किन्तु इस समय मुझसे पोषित होने वाला कोई भी मानव मुझे बचाने नहीं आता। मेरे चमडे की चाहत रखने वाले दुष्ट कसाई मेरी जीवित अवस्था में ही मेरा चमडा उतार लेते है और तडप कर मै प्राण त्याग देती हूँ।

इस पावन और पवित्र भारत भूमी पर ऐसा कोई नहीं है क्या जो धर्म और कानून का पालन कर मेरे प्राण बचाये। ।
तुम्हारे द्वारा किये गये क्रूरतम हत्याचारों को सहकर भी मै तुम्हे श्राप नहीं दे सकती ना .................क्योंकि मै माँ हूँ ना।

कुतुबमीनार के बारे में मुस्लिमों के बेतुके जवाब का भंडाफोड

क्या आपको पता है कि अरबी में 'कुतुब' को एक 'धुरी', 'अक्ष', 'केन्द्र बिंदु' या 'स्तम्भ या खम्भा' कहा जाता है। कुतुब को आकाशीय, खगोलीय और दिव्य गतिविधियों के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक खगोलीय शब्द है या फिर इसे एक आध्यात्मिक प्रतीक के तौर पर समझा जाता है। इस प्रकार कुतुब मीनार का अर्थ खगोलीय स्तम्भ या टॉवर होता है। मुस्लिमों ने यहाँ आने पर धर्म परिवर्तन के तहत इसको रूपांतरित किया और अपवित्र किया

इसका यही नाम भी चलता आ रहा था लेकिन कालांतर में इसका नाम सुल्तान कुतुबुद्दीन एबक से जोड़ दिया गया और इसके साथ यह भी माना जाने लगा है कि इसे कुतुबुद्दीन एबक ने बनवाया था।

::::::कुतुबमीनार के बारे में मुस्लिमों के बेतुके जवाब का भंडाफोड :::::

वर्ष 1961 में कॉलेज के कुछ छात्रों का दल कुतुब मीनार देखने गया। तब इस विजय स्तम्भ को दिल्ली में क्यों बनाया गया? गाइड का उत्तर था- पता नहीं। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के एक लेक्चरर (जो कि भ्रमण के लिए आए थे) ने जवाब दिया। विजय स्तम्भ को गोरी ने शुरू करवाया था क्योंकि दिल्ली उसकी राजधानी थी। लेकिन गोरी ने दिल्ली में कभी अपनी राजधानी नहीं बनाई क्योंकि उसकी राजधानी तो गजनी में थी। फिर दिल्ली में विजय स्तम्भ बनाने की क्या तुक थी? कोई जवाब नहीं।

अगर इमारत को गोरी ने शुरू कराया था तो इसका नाम गोरी मीनार होना चाहिए, कुतुब मीनार नहीं। इसे कुतुब मीनार क्यों कहा जाता है। इसके जवाब में कहा जाता है कि इस इमारत का निर्माण शुरू करने वाला कुतुबद्दीन एबक मोहम्मद गोरी का गुलाम था और उसने अपने मालिक के लिए इसकी नींव रखी थी। 

अगर यह तर्क सही है तो उसने विजय स्तम्भ के लिए दिल्ली को ही क्यों चुना? उत्तर है कि दिल्ली कुतुबुद्दीन एबक की राजधानी थी। अब सवाल यह है कि इस मीनार का निर्माण गोरी के जीवनकाल में शुरू हो गया था, वह जीवित था तो फिर उसके गुलाम ने दिल्ली को कैसे अपनी राजधानी बना लिया था?