Sunday 20 November 2016

फांसी चढ़े लेकिन इस्लाम कबूल नहीं किया

हकीकत राय का जन्म स्यालकोट (पंजाब) में 1911 में हुआ था। उनके पिता का नाम था भागमल खत्री। जब वह 11 वर्ष के थे तो उनका विवाह कर दिया गया। उन दिनों फारसी पढ़े बिना पंजाब में किसी हिन्दू को नौकरी नहीं मिलती थी, इसलिए उस बालक के पिता ने उस बालक को फारसी पढ़ाना जरूरी समझकर एक मदरसे में भर्ती करा दिया। एक दिन जब मदरसे के कुछ मुस्लिम लड़कों ने दुर्गा भवानी की निन्दा की, हंसी उड़ाई तो हकीकत को बड़ा गुस्सा आया। उसने उनसे कहा, "अगर मैं भी फातिमा बीबी की बुराई करूं तो तुम्हें कैसा लगेगा?' जब वहां मौलवी आया तो मुस्लिम लड़कों ने उससे हकीकत की शिकायत की कि "इसने हमारी फातिमा बीबी (पैगम्बर मोहम्मद की बेटी) को गाली दी है'। यद्यपि हकीकत ने फातिमा को कोई गाली नहीं दी थी फिर भी हकीकत को ले जाकर स्यालकोट के उस काजी के सामने खड़ा किया गया, जो ऐसे मामलों में सजा देता था। काजी ने हकीकत को मौत की सजा सुना दी। फिर उसे लाहौर के हाकिम के पास ले जाया गया जिसने उससे कहा कि "तुम मुसलमान बन जाओ तो तुम्हारी जान बख्शी जा सकती है'। तभी हकीकत के माता-पिता और पत्नी वहां आयी। माता-पिता बड़े दु:खी होकर रोने लगे, हकीकत से कहा, "बेटा! तुम मुसलमान हो जाओ इससे जान बच जाएगी'। पर हकीकत अपने धर्म पर अडिग रहा। उसे लाहौर में जल्लादों से कत्ल करा दिया गया। उस दिन 1974 की वसंत पंचमी थी।'।

बंगाल के तीन क्रन्तिकारी विनय, बादल और दिनेश की कहानी

बंगाल के तीन क्रांतिकारियों विनय, बादल और दिनेश ने अंग्रेज उच्चाधिकारियों, कुख्यात पुलिस महानिरीक्षक लोमेन, एक अन्य अंग्रेज अधिकारी हडसन, महानिरीक्षक (कारागृह) सिम्पसन, न्यायालय सचिव नेल्सन तथा टामसन आदि को इसलिए गोली मारी थी, क्योंकि इन अंग्रेजों ने मुस्लिमों को हिन्दुओं के विरुद्ध शह देकर दंगे कराए थे, जिनमें अनेक हिन्दुओं की हत्याएं की गई थीं। शहीद विप्लवी विनय बोस के पिता श्री रेवती मोहन बोस के आत्मकथ्य से यह तथ्य उजागर हुआ। उन्होंने बताया कि 1930 में ढाका में मुस्लिमों ने बहुत बड़ा दंगा किया था। लोगों का मानना था कि ये खूनी दंगे, अंग्रेज उच्चाधिकारियों ने ही कराए थे। इसलिए विप्लवी दल पुलिस के बड़े-बड़े अंग्रेज अधिकारियों से प्रतिशोध लेने के रास्ते पर चल पड़ा था। घर की दयनीय आर्थिक स्थिति देखकर विनय बोस ने अपने माता-पिता से यह भी कहा था कि "आप एक वर्ष और काट लें, फिर मैं डाक्टर होकर यहां आते ही बाबा (पिता) को नौकरी नहीं करने दूंगा।' इस तरह का मनोभाव रहने पर भी वह विप्लवी दल में सक्रिय रहकर क्रान्ति-कार्यों में योगदान देता था। 1930 में विनय, बादल और दिनेश, ये तीन युवक ढाका वि·श्वविद्यालय की "बंगाल स्वयंसेवक दल' में सक्रिय थे। इनमें विनय बोस ढाका के मिडफोर्ड मेडिकल कालेज में चतुर्थ वर्ष का छात्र था। 29 अगस्त,1930 को जब कुख्यात अंग्रेज महानिरीक्षक लोमेन और उसका सहयोगी ढाका पुलिस का अंग्रेज अधिकारी हडसन, उक्त मेडिकल कालेज के सामने मौजूद थे, उसी समय विनय बोस ने इन दोनों पर गोलियां चला दीं, जिससे महानिरीक्षक लोमेन वहीं ढेर हो गया और हडसन गम्भीर रूप से घायल हो गया। इस घटना के बाद विनय फरार होकर और अन्य अंग्रेज अधिकारियों को भी गोली मारने की ताक में रहने लगा। 8 दिसम्बर, 1930 को विनय बोस के नेतृत्व में "बंगाल स्वयंसेवक दल' के दो अन्य तरुण दिनेश गुप्त और सुधीर गुप्त कलकत्ता की "राइटर्स बिÏल्डग' में दिनदहाड़े घुसे और उन्होंने वहां मौजूद पुलिस महानिरीक्षक सिम्पसन को गोलियों से भून दिया। वहां मौजूद पुलिस दल के साथ इन लोगों का संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में अंग्रेज न्यायालय सचिव नेल्सन और उनके साथ टामसन जैसे अंग्रेज आई.सी.एस. अधिकारी मारे गए। इस बीच वहां और सैनिक दस्ता भी आ गया। क्रांतिकारियों के पास तीन पिस्तौलें और सीमित संख्या में ही गोलियां थीं। क्रान्तिकारियों की गोलियां जब खत्म होने लगीं तो वे उसी कमरे में बैठ गए, जहां से गोली चला रहे थे और संकल्प किया कि स्वयं अपने को खत्म कर लेंगे पर पुलिस के हाथ नहीं आएंगे। इसके बाद तीनों ने "पोटेशियम साइनाइड' के कैप्सूल निगल लिए, साथ ही अपने को गोली भी मार ली। सुधीर गुप्त उसी दिन समाप्त हो गया। विनय और दिनेश जीवित थे किन्तु अचेत थे। दोनों को मेडिकल कालेज में भर्ती कराया गया। दिनेश ठीक हो गया, पर विनय ने मस्तक के घाव पर बंधी पट्टी खोलकर घाव को उंगली से कुरेदकर विषाक्त बना लिया, जिससे 5 दिन बाद यानी 13 दिसम्बर को प्रात: 6 बजे मेडिकल कालेज में ही वह शहीद हो गया। उसके साथी क्रांतिवीर दिनेश गुप्त को 7 महीने जेल में कैद रखकर घोर यातनाएं दी गईं तथा अगले वर्ष सन् 1931 की 7 जुलाई को कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी कारागार में फांसी दी गई। शहीद दिनेश गुप्त का जन्म ढाका जिले के जशोलांग ग्राम में सन् 1911 की 6 दिसम्बर को हुआ था। उनके पिता का नाम था श्री सतीश चंद्र गुप्त। शहीद सुधीर गुप्त ढाका जिले के पूर्व सिमुलिया ग्राम में सन् 1912 में श्री अवनि गुप्त के यहां जन्मे थे। तीसरे शहीद विनय बोस विक्रमपुर राउतभोग ग्राम में बंगाब्द के भाद्र मास की 26 तारीख को जन्मे थे। इतने शीलवान और विनम्र थे कि पिता श्री रेवती मोहन बोस ने बालक का नाम विनय कृष्ण बोस रखा।

NEWS

Friday 18 November 2016

कमांडो ट्रेनर शिफूजी भारद्वाज क्या इस्लाम नहीं जानते ?

Shifuji Shaurya Bharadwaj जी मेरी तो कोई औकात ही नहीं है कि आप जैसे देशभक्तों की एक लाइन भी आलोचना कर सकूँ.. खासकर तब जब मैं खुद भी आपका बड़ा प्रशंसक हूँ.. लेकिन आपके नए वीडियो को देखा जिसमे आप भोपाल एनकाउंटर के ऊपर हुयी राजनीती के बाद अपना गुस्सा प्रकट कर रहे हैं....

माफ़ कीजियेगा जिस तरह से आपने वीडियो में बार बार मुस्लिमों को और इस्लाम को अच्छा बताया है उससे कहना पड़ेगा कि आपको इस्लाम की जानकारी लेनी चाहिए। आप शायद इस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पाएं है कि इस्लाम का मतलब ही आतंकवाद होता है। आपने दो आयत सुना दिए... कि देश से वफ़ादारी ही इस्लाम कहता है तो कश्मीर में पत्थरबाजी करने वाले क्या इस्लाम नहीं पढ़ते ? लाखों मुस्लिम जिन्होंने कश्मीर में लाखों पंडितों को मार दिया क्या उन्होंने वो आयत नहीं पढ़ी थी जो आपने पढ़ी ? क्या गिलानी, बुखारी, यासीन मलिक, असद्दुदीन ओवैसी ने इस्लाम नहीं पढ़ा है ? क्यों भोपाल जेल से भागने वाले आतंकवादी मुस्लिम ही थे ? क्यों आतंकवाद में पकडे जाने वाले सारे लोग मुस्लिम होते हैं ? क्यों पाकिस्तान से आये आतंकवादी भी मुस्लिम होते हैं ? अरे सर कुछ तो वजह होगा कि हर मामले में मुस्लिम नजर आते हैं ... कुछ तो बात होगी.... आपने जानने की कभी कोशिश की ? आप कैसे तुलना कर सकते हैं हिन्दू मुस्लिम की ? कौन सी समानता है दोनों धर्मों में ? एक मोहल्ले में रह नहीं पाते .. एक जगह दिल मिला कर बैठ नहीं सकते... एक दूसरे की मान्यताओं और भगवन की इज्जत कर नहीं सकते फिर कैसे दोनों में प्यार नजर आता है आपको ? क्यों नहीं अच्छे वाले मुस्लिम कश्मीरी हिंदुओं को बुलाते हैं ? क्यों मुस्लिम मोदीजी को पसंद नहीं करते ?

शिफूजी सर.. आपके ओजपूर्ण वक्तव्यों को सुनकर काफी अच्छा लगता है पर इस बार आपने मुस्लिम और इस्लाम के बारे में जो अज्ञानता दिखाई उससे दुःख हुआ.. आपके अथाह ज्ञान के सागर में .. ये अज्ञान का मटमैला कीचड घुला हुआ अच्छा नहीं दीखता। कुरआन ही कहता है कि हिन्दू ईसाई यहूदी जो भी मुस्लिम नहीं है उनको मार डालो.. कुरान ही कहता है कि देश में तब तक लड़ाई लड़ो याने जिहाद करो जब तक उस जगह सिर्फ इस्लाम ना बचे।

चलिये ठीक है क्या आपने कभी सोचा कि आतंकवादी बनते ही क्यों है ? क्या उद्देश्य होता है ? क्यों खुद को उड़ा लेते हैं ? क्यों पाकिस्तान सीजफायर तोड़ता रहता है, पडोसी देश तो और भी हैं हमारे .. वो क्यों नहीं करता ? आपने देखना चाहिए कि मुस्लिम वो बात फॉलो ही नहीं करते जो आप वीडियो में कह रहे हैं।  कुरआन में हर तरह की बात है। अगर ये लिखा है कि एक इंसान का क़त्ल पूरी मानवता का क़त्ल है तो उसी कुरआन में ये भी लिखा है कि मुसलमान को छोड़ कर सभी को मार डालो।

दोनो तरह की बातों में जिसे जो अच्छा लगता है माहौल के हिसाब से पढ़कर सुना देता है, आप कहते हैं आपके भी मुस्लिम दोस्त है मैं कहता हूँ होंगे.. लेकिन उनके दिल की बात आपने कैसे जान ली ? हमारे भी मुस्लिम दोस्त थे.. जब मैंने सच्चाई जानकर उनको कुरेदा तो सबकी सच्चाई सामने आ गयी... आप भी ग़लतफ़हमी से बाहर निकलिये ... मुस्लमान सिर्फ इस्लाम का होता है ना कि देश और किसी दोस्त का ... और इस्लाम जानना हो तो अरबी के साथ हिंदी अनुवाद के लिए पूर्व मौलाना और अब हिन्दू बन चुके पंडित महेंद्र पाल आर्य को या हमारे मित्र ब्रिज शर्मा को मिलिए जिसकी बात काटने की ताकत जाकिर नाइक जैसे लोगों में भी कभी नहीं हुयी।

बाकी कुछ बुरा लगा तो माफ़ी चाहता हूँ... पर बताना चाहता हूँ कि जब मुझे भी किसी ने कहा था कि इस्लाम ऐसा होता है तो मैं भी उस आदमी से लड़ पड़ा था पर धीरे धीरे सच्चाई आँखों से देख कर स्वीकार करनी ही पड़ी। आप बड़े सेलिब्रिटी लोग है आपकी बातों से अज्ञानता नहीं फैलनी चाहिए इसलिए मुझे ऐसा लिखने को मजबूर होना पड़ा या कहिये हिम्मत की है।

ऐसा युद्ध जिसके बाद 150 वर्षों तक विदेशियों ने हमले करने का सोचा भी नहीं

बहराइच के पासी राजा भगवान सूर्य के उपासक थे। बहराइच में सूर्यकुंड पर स्थित भगवान सूर्य के मूर्ति की वे पूजा करते थे। इसी वक़्त हज़ारों हज़ार हिंदुओं को काटते और मुसलमान बनाते सालार महमूद बहराइच तक आ धमका। जैसे ही पता चला पासी राजा सुहेलदेव ने युद्ध की तैयारी शुरू कर दी, अपने अधीनस्थ सभी सूबे के राजाओं को खबर भेज दी गयी।

सालार मसूद के बहराइच आने के समाचार पाते ही बहराइच के राजा गण – राजा रायब, राजा सायब, अर्जुन भीखन गंग, शंकर, करन, बीरबर, जयपाल, श्रीपाल, हरपाल, हरख्, जोधारी व नरसिंह महाराजा सुहेलदेव के नेतृत्व में लामबंद हो गये। ये राजा गण बहराइच शहर के उत्तर की ओर लगभग आठ मील की दूरी पर भकला नदी के किनारे अपनी सेना सहित उपस्थित हुए।

अभी ये युद्व की तैयारी कर ही रहे थे कि सालार मसूद ने उन पर रात्रि आक्रमण (शबखून) कर दिया। मगरिब की नमाज के बाद अपनी विशाल सेना के साथ वह भकला नदी की ओर बढ़ा और उसने सोती हुई हिंदु सेना पर आक्रमण कर दिया। इस अप्रत्याशित आक्रमण में दोनों ओर के अनेक सैनिक मारे गए लेकिन बहराइच की इस पहली लड़ाई मे सालार मसूद बिजयी रहा। पहली लड़ार्ऌ मे परास्त होने के पश्चात पुनः अगली लडाई हेतु हिंदू सेना संगठित होने लगी उन्होने रात्रि आक्रमण की संभावना पर ध्यान नही दिया।

उन्होने राजा सुहेलदेव के परामर्श पर आक्रमण के मार्ग में हजारो विषबुझी कीले अवश्य धरती में छिपा कर गाड़ दी। ऐसा रातों रात किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जब मसूद की धुडसवार सेना ने पुनः रात्रि आक्रमण किया तो वे इनकी चपेट मे आ गए। हालाकि हिंदू सेना इस युद्व मे भी परास्त हो गई लेकिन इस्लामी सेना के एक तिहायी सैनिक इस युक्ति प्रधान युद्ध मे मारे गए।

दो बार इस तरह से धोखे से सोते हुए में आक्रमण किये जाने से राजा सुहेल देव को इनकी असलियत समझ आ गयी थी। हिंदू सेना सचेत हो गई तथा महाराजा सुहेलदेव के नेतृत्व में निर्णायक लड़ाई हेतु तैयार हो गई। कहते है इस युद्ध में प्रत्येक हिंदू परिवार से युवा हिंदू इस लड़ार्ऌ मे सम्मिलित हुए। महाराजा सुहेलदेव के शामिल होने से हिंदूओं का मनोबल बढ़ा हुआ था। लड़ाई का क्षेत्र चिंतौरा झील से हठीला और अनारकली झील तक फैला हुआ था।

जून, 1034 ई. को हुई इस लड़ाई में सालार मसूद ने युद्ध शुरू होते ही सामने हजारो गायों व बैलो को छोड़ा गया ताकि हिंदू सेना प्रभावी आक्रमण न कर सके लेकिन महाराजा सुहेलदेव की सेना पर इसका कोई भी प्रभाव न पड़ा। वे भूखे सिंहों की भाति इस्लामी सेना पर टूट पडे मीर नसरूल्लाह बहराइच के उत्तर बारह मील की दूरी पर स्थित ग्राम दिकोली के पास मारे गए। सैयर सालार समूद के भांजे सालार मिया रज्जब बहराइच के पूर्व तीन कि. मी. की दूरी पर स्थित ग्राम शाहपुर जोत यूसुफ के पास मार दिये गए। इनकी मृत्य 8 जून, 1034 ई 0 को हुई।

अब भारतीय सेना ने राजा करण के नेतृत्व में इस्लामी सेना के केंद्र पर आक्रमण किया जिसका नेतृत्व सालार मसूद स्वंय कर कहा था। उसने सालार मसूद को धेर लिया। इस पर सालार सैफुद्दीन अपनी सेना के साथ उनकी सहायता को आगे बढे भयकर युद्व हुआ जिसमें हजारों लोग मारे गए। स्वयं सालार सैफुद्दीन भी मारा गया उसकी समाधि बहराइच-नानपारा रेलवे लाइन के उत्तर बहराइच शहर के पास ही है। शाम हो जाने के कारण युद्व बंद हो गया और सेनाएं अपने शिविरों में लौट गई।

10 जून, 1034 को महाराजा सुहेलदेव के नेतृत्व में हिंदू सेना ने सालार मसूद गाजी की फौज पर तूफानी गति से आक्रमण किया। इस युद्ध में सालार मसूद अपनी धोड़ी पर सवार होकर बड़ी वीरता के साथ लड़ा लेकिन अधिक देर तक ठहर न सका। राजा सुहेलदेव ने शीध्र ही उसे अपने बाण का निशाना बना लिया और उनके धनुष द्वारा छोड़ा गया एक विष बुझा बाण सालार मसूद के गले में आ लगा जिससे उसका प्राणांत हो गया। इसके दूसरे हीं दिन शिविर की देखभाल करने वाला सालार इब्राहीम भी बचे हुए सैनिको के साथ मारा गया। सैयद सालार मसूद गाजी को उसकी डेढ़ लाख इस्लामी सेना के साथ समाप्त करने के बाद महाराजा सुहेल देव ने विजय पर्व मनाया और इस महान विजय के उपलक्ष्य में कई पोखरे भी खुदवाए। वे विशाल ”विजय स्तंभ” का भी निर्माण कराना चाहते थे लेकिन वे इसे पूरा न कर सके। संभवतः यह वही स्थान है जिसे एक टीले के रूप मे श्रावस्ती से कुछ दूरी पर इकोना-बलरामपुर राजमार्ग पर देखा जा सकता है। हाँ दुःख की बात यही है कि हिन्दू उसी सालार को गाजी बाबा के नाम से पूजने उसके कब्र पर जाते हैं और सुहेलदेव कोई जानता तक नहीं।

लेकिन ये एक ऐसे युद्ध के रूप में जाना जाता है जिसमे हिन्दू राजाओं ने बहुत बुरी तरह से मुसलमानों का घमंड चूर चूर करके मिटटी में मिला दिया। इस्लामी सेना की इस पराजय के बाद भारतीय शूरवीरों का ऐसा आतंक विश्व में व्याप्त हो गया कि उसके बाद आने वाले 150 वर्षों तक किसी भी आक्रमणकारी को भारतवर्ष पर आक्रमण करने का साहस ही नहीं हुआ।

Thursday 17 November 2016

बर्मा में फिर से सैकड़ों मुसलमानों को भून दिया गया

बर्मा में फिर से 130 मुसलमानों को वहाँ की सेना ने मार दिया है। इस पर हायतौबा मचे उससे पहले नोटबंदी में फंसी सरकार को देखना चाहिए कि हमेशा की तरह वहाँ से जान बचाकर भाग रहे सारे मुस्लमान भारत में याने बंगाल में घुसने का प्रयास करेंगे।
बर्मा में बहुत पहले ही मुस्लिमों को घुसपैठिया करार दिया जा चूका है। सरकार के ही तरफ से आदेश है कि मुसलमानों को देखते ही गोली मार दो या खदेड़ कर भगाओ लेकिन देश में रहने मत दो।

शायद ही किसी को विश्वास हो या जो दुनिया में कोई देश फैसला नहीं ले सकता वो सब बर्मा में लिया जाता है क्योंकि बौद्ध सन्त विराथु ने बहुत बड़ा अभियान चलाया था जिसने सरकार को कट्टरता अपनाने पर मजबूर कर दिया। विराथु जी सरकार को ये समझाने में सफल हुए कि मुस्लिम हैं तो देश में समस्या रहेगी।

इस बात का असर हुआ और सरकार ने मुसलमानों की नागरिकता ही समाप्त कर दी। किसी मुस्लमान के बच्चे को स्कूल में पढ़ने या घुसने की इजाजत तक नहीं है। सारे मस्जिदों को तोड़ कर धूल धूसरित कर दिया गया। किसी भी मुस्लिम को वापिस उस मस्जिद की मरम्मत की इजाजत नहीं थी।

मरम्मत की बात तो दूर है उनको आदेश दिया गया कि देश छोड़ कर अपना रास्ता नाप लें। इसके लिए सरकार ने किसी और को नहीं बल्कि सेना को ही आदेश दे डाला कि मुस्लिम को देश से निकालो। नतीजा बहुत बड़े पैमाने पर मुसलमानों को मारा गया। भगाया गया। समंदर के रास्ते भागते सारे मुसलमानों की फोटो दुनिया भर में देखि गयी। आधे समंदर में ही मर गए। ना जाने कितने जंगल से भागते हुए मारे गए। और कितनो को सेना ने ही मार दिया , बाकी को कट्टर बौद्ध संगठनों ने हमला करके मार डाला।

दुनिया भर में ये शायद पहली बार हुआ कि मुस्लिम समाज पर वो तरीका अपनाया गया जो खुद मुस्लिम दूसरे धर्म के लोगों के साथ करते हैं। जब खुद पर बीती तो हाय तौबा मच गयी। यूएन से लेकर सारे मानवाधिकार संगठन खड़े हो गए पर बर्मा अपने फैसले पर कायम रहा।

इसके पीछे बड़ी लंबी कहानी है। बिलकुल वैसी ही जैसी भारत की है, जैसे यहां कश्मीर में होता है, बंगाल में होता है या जैसे देश का विभाजन करवा दिया, ये लोग पुरे बर्मा के लिए आफत बने हुए थे, देश में वहाँ भी विभाजन की बात आ गयी थी, मुस्लिम ने अराकान प्रांत जो अलग करने घोषणा ही कर दी थी लेकिन खेल पलट गया, अचानक कड़े फैसले ले लिए गए, सेना को छूट दे दी गयी... सीधी बात थी कि मार डालो।

आज बर्मा में मुस्लिम खोजे से नहीं मिलेंगे। या तो सीमा के बाहर शिविर में रुकते हैं या भाग कर बंगाल में घुसते हैं या कहीं और देश में चले जाते हैं। आज फिर न्यूज़ आ रही है कि 130 मुसलमानों को सेना ने भून डाला है। ये वो लोग है जो सीमा के बाहर से बार बार घुसने का प्रयास करते रहते हैं। अब वो भारत तो है नहीं, मारे जाते हैं।

Monday 7 November 2016

नागा साधु आत्मघाती दस्ता बनने को तैयार

इसका मतलब होगा कि किसी तरह से एक आत्मघाती हमलावर को हाफिज सईद या मसूद अजहर के सभाओं में भेज दो बस ... खेल खत्म । लोग कहते हैं मर कर मारने के लिए जिहाद का पागलपन होना चाहिए... उन्हें ये न्यूज़ ध्यान से पढ़ लेना चाहिए.... धर्म और राष्ट्र के लिए मर कर मारने का जुनून सिर्फ हिन्दू धर्म में ही हो सकता है।
अब ये डोभाल जी पर है कि वो कैसे और कब इश्तेमाल करना चाहेंगे।

कुछ लोगों को ये गलतफहमी भी दूर कर लेनी चाहिए कि साधु संतों की नजर देश में घट रहे घटनाक्रम पर नहीं होती है। #नागा_साधु

Wednesday 2 November 2016

राहुल की सभा में जब भगोड़े कैदी पहुंचे

राहुल गांधी जी एक जगह भाषण दे रहे थे.. माइक पर चिल्ला रहे थे ..
"भाइयों.. बताइये.. जेल से अपराधी भाग जाते हैं, तो क्या उनको मार दिया जायेगा ? अगर उनको पकड़ा जा सकता है तो क्यों मारा जाये ? बताइये.. ये कैसी मोदीजी की सरकार... ?

(तभी स्टेज पर एक पुलिस वाला आ गया... राहुल जी के कान में बोला...)

"सर बगल के जेल से 8 खूंखार आतंकवादी भाग गए हैं और इधर ही आये हैं .. ऐसा अंदेशा है "

राहुल गांधी की घिग्घी बंध गयी...
"क... क्या ?... ऐसा कैसे ? जेल तो यहां से 4  किलोमीटर दूर है तो वो लोग यहाँ तक कैसे आ गये ? मार देना चाहिए था ना.... मम्मी.... "

"नहीं सर वो हमलोग जेल से ही पीछा कर रहे थे... हमलोगों ने सोचा कि मार दें ... फिर सोचा आपलोग ही तो..."

"अरे .. यार मरवाएगा तू तो.. अब जान फंस गयी ना, राजनीती अलग चीज होती है यार.. चलो जल्दी से मेरे चारों तरफ घेरा बनाओ और जल्दी से मुझे मेरे घर पहुंचा दो.... भाषण वाशन बाद में.. जान बची तो लाखों पाए... "

आत्महत्या करने वाले रामकिशन को किस बात का दुःख था

रामकिशन जी ने आत्महत्या कर ली क्योंकि orop के पेंशन वाले डिमांड उनके अनुसार सरकार ने नहीं मानी। मैं कंफ्यूज हूँ... कुछ ही महीने पहले की बात है जब orop को सरकार ने मान लिया था, बजट में घोषणा हुई थी और मार्च से सभी के खाते में OROP का पेंशन जा भी रहा है।  खुद मोदीजी ने कई जगह ऐसा कहा था कि कांग्रेस के समय लटके इस बिल को मैंने पास किया है। शायद रामकिशन जी इस बिल में जो चाहते थे वो पूर्णतया नहीं हुआ होगा।
लेकिन मैं रामकिशन जी की मौत के बाद भी उनकी दुखी आत्मा से पूछना चाहता हूँ ..

क्या रामकिशन जी ने कभी देखा था कि कोई प्रधानमंत्री सीमा पर जाकर सैनिकों के साथ दीपावली मनाता है ? क्या कभी रामकिशन जी ने देखा था कि पत्थरबाजों से सिर्फ पत्थर खाने को नहीं बल्कि जवाब देने को भी किसी सरकार ने आदेश दिया हो ? क्या आज से पहले सैनिको के शहीद होने पर पूरा देश कभी ग़मगीन हुआ था? आज सोशल मीडिया से लेकर हरेक न्यूज़ चैनल पर शहीद की विधवा, बच्चे, माँ बाप को प्राथमिकता दी जाती है, ऐसा कभी हुआ था ? पहले कितने सैनिक मरे ये पता भी नहीं चलता था, आज एक एक की गिनती होती है और उसके बदले की बात कही जाती है। सर्जिकल स्ट्राइक किसके लिए किया गया था ?

उड़ी हमले में 14 सैनिकों की हत्या का बदला लिया गया .. क्योंकि सरकार सैनिकों की हत्या से बेहद व्यथित थी..ऐसा पहले कभी नही हुआ था। रामकिशन जी ने देखना चाहिए था कि सैनिकों को मजबूत करने के लिए रूस से, अमेरिका से , इजराइल से सामान खरीदने के लिए पूरा खजाना उलट दिया गया ताकि सैनिकों के पास बेहतर सुरक्षा और आक्रमण व्यवस्था हो।

रामकिशन जी आपकी OROP सही होगी.. होनी चाहिए थी.. लेकिन जो मोदीजी दिन रात आपके लिए इतना कुछ कर रहे थे वो भी देखना चाहिए था... आपलोग को पेंशन मिल रहा है लेकिन उसको बढ़ाने के लिए इतना कुछ करते हो ...... जबकि यहाँ करोड़ों प्राइवेट सेक्टर के लोग किसी भी उम्र में बिना पेंशन के लात मारकर यूँही निकाल दिए जाते हैं। कोई आत्महत्या नहीं करता सभी लड़ते हैं जिंदगी में।

कम से कम आत्महत्या करके आपने मोदीजी के साथ अहसानफरामोशी ही किया है।

Tuesday 1 November 2016

आखिर दूसरे देश के राष्ट्राध्यक्षों को हिन्दू स्मारक क्यों नहीं दिखाया जाता

हमारे देश की पहचान हिंदुओं के प्राचीन स्थल हैं लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि पहले ताजमहल और हुमायूँ का मकबरा दिखाया जाता था और अब गांधी जी का चरखा। भारत की संस्कृति तो सदैव से भारत के विशालकाय मन्दिरों, स्तूपों, विहारों, चैत्यों, स्थानकों तथा गुरुद्वारों में वास करती है।

अन्तरराष्ट्रीय सांस्कृतिक विरासत में भी मुख्यत: भारत के मन्दिरों को ही दर्शाया गया है। क्या कोणार्क का सूर्य मन्दिर,
खजुराहो के समूह मन्दिर,
महाबलिपुरम के मंदिर,
तंजाबुर का वृहदेश्वर मन्दिर,
मदुरै का मीनाक्षीपुरम मन्दिर ....
भारतीय संस्कृति का सही चित्र प्रस्तुत नहीं करते?

क्या अजन्ता,
एलोरा,
एलीफेन्टा,
उदयगिरि की गुफाएं ..... विश्व-कौतुहल तथा संस्कृति की मूल जानकारी देने के स्थल नहीं हैं?

क्या विजयनगर (हम्पी) के खण्डहर आज के अनेक नवनिर्मित नगरों से अधिक सुव्यवस्थित जानकारी नहीं देते?
सांची का स्तूप,
अशोक के अभिलेख,
बाहुबलि स्वामी की विशालकाय प्रतिमा,
सारनाथ में बुद्ध की अद्वितीय प्रतिमा ...... क्या भारतीय संस्कृति की सही जीवन दृष्टि नहीं दर्शाते हैं?

राम की जन्मभूमि अयोध्या,
कृष्ण की कर्मभूमि कुरुक्षेत्र,
विश्व को भारतीय संस्कृति से अवगत कराने वाले स्वामी विवेकानन्द का शिला स्मारक ...... क्या विश्व को आज भी आश्चर्यचकित तथा नतमस्तक होने को बाध्य नहीं करते?

पता नहीं क्यों जान बूझकर जब भी कोई भारत में बड़े देशों के राष्ट्राध्यक्ष या अतिथि आते हैं तो भारत के असली गौरव चिन्ह को नजरअंदाज किया जाता है, शायद इसलिए कि हिंदुओं की महानता, विशालता, पराक्रम आदि का बोध किसी को ना हो। अब तो हालात ये हैं कि भेड़चाल में खुद हिन्दू ऐसी जगहों पर ना जा के ताजमहल और अजमेर के ख्वाजा जैसी घटिया जगहों के चक्कर लगा कर अपने टूरिज्म को सम्पन्न कर लेते हैं।