Saturday 31 October 2015

आलू के चिप्स से होता है कैंसर

शायद आपको पता ना हो कि आप जल्दी ही CANCER पीड़ित होने वाले हो..क्योंकि आपको ये पता नहीं कि किस चीज़ से ऐसा हो सकता है .. शायद आपके चिप्स खाने से भी ... तो पढ़िए सात वजह ..

1.माइक्रोवेव पॉपकॉर्न: माइक्रोवेव में बनाया गया पॉपकॉर्न कैंसर की वजह बन रहा है। क्योंकि माइक्रोवेव में पॉपकॉर्न डालने से परफ्यूरोक्टानोइक एसिड बनता है। इससे कैंसर पनपता है। इसीलिए अमेरिका में पॉपकॉर्न बनाने के लिए सोयाबीन का तेल इस्तेमाल किया जाता है।

2. नॉन ऑर्गेनिक फल: जो फल लंबे समय से कोल्डस्टोरेज में रखे रहते हैं,लाख सफाई के बावजूद उन पर केमिकल की परत चढ़ी ही रहती है। इसकी वजह से कैंसर होता है। निश्चित समय के बाद स्टोर किए हुए फलों को नष्ट कर दिया जाना चाहिए। यह कैंसर की वजह बन रहे हैं।

3.डिब्बाबंद टमाटर: टमाटर को लंबे समय तक डिब्बाबंद रखने से बिसफेनॉल-ए नाम का केमिकल बनता है। जो कैंसर को बढ़ावा देता है। इसके बावजूद हम इसका उपयोग कर रहे हैं और कैंसर का खतरा मोल ले रहे हैं।

4.प्रोसेस्ड मीट: प्रोसेस्ड मीट खाने से कैंसर होता है। मीट को सुरक्षित रखने के लिए जो केमिकल प्रयुक्त होते हैं, उसमें सोडियम का इस्तेमाल होता है। सोडियम से सोडियम नाइट्रेट बनने की वजह से कैंसर फैलता है।

5.सेलमॉन मछली: सेलमॉन मछली को पानी के छोटे टैंकों में पाला जाता है। सेलमॉन मछली एक-दूसरे को खा जाने के लिए बदनाम है। इसी वजह से एक टैंक में पाली गई सेलमॉन मछलियों के खाना नुकसानदेह है, क्योंकि एक-दूसरे को खाने की वजह से बची मछलियों के शरीर में पारे की बहुतायत हो जाती है। फिर इन्हें अगर डीप फ्रीजर में लंबे समय तक रख दिया जाए, तो यह जहर का काम करता है। अमेरिका के अलास्का में खुले पानी वाली जगहों से सेलमॉन मछली को पकड़कर खाने पर छूट है। पर डीप फ्रीजर में रखी सेलमॉन पर प्रतिबंध है।

6.आलू चिप्स: हमारे देश में एक तरफ आलू के चिप्स को तमाम कंपनियां पैक कर के बेचती हैं, जबकि आलू चिप्स में सोडियम, नकली रंग का इस्तेमाल आसानी से किया जाता है। जिसकी वजह से कैंसर फैलता है।

7.जमे हुए रिफाइंड: हाइड्रोजनीकृत तेल सब्जियों और पौधों से केमिकल क्रियाओं द्वारा प्राप्त किए जाते हैं। जिसकी वजह से उनमें ओमेगा-6 की मात्रा अधिक होती है। हाइड्रोजनीकृत तेल यानी जमे हुए तेल से कैंसर और हृदय संबंधी रोग होते हैं।

अगर परशुराम ने क्षत्रियो का नाश किया तो ..

अगर श्री परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रियविहीन कर दिया था तो सोचिए एक ही बार क्षत्रियों से विहीन करने के बाद दूसरी बार कैसे क्षत्रियों का जन्म हुआ?
इस सवाल को खोजना होगा तभी दूसरी बार की बात करेंगे। एक समय ऐसा भी आया था जबकि परशुराम को क्षत्रिय कुल में जन्मे भगवान श्रीराम के आगे झुकना पड़ा था। तब...? तो जब सब मर ही गए थे तो श्रीराम कहाँ से आये ?

श्री परशुराम जी का जन्म कहते हैं उत्तरप्रदेश के आज के बलिया के खैराडीह में हुआ था। उत्तर प्रदेश के शासकीय बलिया गजेटियर में इसका चित्र सहित संपूर्ण विवरण मिल जाएगा।
पुरातात्विक खुदाई में यहां 900 पूर्वेसा में समृद्ध नगर होने के प्रमाण मिले थे।

परशुराम योग, वेद और नीति में पारंगत थे। ब्रह्मास्त्र समेत विभिन्न दिव्यास्त्रों के संचालन में भी वे पारंगत थे।

परशुराम राम के समय से हैं। उस काल में हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं का अत्याचार था। भार्गव और हैहयवंशियों की पुरानी दुश्मनी चली आ रही थी। हैहयवंशियों का राजा सहस्रबाहु अर्जुन भार्गव आश्रमों के ऋषियों को सताया करता था।
एक समय सहस्रबाहु के पुत्रों ने जमदग्नि के आश्रम की कामधेनु गाय को लेने तथा परशुराम से बदला लेने की भावना से परशुराम के पिता का वध कर दिया। जब इस बात का परशुराम को पता चला तो क्रोधवश उन्होंने हैहयवंशीय क्षत्रियों की वंश-बेल का विनाश करने की कसम खाई।

भगवान दत्तात्रेय ने युद्ध के समय कार्त्तवीर्याजुन को हजार हाथों का बल प्राप्त करने का वरदान दिया था, जिसके कारण उन्हें सहस्त्रार्जुन कहा जाने लगा। सहस्त्रार्जुन के पराक्रम से रावण भी घबराता था।

सहस्त्रार्जुन ने परशुराम के पिता जमदग्नि के आश्रम में एक कपिला कामधेनु गाय को देखा और उसे पाने की लालसा से वह कामधेनु को बलपूर्वक आश्रम से ले गया।
जब परशुराम को यह बात पता चली तो उन्होंने पिता के सम्मान के खातिर कामधेनु वापस लाने की सोची और सहस्त्रार्जुन से उन्होंने युद्ध किया। युद्ध में सहस्त्रार्जुन की भुजाएं कट गई और वह मारा गया।

तब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोधवश परशुराम की अनुपस्थिति में उनके पिता जमदग्नि का वध कर डाला। परशुराम की मां रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर उनकी चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गई। इस घोर घटना ने परशुराम को क्रोधित कर दिया और उन्होंने संकल्प लिया- मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का नाश कर दूंगा।

कार्त्तवीर्यार्जुन के दिवंगत होने के बाद उनके पांच पुत्र जयध्वज, शूरसेन, शूर, वृष और कृष्ण अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते रहे।
जयध्वज के सौ पुत्र थे जिन्हें तालजंघ कहा जाता था, क्योंकि ये काफी समय तक ताल ठोंक कर अवंति क्षेत्र में जमे रहें। लेकिन परशुराम के क्रोध के कारण स्थिति अधिक विषम होती देखकर इन तालजंघों ने वितीहोत्र, भोज, अवंति, तुण्डीकेरे तथा शर्यात नामक मूल स्थान को छोड़ना शुरू कर दिया। इनमें से अनेक संघर्ष करते हुए मारे गए तो बहुत से डर के मारे विभिन्न जातियों एवं वर्गों में विभक्त होकर अपने आपको सुरक्षित करते गए। अंत में महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर युद्ध करने से रोक दिया।

हैहयवंशियों के राज्य की राजधानी महिष्मती नगरी थी जिसे आज महेश्वर कहते हैं जबकि परशुराम और उनके वंशज गुजरात के भड़ौच आदि क्षे‍त्र में रहते थे। परशुराम ने अपने पिता के वध के बाद भार्गवों को संगठित किया और सरस्वती नदी के तट पर भूतेश्‍वर शिव तथा महर्षि अगस्त्य मुनि की तपस्या कर अजेय 41 आयुध दिव्य रथ प्राप्त किए और शिव द्वारा प्राप्त परशु को अभिमंत्रित किया।
इस जबरदस्त तैयारी के बाद परशुराम ने भड़ौच से भार्गव सैन्य लेकर हैहयों की नर्मदा तट की बसी महिष्मती नगरी को घेर लिया तथा उसे जीतकर व जलाकर ध्वस्त कर उन्होंने नगर के सभी हैहयवंशियों का भी वध कर दिया। अपने इस प्रथम आक्रमण में उन्होंने राजा सहस्रबाहु का महिष्मती में ही वध कर ऋषियों को भयमुक्त किया।
इसके बाद उन्होंने देशभर में घूमकर अपने 21 अभियानों में हैहयवंशी 64 राजवंशों का नाश किया। इनमें 14 राजवंश तो पूर्ण अवैदिक नास्तिक थे। इस तरह उन्होंने क्षत्रियों के हैहयवंशी राजाओं का समूल नाश कर दिया जिसे समाज ने क्षत्रियों का नाश माना जबकि ऐसा नहीं है। अपने इस 21 अभियानों के बाद भी बहुत से हैहयवंशी छुपकर बच गए होंगे।

क्योंकि उस वक्त और कोई रास्ता नहीं था.. बाद में परशुराम जी के शांत होने के बाद फिर क्षत्रिय कुल का विस्तार हुआ।

पढ़िए अगर आपकी रूचि है अंडरवर्ल्ड और बॉलीवुड में

आराम से से समय निकाल कर पढ़िए अगर अंडरवर्ल्ड और बॉलीवुड में रूचि है तो ..
*****1983 में नजीम रोजी-रोटी की तलाश में मुम्बई आया था। उसे एक कला निर्देशक के सहायक के रूप में काम मिला। बाद में उसे निर्माता बनने का भूत सवार हुआ। उसने कम बजट की फिल्मों जैसे "मजबूर लड़की', "आपातकाल' और "अंगारवादी' का निर्माण किया। उसका नाम सुर्खियों में तब आया जब उसने मुम्बई पुलिस और मीडिया को बताया कि उसकी फिल्म "अंगारवादी' को दाउद ने प्रतिबंधित कर दिया है। कश्मीर पर बनी इस फिल्म में मस्जिद और मंदिर के कुछ आपत्तिजनक दृश्य थे। उन दिनों दाउद के भाई अनीस और सिपहसालार अबू सलेम ने नजीम को जान से मारने की धमकियां दी थीं। नजीम ने इसकी रपट पुलिस में भी दर्ज कराई थी। उस समय नजीम को न सिर्फ पुलिस सुरक्षा प्रदान की गई थी, बल्कि उसके फोन भी टेप किए गए थे। आखिर में नजीम ने आपत्तिजनक दृश्य काट कर फिल्म प्रदर्शित की। लेकिन उसकी फिल्म "बाक्स आफिस' पर कमाल नहीं दिखा सकी।

कहा जाता है कि इसके बाद ही वह दाउद के सम्पर्क में आया। बड़ी फिल्म बनाने के लिए उसे धन का आश्वासन मिला। उससे कलाकारों के बारे में पूछा गया। उसने अपनी पसंद के पहले कलाकार के रूप में सलमान खान का नाम बताया। हालांकि सलमान ने उसकी फिल्म "अंगारवादी' में काम करने से इनकार कर दिया था, इसलिए नजीम सलमान को अपनी ताकत का एहसास कराना चाहता था। तब दाउद के सिपहसालार छोटा शकील ने सलमान को धमकाया, जिसके बाद सलमान ने उसकी फिल्म "चोरी-चोरी, चुपके-चुपके' में काम करना स्वीकार किया। कहा तो यह भी जाता है कि "दिल से' में प्रीति जिंटा के काम को देखकर छोटा शकील उससे बहुत प्रभावित था। छोटा शकील ने अपनी पसंद की नायिका प्रीति को इस फिल्म में काम करने के लिए मजबूर किया। रानी मुखर्जी और निर्देशक अब्बास-मस्तान से कम पैसे में काम करने लिए कहा गया था। सलमान शूटिंग करने में जब आनाकानी करने लगा तो उसे फिर धमकाया गया। कहा जाता है कि सलमान ने छोटा शकील को संकेत दिया था कि नूरा उसे जानता है। मगर उसकी एक न सुनी गई। मुम्बई बम काण्ड के दौरान जब कलाकारों से पूछताछ हुई थी तब सलमान के नूरा से जान पहचान की बात उजागर हुई थी। सलमान और नूरा के छायाचित्र पुलिस के पास हैं। नूरा ने सलमान द्वारा अभिनीत फिल्म "पत्थर के फूल' में गाने लिखे थे। उसी दौरान दोनों की दोस्ती हुई थी, ऐसा बताया जाता है।

नजीम ने "चोरी-चोरी, चुपके-चुपके' बनाने के बाद डेविड धवन और ऋतिक रोशन या शाहरुख खान को लेकर फिल्म बनाने की योजना बनाई। जब उन तीनों ने उसकी फिल्म में काम करने से मना किया तब उसने इन तीनों को छोटा शकील से धमकियां दिलवाईं। इसी फिल्म में संगीत देने के लिए जतिन-ललित को भी नजीम ने धमकाया था। उसने अजय देवगन को भी धमकाया था कि वह अपनी फिल्म "राजू चाचा' का प्रदर्शन एक सप्ताह आगे बढ़ा दे, क्योंकि उसी दिन "चोरी-चोरी, चुपके-चुपके' भी प्रदर्शित होने वाली थी। पहले तो उन्होंने मना कर दिया था। मगर बाद में उन्होंने "राजू चाचा' का प्रदर्शन 29 दिसम्बर को करने का फैसला किया। छोटा शकील के लिए नजीम हफ्ते भी वसूलता रहा है। इसके लिए इनाम में छोटा शकील ने उसे वर्सोवा के "समीर कोपरेटिव हाउसिंग सोसायटी' और "लोखंडवाला कांप्लेक्स' में फ्लैट खरीद कर दिया।

माफिया का राज "बालीवुड' में लगभग तीन दशक से है। माफिया ने लगभग दो दशक पहले फिल्म वालों के अपहरण का खेल खेलना शुरू कर दिया था। फिल्म उद्योग के सूत्र बताते हैं कि सबसे पहले फिल्मकार मुशीर रियाज का अपहरण किया गया था। उनका अपहरण अमीरजादा और आलम शेख ने किया था। मुशीर को उसके चंगुल से छुड़ाने में एक सुप्रसिद्ध अभिनेता ने मदद की थी। इस अपहरण का खेल तो वहीं थम गया। मगर गोलियों का निशाना बनाकर डराने का नया खेल शुरू हुआ। कहते हैं कि निर्माता जावेद रियाज को दाउद के गुंडों ने अपनी गोलियों का निशाना इसलिए बनाया था क्योंकि उसने उसके पैसे लौटाए नहीं थे। दाउद के पैसों से फिल्में बनाने वालों में निर्माता मुकेश दुग्गल का भी नाम है। "प्लेटफार्म' और "दिल का क्या कसूर' जैसी कई फिल्में बनाने के बाद पैसे नहीं लौटाने की वजह से ही उसे दाउद के गुंडों की गोलियों का निशाना बनाना पड़ा।

मुम्बई बम काण्ड के बाद कई निर्माता कंगाल भी हो गए। बांद्रा के "मटका किंग' ने अजय देवगन और मधु को लेकर अपनी पहली फिल्म बनाई थी। उस फिल्म ने "बाक्स आफिस' पर तहलका मचाया था। लेकिन वह निर्माता अब फिल्म व्यवसाय से दूर है। एक ऐसा भी निर्माता है, जो पहले गोदी में हमाल (भारवाहक) का काम करता था। उसने भी माधुरी दीक्षित, संजय दत्त और सलमान खान को लेकर फिल्म बनाई थी। कहा जाता है कि उसकी दूसरी फिल्म में गोविंदा नायक थे। जब उन्होंने फिल्मांकन के लिए तारीखें देने में नखरे दिखाए तो निर्माता ने उन्हें सहार हवाई अड्डे से उठवा लिया था। आज वह निर्माता फिल्म बनाने की स्थिति में नहीं है। हालांकि उस निर्माता ने हमेशा कहा है कि उसका "अंडरवल्र्ड' से कोई रिश्ता नहीं है। यह सच है कि मुम्बई बम काण्ड के बाद दाउद की दुकान "बालीवुड' में उजड़ गई। इससे उसे यहां काला धन सफेद करने का मौका नहीं मिलता था। मगर उसने हफ्ता वसूली का खेल शुरू किया। इसमें कम सफलता मिलने पर गोलियों का सहारा लिया। व्यावसायिक लड़ाई का लाभ् उठाते हुए "टी सीरिज' के स्वामी गुलशन कुमार को गोलियों से उड़ा दिया। इसमें दाउद ने कथित रूप से "टिप्स म्यूजिक कम्पनी' के मालिक रमेश तौरानी और संगीतकार नदीम का सहयोग लिया। नदीम लंदन भाग कर कानूनी लड़ाई अब भी लड़ रहा है।

भले ही "अंडरवल्र्ड' का काला साया "बालीवुड' पर हो। लेकिन कुछ फिल्म वाले हैं जो इस दुविधा को महिमामंडित करने से नहीं चूकते। यह जरूरी नहीं है कि इन फिल्म निर्माताओं का सम्बंध "अंडरवल्र्ड' से हो। मगर ऐसी फिल्मों से निर्माता पैसे कमाते हैं। इन फिल्मों से "अंडरवल्र्ड' को सहायता मिलती है और माफिया के दादा खुश रहते हैं। "अंडरवल्र्ड' में रामगोपाल वर्मा की "सत्या' सबसे ज्यादा पसंद की गई। इस फिल्म का फिल्मांकन अरुण गवली के अड्डे अग्रीपाड़ा में किया गया था। इसके लिए गवली ने निर्माता की मदद की थी। इससे पहले "नामचीन' फिल्म की भी शूटिंग छोटा राजन के चेंबूर स्थित घर और ओडियन सिनेमा, जहां कभी वह टिकट ब्लैक करता था, के पास की गई थी। इन फिल्मों के अलावा "अंडरवल्र्ड' पर भी महत्वपूर्ण फिल्में बनी हैं इनमें प्रमुख हैं- "वास्तव', "अंगार', "हथियार', "परिंदा' और "गैंग'। "अंडरवल्र्ड' के डान अपने "डमी' निर्माता के सहारे फिल्मों में काला धन लगाते हैं। सलमान खान और रवीना टंडन की जोड़ी वाली फिल्म "पत्थर के फूल' में दाउद के भाई नूरा ने गाने लिखे थे। फिल्म की नाम-सूची ("क्रेडिट्स') में उसका नाम भी था। नूरा का नाम दीपक बैरी की फिल्म से भी जुड़ा हुआ है। 1991 में बनी एक फिल्म में छोटा शकील का नाम बतौर सह निर्माता था। इसके बाद भी फिल्म वाले इस बात से इनकार करें कि "बालीवुड' में "अंडरवल्र्ड' का पैसा नहीं लगता है तो गलत है। पिछले साल की सफल फिल्म "वास्तव' भी माफिया डान छोटा राजन की फिल्म मानी जाती है। पहले इस फिल्म में बतौर निर्माता एन. कुमार, जो एक पूंजी निवेशक भी हैं, का नाम था। मगर जब फिल्म को पुरस्कार मिले तो असली निर्माता के रूप में छोटा राजन के भाई दीपक निखालजे मंच पर आए थे। इस समय वह संजय दत्त और महेश मांजरेकर को लेकर फिर से फिल्म बनाने की तैयारी में जुटे हैं। "गेम' फिल्म के निर्माता रमेश शर्मा का भी नाम "अंडरवल्र्ड' से जोड़ा जाता रहा है। इस समय वह पूर्व विश्व सुन्दरी युक्ता मुखी को लेकर "प्यासा' फिल्म बना रहे हैं। हाजी मस्तान मनु नारंग के साथ फिल्में बनाते थे। हाजी मस्तान ने राज कपूर को भी धन उपलब्ध कराया था।

कुछ फिल्म पूंजी निवेशकों के सम्बंध भी "अंडरवल्र्ड' से बताए जाते हैं। पूंजी निवेशकों एन. कुमार का सम्बंध दीपक निखालजे से था। "अंडरवल्र्ड' के बढ़ते दबाव के कारण ही नामी पूंजी निवेशक दिनेश गांधी ने "बालीवुड' से खुद को अलग कर लिया। मगर भरत शाह सबसे बड़े पूंजी निवेशक के रूप में उभरे। इस उद्योग में पूंजी निवेशक लगभग 500 करोड़ रुपए वार्षिक निवेश करते हैं। इनमें सबसे ज्यादा निवेश भरत शाह का होता है। हिन्दुस्तान की कसम (15 करोड़), चाइना गेट (15 करोड़), मस्त (5 करोड़), मिशन कश्मीर (15 करोड़), मोहब्बतें (20 करोड़), परदेस, और प्यार हो गया, गुप्त, बार्डर (15 करोड़), स्निप (2 करोड़) में भरत शाह की पूंजी लगी है। इसके अलावा आने वाली फिल्मों में लज्जा (12 करोड़), कसूर (4 करोड़), राजू चाचा (20 करोड़), चोरी-चोरी, चुपके-चुपके (13 करोड़), हम पंछी एक डाल के (10 करोड़) और देवदास (11 करोड़) में भी भरत शाह की ही पूंजी लगी हुई है। भरत शाह के अलावा जिन निवेशकों की पूंजी लगती है उनमें गिरधर हिन्दुजा, झामू सुगंध, स्टर्लिन फायनेंस कम्पनी, सुशील गुप्ता और एन. कुमार हैं। सुशील गुप्ता सलमान खान की कम्पनी "जी.एस. एंटरटेंमेंट कम्पनी' को भी धन देते हैं।

मुम्बई पुलिस की नजर नजीम के अलावा कुछ और निर्माताओं पर भी लगी है। पुलिस को संदेह है कि उन निर्माताओं की फिल्मों में भी माफिया के पैसे लगे हैं। ऐसे निर्माताओं में अफजल खान (महबूबा) का भी नाम है। पुलिस का मानना है कि इसमें अबू सलेम का पैसा लगा है। इनके अलावा बाबी आनंद ("बुलंदी'-अनिल कपूर, रवीना टंडन), धीरज शाह ("जोड़ी नम्बर वन'-संजय दत्त, मोनिका बेदी, Ïट्वकल के नाम भी हैं)। इनकी फिल्मों में पैसे कहां से लगे इसकी जांच आयकर विभाग कर रहा है। कहा जाता है कि इन दिनों अबू सलेम और छोटा शकील अभिनेत्री मोनिका बेदी को फिल्मों में लेने के लिए निर्माताओं पर दबाव डाल रहा है। इस दबाव में ही राजीव राय ने अपनी फिल्म "इश्क, प्यार और मोहब्बत' में और धीरज शाह ने "जोड़ी नम्बर वन' में मोनिका को महत्वपूर्ण भूमिका दी है। हालांकि मोनिका ने कहा है कि "अगर उन्हें माफिया के डर से फिल्मों में काम दिया जाता तो उनके पास दर्जनों फिल्में होतीं। उनके बारे में लोग गलत अफवाह उड़ा रहे हैं।'

माफिया ने गोलियों से डराने का धंधा बंद नहीं किया है। "मोहरा' के निर्माता राजीव राय, ऋतिक रोशन के पिता राकेश रोशन और "एडलैब' के मालिक मनमोहन शेट्टी को जान से मारने की कोशिश की गई। मगर इसमें दाउद के गुंडों को सफलता नहीं मिली। धमकियां देने का काम तो अब भी जारी है। "मोहब्बतें' के निर्माता यश चोपड़ा, "मिशन कश्मीर' के निर्माता-निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा और "देवदास' के निर्माता-निर्देशक संजय लीला भंसाली को भी धमकियां दी जा रही हैं। इन फिल्मकारों ने पुलिस में छोटा शकील के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। इसलिए पुलिस ने इनकी सुरक्षा बढ़ा दी है। "बालीवुड' के वे फिल्म वाले दहशत में हैं, जो ईमानदारी के पैसे से फिल्में बना रहे हैं और माफिया के पैसे का उपयोग करने से कोसों दूर रहते हैं। लेकिन "अंडरवल्र्ड' और "बालीवुड' के रिश्ते टूटने वाले नहीं हैं, क्योंकि सरकार और पुलिस कमजोर है। पुलिस और आयकर विभाग वालों के अलावा राज्य सरकार की सहायता के लिए फिल्म वालों को मंचों पर मुफ्त में नाचना पड़ता है। पुलिस द्वारा कभी-कभी नजीम जैसे छोटे मोहरे को कब्जे में करके एक हंगामा खड़ा करने की कोशिश की जाती रही हैं। ऐसा लगता है कि इस बार भी ये सारी कोशिशें महज एक हंगामा ही साबित होने वाली हैं।
(पुराना लेख एक पत्रिका से)

प्राचीन काल के अस्त्र शस्त्र

प्राचीन वैदिक काल में आज के सभी तरह के आधुनिक अस्त्र-शस्त्र थे। इसका उल्लेख वेदों में मिलता है। उस काल की तकनीक आज के काल से भिन्न थी लेकिन अस्त्रों की मारक क्षमता उतनी ही थी जितनी कि आज के काल के अस्त्रों की है। हालांकि ये किस तकनीक से संचालित होते थे, यह शोध का विषय है। उस काल में युद्ध के दौरान शरीर के विभिन्न अंगों की रक्षा का उल्लेख भी मिलता है। उदाहरणार्थ शरीर के लिए चर्म तथा कवच का, सिर के लिए शिरस्त्राण और गले के लिए कंठत्राण इत्यादि का।

'अस्त्र' उसे कहते थे, जो किसी मंत्र या किसी यंत्र द्वारा संचालित होते थे और 'शस्त्र' उसे कहते थे, जो हाथों से चलाए जाते थे। अस्त्रों को मंत्रों द्वारा दूरी से फेंकते थे, जैसे पाशुपतास्त्र, ब्रह्मास्त्र, गरूड़ास्त्र आदि।

शस्त्रों को हाथों से संचालित किया जाता था। ये भी खतरनाक होते थे। शस्त्रों को हाथ से भी चलाया जाता था और किसी छोटे से यंत्र से भी, जैसे तलवार, वज्र, खंजर, खप्पर, खड्ग, परशु, बरछा, त्रिशूल आदि।

वेदों में अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन मिलता है लेकिन धनुर्वेद, धनुष-चन्द्रोदय और धनुष-प्रदीप इन 3 प्राचीन ग्रंथों का अक्सर जिक्र होता है। अग्नि पुराण में धनुर्वेद के विषय में उल्लेख किया गया है कि उसमें अस्त्रों के प्रमुख 4 भाग हैं- 1. अमुक्ता, 2. मुक्ता, 3. मुक्तामुक्त और 4. मुक्तसंनिवृत्ती।

दिव्यास्त्र : वे अस्त्र जो मंत्रों से चलाए जाते थे, उन्हें दिव्यास्त्र कहते हैं। प्रत्येक अस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है और मंत्र-तंत्र द्वारा उसका संचालन होता है। वस्तुत: इन्हें दिव्य तथा मांत्रिक-अस्त्र कहते हैं।
दिव्यास्त्रों के नाम : 1. आग्नेयास्त्र, 2. पर्जन्य, 3. वायव्य, 4. पन्नग, 5. गरूड़, 6. नारायणास्त्र, 7. पाशुपत, 8. ब्रह्मशिरा, 9. एकागिन्न 10. अमोघास्त्र और 11. ब्रह्मास्त्र। इसके अलावा कुछ ऐसे भयानक अस्त्र थे जो यंत्र या तंत्र से संचालित होते थे।

बेताल पचीसी एक रहस्यमय किताब

संस्कृत में लिखी गई 25 कथाओं का एक संग्रह है वेताल पच्चीसी। इसे विक्रम वेताल के नाम से जाना जाता है। विक्रम-बेताल की कहानी हम सब ने बचपन में सुनी है। इसके रचयिता भवभूति ऊर्फ बेताल भट्ट बताए जाते हैं, जो न्याय के लिए प्रसिद्ध राजा विक्रम के नौ रत्नों में से एक थे। इस किताब में लेखक ने एक वेताल (भूत समान) के माध्यम से राजा विक्रम की न्यायप्रियता को प्रदर्शित किया है। इसे भारत की पहली घोस्ट स्टोरी माना जाता है।

भवभूति, संस्कृत के महान कवि एवं नाटककार थे। उनके नाटक, कालिदास के नाटकों के समतुल्य माने जाते हैं। भवभूति, पद्मपुर में एक देशस्थ ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। पद्मपुर महाराष्ट्र के गोंदिया जिले में महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित है। भवभूति ने विक्रम यानी उज्जैन के राजा विक्रमादित्य को वेताल नामक भूत की कथाओं का एक पात्र बनाया था।


विक्रम संवत के अनुसार विक्रमादित्य आज से 2285 वर्ष पूर्व हुए थे। विक्रमादित्य का नाम विक्रम सेन था। नाबोवाहन के पुत्र राजा गंधर्वसेन भी चक्रवर्ती सम्राट थे। गंधर्वसेन के पुत्र विक्रमादित्य और भर्तृहरी थे। कलि काल के 3000 वर्ष बीत जाने पर 101 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य का जन्म हुआ। उन्होंने 100 वर्ष तक राज किया। -(गीता प्रेस, गोरखपुर भविष्यपुराण, पृष्ठ 245)।

माना जाता है कि वेताल पच्चीसी कहानियों का स्रोत राजा सातवाहन के मंत्री 'गुणाढ्य' द्वारा रचित 'बड़कहा' (संस्कृत : बृहत्कथा) नामक ग्रंथ को दिया जाता है जिसकी रचना ईसा पूर्व 495 में हुई थी। कहा जाता है कि यह किसी पुरानी प्राकृत भाषा में लिखा गया था और इसमे 7 लाख छंद थे। आज इसका कोई भी अंश कहीं भी प्राप्त नहीं है। कश्मीर के कवि सोमदेव ने इसको फिर से संस्कृत में लिखा और 'कथासरित्सागर' नाम दिया। बड़कहा की अधिकतम कहानियों को कथा सरित्सागर में संकलित कर दिए जाने के कारण ये आज भी हमारे पास हैं। 'वेताल पन्चविन्शति' यानी बेताल पच्चीसी 'कथासरित्सागर' का ही भाग है। समय के साथ इन कथाओं की प्रसिद्धि अनेक देशों में पहुंची और इन कथाओं का बहुत सी भाषाओं में अनुवाद हुआ।