Wednesday 24 January 2018

स्कूल बस में तोड़फोड़ को लेकर दोमुंहे हिन्दू आये सामने

विरोध के समय स्कूल बस पर हमला को लेकर अब दोमुंहे लोगों ने पैंतरा बदलते हुए हिन्दू संगठनों को गलत करार दे दिया है... स्कूल बस पर कुछ लोगों के द्वारा थोड़ी तोड़ फोड़ गलत हो सकती है.. लेकिन पद्मावत फ़िल्म का विरोध कैसे गलत हो गया ? करणी सेना सहित अन्य संगठन कैसे गलत हो गए ?
आज तक तो कलेजे में दम नहीं था कि एक फ़िल्म का विरोध कर सको... ज्यादा हुआ तो सोशल मीडिया आदि पर बकैती कर लिया करते थे.. हमेशा से ये बात दिल मे चुभती थी कि क्या हिंदुओं में दम नहीं कि सरकार को या हिन्दू विरोधियों को डरा सके ?

और जब ये पुण्य कार्य करणी सेना ने शुरू किया तो फेसबुकियों को और मीडिया के जांबाजों को अपना अस्तित्व खतरे में नजर आने लगा.. सारी महफ़िल तो ये लोग लूट रहे हैं.. कल तक तो हम चैनल पर बैठ कर हिन्दू हितों की बकैती करते थे.. ये सड़क पर आकर इतनी हिम्मत कौन दिखाने लगे ?

कुछ मूर्ख पढ़े लिखे लोग अब कहते हैं कि हम स्कूल बस हमले को लेकर करणी सेना से समर्थन वापिस लेते हैं... अबे तूने समर्थन दिया था कब ? तू गया था सड़क पर एक बार भी ? बैठ के बतोलेबाजी करते हो सिर्फ .... स्कूल बस का बहाना लेकर भंसाली का अप्रत्यक्ष समर्थन कर रहे हो ... जब भारत बंद, महाराष्ट्र बंद आदि होते हैं तो कई एम्बुलेंस में फंसे मरीज मरते हैं... जब डॉक्टर्स हड़ताल पर जाते है सैकड़ों मरीज मारे जाते हैं..तब कहां जाता है तुमलोगों का दोमुंहापन... जब इस तरह के विरोध होते हैं तो सबको भुगतना पड़ता है.. सबको कुर्बानी देनी पड़ती है...  सबके घर मे आग लगेगी...चाहे उसकी मर्जी से या बिना मर्जी से...
#करणी_सेना

Friday 19 January 2018

अगर पाकिस्तान नहीं बनता तो आज हिन्दू नहीं होते

कुछ हिंदूवादी इस बात पर बहुत रोते हैं कि भारत का विभाजन हो गया.. पाकिस्तान बन गया.... लेकिन अगर पाकिस्तान नहीं बनता तो क्या आज यहां हिन्दू जीवित होते ? सिर्फ विभाजन को लेकर जब मुसलमानो ने भारत में चारों तरफ दंगे शुरू किये थे तब गली गली में हिंदुओं की लाशें बिछा दी थीं.. (इसमें दलित भी थे)...
कभी सोचा है आपने 1947 से अबतक उनकी जनसंख्या क्या हो गयी होती ? ?
1947 में भी ये बची खुची जनसंख्या ही थी... जो आज मुसीबत बन गयी है...
जब उसी वक़्त विभाजन के पहले इन्होंने अपनी असलियत दिखा दी थी ... लाखों हिंदुओं को मार डाला था.. तो उसी वक़्त हिंदुओं को इतनी दूरदृष्टि हो जानी चाहिए थी कि आगे जा के फिर क्या होने वाला है ? ये तो कहना ही पड़ेगा कि हिन्दू इस मामले में एक मुर्ख संप्रदाय है।

आज वो थोड़े से लोग जब ज्यादा हुए तो कश्मीर लिया, बंगाल लिया, केरल लिया, और यूपी, बिहार की बारी है... ये सच्चाई है, इसको नकारना सच से मुकरना है... ये थोड़े से लोग ? ? लेकिन अगर आज पुरे पाकिस्तान के लोग यहां होते तो ? सारे बड़े आतंकी नेटवर्क भारत में होते, बड़े बड़े डॉन यहीं होते...विश्वप्रसिद्ध आतंकवादी भारत में होते... ना जाने कितने लीडर और शायद pm भी वही होते तो क्या लगता है आपको आज हिन्दू यहां होते ? बचे होते क्या ? मुझे तो नहीं लगता... शायद अस्तित्व खत्म हो गया होता... उसी हाल में होते जैसे पाकिस्तान में हैं.. एक्का दुक्का... याने हिंदुओं का पन्ना खत्म हो गया होता.. अरे आज जब ये थोड़े से बचे हुए मुस्लिम नहीं सम्भलते तो पूरे पाकिस्तान के यहां घुसे होने की स्थिति में क्या होता ? ?

विभाजन गलत था.. लेकिन हिंदुओं के अस्तित्व के लिए एक मौका भी था.. जैसे उधर पाकिस्तान में हिंदुओं को खत्म कर दिया गया वैसे ही इधर हिंदुओं को भी वैसी प्रक्रिया अपनानी चाहिए थी... ये मौका था.. बहुत कम उनकी जनसंख्या थी... आजादी के बाद से ही निपटना शुरू करते तो अबतक शायद कहानी खत्म हो गयी होती...

मेरे हिसाब से तो विभाजन हिंदुओं को तात्कालिक रूप से नयी जिंदगी दे गया... और ये मुसलमानों के लिए बड़ी बेवकूफी थी.. क्योंकि अगर उन्होंने विभाजन नहीं किया होता तो आज पूरा भारत उनके हाथों में होता और एक इस्लामिक राष्ट्र होता।

Tuesday 16 January 2018

असली गब्बर सिंह तो पुलिस वालों के नाक काट लेता था

असली गब्बर सिंह बॉलीवुड के गब्बर (अमजद खान) से ज्यादा खतरनाक था। एक अंधविश्वास ने उसे इतना ज्यादा क्रूर बना दिया था कि चंबल में उसकी दशहत के शोले सच में दहकते थे।

अब शांत हो चुके चंबल के बीहड़ में 1950 के दशक में क्रूरता के पर्याय बन चुके गब्बर पर उप्र और मप्र सरकार ने क्रमश: 50-50 हजार रुपये, जबकि राजस्थान सरकार की ओर से 10 हजार रुपये का इनाम घोषित था।
भिंड के डांग गाव में 1926 को जन्मा गब्बर सिंह स्वभाव और कर्म से तो कुख्यात था ही, अंधविश्वास ने उसे और अधिक क्रूर बना दिया था। बताया जाता है कि एक तांत्रिक ने उससे कह दिया था कि अगर वह 106 व्यक्तियों की नाक काट कर अपनी इष्ट देवी को चढ़ाएगा तो पुलिस उसका एंकाउंटर नहीं कर सकेगी। उसके बाद से चंबल नदी के दोनों ओर के गांवों में हत्याओं के अलावा नाक काटने की घटनाएं होने लगीं। मचहौरी, भाकर, चमौदी, चिरनास्त आदि के क्रूरता पीड़ित जब भोपाल (मप्र) जा पहुंचे, तो विरोधी दल के नेताओं ने हंगामा कर दिया।

इससे तत्कालीन मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू के लिए राजनीतिक संकट पैदा हो गया। इसी बीच गब्बर ने अपनी मुखबिरी के मामले में गोहद विकासखंड के एक गांव में 21 बच्चों की लाइन लगवाकर हत्या कर दी। इस घटना से नेहरू सरकार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मप्र के तत्कालीन पुलिस प्रमुख को बुलाकर कहा था कि गब्बर के गैंग का सफाया किया जाए।

उसके बाद काटजू ने जब भी पुलिस अधिकारी मिलते, वह यही कहते- 'मुझे गब्बर चाहिए। चाहे मरा या जिंदा।'
अपने समय के प्रख्यात पत्रकार एवं सांसद जया भादुड़ी के पिता तरुण कुमार भादुड़ी ने यह समूचा घटनाक्रम नजदीकी से देखा था। बाद में जब शोले फिल्म की शूटिंग हुई तो इसके निर्माण में उनकी सक्रिय भूमिका रही। उन्होंने ही डायलॉग सुझाया था- 'मुझे गब्बर चाहिए। चाहे मरा या जिंदा..।

पुलिस वाले को मारना गब्बर सिंह को सबसे महंगा पड़ा। इस कृत्य के बाद से तो वह पुलिस के निशाने पर आ गया था। गब्बर सिंह के खात्मे का जिम्मा मप्र स्पेशल आम फोर्स के 26 वर्षीय डिप्टी सुपरिटेंडेंट आरपी मोदी ने लिया। उनके लिये सबसे मुश्किल काम था दस्यु प्रभावित क्षेत्र में मुखबिर तंत्र खड़ा करना, क्योंकि वहां गब्बर की दहशत से लोग पुलिस से दूरी बनाते थे। तभी एक घटना घटी, जिससे अचानक ही ये दूरियां खत्म हो गई। गांव के एक मकान में आग लग गई। शेखर नाम का एक बच्चा भी उसमें फंस गया। डीएसपी मोदी को सूचना मिली, तो वह पहुंचे और आग से घिरे घर में घुसकर शेखर को सुरक्षित निकाल लाए। इसके बाद से गांव वालों में उनकी छवि एक बहादुर इंसान की बन गई। देखते ही देखते ग्रामीण उनके करीब आ गए।

एक दिन गोहद के ही जगन्नाथ का पुरा गांव के मझरे गौम का पुरा में स्पेशल आर्म फोर्स ने श्री मोदी के नेतृत्व में 1959 में घेराबंदी कर गब्बर सिंह का एनकाउंटर कर दिया। इसमें जगत सिंह, रामदुलारे सहित गैंग के अन्य 9 डकैत भी मारे गए थे।

Sunday 14 January 2018

रोहित सरदाना ने मदरसों के जिहादी किताबों के नाम बताए

आज रोहित सरदाना ने tv पर उन जिहादी किताबों के नाम भी बता दिए.. जिनको पढ़ाकर मदरसों में आतंकवादी बनाया जाता है... और जिन किताबों के नाम बोलने की हिम्मत tv पर किसी प्रवक्ता में नहीं थी...

25 अगस्त 1985 में इजराइल के प्रधानमंत्री बिगिन इजिप्ट की यात्रा पर गए और वहां के प्रधानमंत्रि अनवर सादात से कहा...
"मैं आपके उपर कैसे भरोसा कर लूं... जिसके देश मे कुरान पढ़ाई जाती है.. "

और फिर मानना पड़ेगा अनवर सादात को जिन्होंने के उसके बाद शिक्षा मंत्री को बुलाया और ऐसी सारी आयतों को निकालने का हुक्म दिया जिसमें काफ़िर शब्द आता हो या जिसमे गैर मुस्लिमों से नफरत घृणा और हत्या का पाठ था...

यही नहीं मिस्र ने एक ऐसे विश्वविद्यालय को ही सरकार के अधीन कर लिया जिसमे से इस्लामिक विद्वान तैयार होते थे और कई इस्लामिक किताबें निकलती थी... पाठ्यक्रम से काफ़िर आदि शब्द निकालते हुए वो "आख़िरत" का अध्याय भी निकाल दिया गया जिसमें दोजख का डर दिखा कर मुसलमानों को आतंकी बनाया जाता है...

खैर हम तो यही कहेंगे अगर भारत देश को बचाना है तो वसीम रिजवी .. जिन्होंने मदरसों में आतंकवाद की बात उठाई है.. और रोहित सरदाना ने न्यूज़ चलाई है उसकी आड़ में बड़े कदम उठाए... सबसे बड़ी बात ऐसा करने से ही भाजपा भी हमेशा के लिए जिंदा रहेगी... और हिन्दू भी... नेतन्याहू से मिलने से कुछ नहीं होगा.. उनकी तरह बहादुर बनकर इस्लाम के खिलाफ कदम उठाना होगा।।

Saturday 13 January 2018

कांग्रेस में किसी को भी खरीदने की ताकत

मैंने सुना है कांग्रेस के पास इतना पैसा है, इतना पैसा है.. कि बस... लेकिन कांग्रेस ने ऐसी कौन सी जगह पैसा रखा है जो किसी को मिलता नहीं... दिखता नहीं... ?

लेकिन मैं कहता हूँ कि पैसा दिखता है.. अवार्ड वापिस करने वाले लोग जब बाहर आते हैं तो दिखता है कि कांग्रेस के पास कितना पैसा है... जब कन्हैय्या, जिग्नेश, हार्दिक  आदि लाखों करोड़ों अपनी सभा के सौजन्य में खर्च करते है  तो कांग्रेस का पैसा दिखता है...

जब जज की ईमानदारी भी टूट जाये तो कांग्रेस के अथाह धन दौलत की ताकत दिखती है... एक मुखिया, एक विधायक, एक सांसद जो जिंदगी में सिर्फ 5 साल के लिए सत्ता में रहा हो तो वो अपनी जिंदगी भर की अय्याशी के लिए प्रचुर मात्रा में घर, जमीन, दौलत जमा कर लेता है तो सोचिये जो कांग्रेस देश की सत्ता पर 60 सालों तक रही हो उसने क्या किया होगा ? कांग्रेस के पास धन समंदर जैसा है...  कभी खत्म ना होने वाले पैसे हैं.. और पैसे में ताकत तो होती ही है..
जज ने शपथ ही तो लिया था ईमानदारी का.. वो तो हमारे नेता भी लेते हैं... असल मकसद तो होता है उस कुर्सी से जुड़ा वेतन, कमाई, सुख सुविधा... और कोई उससे चार गुणा देने का वादा करे तो फिर उसकी नौकरी क्यों नहीं करेगा.. ?

अच्छा कुछ लोग तो ये हैं जो पैसे लेकर देशविरोधी कार्य कर लेते हैं पर हमारी जनता में कुछ देशद्रोही भी है जिसके लिए कांग्रेस को नगद नहीं देनी पड़ती.. बस नकद का लालच देना पड़ता है... हमें वोट कर दो.. तुम्हारी कौम या जाति का नौकरी पक्का.. नौकरी याने पैसा.. बस इनके बिकने के लिए ये काफी है... ये तुरन्त अपने वोट देशविरोधियों को बेच देते हैं...
क्या कहा जाए... मतलब हर कोई बिक रहा है... कांग्रेस सबका दाम लगा देने में सक्षम है... भाजपा किस्मत वाली पार्टी है जो उनको ऐसे हिंदुओं के वोट नसीब हो रहे हैं जो बिकाउ नहीं हैं।।

Thursday 11 January 2018

नवबौद्धों का महात्मा बुद्ध के साथ विश्वासघात

आज भगवान बुद्ध भी रो रहे हैं.... भगवान बुद्ध ने कभी भी नफरत का संदेश नहीं दिया था न ही उन्होंने कभी नया धर्म अथवा संप्रदाय खड़ा किया था। उन्होंने कभी भी ब्रह्मा, विष्णु, शिव, राम और कृष्ण के खिलाफ कुछ नहीं बोला था।

नवबौद्ध संप्रदाय (भीमटे) की उत्पत्ति भारत की आजादी के बाद हुई। इसे अम्बेडकरवादियों का नवबौद्ध संप्रदाय कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि अम्बेडकर के नेतृत्व में 14 अक्तूबर 1956 को हुई नवबौद्ध क्रांति के बाद इसे उन गैर हिंदू और गैर बौद्धों ने ज्यादा संचालित किया जो हिन्दू धर्म को तोड़ना चाहते थे।

कभी एकलव्य के अंगूठे की बात हो अथवा किसी शम्बूक की दंतकथा हो, चुन चुन कर ऐसे संदर्भ निकाले जाते हैं जिनके माध्यम से हिन्दू समाज की एकता एवं समरसता पर प्रहार किया सके और बड़ी चालाकी से उन कथाओं एवं प्रसंगों को नकार दिया जाता है जो हिंदुओं में ऐसी जातीयता नफरत को नकारती हो..

महाकश्यप ने बौद्ध धर्म को दुनियाभर में प्रचारित करने का कार्य किया जो कि जाति के आधार पर मगध के एक ब्राह्मण थे ... और तो और इन मूर्ख अम्बेडकरवादियों को पता नहीं कि महात्मा बुद्ध खुद एक क्षत्रिय राजकुमार थे ? ?

बुद्ध के प्रमुख गुरु थे-गुरु विश्वामित्र, अलारा, कलम, उद्दाका रामापुत्त आदि। नवबौद्ध जब नागपुर में प्रतिज्ञा करते हैं तो उसमें कहते हैं कि ..
"मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूंगा और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा।"

और भगवान बुद्ध खुद इन्ही के ध्यान में जाकर ज्ञान प्राप्त करते हैं... ये नवबौद्ध महात्मा बुद्ध की आड़ में सिर्फ आरक्षण के लिए देश की संस्कृति और अपने पूर्वजों से गद्दारी कर रहे हैं..

Wednesday 10 January 2018

अब स्कूल के प्रार्थना गीत पर मुस्लिमों को ऐतराज

सबकुछ होते हुए आज इस बात के लिए भी कोर्ट में याचिका डाल दी गयी कि केंद्रीय विद्यालयों में जो प्रार्थना गीत सभी बच्चों से गवाए जाते है वो गलत है और रोक लगनी चाहिए.. 
लगे हाथ इस पर सभी जगह डिबेट भी हो गए.. प्रार्थना के समर्थन में सभी ने ये समझाया कि इस ॐ को बोलने से या संस्कृत के श्लोकों से क्या फर्क पड़ता है...

लेकिन मैं इस याचिका को सही मानता हूं.. एक मुस्लिम ॐ का जाप कैसे करेगा ? या एक नास्तिक ईश्वर की स्तुति क्यों करेगा ?

याचिका तो सही है.. लेकिन सवाल है कि कोई पुत्र अपने बाप के बारे में कह दे कि मैं इसको नहीं किसी और को बाप मानना चाहता हूं ... और कोर्ट से आर्डर भी मिल जाये तो क्या वही उसका असली बाप होगा ? जिस भारत देश की जमीन में हमारे भगवानों ने जन्म लिया.. जिसकी मिट्टी में ही हिन्दू संस्कृति समाई हो.. उसको कोई ना माने ... तो असलियत बदल जाएगी क्या ?  

कोई बाहरी आदमी किसी दोस्त के घर मे जाये.. और कहे कि मैं तो अपने हिसाब से खाना खाऊंगा.. मैं बीफ खाऊंगा.. तो क्या वो घर का मालिक बनाएगा अगर वो शाकाहारी हो ? ? अब ऐसे ही भारत हिंदुओं का घर है.. इसमें मुस्लिम बाहर से आकर नित नए ड्रामे करें.. अपने मनमाफिक चीजें मांगे जो इस घर के मालिक अर्थात हिन्दू कर नहीं सकते तो दो ही विकल्प होता है...
पहला उस मुस्लिम को खुद मन की चीज ना मिलने पर चले जाने चाहिए ....
या दूसरा .... घर का मालिक लात मारकर बाहर तो कर ही देगा...

Tuesday 9 January 2018

कुंडलिनी जागरण के बारे में मेरे थोड़े अनुभव

कभी आपने ध्वनि को देखा है... ये आपको नजर आ सकता है... आप ध्वनि को जिस जगह पर चाहें वहां पर ले जा सकते है । हां ऐसा होता है.. ये मेरा अपना अनुभव है...
ये उन सबके साथ होता होगा जो लोग कुंडलिनी जागरण का अभ्यास ध्वनि माध्यम से करते होंगे..
वैसे मैं कभी कभी ही अभ्यास करता हूँ... परन्तु प्राणायाम हमेशा करता हूँ और इसलिए ये पता चला कि जो लोग प्राणायाम करते आये हैं उनके लिए कुंडलिनी प्राणायाम करना जल्दी फलीभूत हो सकता है...

कुल सात आवाज हैं... और योगियों ने कितना जबरदस्त विज्ञान साधा है... किस अंग पर कौन शब्द ठहरेगा ये पता लगाया... नाभि के लिए कौन सा.. ह्रदय के लिए कौन सा... कंठ के लिए... तीसरे नेत्र के पास या मस्तिष्क के पास... सबके लिए अलग अलग...

मेरे समझ से सीधे कुंडलिनी का अभ्यास से अच्छा है पहले रोजाना का प्राणायाम जो करते हैं वो कर लें और फिर बिना रुके कुंडलिनी अभ्यास में प्रवेश कर जाएं...

दूसरा है... पेट मे गैस ना हो... कब्ज़ ना हो.... क्योंकि कुंडलिनी की शक्ति भी ऊर्जा एक तरंग के रूप में नीचे से ऊपर उन्ही नस नाड़ियों से ऊपर आना चाहती है .. जो गैस आदि से अवरुद्ध है...

इसलिए तो जब योगी इसके लिए बैठते तो भूखे बैठते... और कई दिनों तक ना खाएं... ना पीए... तो इस तरंग के लिए बने रास्ते खुल जाते... अब ये सब विज्ञान है...

जब आप शब्द का उच्चारण करोगे तो आंखें बंद कर ध्वनि तरंगों को उस अंग पर केंद्रित करके रोकोगे... ये हो जाता है.. इस वक़्त उस ध्वनि को उस खास अंग पर रोकना देखना, महसूस करना ही सफलता की पहली सीढ़ी है...

अब मैं अपने अनुभव से बताऊं तो... जैसे शब्द है... " रं "
इसमें दो शब्द आएंगे...
पहला बोलिये... रम्म... और दूसरा है... ममममम...

रम्म बोलकर ध्वनि को उस नाभि के थोड़ा ऊपर उत्पन्न करिए... और मममममम... का गुंजन होते रहने दीजिए...

और भाई ये सब बस थोड़ा अनुभव बांटा है... थोड़ा कीजिये .. ज्यादा नहीं... क्योंकि इसका अभ्यास खतरनाक है... ध्यान लग गया... तो तन्द्रा भंग करने वाला भी कोई आसपास होना चाहिए... कुछ पागल भी हो जाते है... कुछ मर भी जाते हैं... बस थोड़ा आनंद प्राप्ति के लिए कर सकते हैं... #प्राणायाम #कुंडलिनी

जाकिर नाईक का बचाव करते हमारे जज साहब

जाकिर नाइक की सम्पत्ति कुर्क करने से कोर्ट के जज मनमोहन सिंह ने रोक लगा दी.. उन्होंने ये भी कह दिया कि सिर्फ जाकिर नाइक ही क्यों... आसाराम या अन्य बाबा क्यों नहीं ? बाकियों की सम्पत्ति को कुर्क करने के लिए आजतक क्या किया ?

मनमोहन सिंह जी.. कृपया मेरे इस पोस्ट को अपनी अवमानना ना मानें.. और मुझे जवाब दें... आसाराम, रामपाल आदि जेल में हैं... तो क्या जाकिर नाइक जेल में है ?

संपत्ति कुर्क करना.. फरार अपराधी पर दवाब डालने का भी एक तरीका होता है.. क्या ये आपको पता नहीं ?

आप कह रहे है आपने कई भाषण सुने लेकिन आपको वो आपत्तिजनक नहीं लगा.. जबकि हरेक हिन्दू ने उस आदमी को पीस tv पर भगवान गणेश, भगवान शंकर, श्रीराम, और श्रीकृष्ण के बारे में अपमानजनक बातें करते सुना और दुखी हुए... ये भी हो सकता है कि आपको वैसी बातें बुरी ना लगी हों ... इसका तो कोई इलाज ही नहीं है ना ..?

मीलोर्ड.. दूसरे बाबाओं ने इस तरह से इस्लाम का कभी मजाक नहीं बनाया.. जैसा जाकिर ने हिन्दू धर्म के लिए किया .. जाकिर उस कुरान का प्रवचन देता है जिस कुरान में काफिरों को मारने की बात बार बार की गई है .. कृपया आप पहले ये जानिए... क्या अपने सुना नहीं है... जब उसने ओसामा बिन लादेन को समर्थन दिया था ? ? अब आपने कौन सा वीडियो देख लिया पता नहीं ...

बड़े दुख की बात है... कि आप एक ऐसे शख्श का बचाव कर रहे हैं जो इस देश के मुस्लमाणों को आतंकवादी बनने के लिए उकसाता है... जो बहुसंख्यक समाज के धर्म को अपने तरीके से गालियां बकता है ... और आप सरकार की इस बहादुरी भरी कार्रवाई को रोक रहे हैं...

दुख की बात ये भी है कि ईडी ने सही तरीके से सबूतों को जमा नहीं किया है.. और कोर्ट में तारीख पर पहुंच भी जाते हैं... भाजपा की सरकार को ये सब बहुत भारी पड़ेगा...
#जाकिर_नाईक

Sunday 7 January 2018

आपकी यात्रा में बिना नेटवर्क के रेल की सही लोकेशन बताने वाला एंड्राइड एप्स

इस बार मुम्बई आते हुए रेलगाड़ी में मैंने एक APPS यूज़ किया... जिसका नाम था WHERE IS MY TRAIN.. इसके पहले मैं और आप NTES की एप्प यूज़ करते थे... ये जानने के लिए कि कौन सी ट्रेन इस वक़्त कहां पर है...
पर where is my train.. तो कमाल का एप्प है.. इसका ग्राफ़िक काफी अंडरस्टैंडिंग है... बहुत ही डिटेल में जानकारी देता है... अभी ट्रेन किस स्टेशन, हॉल्ट से क्रॉस कर रही है... या आपके स्टेशन पर ये कितने बजे आएगी.. सबकुछ... किलोमीटर याने अभी आपके स्टेशन से कितने किलोमीटर दूर है ये भी बताती है..
इसमें एक ऐसी खास बात थी जो बहुत ही आश्चर्यजनक था...  जब इंटरनेट का सिग्नल ना आ रहा हो तो भी ये मोबाइल टॉवर के सिग्नल से काम करता रहता है.. इसमें एक ऑप्शन है... "are you inside the train" ... इसको ON कर लीजिए फिर आपको बिना नेटवर्क के भी accurate location पता चलता रहेगा.. इस app का लिंक दे रहा हूँ.. जो बराबर ट्रेवल करते हैं उनके काफी काम का है.. https://play.google.com/store/apps/details?id=com.whereismytrain.android

Wednesday 3 January 2018

अरुण जेटली भाजपा के भक्षक

मैं हमेशा से मानता रहा हूँ कि अरुण जेटली जी भाजपा की कब्र खोदने वाले फैसले लेते हैं... अपने अकाउंट में मिनिमम बैलेंस ना रखने की वजह से ये जो 1771 करोड़ रुपये काटे गए हैं... ये आम आदमी... गरीबों का पैसा था... क्योंकि अमीरों के अकाउंट मिनिमम होते ही नहीं ...

अम्बानी, टाटा, बिड़ला और साधारण बिजनेस करने वाले या नौकरीपेशा लोगों के अकाउंट 3000 रुपये से कम होंगे क्या ?

3000 रुपये से कम तो सिर्फ उनका बैलेंस ही जायेगा जो रोज कमाना और रोज खाना वाली जिंदगी जीते हैं... और आपने उनके पैसे भी छीन लिए ? आखिर ऐसा क्यों ? ऐसे बेतुके नियम कानून बनाते ही क्यों है जो खुद की समाप्ति का कारण बने ? ?