Saturday 31 October 2015

प्राचीन काल के अस्त्र शस्त्र

प्राचीन वैदिक काल में आज के सभी तरह के आधुनिक अस्त्र-शस्त्र थे। इसका उल्लेख वेदों में मिलता है। उस काल की तकनीक आज के काल से भिन्न थी लेकिन अस्त्रों की मारक क्षमता उतनी ही थी जितनी कि आज के काल के अस्त्रों की है। हालांकि ये किस तकनीक से संचालित होते थे, यह शोध का विषय है। उस काल में युद्ध के दौरान शरीर के विभिन्न अंगों की रक्षा का उल्लेख भी मिलता है। उदाहरणार्थ शरीर के लिए चर्म तथा कवच का, सिर के लिए शिरस्त्राण और गले के लिए कंठत्राण इत्यादि का।

'अस्त्र' उसे कहते थे, जो किसी मंत्र या किसी यंत्र द्वारा संचालित होते थे और 'शस्त्र' उसे कहते थे, जो हाथों से चलाए जाते थे। अस्त्रों को मंत्रों द्वारा दूरी से फेंकते थे, जैसे पाशुपतास्त्र, ब्रह्मास्त्र, गरूड़ास्त्र आदि।

शस्त्रों को हाथों से संचालित किया जाता था। ये भी खतरनाक होते थे। शस्त्रों को हाथ से भी चलाया जाता था और किसी छोटे से यंत्र से भी, जैसे तलवार, वज्र, खंजर, खप्पर, खड्ग, परशु, बरछा, त्रिशूल आदि।

वेदों में अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन मिलता है लेकिन धनुर्वेद, धनुष-चन्द्रोदय और धनुष-प्रदीप इन 3 प्राचीन ग्रंथों का अक्सर जिक्र होता है। अग्नि पुराण में धनुर्वेद के विषय में उल्लेख किया गया है कि उसमें अस्त्रों के प्रमुख 4 भाग हैं- 1. अमुक्ता, 2. मुक्ता, 3. मुक्तामुक्त और 4. मुक्तसंनिवृत्ती।

दिव्यास्त्र : वे अस्त्र जो मंत्रों से चलाए जाते थे, उन्हें दिव्यास्त्र कहते हैं। प्रत्येक अस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है और मंत्र-तंत्र द्वारा उसका संचालन होता है। वस्तुत: इन्हें दिव्य तथा मांत्रिक-अस्त्र कहते हैं।
दिव्यास्त्रों के नाम : 1. आग्नेयास्त्र, 2. पर्जन्य, 3. वायव्य, 4. पन्नग, 5. गरूड़, 6. नारायणास्त्र, 7. पाशुपत, 8. ब्रह्मशिरा, 9. एकागिन्न 10. अमोघास्त्र और 11. ब्रह्मास्त्र। इसके अलावा कुछ ऐसे भयानक अस्त्र थे जो यंत्र या तंत्र से संचालित होते थे।

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