Sunday 31 July 2016

दलितों के मसीहा भी थे वीर सावरकर।

(२८ मई को वीर सावरकर जयंती पर विशेष रूप से प्रचारित)

डॉ विवेक आर्य

क्रांतिकारी वीर सावरकार का स्थान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना ही एक विशेष महत्व रखता हैं. सावरकर जी पर लगे आरोप भी अद्वितीय थे उन्हें मिली सजा भी अद्वित्य थी. एक तरफ उन पर आरोप था अंग्रेज सरकार के विरुद्ध युद्ध की योजना बनाने का, बम बनाने का और विभिन्न देशों के क्रांतिकारियों से सम्पर्क करने का तो दूसरी तरफ उनको सजा मिली थी पूरे ५० वर्ष तक दो सश्रम आजीवन कारावास. इस सजा पर उनकी प्रतिक्रिया भी अद्वितीय थी की ईसाई मत को मानने वाली अंग्रेज सरकार कबसे पुनर्जन्म अर्थात दो जन्मों को मानने लगी. वीर सावरकर को ५० वर्ष की सजा देने के पीछे अंग्रेज सरकार का मंतव्य था की उन्हें किसी भी प्रकार से भारत अथवा भारतियों से दूर रखा जाये जिससे की वे क्रांति की अग्नि को न भड़का सके.वीर सावरकर के लिए शिवाजी महाराज प्रेरणा स्रोत थे. जिस प्रकार औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को आगरे में कैद कर लिया था उसी प्रकार अंग्रेज सरकार ने भी वीर सावरकर को कैद कर लिया था. जैसे शिवाजी महाराज ने औरंगजेब की कैद से छुटने के लिए अनेक पत्र लिखे उसी प्रकार वीर
सावरकर ने भी अंग्रेज सरकार को पत्र लिखे. पर उनकी अंडमान की कैद से छुटने की योजना असफल हुई जब उसे अनसुना कर दिया गया. तब वीर शिवाजी की तरह वीर सावरकर ने भी कूटनीति का सहारा लिया क्यूंकि उनका मानना था अगर उनका सम्पूर्ण जीवन इसी प्रकार अंडमान की अँधेरी कोठरियों में निकल गया तो उनका जीवन व्यर्थ ही चला जायेगा. इसी रणनीति के तहत उन्होंने सरकार से मुक्त होने की प्रार्थना करी जिसे सरकार द्वारा मान तो लिया गया पर उन्हें रत्नागिरी में १९२४ से १९३७ तक राजनितिक क्षेत्र से दूर नज़रबंद रहना पड़ा. विरोधी लोग इसे वीर सावरकर का माफीनामा, अंग्रेज सरकार के आगे घुटने टेकना और देशद्रोह आदि कहकर उनकी आलोचना करते हैं जबकि यह तो आपातकालीन धर्म अर्थात कूटनीति थी.

मुस्लिम तुष्टिकरण को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार ने अंडमान द्वीप के कीर्ति स्तम्भ से वीर सावरकर का नाम हटा दिया और संसद भवन में भी उनके चित्र को लगाने का विरोध किया. जीवन भर जिन्होंने अंग्रेजों की यातनाये सही मृत्यु के बाद उनका ऐसा अपमान करने का प्रयास किया गया.उनका विरोध करने वालों में कुछ दलित वर्ग की राजनीती करने वाले नेता भी थे जिन्होंने अपने राजनैतिक मंसूबों को पूरा करने के लिए उनका विरोध किया था.दलित वर्ग के मध्य कार्य करने का वीर सावरकर का अवसर उनके रत्नागिरी आवास के समय मिला.८ जनवरी १९२४ को जब सावरकर जी रत्नागिरी में प्रविष्ट हुए तो उन्होंने घोषणा करी की वे रत्नागिरी दीर्घकाल तक आवास करने आए हैं और छुआछुत समाप्त करने का आन्दोलन चलाने वाले हैं.उन्होंने उपस्थित सज्जनों से कहाँ की अगर कोई अछूत वहां हो तो उन्हें ले आये और अछूत महार जाती के बंधुयों को अपने साथ बैल गाड़ी में बैठा लिया. पठाकगन उस समय में फैली जातिवाद की कूप्रथा का आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं की किसी भी शुद्र को स्वर्ण के घर की ओसारी में भी प्रवेश वर्जित था. नगर पालिका के भंगी को नारियल की नरेटी में चाय डाली जाती थी.किसी भी शुद्र को नगर की सीमा में धोती के स्थान पर अगोछा पहनने की ही अनुमति थी. रास्ते में महार की छाया पड़ जाने पर अशौच की पुकार मच जाती थी. कुछ लोग महार के स्थान पर बहार बोलते थे जैसे की महार कोई गली हो. यदि रास्ते में महार की छाया पड़ जाती थी तो ब्रह्मण लोग दोबारा स्नान करते थे. न्यायालय में साक्षी के रूप में महार को कटघरे में खड़े होने की अनुमति न थी. इस भंयकर दमन के कारण महार जाती का मानो साहस ही समाप्त हो चूका था.

इसके लिए सावरकर जी ने दलित बस्तियों में जाने का, सामाजिक कार्यों के साथ साथ धार्मिक कार्यों में भी दलितों के भाग लेने का और स्वर्ण एवं दलित दोनों के लिए लिए पतितपावन मंदिर की स्थापना का निश्चय लिया गया जिससे सभी एक स्थान पर साथ साथ पूजा कर सके.

१. रत्नागिरी प्रवास के १०-१५ दिनों के बाद में सावरकर जी को मढ़िया में हनुमान जी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण मिला. उस मंदिर के देवल पुजारी से सावरकर जी ने कहाँ की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में दलितों को भी आमंत्रित किया जाये जिस पर वह पहले तो न करता रहा पर बाद में मान गया. श्री मोरेश्वर दामले नामक किशोर ने सावरकार जी से पूछा की आप इतने इतने साधारण मनुष्य से व्यर्थ इतनी चर्चा क्यूँ कर रहे थे? इस पर सावरकर जी ने कहाँ की “सैंकड़ों लेख या भाषणों की अपेक्षा प्रत्यक्ष रूप में किये गए कार्यों का परिणाम अधिक होता हैं. अबकी हनुमान जयंती के दिन तुम स्वयं देख लेना .”

२. २९ मई १९२९ को रत्नागिरी में श्री सत्य नारायण कथा का आयोजन किया गया जिसमे सावरकर जी ने जातिवाद के विरुद्ध भाषण दिया जिससे की लोग प्रभावित होकर अपनी अपनी जातिगत बैठक को छोड़कर सभी महार- चमार एकत्रित होकर बैठ गए और सामान्य जलपान हुआ.

३. १९३४ में मालवान में अछूत बस्ती में चायपान , भजन कीर्तन, अछूतों को यज्योपवित ग्रहण, विद्याला में समस्त जाती के बच्चों को बिना किसी भेदभाव के बैठाना, सहभोज आदि हुए.

४. १९३७ में रत्नागिरी से जाते समय सावरकर जी के विदाई समारोह में समस्त भोजन अछूतों द्वारा बनाया गया जिसे सभी सवर्णों- अछूतों ने एक साथ ग्रहण किया था.

५. एक बार शिरगांव में एक चमार के घर पर श्री सत्य नारायण पूजा थी जिसमे सावरकर जो को आमंत्रित किया गया था. सावरकार जी ने देखा की चमार महोदय ने किसी भी महार को आमंत्रित नहीं किया था. उन्होंने तत्काल उससे कहाँ की आप हम ब्राह्मणों के अपने घर में आने पर प्रसन्न होते हो पर में आपका आमंत्रण तभी स्वीकार करूँगा जब आप महार जाती के सदस्यों को भी आमंत्रित करेंगे.उनके कहने पर चमार महोदय ने अपने घर पर महार जाती वालों को आमंत्रित किया था.

६. १९२८ में शिवभांगी में विट्टल मंदिर में अछुतों के मंदिरों में प्रवेश करने पर सावरकर जी का भाषण हुआ.

७. १९३० में पतितपावन मंदिर में शिवू भंगी के मुख से गायत्री मंत्र के उच्चारण के साथ ही गणेशजी की मूर्ति पर पुष्पांजलि अर्पित की गयी.

८. १९३१ में पतितपावन मंदिर का उद्घाटन स्वयं शंकराचार्य श्री कूर्तकोटि के हाथों से हुआ एवं उनकी पाद्यपूजा चमार नेता श्री राज भोज द्वारा की गयी थी. वीर सावरकर ने घोषणा करी की इस मंदिर में समस्त हिंदुयों को पूजा का अधिकार हैं और पुजारी पद पर गैर ब्राह्मन की नियुक्ति होगी.

इस प्रकार के अनेक उदहारण वीर सावरकर जी के जीवन से हमें मिलते हैं जिससे दलित उद्धार के विषय में उनके विचारों को, उनके प्रयासों को हम जान पाते हैं. सावरकर जी के बहुआयामी जीवन के विभिन्न पहलुयों में से सामाजिक सुधारक के रूप में वीर सावरकर को स्मरण करने का मूल उद्देश्य दलित समाज को विशेष रूप से सन्देश देना हैं जिसने राजनितिक हितों के लिए स्वर्ण जाति द्वारा अछूत जाति के लिए गए सुधार कार्यों की अपेक्षा कर दी हैं और उन्हें केवल विरोध का पात्र बना दिया हैं.

Friday 29 July 2016

मैं विश्व विधाता हूँ। मैं ही हिंदुस्तान हूँ।।

मैं हिन्दुस्तान हूं। मैं विश्व विधाता हूं। मैंने जो दिया है, उसे दुनिया ने माना है। गिनती मैंने शुरू की। शून्य का महत्व मैंने समझाया। गणित मैंने दिया। ज्योतिष मेरे दिमाग की उपज है। दुनिया को सभ्यता मैंने दी। खगोल को मैने जाना।

मैं हिमालय की तरह सिर उठाकर दुनिया में आज भी खड़ा हूं। अर्थशास्त्र मैंने दिया। कोटल्य मैं हूं। चंद्रगुप्त और अशोक मेरे ही पुत्र रहे। गौतम बुद्ध महावीर स्वामी भी मैं ही हूं और मनु भी मैं ही हूं। मैंने चार्वाक पैदा किया, तो मैंने शंकराचार्य को जन्म दिया। विश्व धर्म मैंने सिखाया। मैं चिरंतन हूं। धर्म हूं। भूतकाल मेरा ही रहा, भविष्य मेरे हाथ में होगा। मेरे पास अपार संप्रभुता है। ज्ञान है। विवेक है। भावना है। सहिष्णु भी मैं ही हूं और नटराज भी मैं ही हूं। ब्रह्म ज्ञान मेरा है। मैं ब्रह्मास्मि हूं। मेरे पुत्रों की संख्या असंख्य है। विश्व मेरा है। सभी मेरे अंश हैं। राम, कृष्ण ने मेरे हृदय स्थल पर लीलाएं कीं। महादेव मेरा है। विष्णु का मैं ही अवतार हूं। मेरे प्रिय पुत्र ऋषि, महर्षि, मुनि, ज्ञानी, संत हैं।
मैं धन धान्य से परिपूर्ण हूं। मेरी व्यवस्था को दुनिया ने माना है। मेरा लक्ष्य है चरैवेति चरैवेति। सनातन। सत्य की विजय होगी। सब कुछ ठंडा हो जाएगा। पृथ्वी आग का गोला थी। ठंडी हुई। जीव पैदा हुआ। आत्मा ने प्रवेश किया। पंचतत्व मैं ही हूं। विलीन मेरी सतत प्रक्रिया है। प्रकाश भी मैं ही हूं और अंधकार पर मेरा ही साम्राज्य है। इसीलिए गुणीजनो सुनो दुनिया और भारत की कहानी।

विष्णुगुप्त, चाणक्य, कोटल्य मेरे ही नाम हैं। मैं तुम्हें जो देकर जा रहा हूं उसी लकीर पर दुनिया चलेगी। इस धरती पर जो वेद, पुराण, उपनिषद, वेदांग, स्मृतियां समय की जनित कृतियां हैं। जनश्रुति, स्मृतियां हैं। लिखित में इतिहास हूं। मैं तुम्हारे सामने हूं। मेरे शरीर पर अनगिनत घाव हैं। फिर भी मैं निष्चल खड़ा हूं। मैं हिमालय की तरह अटल हूं।

मेरा पुत्र कोटल्य जिसका पराक्रम दुनिया ने माना है। सर्वसत्ता केलिए युद्ध अनिवार्य है। विश्व में युद्ध हुए, व्यवस्था के लिए। मानव सभ्तयता को स्थापित करने लिए मेरी नीति, कूटनीति कहलाई। मैं सहिष्णु हूं, परंतु जरूरत पर शमशीर उठाई और मैं विजयी हुआ हूं। मैंने ही हमेशा सभ्य समाज की स्थापना के प्रयत्न किए हैं।

मेरा कोई सानी नहीं। मैं भोर में जागता हूं। मेरे मंदिरों में घणियाल बजते हैं।  दुनिया को अज्ञान केघोर अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश मैं ही लाया। ज्ञान, विज्ञान, मनोविज्ञान, ज्योतिष, खगोल को मैंने ही खोजा है। मैं अजेय हूं। अमर हूं। सनातन हूं। मैं हिन्दुस्तान हूं।
(03 दिसम्बर 2014 की पोस्ट)

Thursday 28 July 2016

मैं बना हिंदूवादी तो सारे दोस्त भागे

चूँकि मैं बॉलीवुड से जुड़े विडियो एडिट करता हूँ तो शुरू शुरू में फेसबुक पर आया तो कोशिश थी कि इस लाइन से जुड़े लोगों से जुड़ा जाए। इसके बाद जिस क्षेत्र में आप हो तो  साथ काम करने वाले लोगों की आईडी आपको पता चलती है और उस तरीके से भी वही खास लोग आपसे जुड़ते हैं। इसमें काफी लडकियां भी थीं जो मॉडल थीं या एक्ट्रेस थीं, कई प्रोड्यूसर डायरेक्टर संगीतकार कैमरामैन अभिनेता सभी थे। मैं भी था पक्का सेक्युलर इसलिए खूब जम रही थी।
धीरे धीरे पता नहीं कहाँ से हिंदुत्व का इंजेक्शन लगना शुरू हुआ, मन विचलित हो उठा, इतने सारे राज इतनी उम्र तक मैं कैसे जान नहीं पाया , ऐसा सोचने लगा। शुरू में पढता था, कमेंट करता था पर पोस्ट नहीं करता था। फिर कब पोस्ट करने लगा पता भी नहीं चला। हिन्दू धर्म से जुड़े जानकारियों को खोजने का पागलपन सवार हो गया जो अब तक जारी है।

मेरे इस कायाकल्प में कब मेरे फ़िल्मी लोग मेरे आईडी से निकलने लग गए पता भी नहीं चला। बहुत बाद में समझ आया कि इक्के दुक्के को छोड़ सभी ने साथ छोड़ दिया है। असल समस्या थी इस बॉलीवुड के क्षेत्र में मुस्लिमो की बढ़त। कास्टिंग से लेकर निर्माण और निर्देशन सहित सभी जगह इनकी उपस्तिथि है। अगर आप पक्के हिंदूवादी है तो आपको इस लाइन में आगे बढ़ना मुश्किल होगा। खासकर अभिनय या मॉडलिंग  करते हैं तब।

क्योंकि वो लोग कट्टर मुस्लमान है, बस आपको उदारवादी होना चाहिए याने सेक्युलर। उनका धर्म के प्रति वफादार होना तो जैसे अच्छे लोगों के गुणों में माना जाता है पर आपका नहीं। कुछ लोग तो बेशर्म की तरह उनके मुंह से अपने धर्म की बुराई सुनते हैं और हँसते हैं। इस क्षेत्र में पैसा सबकुछ है। यहां लोग खतना करवाने को , गौमांस खाने तक को तैयार बैठे हैं बस कोई इस लाइन में चांस दे दे।

अब मेरी तो सबसे दोस्ती गयी। लडकियां तो सबसे पहले भागी, उसके बाद लड़के। ज्यादातर ने चुपके से unfriend किया। अब मैं सोचता नहीं कि इससे मेरे जॉब पर क्या असर पड़ेगा। जब मुस्लिम सेक्युलर नहीं हैं तो मैं क्यों ? वैसे पहले जहां 500 से 700 दोस्त बने थे वो भी पापड़ बेलने के बाद , वहीँ अब हज़ारों दोस्त हैं, और लाखों लोगों तक अन्य माध्यमों से भी बात चली जाती है, और क्या चाहिए ? ? मेरा धर्म मेरा देश ही मेरा अस्तित्व है, अब तो एक उद्देश्य मिल गया है कि पैसे कमाने के अलावे भी कुछ जिम्मेदारी है।

हिन्दू धर्म का प्रसार भारत के बाहर क्यों नहीं ?

कुछ अज्ञानी और विधर्मी यह सवाल करते हैं कि अगर हिन्दू धर्म कई हजार वर्ष पुराना है तो फिर भारत के बाहर इसका प्रचार-प्रसार क्यों नहीं हुआ?
इनको धरती का प्राचीनतम भौगोलिक नक्शा पता नहीं वरन ऐसा नहीं कहते। जब संपूर्ण धरती पर ही प्राचीनकाल में सिर्फ हिन्दू ही एकमात्र धर्म था तो इसके प्रचार-प्रसार का क्या मतलब।
खैर, सभी जानते है कि पहले ये धरती पूरी तरह जलमग्न थी। उस समय सिर्फ पानी वाले ही जंतु थे इंसान नहीं। इसके बाद जो पहले कठोर हिस्सा पानी से बाहर निकला वो हिमालय का भाग था। इस तरह से पूरी धरती पर साथ द्वीप निकले याने बने।

इन सातों द्वीपों को जम्बूद्वीप कहा जाता था। एक ही देश जिसके सात हिस्से थे। प्राचीनकाल में अफ्रीका और दक्षिण भारत के अधिकतर हिस्से जल में डूबे हुए थे। जल हटा तो यहां जंगल और जंगली जानवरों का विस्तार हुआ। यहीं से निकलकर व्यक्ति सुरक्षित स्थानों और मैदानी इलाकों में रहने लगा। यह स्थान उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के बीचोंबीच था जिसे आज हम अलग अगल नामों से पुकारते हैं। यह क्षेत्र दक्षिणवर्ती हिमालय के भूटान से लेकर हिन्दूकुश पर्वत के पार इसराइल तक था।

पुरे जम्बूद्वीप में सनातन धर्म याने हिन्दू धर्म का प्रचार प्रसार शिव के सात शिष्यों ने किया था। इसके बाद अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा, अथर्वा, वशिष्ठ, विश्वामित्र, भारद्वाज, मरीचि, कश्यप, अत्रि, भृगु, गर्ग, अगस्त्य, वामदेव, शौनक, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, नारद, विश्‍वकर्मा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, जमदग्नि, गौतम, मनु, बृहस्पति, उशनस (शुक्राचार्य), विशालाक्ष, पराशर, पिशुन, कौणपदंत, वातव्याधि और बहुदंती पुत्र आदि ऋषियों ने वैदिक ज्ञान की रोशनी को संपूर्ण धरती को नहला दिया। पहली बार लोगों ने धर्म के अनुसार चलना रहना और व्यवहार करना सीखा। दुनिया के हर हिस्से में आज भी हिंदुओं की निशानियां है। आज का जो भारत है वो तो सिकुड़ कर और गैरधर्मियों से हारते हारते हुआ है।

सिर्फ हज़ार साल पहले तक रूस हिन्दुराष्ट्र था। चीन का नाम हरिवर्ष था। मंगोलिया, अफगानिस्तान, नेपाल, पाकिस्तान, सब तो हाल के समय का इतिहास है। अब पाकिस्तान के बच्चे ही सौ साल बाद आपसे कहेंगे कि
भगवान पाकिस्तान में क्यों जन्म लिए ?

पहले ईसाई, मुस्लिम, यजीदी, पारसी, सिख कोई धर्म नहीं था। धरती पर दो ही अलग अलग तरह के मनुष्य थे.... सुर और असुर। और सबसे बड़ी बात असुरों का धर्म भी वेद याने सनातन धर्म ही था।

Sunday 24 July 2016

क्या सचमुच टाइम मशीन है ?

टाइम मशीन का सम्बन्ध गति से है। भारत में ऐसे कई साधु-संत हुए हैं, जो आंख बंद कर अतीत और भविष्य में झांक लेते थे। पौराणिक कथाओं अनुसार देवी-देवता एक ग्रह से दूसरे ग्रह और एक समय से दूसरे समय में चले जाते थे। इंग्लैंड के मशहूर लेखक हर्बट जार्ज वेल्स ने 1895 में 'द टाइम मशीन' नामक एक उपन्यास प्रकाशित किया, तो समूचे योरप में तहलका मच गया। इस उपन्यास में वेल्स ने 'टाइम मशीन' की अद्भुत कल्पना की। इसके बाद तो ना जाने कितने कॉमिक में और फिल्मों में ये प्रयोग किया गया। यहां भी क्रिस में ऋतिक रोशन की फ़िल्म में यह कथा लिखी गयी।

टाइम मशीन अभी एक कल्पना है। टाइम ट्रेवल और टाइम मशीन, यह एक ऐसे उपकरण की कल्पना है जिसमें बैठकर कोई भी मनुष्य भूतकाल या भविष्य के किसी भी समय में सशरीर अपनी पूरी मानसिक और शारीरिक क्षमताओं के साथ जा सकता है। अधिकतर वैज्ञानिक मानते हैं कि यह कल्पना ही रहेगी कभी हकीकत नहीं बन सकती, क्योंकि यह अतार्किक बात है कि कोई कैसे अतीत में या भविष्य में जाकर अतीत या भविष्य के सच को जान कर उसे बदल दे। जैसे कोई भविष्य में से आकर आपसे कहे कि वह आपका पोता है या अतीत में से आकर कहे कि वह आपका परदादा है, जो यह संभव नहीं है।

वैज्ञानिक कहते हैं कि दरअसल, जो घटना घट चुकी है उसका दृश्य और साउंड ब्रह्मांड में मौजूद जरूर रहेगा। जिस तरह आप एक फिल्म देखते हैं उसी तरह वह टाइम मशीन के द्वारा दिखाई देगा। आप उसमें कुछ भी बदलाव नहीं कर सकते। यदि ऐसा करने गए तो वह पार्टिकल्स बिखरकर और अस्पष्‍ट हो जाएंगे।

प्राचीनकाल में सनतकुमार, नारद, अश्‍विन कुमार आदि कई हिन्दू देवता टाइम ट्रैवल करते थे। टाइम मशीन की कल्पना भी भारतीय धर्मग्रंथों से प्रेरित है। आप सोचेंगे कैसे? वेद और पुराणों में ऐसी कई घटनाओं का जिक्र है। उदाहरणार्थ रेवत नाम का एक राजा ब्रह्मा के पास मिलने ब्रह्मलोक गया और जब वह धरती पर पुन: लौटा तो यहां एक चार युग बीत चुके थे। रेवती के पिता रेवत अपनी पुत्री को लेकर ब्रह्मा के पास योग्य वर की तलाश में गए थे। ब्रह्मा के लोक में उस समय हाहा, हूहू नामक दो गंधर्व गान प्रस्तुत कर रहे थे। गान समाप्त होने के उपरांत रेवत ने ब्रह्मा से पूछा अपनी पुत्री के वरों के बारे में।

ब्रह्मा ने कहा, 'यह गान जो तुम्हें अल्पकालिक लगा, वह चतुर्युग तक चला। जिन वरों की तुम चर्चा कर रहे हो, उनके पुत्र-पौत्र भी अब जीवित नहीं हैं। अब तुम धरती पर जाओ और शेषनाग के साथ इसका पाणिग्रहण कर दो जो वह बलराम के रूप में अवतरित हैं।' अब सवाल यह उठता है कि कोई व्यक्ति चार युग तक कैसे जी सकता है? कुछ ऋषि और मुनि सतयुग में भी थे, त्रेता में भी थे और द्वापर में भी। इसका यह मतलब कि क्या वे टाइम ट्रैवल करके पुन: धरती पर समय समय पर लौट आते थे?

इसका जवाब है कि हमारी समय की अवधारणा धरती के मान से है लेकिन जैसे ही हम अंतरिक्ष में जाते हैं, समय बदल जाता है। जो व्यक्ति ब्रह्मलोक होकर लौटा उसके लिए तो उसके मान से 1 वर्ष ही लगा। लेकिन अंतरिक्ष के उक्त 1 वर्ष में धरती पर एक युग बीत गया, बुध ग्रह पर तो 4 युग बीत गए होंगे, क्योंकि बुध ग्रह का 1 वर्ष तो 88 दिनों का ही होता है। क्रमशः ..

एक बिल्ली जिसे मारने वाले का था पता

इस बिल्ली का नाम ऑस्कर है इस बिल्ली में किसी की मौत की आहट को भांप सकने की ताकत थी...
अभी कुछ महीनों पहले टेलीविजन न्यूज चैनल पर ऑस्कर नाम की बिल्ली के बारे में विशेष कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया था। ब्रिटेन में ऑस्कर नाम की इस बिल्ली ने एक पूरे नर्सिंग होम की नींद उड़ा दी थी, क्योंकि यह बिल्ली जिस मरीज के बिस्तर के पास बैठी मिलती थी, समझो उसे भगवन का बुलावा आने वाला है।

बाद में इस अस्पताल के डॉक्टर ने रीडर्स डाइजेस्ट में बिल्ली की भविष्यवाणी के कारण ढूँढते हुए एक लेख लिखा था। इसमें उन्होंने बताया कि मरने से पहले व्यक्ति के शरीर के आसपास एक खास किस्म की रासायनिक गंध आने लगती है और शायद यह बिल्ली उसी को सूँघ लेती थी।
अगर किसी वजह से जिस रूम में मरीज होता और उसका दरवाजा बंद होता तो ऑस्कर उस रूम का दरवाजा खरोंचने लगता....  यह हमेशा मरीजों के आस पास नहीं बल्कि मरीजों से दूर ही रहती पर जब भी इसे किसी की मौत का आभास होता तो उस रूम में जाती फिर जिस मरीज की मौत होनी है उसके नजदीक जा कर उसके चारों तरफ घुमती और फिर वहीँ उसके बगल में ऐसे बैठ जाती जैसे यमराज हो...

डॉक्टर ने अपनी किताब में लिखा की बिल्ली की भविष्य वाणी सटीक निकली... अपने 5 साल के जीवन मे करीब 50 मरीजों की मौत के बारे में उसने बताया...

Saturday 23 July 2016

देवी मायावती की पूजा अर्चना

सुबह हुयी तो दलित भाई उठा, देवी माता मायावती का नाम लिया, और फिर नहा धोकर पास के मंदिर में चल पड़ा।
वहाँ जबरदस्त भीड़ लगी थी। सबसे आगे मोटे मोटे नेता टाइप लोग थे।
फिर माया चालीसा शुरू हुयी, इस चालीसा में सवर्णों को, हिन्दू धर्म को को खूब भला बुरा कहने वाले दोहे थे। सबने झूम झूम गाया।

इसके बाद आरती चालू हुयी। एक थाल में दीप की जगह नोट के बंडल रखकर दीप जलाये गए और महिमा गान फिर से हुआ। इस आरती को लेने में सिक्के डालने नहीं बल्कि उठाने थे, किसी किसी ने दो दो सिक्के उठाये। प्रसाद में मांस था, चूहे बकरी आदि का।

वहाँ एक साधू था, जो सबकुछ करवा रहा था वह कई सालों से उस मंदिर में लगे हथिनी और देवी मायावती की पूजा कर रहा था। सभी भक्त चले गए तो वो साधू फिर तल्लीन हो गया तपस्या में। रात हुयी तो सवर्णों को गाली देने वाला मन्त्र 1001 पढ़ा और दो सवर्णों का गला काटकर बलि चढ़ाई। सवर्णों के खून से जैसे ही देवी माया की मूर्ति को नहलाया गया, मायावती ने आँखें खोल दी।

आकाशवाणी जैसी आवाज से बोलीं..
" भक्त हम खुश हुये, ये लो बसपा का टिकट, बस मिटा दो हिन्दू धर्म और समाज को"

कहकर फिर मूर्ति बन गयी। साधू को तपस्या का फल मिला वो मनदिर छोड़ चला गया और दूसरे साधू ने मंदिर का कार्यभार संभाल लिया।

(आज से 50 साल बाद की सच्ची कहानी)

Tuesday 12 July 2016

जाकिर नाइक और श्री श्री की डिबेट

जाकिर नाईक ने श्री श्री रवि शंकर जी को एक बार खुलेआम अपने प्रयोजित शो में स्टेज पर बुलाया था। लाखों लोग जमा थे। वहाँ पर जाकिर नाईक ने बात की शुरुआत तो दोस्त के रूप में की पर जल्दी ही असली रूप में आते हुए हिन्दू धर्म की बुराई शुरू कर दी। रवि शंकर जी से सीधे इस्लाम और हिन्दू धर्म के बीच "कौन श्रेष्ठ और क्यों " की व्याख्या करने लगा। यह शो बहुत विवादित रहा, और जहां मुस्लमान इस वीडियो को अपनी जीत बताते हैं वहीँ खुद रवि शंकर जी ने कहा कि वहाँ माहौल गर्म था और इसलिए वो इस्लाम पर कुछ गलत बोलकर ख़राब स्तिथि का सामना नहीं करना चाहते थे।

लेकिन दोस्तों सच यही है कि श्री रवि शंकर जी बहस तो तब करते जब इस्लाम के बारे में कुछ जानते। वे काफी बड़े संत हैं, और सन्त होने का मतलब ये नहीं होता कि उनको दूसरे धर्म के बारे में बहुत जानकारी हो। उन्हें हिन्दू धर्म के बारे में जरूर अच्छा ज्ञान है। नतीजा ये हुआ कि जाकिर ने जब अलग अलग ग्रंथों और पुस्तकों का हवाला देना शुरू किया तो रवि शंकर जी के पास उस विषय पर जवाब नहीं थे जो कुरआन से या हदीस से जुड़ा था। इस बात का इल्म जाकिर नाईक को पहले से थे इसलिए तो उनको बुलाया था।

जाकिर नाईक को..... इस्लाम को.... बहस के दौरान पूरी तरह नंगा करने वाले लोग भी हैं यहां, लेकिन उनको वो प्रसिद्धि मिली हुयी नहीं है। महेंद्र पाल आर्य, Brij Nandan Sharma आदि ऐसे लोग हैं जिन्हें कुरआन हदीस जाकिर से ज्यादा पता है और हिन्दू धर्म के बारे में भी । इनके द्वारा भारत सहित दुनिया भर में इस्लाम की पूरी पोल खोल कर रख दी गयी है। इनकी बढ़ावा देने कोई हिन्दू संगठन भी नहीं आता। हिन्दू समाज में इस तरह के लोगों को अच्छा नहीं समझा जाता जो दूसरे धर्म की बुराई करता हो भले ही वही सच्चाई हो।

वैसे मैं तो इस पक्ष में हूँ कि सरकार जाकिर नाइक को गिरफ्तार करे उससे अच्छा है कि इसका पहले खुलेआम डिबेट करवाया जाए जिसका सीधा प्रसारण दुनिया भर में हो, पहले जाकिर और उस पर भरोसा करने वालों को मानसिक तौर पर नंगा किया जाए बाद में गिरफतारी हो इससे करोड़ों मुसलमान सीधे तौर पर हिंदुओं की श्रेष्ठता भी स्वीकारेंगे और धर्म वापसी की तरफ सोचेंगे।