Sunday 8 June 2014

हीरा : सभी रत्नों में सर्वश्रेष्ठ....... ऐसे करें हीरे की पहचान....

हीरा मात्र खनिज रत्नों में ही नहीं अपितु विश्व की सभी वस्तुओं में अपना सर्वश्रेष्ठ स्थान रखता है। हीरा अपने सर्वोपरि गुण कठोरतम होने के कारण, दुर्लभता, एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की सुगमता और अत्यधिक प्रचलन के कारण ही सभी रत्नों में श्रेष्ठ है।

हीरे तो वैसे अन्य रत्नों की तुलना में सबसे अधिक विश्व भर में लगभग 5 टन प्रतिवर्ष निकाले जाते हैं, परंतु यह प्रायः नीरस, धूमिल, कृष्ण व अपारदर्शक होते हैं। शुद्ध हीरा अति ही अल्प मात्रा में पाया जाता है।

काष्ठ पर यदि पन्ना व पुखराज को रखा जाए तो पन्ना स्वयं दहकने लगता है। पुखराज सूर्य की भांति चमकने लगता है, परंतु यदि हीरे को काष्ठ पर रखा जाए तो उसमें स्वयं का तो कोई परिवर्तन नहीं होता है, परंतु वह काष्ठ अधिक श्वेत, अत्यधिक मनोहर, रवेदार व विशुद्ध दिखाई देता है।

हीरा विद्युत का कुचालक होता है। यह सतह पर रगड़ने से धन विद्युत का आवेश उत्पन्न करता है, परंतु हीरा ताप का सुचालक है, इसलिए यह स्पर्श में शीतल प्रतीत होता है।

हीरा जल जाता है। ऑक्सीजन गैस से परिपूर्ण शीशे के बर्तन में हीरा रखकर उस पर आतशी शीशे द्वारा सूर्य की किरणें केन्द्रित करने पर जलने लगता है। (इसे सर हम्फ्री डेवी ने सन्‌ 1816 में जलाकर सिद्ध किया था।)


जो हीरा (पत्थर) आपके पास है, उसे परा-बैंगनी किरणों (अल्ट्रा-वॉयलेट) में देखने की कोशिश करें। अगर परा-बैंगनी किरणों में हीरे नीली आभा के साथ चमकेंगे, तो वे असली है। लेकिन अगर हीरे से हल्की पीली, हरी या फिर स्लेटी रंग की आभा निकले, तो समझ लीजिए कि ये मोइसानाइट है।

इसको परखने का एक और तरीका भी है। जहां असली हीरा पानी में डालते ही डूब जाता है, वहीं नकली हीरा पानी के ऊपर तैरता रहता है।

पर्याय नाम - 


हीरक, वज्र, भार्गव प्रिया, मणिवर, पवि, अभेद्य, कुलिष, विद्युत, अर्क, त्रिपुर।

हिन्दी- हीरा, मराठी- छोटा हीनरा, बंगाली- हीरक, अरबी अलपास, अग्रेंजी- डायमंड।

जानिए रत्नों का रहस्यमय संसार :: रत्नों का पौराणिक महत्व:::

रत्न चौरासी माने गए हैं। नौ प्रमुख रत्न तथा शेष उपरत्न माने जाते हैं। इन नौ प्रमुख रत्नों का नवग्रहों से संबंध माना जाता है।


सूर्य- माणिक्य, चन्द्रमा-मोती, मंगल- मूंगा, बुध- पन्ना, बृहस्पति- पुखराज, शुक्र- हीरा, शनि- नीलम, राहु- गोमेद, केतु- लहसुनिया।

पुराणों में कुछ ऐसे मणि रत्नों का वर्णन भी पाया जाता है, जो पृथ्वी पर पाए नहीं जाते।

* चिंतामणि * कौस्तुभ मणि * रुद्र मणि * स्यमंतक मणि

ऐसा माना जाता है कि चिंतामणि को स्वयं ब्रह्माजी धारण करते हैं। कौस्तुभ मणि को नारायण धारण करते हैं। रुद्रमणि को भगवान शंकर धारण करते हैं। स्यमंतक मणि को इंद्र देव धारण करते हैं। पाताल लोक भी मणियों की आभा से हर समय प्रकाशित रहता है। इन सब मणियों पर सर्पराज वासुकी का अधिकार रहता है। 


प्रमुख मणियां 9 मानी जाती हैं- घृत मणि, तैल मणि, भीष्मक मणि, उपलक मणि, स्फटिक मणि, पारस मणि, उलूक मणि, लाजावर्त मणि, मासर मणि।


इन मणियों के संबंध में कई बातें प्रचलित हैं। 

* घृतमणि की माला धारण कराने से बच्चों को नजर से बचाया जा सकता है। 
* इस मणि को धारण करने से कभी भी लक्ष्‍मी नहीं रूठती। 
* तैल मणि को धारण करने से बल-पौरुष की वृद्‍धि होती है। 
* भीष्मक मणि धन-धान्य वृद्धि में सहायक है। 
* उपलक मणि को धारण करने वाला व्यक्ति भक्ति व योग को प्राप्त करता है। 
* उलूक मणि को धारण करने से नेत्र रोग दूर हो जाते हैं। 
* लाजावर्त मणि को धारण करने से बुद्धि में वृद्धि होती है। 
* मासर मणि को धारण करने से पानी और अग्नि का प्रभाव कम होता है

मुलहठी :::: बलवीर्यवर्द्धक और सुडौल शरीर के साथ साथ दुनिया भर के फायदे

एक बहुत ही उपयोगी एवं सुपरिचित जड़ी है मुलहठी, जिसे अन्य बोलचाल में मुलेठी भी कहते हैं। यह दो वर्ष तक खराब नहीं होती और विभिन्न नुस्खों में औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है। 

मुलहठी के गुण : यह शीतल, शीतवीर्य, भारी, स्वादिष्ट, नेत्रों के लिए हितकारी, बल तथा वर्ण के लिए उत्तम, स्निग्ध, वीर्यवर्द्धक, केशों तथा स्वर के लिए गुणकारी है। यह पित्त, वात एवं रुधिर विकार, व्रण, शोथ, विष, वमन, तृषा, ग्लानि तथा क्षय को नष्ट करने वाली है। नेत्रों के लिए फायदेमन्द, त्रिदोषनाशक और घाव को भरने वाली है।

उपयोग : इसका उपयोग औषधियों में, मीठे जुलाब में, मीठी गोली, खांसी की गोली, बलवीर्यवर्द्धक नुस्खों में प्रायः होता ही है। आयुर्वेदिक योग मधुयष्टादि चूर्ण, यष्टादि क्वाथ, यष्टी मध्वादि तेल में इसका उपयोग होता है। इसे मुंह में रखकर चूसने से कफ आसानी से निकल जाता है, खांसी में आराम होता है, गले की खराश और स्वरभंग में लाभ होता है।

रासायनिक संघटन : इसमें एक प्रमुख तत्व ग्लिसीराइजिन पाया जाता है जो ग्लिसीराजिक एसिड के रूप में रहता है। यह शकर से 50 गुना मीठा होता है। इसमें एक स्टिरॉयड इस्ट्रोजन भी पाया जाता है। इसके अतिरिक्त ग्लूकोज, सुक्रोज, मैनाइट, स्टार्च, ऐस्पैरेजिन, तिक्त पदार्थ, राल, एक प्रकार का उड़नशील तेल और एक रंजक तत्व पाया जाता है

मुलहठी एक पौष्टिक औषधि : 

शरीर को पुष्ट, सुडौल और शक्तिशाली बनाने के लिए किसी भी आयु वाले स्त्री या पुरुष सुबह और रात को सोने से पहले मुलहठी का महीन पिसा हुआ चूर्ण 5 ग्राम, आधा चम्मच शुद्ध घी और डेढ़ चम्मच शहद में मिलाकर चाटें और ऊपर से मिश्री मिला ठंडा किया हुआ दूध घूंट-घूंट कर पिएं। यह प्रयोग कम से कम 40 दिन करें। बहुत लाभकारी है।


मासिक ऋतुस्राव में लाभकारी : 

मुलहठी का चूर्ण 5 ग्राम थोड़े शहद में मिलाकर चटनी जैसा बनाकर चाटने और ऊपर से मिश्री मिला ठंडा किया हुआ दूध घूंट-घूंटकर पीने से मासिक स्राव नियमित हो जाता है। इसे कम से कम 40 दिन तक सुबह-शाम पीना चाहिए और तले पदार्थ, गरम मसाला, लाल मिर्च, बेसन के पदार्थ, अंडा व मांस का सेवन बंद रखें। ऊष्ण प्रकृति के पदार्थों का सेवन न करें। यह महिलाओं के मासिक ऋतुस्राव की अनियमितता को दूर करती है। 


कफ प्रकोप व खांसी : 

ग्राम मुलहठी चूर्ण 2 कप पानी में डालकर इतना उबालें कि पानी आधा कप बचे। इस पानी को आधा सुबह और आधा शाम को सोने पहले पी लें। 3-4 दिन तक यह प्रयोग करना चाहिए। इस प्रयोग से कफ पतला हो जाता है और ढीला हो जाता है, जिससे बड़ी आसानी से निकल जाता है और खांसी व दमा के रोगी को बड़ी राहत मिलती है।


मुंह के छाले : 

मुलहठी का टुकड़ा मुंह में रखकर चूसने से मुंह के छाले ठीक होते हैं। इसके चूर्ण को थोड़े से शहद में मिलाकर चाटने से भी आराम होता है।


हिचकी : 

मुलहठी चूर्ण शहद के साथ चाटने से हिचकी आना बंद होता है। यह प्रयोग वात और पित्त का शमन भी करता है।


पेट दर्द : 

वात प्रकोप से होने वाले उदरशूल में ऊपर बताए गए मुलहठी के काढ़े का सेवन आधा सुबह और आधा शाम को करने से बादी का उदरशूल ठीक हो जाता है।



बलवीर्यवर्द्धक और सुडौल शरीर : 

मुलहठी का चूर्ण 5 ग्राम और 5 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण थोड़े से घी में मिलाकर चाट लें और ऊपर से 1 गिलास मिश्री मिला मीठा दूध पिएं। लगातार 60 दिन तक यह प्रयोग सुबह-शाम करने से खूब बलवीर्य की वृद्धि होती है और शरीर पुष्ट व सुडौल होता है। 


दाह (जलन) : 

मुलहठी और लाल चंदन पानी के साथ घिसकर लेप करने से दाह (जलन) शांत होती है। केश एवं नेत्रों के लिए इसका प्रयोग अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है। 


धन प्राप्ति के लिए कुछ उपाय।

व्यक्ति धनवान बनता है या तो अपने भाग्य के बल पर या कर्म के बल पर, लेकिन कभी-कभी यह दोनों ही बल समाप्त हो जाते हैं तो कहते हैं निर्बल के बल राम या धर्म के करो कोई उपाय।

धन प्राप्ति के लिए कुछ लोग लक्ष्मी माता का पूजन करते हैं, कुछ तुलसी का पौधा घर में रखकर प्रतिदिन सुबह शाम घी का दीपक जलाते हैं और कुछ लोग प्रति शुक्रवार लक्ष्मी-नारायण मंदिर जाकर सफेद रंग की मिठाई चढ़ाते हैं, लेकिन यहां प्रस्तुत हैं इससे कुछ भिन्न उपाय।

1. लक्ष्मी का प्रतीक कौड़ियां : पीली कौड़ी को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। कुछ सफेद कौड़ियों को केसर या हल्दी के घोल में भिगोकर उसे लाल कपड़े में बांधकर घर में स्थित तिजोरी में रखें। कौड़ियों के अलावा एक नारियल की विधि-विधान से पूजा कर उसे चमकीले लाल कपड़े में लपेटकर तिजोरी में रख दें।

2. शंख का महत्व : शंख समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह अनमोल रत्नों में से एक है। लक्ष्मी के साथ उत्पन्न होने के कारण इसे लक्ष्मी भ्राता भी कहा जाता है। यही कारण है कि जिस घर में शंख होता है वहां लक्ष्मी का वास होता है। घर में शंख जरूर रखें।


3. पीपल की पूजा : प्रति शनिवार को पीपल को जल चढ़ाकर उसकी पूजा करेंगे तो धन और समृद्धि में बढ़ोत्तरी होगी।

4. ईशान कोण : घर का ईशान कोण हमेशा खाली रखें। हो सके तो वहां पर जलभरा एक पात्र रखें। चाहे तो वहां जल कलश भी रख सकते हैं।

5. बांसुरी रखें घर में : बांस निर्मित बांसुरी भगवान श्रीकृष्ण को अतिप्रिय है। जिस घर में बांसुरी रखी होती है, वहां के लोगों में परस्पर प्रेम तो बना रहता है और साथ ही सुख-समृद्धि भी बनी रहती है।

दिशाशूल दोष को देखकर ही यात्रा प्रारभ्म करनी चाहिए..

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लम्बी यात्रा हो या छोटी लेकिन दिशाशूल दोष को देखकर ही यात्रा प्रारभ्म करनी चाहिए।
पूर्व दिशा : इस दिशा में सोमवार और शनिवार को दिशाशूल दोष होता है। इन दिनों में पूर्व दिशा में यात्रा करना अशुभ होता है।
पश्चिम दिशा : इस दिशा में रविवार और शुक्रवार को दिशाशूल दोष होता है। यह अशुभ होता है।
दक्षिण दिशा : इस दिशा में वीरवार को यात्रा करना ठीक नहीं है।
उत्तर दिशा : मंगल और बुधवार के दिन उत्तर दिशा में यात्रा करना अमंगलकारी होता है।
यात्रा करना जरूरी हो तब?
- ज्योतिष के अनुसार प्रतिदिन दिशाशूल का प्रभाव दिन में 12 बजे तक ही रहता है। 12 बजे के बाद दिशाशूल दोष का प्रभाव कम हो जाता है।
- जैसे उत्तर दिशा में मंगल और बुधवार को दिशाशूल दोष है और यात्रा करना भी जरूरी है तो यात्रा प्रात:काल ब्रह्म मुहूत्र्त में प्रारम्भ कर देनी चाहिए। यात्रा से पूर्व कुछ खा लेना चाहिए।
यात्रा विधि
यात्रा प्रारम्भ करने से पहले दाहिने पैर को सर्वप्रथम उठाकर यात्रा दिशा में 32 कदम चलकर यात्रा करने के साधन में बैठकर तिल, घृत, तांबे का पात्र दान करना चाहिए।
यात्रा पूर्व शुभ शकुन
यात्रा के आरंभ में हमें ब्राह्मण, घोड़ा, हाथी, फल, अन्न, दूध, दही, गौ, सरसों, कमल, श्वेत वस्त्र, मोर, जलपूर्ण कलश, मिट्टी, कन्या, रत्न, पगड़ी, बैल, संतान सहित स्त्री, मछली, पालकी दिखाई दे तो ये शुभ संकेत होते हैं।

Thursday 5 June 2014

वीर ब्रह्मेश्वर मुखिया ने ग़रीब मज़लुमो के लिए स्थापित किया था रणवीर सेना


ये उस वक़्त की बात थी जब कॉंग्रेस के बाद लालू यादव का राज आया था और लालू का मुस्लिम प्रेम किसी से छुपा हुआ नही था .. उसी वक़्त तक एमसीसी नक्शली संगठन ने अपनी जड़ें पूरे बिहार में जमा ली थी ..इस एमसीसी में जहाँ पिछड़ी जाति के लोग थे वहीं मुसलमान भी इस में शामिल थे .. 
यही नही खुद लालू का समर्थन अप्रत्यक्ष रूप से था तो कम्यूनिस्ट पार्टी के लोग इसके कमांडर हुआ करते थे .. (वैसे ये आज भी चल रहा है )...
उस समय की ये हालत थी की ये लोग लाल झंडा ले कर किसी भी अगड़ी जाति के आदमी के खेत पर जा कर वो झंडा गाड़ देते और क़ब्ज़ा कर लेते .. अमूमन तो उस खेत के मालिक को मार ही डालते थे ..

अगर कुछ नही मिला तो बस यूँ ही किसी भी गाँव में घुस जाते और जितने भी अगड़ी जाती के लोग होते उनके घर को जला देते .. और बीवी बाल बच्चे के साथ सारे भूमिहार राजपूतों को वहीं मार दिया करते .. कोई केस नही बनता था कोई ऐक्शन नही लिया जाता था ..

क्यूँ की इनके लिए एक तर्क था जो लालू से ले कर नीतीश कुमार दिया करते थे की "ये हमारे ही भाई है जो भटक गये हैं .. इनको मुख्यधारा में लाया जाएगा "

वो बहुत भयानक दिन थे .. बिहार के गाँव से देहात से लोग पलायन करने लगे .. पूरे का पूरा गाँव अगड़ी जातियों से खाली होने लगी .. ये बिल्कुल वैसा ही था जैसा कश्मीरियो के साथ असम के लोगों के साथ हुआ है .. अगड़ी जातियों के खिलाफ ये हाल हो गया था की बहुत सारे शहर चले गये तो कुछ ने अपने बच्चों को गाँव से बाहर ही भेज दिया थालोग बिहार में अपनी जाति बताने में डरने लगे थे .. आप कहीं गाँव गये.. चार लोग आपके सामने आए .. और पूछे की नाम क्या है .. आप ने नाम बताया जाति बताई .. बस वहीं पर हत्या ....

लेकिन उसी वक़्त लोहे को लोहा ही काटता है के तर्ज पर कोई मसीहा बन कर खड़ा हुआ .. ये नब्बे के दशक की बात है जब प्रतिबंधित संगठन भाकपा माले लिबरेशन से जब लोहा लेने कि बात आई तब भूमिहारों ने अवतारी पुरुष रणवीर चौधरी के नाम पर “ रणवीर किसान समिति “ बनाई | ब्रह्मेश्वर नाथ सिंह (शहीद वीर ब्रह्मेश्वर मुखिया) ने मुक़ाबले के लिए रणवीर सेना का निर्माण किया ..और छोटे से संगठन के साथ ही सही पर डट कर मुक़ाबला किया .. मुझे नही लगता ये ग़लत काम था .. सम्मान के साथ जीने का यह आख़िरी रास्ता था .. अपने बच्चों और परिवार को बचाने का यही विकल्प था .. ये रणवीर सेना के सिर्फ़ अस्तित्व में आते ही लोग वापिस अपने पुरखों के ज़मीन पर लौटने लगे .. भय ख़त्म हुआ .. चारों तरफ लड़ाई छिड़ गयी थी .. पर अंदर से दुखी और सताए हुए भूमिहारों ने जब पलट हमला किया तो एमसीसी नक्शली संगठन के पाँव उखड़ गये ..
भूमिहारों के बारे में वैसे भी कहावत है :

"खनक जाए हाथों में उसे तलवार कहते हैं,
निकाल दे जो बालू से तेल उसको भूमिहार कहते हैं "

(ये पोस्ट इस सन्दर्भ में है की ब्राह्मेश्वर मुखिया को मीडीया ने और लोगों ने बहुत बदनाम किया है लेकिन हथियार उठा ने के पीछे क्या मजबूरी थी .. ये किसी ने नहीं बताया )


Wednesday 4 June 2014

मरने के कितने दिनों बाद आत्मा पहुंचती है यमलोक, क्या होता है रास्ते में?

 हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद स्वर्ग-नरक की मान्यता है। पुराणों के अनुसार जो मनुष्य अच्छे कर्म करता है, उसके प्राण हरने देवदूत आते हैं और उसे स्वर्ग ले जाते हैं, जबकि जो मनुष्य जीवन भर बुरे कामों में लगा रहता है, उसके प्राण हरने यमदूत आते हैं और उसे नरक ले जाते हैं, लेकिन उसके पहले उस जीवात्मा को यमलोक ले जाया जाता है, जहां यमराज उसके पापों के आधार पर उसे सजा देते हैं। 

मृत्यु के बाद जीवात्मा यमलोक तक किस प्रकार जाती है। इसका विस्तृत वर्णन गरुड़ पुराण में है। गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि किस प्रकार मनुष्य के प्राण निकलते हैं और किस तरह वह प्राण पिंडदान प्राप्त कर प्रेत का रूप लेते हैं। जानिए यमदूत किस प्रकार किसी मनुष्य के प्राण निकालते हैं और उसे किस प्रकार यातना देते हुए यमलोक तक ले जाते हैं-

गरुड़ पुराण के अनुसार जिस मनुष्य की मृत्यु होने वाली होती है, वह बोलने की इच्छा होने पर भी बोल नहीं पाता है। अंत समय में उसमें दिव्यदृष्टि उत्पन्न होती है और वह संपूर्ण संसार को एकरूप समझने लगता है। उसकी सभी इंद्रियां नष्ट हो जाती हैं और वह जड़ अवस्था में हो जाता है, यानी हिलने-डुलने में असमर्थ हो जाता है। इसके बाद उसके मुंह से झाग निकलने लगते हैं और लार टपकने लगती है। पापी पुरुष के प्राण नीचे के मार्ग से निकलते हैं। 

उस समय दो यमदूत आते हैं। वे बड़ी भयानक क्रोधवाली आंखों वाले होते हैं। उनके हाथ में पाशदंड रहता है। वे अपने दांतों से कट-कट करते हैं। यमदूतों के कौए जैसे काले बाल होते हैं। उनका मुंह बहुत भयानक होता है, नाखून ही उनके शस्त्र होते हैं। यमराज के दूतों को देखकर प्राणी भयभीत होकर मल-मूत्र त्याग करने लग जाता है। उस समय शरीर से अंगूष्ठमात्र (अंगूठे के बराबर) जीव हा हा शब्द करता हुआ निकलता है, जिसे यमदूत पकड़ लेते हैं।
 गरुड़ पुराण के अनुसार जब यमदूत किसी आत्मा को यमलोक ले जाते हैं तो सबसे पहले वे यमपुरी के द्वार पर स्थित द्वारपाल को इसकी सूचना देते हैं। द्वारपाल चित्रगुप्त को बताते हैं और चित्रगुप्त जाकर यमराज को कहते हैं।

- तब यमराज चित्रगुप्त से उस पापात्मा के अच्छे-बुरे कर्मों का हिसाब पूछते हैं। तब चित्रगुप्त श्रवण नाम के गणों से उस पापात्मा के विषय में जानकारी लेते हैं। श्रवण नामक देवता ब्रह्माजी के पुत्र हैं। ये स्वर्गलोक, मृत्युलोक, पाताललोक आदि में भ्रमण करते हैं और मनुष्य के अच्छे-बुरे कर्मों को देखते हैं।

 यमराज के दूत उस शरीर को पकड़कर पाश गले में बांधकर उसी क्षण यमलोक ले जाते हैं, जैसे- राजा के सैनिक अपराध करने वाले को पकड़ कर ले जाते हैं। उस पापी जीवात्मा को रास्ते में थकने पर भी यमराज के दूत भयभीत करते हैं और उसे नरक में मिलने वाले दुखों के बारे में बार-बार बताते हैं। यमदूतों की ऐसी भयानक बातें सुनकर पापात्मा जोर-जोर से रोने लगती है, किंतु यमदूत उस पर बिल्कुल भी दया नहीं करते हैं। 

- इसके बाद वह अंगूठे के बराबर शरीर यमदूतों से डरता और कांपता हुआ, कुत्तों के काटने से दु:खी हो अपने किए हुए पापों को याद करते हुए चलता है। आग की तरह गर्म हवा तथा गर्म बालू पर वह जीव चल नहीं पाता है और वह भूख-प्यास से भी व्याकुल हो उठता है। तब यमदूत उसकी पीठ पर चाबुक मारते हुए उसे आगे ले जाते हैं। वह जीव जगह-जगह गिरता है और बेहोश हो जाता है। फिर उठ कर चलने लगता है। इस प्रकार यमदूत उस पापी को अंधकार वाले रास्ते से यमलोक ले जाते हैं।

गरुड़ पुराण के अनुसार यमलोक 99 हजार योजन (योजन वैदिक काल की लंबाई मापने की इकाई है। एक योजन बराबर होता है चार कोस यानी 13-16 कि.मी)। वहां यमदूत पापी जीव को थोड़ी ही देर में ले जाते हैं। इसके बाद यमदूत उसेभयानक  यातना देते हैं। इसके बाद वह जीवात्मा यमराज की आज्ञा से यमदूतों के साथ पुन: अपने घर आती है।

 घर आकर वह जीवात्मा अपने शरीर में पुन: प्रवेश करने की इच्छा करती है परंतु यमदूत के बंधन से वह मुक्त नहीं हो पाती और भूख-प्यास के कारण रोती है। पुत्र आदि जो पिंड और अंत समय में दान करते हैं, उससे भी प्राणी को तृप्ति नहीं होती क्योंकि पापी पुरुषों को दान, श्रद्धांजलि द्वारा तृप्ति नहीं मिलती। इस प्रकार भूख-प्यास से युक्त होकर वह जीव यमलोक जाता है।

 इसके बाद पापात्मा के  पुत्र आदि परिजन यदि पिंडदान नहीं देते हैं, तो वह प्रेत रूप हो जाती है और लंबे समय तक निर्जन वन में रहती है। इतना समय बीतने के बाद भी कर्म को भोगना ही पड़ता है, क्योंकि प्राणी नरक यातना भोगे बिना उसे मनुष्य शरीर नहीं प्राप्त होता। गरुड़ पुराण के अनुसार मनुष्य की मृत्यु के बाद 10 दिन तक पिंडदान अवश्य करना चाहिए। उस पिंडदान के प्रतिदिन चार भाग हो जाते हैं। उसमें दो भाग तो पंचमहाभूत देह कोपुष्टि देने वाले होते हैं, तीसरा भाग यमदूत का होता है तथा चौथा भाग प्रेत खाता है। नौवें दिन पिंडदान करने से प्रेत का शरीर बनता है, दसवें दिन पिंडदान देने से उस शरीर को चलने की शक्ति प्राप्त होती है।

गरुड़ पुराण के अनुसार शव को जलाने के बाद पिंड से हाथ के बराबर का शरीर उत्पन्न होता है। वही यमलोक के मार्ग में शुभ-अशुभ फल को भोगता है। पहले दिन पिंडदान से मूर्धा (सिर), दूसरे दिन से गर्दन और कंधे, तीसरे दिन से ह्रदय, चौथे दिन के पिंड से पीठ, पांचवें दिन से नाभि, छठे और सातवें दिन से कमर और नीचे का भाग, आठवें दिन से पैर, नौवें और दसवें दिन से भूख-प्यास आदि उत्पन्न होती है। ऐसे पिंड शरीर को धारण कर भूख-प्यास से व्याकुल प्रेत ग्यारहवें और बारहवें दिन का भोजन करता है।

 यमदूतों द्वारा तेरहवें दिन प्रेत को बंदर की तरह पकड़ लिया जाता है। इसके बाद वह प्रेत भूख-प्यास से तड़पता हुआ यमलोक अकेला ही जाता है। यमलोक तक पहुंचने का रास्ता वैतरणी नदी को छोड़कर छियासी हजार योजन है। उस मार्ग पर प्रेत प्रतिदिन २०० योजन चलता है। इस प्रकार वह 47 दिन लगातार चलकर यमलोक पहुंचता है। इस प्रकार मार्ग में सोलह पुरियों को पार कर पापी जीव यमराज के घर जाता है। 

 इन सोलह पुरियों के नाम इस प्रकार हंै- सौम्य, सौरिपुर, नगेंद्रभवन, गंधर्व, शैलागम, क्रौंच, क्रूरपुर, विचित्रभवन, बह्वापाद, दु:खद, नानाक्रंदपुर, सुतप्तभवन, रौद्र, पयोवर्षण, शीतढ्य, बहुभीति। इन सोलह पुरियों को पार करने के बाद आगे यमराजपुरी आती है। पापी प्राणी यम, पाश में बंधे हुए मार्ग में हाहाकार करते हुए अपने घर को छोड़कर यमराज पुरी जाते हैं।
साभार : bhaskar.com

रुद्राक्ष है शक्ति और औषधि गुणों से भरपूर

रुद्राक्ष एक वनस्पति है। इसके पेड़ पर बेर की तरह फल लगते हैं। रूद्राक्ष की शक्ति और औषधि गुणों वैज्ञानिक तौर पर भी सिद्ध हो चुके हैं।
रुद्राक्ष को रात भर पानी में भिगोकर रखने और सुबह खाली पेट यह पानी पीने से ह्दय रोग नहीं होता। यह स्वभाव से प्रभावी होता है लेकिन यदि इसे विशेष तौर से सिद्ध किया जाए तो इसका प्रभाव कई गुना अधिक महसूस होता है।
अगर जप की माल सिद्ध करनी हो तो पंचगव्य (पंचामृत) में डुबोएं, फिर साफ पानी से धो लें। ध्यान रहे कि हर मणि पर ईशानः सर्वभूतानां मंत्र 10 बार बोलें।
मेरू मणि पर स्पर्श करते हुए 'ऊं अघोरे भो त्र्यंबकम्' मंत्र का जाप करें। यदि एक ही रुद्राक्ष सिद्ध करना हो तो पहले उसे पंचगव्य से स्नान कराएं। इस के बाद गंगा स्नान कराएं। बाद में उसकी षोडशोपचार पूजा करें, फिर उसे चांदी के डिब्बे में रखें। उस पर प्रतिदिन या महीने में एक बार इत्र की दो बूंदें जरूर डालें। भगवान के चरणों का स्पर्श कराकर मनचाही मनोकामना कर सकते हैं।
रुद्राक्ष से मंगलकामना
रुद्राक्ष से आपकी मनोकामना भी पूरी हो सकती है। कहते हैं कि चतुर्मुखी रुद्राक्ष अध्ययन के लिए, पंचमुखी रुद्राक्ष नित्य जप करें, षड्मुखी रुद्राक्ष पुत्र प्राप्ति के लिए, चतुर्दश एवं पंचदशमुखी रुद्राक्ष लक्ष्मी प्राप्ति के लिए तथा इक्कीसमुखी रुद्राक्ष केवल ज्ञान प्राप्ति के लिए, धारण कर सकते हैं। दरअसल रुद्राक्ष सिद्ध करना सहज बात है पर सिद्ध रखना मुश्किल है। दुराचार, अनाचार, व्यभिचार और असत्य वचन आदि कारणों से रुद्राक्ष की सिद्धि कम हो जाती है।
रुद्राक्ष धारण पद्धति
गले में 32 रुद्राक्षों की माल, सिर 40 रुद्राक्षों की माला, कानों में 6 या 8 रुद्राक्षों की माला, चोटी की जगह 1 वक्षस्थल पर 108 रुद्राक्षों की माला धारण करने की विधि ही रुद्राक्ष धारण पद्धति कहलाती है। वर्तमान में गले में 108 या 32 रुद्राक्ष पहनने की प्रथा है। शिवपूजन के समय रुद्राक्ष धारण करने की विधि की जाती है।


Tuesday 3 June 2014

क्रूरतम हत्याचारों को सहकर भी मै तुम्हे श्राप नहीं दे सकती ना ...क्योंकि मै माँ हूँ ना।

मै कत्लखानों मै कसाइयों के सम्मुख ठेल दी जाती हूँ। चार दिनों तक मुझे भूखा रखा जाता है ताकि मेरा हीमोग्लोबिन गलकर माँस से चिपक जाये। फिर मुझे घसीट कर लाया जाता है क्योंकी मै मूर्छित रहती हूँ। मुझ पर 200 डिग्री सेल्सियस वाष्प में उबलता हुआ पानी डाला जाता है। मै तडप उठती हूँ ।

हे मेरा दूध पीने वालों मै तुम्हे याद करती हूँ ।मुझे कठोरता से पीटा जाता है ताकि मेरा चमडा आसानी से उतर जाये। मेरी दौनो टाँगे बाँध कर मुझे उल्टा लटका दिया जाता है। फिर मेरे बदन से सारा चमडा निकाल लिया। जाता है। सुनों जीव धारियों अभी भी मैने प्राण नहीं त्यागे है। मै कातर निगाहों से देखती हूँ शायद इन कसाइयों के मन में मनुष्यता का जन्म हो। किन्तु इस समय मुझसे पोषित होने वाला कोई भी मानव मुझे बचाने नहीं आता। मेरे चमडे की चाहत रखने वाले दुष्ट कसाई मेरी जीवित अवस्था में ही मेरा चमडा उतार लेते है और तडप कर मै प्राण त्याग देती हूँ।

"ए हिंद देश के लोगों, सुन लो मेरी दर्द कहानी।
क्यों दया धर्म विसराया, क्यों दुनिया हुई वीरानी !!
जब सबको दूध पिलाया, मैं गौ माता कहलाई, 
क्या है अपराध हमारा, जो काटे आज कसाई।
बस भीख प्राण की दे दो, मै द्वार तिहारे आई
मैं सबसे निर्बल प्राणी, मत करो आज मनमानी॥ 
जब जाउँ कसाईखाने, चाबुक से पीटी जाती, 
उस उबले जल को तनपर, मैं सहन नहीं कर पाती।
जब यंत्र मौत का आता, मेरी रुह तककम्प जाती, मेरा कोई साथ न देता, यहाँ सब की प्रीत पहचानी॥ 
उस समदृष्टि सृष्टि नें, क्यों हमें मूक बनाया 
न हाथ दिए लड़नें को, हिन्दु भी हुआ पराया। 
कोई मोहन बन जाओ रे, जिसने मोहे कंठ लगाया, 
मैं फर्ज़ निभाउँ माँ का, दूँ जग को ममता निशानी॥
मैं माँ बन दूध पिलाती, तुम माँ का माँस बिकाते, 
क्यों जननी के चमड़े से, तुम पैसा आज कमाते। 
मेरे बछड़े अन्न उपजाते, पर तुम सब दया न लाते, 
गौ हत्या बंद करो रे, रहनेंदोवंश निशानी 
हे हिन्दु वीरों आपकी गौ माँ आपकी तरफ अश्रु पूर्ण नयनों से निहार रही है।
आपकी माँ

इस पावन और पवित्र भारत भूमी पर ऐसा कोई नहीं है क्या जो धर्म और कानून का पालन कर मेरे प्राण बचाये। तुम्हारे द्वारा किये गये क्रूरतम हत्याचारों को सहकर भी मै तुम्हे श्राप नहीं दे सकती ना

.................क्योंकि मै माँ हूँ ना 

Monday 2 June 2014

छोटे से कमरे से शुरू हुआ वॉशिंग पाउडर का टर्नओवर अब 5 अरब डॉलर

1969 में गुजरात के छोटे शहर में एक केमिस्ट्री ग्रेजुएट और सरकारी लेबॉरेटरी में जूनियर केमिस्ट करसनभाई पटेल ने अपने घर के पिछवाड़े में डिटर्जेंट यानी वाशिंग पाउडर बनाना शुरू किया। बाल्टी में बनाए जाने वाले इस डिटर्जेंट को वह नौकरी से फुर्सत पाने के बाद घर-घर जाकर बेचते। धीरे-धीरे उनके इस डिटर्जेंट ने मार्केट में जगह बना ली।
उस समय बाज़ार में सबसे सस्ता वाशिंग पाउडर करीब 13 रुपये का था। करसनभाई ने बस 3 रुपये में अपना पाउडर बेचना शुरू किया। इस डिटर्जेंट का नाम उन्होंने अपनी बेटीनिरुपमा के नाम पर निरमा रखा।
धीरे-धीरे निरमा ने मध्यम और छोटे आय वाले परिवारों के बीच जगह बना ली। उस समय भारतीय बाज़ार में मल्टिनैशनल कंपनी के वाशिंग प्रॉडक्ट्स का बोलबाला था। निरमा ने उन्हें टक्कर दी और 80 के दशक में सबसे पॉप्युलर वाशिंग पाउडर बन गया।
निरमा सिर्फ वाशिंग पाउडर ही नहीं बनाती बल्कि इसके टॉइलेट सोप और दूसरे प्रॉ़क्डक्ट्स भी काफी पॉप्युलर हैं
....
'मान गए? किसे? आपकी पारखी नज़र और निरमा सुपर, दोनों को।' याद है न! बाज़ार में अपनी पोजिशन से ज्यादा निरमा हमारे मन में अपने शानदार ऐड्स के लिए बसा है। निरमा की डांसिंग गर्ल से लेकर हेमा, रेखा, जया और सुषमा वाले ऐड हों, इन विज्ञापनों को कौन भूल सकता है।
एक छोटे से कमरे से हुआ निरमा का सफर अब बहुत आगे बढ़ चुका है। 2004 में निरमा ने 8 लाख टन से अधिक के डिटर्जेंट की बिक्री की। निरमा का टर्नओवर अब 5 अरब डॉलर से ऊपर जा चुका है। एक आदमी से शुरू इस सफर में अब 15000 से अधिक लोग जुड़ चुके हैं। :NBT:

Sunday 1 June 2014

फुटपाथ के दुकानदारो के लिए क्या मोदी जी कुछ ऐसा करेंगे ?

ये मैं बचपन से ही देखता आ रहा हू की जो फूटपाथी दुकानदार होते हैं उनके खिलाफ सरकार हमेशा मुहिम चलती है .. लोकल गुंडे हमेशा हफ़्ता वसूलते हैं .. पोलीस का हफ़्ता तो वेतन की तरह बँधा हुआ है ... सरकार तो अतिक्रमण हटाने के नाम पर उनके पूरे दुकान को ही तबाह कर के आ जाती है .. लेकिन एक आम आदमी की हैसियत से मैने ये पाया है की फूटपाथी दुकानदार भारत के लोगों के लिए लाइफ लाइन की तरह है .. इसके बगैर शायद जीवन की कल्पना नही हो सकती /.// आप सब्ज़ी कहाँ ख़रीदेंगे ..? आपको २ रुपये की हरी मिर्च लेनी हो तो क्या आप किसी मॉल में जाएँगे ? क्या वहाँ दो रुपये का सामान बिकेगा? जो बहुत अमीर लोग है वो तो २ रुपये के मिर्च के लिए २० रुपये भी लगा देंगे .. 

सरकार रोज़गार तो देती नही अगर लोग खुद दो पैसे कमा रहे हैं तो उनको टॉर्चर क्यूँ किया जा रहा है .. करोड़ो लोगों के घर इसी दुकान से चलते हैं . मेरा सुझाव ये है :-
*सरकार को चाहिए की फुटपाथ पर थोड़ी सी जगह इनको भी मिले ..
*ऐसे फुटपाथ से हटा दें जिस पर होने की वजह से ट्रफ़िक जाम होता हो ..
*उनकी जगह सीमित हो .. कुछ बहुत जगह लेते हैं वहीं पर चूल्हा जला कर समोसे बनाते हैं ...कहीं से बना कर भी लाए जा सकते हैं..
*जो ठेले वाले होते हैं उनको कह दिया जाए की आप किधर और कहाँ किस सड़क पर जाने की अनुमति है .. खास कर जो सड़क जाम होता है .
*गुणडो और पोलीस वालों से बचाने का तरीका है कि इनको वैध करार देते हुए नगर निगम ही इन से किराया ले लिया करें
*किराए का निर्धारण दुकान के हिसाब से हो जैसे समोसा चाय बेचने वाले के लिए दिन का २०० रुपये हो तो सिर्फ़ टोकरी में सब्ज़ी बेचने वाले के लिए ५० रुपये
*इन सब को लाइसेन्स दिया जाए और सबको पहचान पत्र देते हुए उनका पहचान पता सब रखा जाए ताकि ऐसा ना हो कि कोई कुछ बेच कर बिना किराए दिये गायब हो जाए.
*कम बिक्री की वजह से अगर कोई किराया ना भर पाए तो कररवाई में उसे ३ या चार दिन का समय दिया जाए अगर फिर भी ना दे तो उसको कहीं भी दुकान लगाने ना दिया जाए ..
**इस सारे क़ानून से बूढ़ी औरतों को अलग रखा जाए जिसकी उम्र ७० से उपर हो .. अगर उनकी दुकान छोटी से छोटी श्रेणी में आती हो
(मेरा मकसद सिर्फ़ ये नही है कि मैं सिर्फ़ आलोचना करूँ .. साथ में उसका निदान बताना भी चाहता हूँ )

Saturday 31 May 2014

मोदी जी पी.एम. बनाया है.. हाथ जोड़ के अपील करने के लिए नही ..

मोदी जी .. मैं क्षमाप्रार्थी हूँ लेकिन अब जब आपको देश का सर्वोच्च सिंहासन सौंप चुका हूँ और जानता हूँ की ५ साल तक आप वहाँ पर हैं तो मैं अब हर उस बात पर आवाज़ उठा उँगा जिसके उम्मीद करके आपको वोट दिया था ... 
कल आप ने टोबॅको दिवस पर भारत के लोगों से अपील की थी कि लोग टोबैको का प्रयोग करना छोड़ दें ..
आपकी बड़ी तारीफ़ हुई इस बात के लिए .. मीडीया ने भी खूब चापलूसी की .. 
अब मैं आप से पूछता हूँ...
क्या आपके कहने से लोग टोबैको लेना छोड़ देंगे .. ?
ऐसी अपील तो नशेड़ी के घर वाले रोज उन से करते रहते हैं .. क्या नशा बंद हुआ ?
टोबैको बंद हो इसके लिए भारत सरकार की तरफ से हर साल अरबों रुपये विज्ञापन पर खर्च किए जाते हैं .. क्या टोबैको बंद हुआ ?
आप से ये उम्मीद नही थी मोदी जी . ...
एक तरफ आप टोबैको बनाने वाली फॅक्टरी को चलने देना चाहते हैं उसे सरकारी सहायता उपलब्ध करवाते रहेंगे .. उनको बढ़ावा देंगे और दूसरी तरफ जनता को मूर्ख बनाएँगे ..
जनता तो खैर मूर्ख है भी.. अभी इसी पोस्ट के जवाब में अंधभक्त लोग उतर जाएँगे खास कर जो नशेड़ी टाइप होंगे ..
*= ये इतना अपील क्या कर रहे हो मोदी जी? सारी फॅक्टरी बंद करवओ...
*=इसे बेचने वाले के लिए कम से कम १० साल की सज़ा की घोषणा करो ...
*=जिसके एरिया में एक भी गुटखा और सिगरेट बिके उस एरिया के थानेदार को नौकरी से हटाने का नियम बनाओ ..
*=पूरे देश में कहीं भी कोई फूँक मारता आदमी मिले उसे वहीं से उठा कर कम से कम १ महीने के लिए जेल भेजने का नियम बनाओ..
और मोदी जी अगर इसके बात आपको पूरे देश में कहीं भी एक गुटखा और सिगरेट मिल जाए तो मुझे सज़ा देना .. पी एम बनाया है.. हाथ जोड़ के अपील करने के लिए नही .. कार्रवाई करने के लिए .. ऐसे मजबूर दिखने के लिए नही

Tuesday 27 May 2014

पवन सूत हनुमान वायु विज्ञान के सिद्ध साधक

रावण का नाभि चक्र सिद्ध था। श्री राम जब भी रावण के किसी अंग पर घात करते तो वह पुन: कुछ समयपश्चात् ठीक (heal) हो जाता। पहले लड़ाई  ऊर्जा की होती थी। विभिन्न
अंगो से ऊर्जा को बाणो के माध्यम से सोख लिया जाता था। 
बड़े योद्धा बुलेट प्रूफ जाकेट पहने रहते थे अर्थात उच्च कोटि के कवंच धारण किये रहते थे। 
बाणो के द्वारा जिनको भेदना सम्भव नही होता था इस कारण ऊर्जा बाणो का प्रयोग कर शत्रु  को क्षति पहुँचाई  जाती थी। 

कहते है कि इन्द्रजीत ने राम लक्ष्मण को 

नागपाश में बाँध दिया था। यह श्री राम 
लक्ष्मण के नाग प्राणो को विक्षिप्त कर दिया था। अनाहत चक्र में नाग लघु प्राण होते है जिनको यदि विकृत कर दिया जाए तोहृदय गति रुक जाती है। पवनसुत हनुमान जी 
वायु (अर्थात प्राण) विज्ञान के सिद्ध साधक थे उन्होंने इस विकृति को दूर कर श्री राम 
लक्ष्मण जी को बेहोशी से उबारा। इसी प्रकार श्री राम ने रावण के नाभि चक्र से ऊर्जा को 
सोख लिया इसमें रावण का अन्त हुआ। 

यदि हम चुम्बकीय शक्ति को देखें तो दो धुव्र उत्तरी  दक्षिणी होते है।चुम्बकीय शक्ति को विद्युत शक्ति में  विद्युत शक्ति को चुम्बकीय शक्ति मेंपरिवर्तन किया जा सकता 
है। यदि हम अध्यापक विज्ञान की बात करें, यहाँ भी शास्त्र पुरुष और प्रकृति की
 बात करते है। इन्हीं को शिव और शक्ति भी कहा जाताहै। ऋषियों के अनुसार यत ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे अर्थात जो कुछ ब्रह्माण्ड मेंहै वह इस पिण्ड अर्थात शरीर में भी है। हमारे शरीर में भी दो केन्द्र है। एक ब्रह्मा चेतना का जिसको सहस्त्रार कहा जाता है  दूसरा 
प्राण शक्ति का जिसकोमूलाधार कहा जाता है। चेतना  प्राण दोनों मिलकर ही मानव जीवन की संरचनाकरते है  जीवन के विविध व्यापार सम्पन्न होते है। 

यदि हम इन दोनों केन्द्रोको activate कर लें और दोनों के बीच एक circuit बना लें जो 
अवरोध रहित हो,जिसमें से होकर ऊर्जा का flow सही से हो जाए तो हमें प्रचुर मात्रा 
में ऊर्जाकी उपलब्धि हो सकती है।