Thursday 29 November 2018

साला शब्द गाली नहीं था बल्कि एक पवित्र नाम था

"साला" शब्द को हमलोग गाली के रूप में लेते हैं... लेकिन वास्तव में साला उस पवित्र शंख का एक और नाम था जो पहली बार समुद्र मंथन में निकला था....
चूंकि उससे पहले मंथन में लक्ष्मी जी के रूप में अपार सोने (गोल्ड) का आगमन हुआ था... तो उसे लक्ष्मीजी के नाम से पुकारा गया...

सबने कहा लक्ष्मी जी मंथन से निकली हैं पर वास्तव में वो गोल्ड था जो लक्ष्मी का सूचक था...

इसके बाद जब साला शंख निकला तो उसे लक्ष्मी जी का भाई कहा गया... कि देखो लक्ष्मी (गोल्ड) का भाई साला (शंख) आया है...

यहीं से ये प्रचलन में आया कि नवविवाहित बहु (मतलब घर की लक्ष्मी) जब आती है तो साथ मे आने वाले भाई को बहुत ही पवित्र नाम साला कहा गया... पुकारा गया...

असल मे ये शब्द बदनाम हुआ... क्योंकि मराठी भाषा मे साला एक गाली का शब्द है...
और दूसरे ये बदनाम हुआ साला याने पत्नी के भाइयों ने जो कारनामे किये...

खैर अच्छी बात ये है कि साला शंख का नाम है और माता लक्ष्मी का भाई है।।

Tuesday 13 November 2018

राम मंदिर के इस नरसंहार को पढ़कर खून के आंसूं आएंगे

अगर आपने इसे पूरा पढ़ लिया तो आंखों में आंसू आ जाएंगे... "खून के आंसूं"।।
1527-28 में जब अयोध्या का राममंदिर तोड़ा जा रहा था तब जन्मभूमि मंदिर पर सिद्ध महात्मा श्यामनंदजी महाराज का अधिकार था। उस समय भीटी के राजा महताब सिंह बद्रीनारायण ने मंदिर को बचाने के लिए बाबर की सेना से युद्ध लड़ा। कई दिनों तक युद्ध चला और अंत में लखनऊ गजेटियर' के 66वें अंक के पृष्ठ 3 पर इतिहासकार कनिंघम लिखता है कि 1,74,000 हिन्दुओं की लाशें गिर जाने के पश्चात मीर बकी अपने मंदिर ध्वस्त करने के अभियान में सफल हुआ।

उस समय अयोध्या से 6 मील की दूरी पर सनेथू नाम के एक गांव के पं. देवीदीन पाण्डेय ने वहां के आसपास के गांवों सराय, सिसिंडा, राजेपुर आदि के सूर्यवंशीय क्षत्रियों को एकत्रित किया और फिर से युद्ध हुआ। पं. देवीदीन पाण्डेय सहित हजारों हिन्दू शहीद हो गए और बाबर की सेना जीत गई।

पाण्डेयजी की मृत्यु के 15 दिन बाद हंसवर के महाराज रणविजय सिंह ने सिर्फ हजारों सैनिकों के साथ मीरबाकी की विशाल और शस्त्रों से सुसज्जित सेना से रामलला को मुक्त कराने के लिए आक्रमण किया लेकिन महाराज सहित जन्मभूमि के रक्षार्थ सभी वीरगति को प्राप्त हो गए।

स्व. महाराज रणविजय सिंह की पत्नी रानी जयराज कुमारी हंसवर ने अपने पति की वीरगति के बाद खुद जन्मभूमि की रक्षा के कार्य को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और 3,000 नारियों की सेना लेकर उन्होंने जन्मभूमि पर हमला बोल दिया और हुमायूं के समय तक उन्होंने छापामार युद्ध जारी रखा।

स्वामी महेश्वरानंदजी ने संन्यासियों की सेना बनाई। रानी जयराज कुमारी हंसवर के नेतृत्व में यह युद्ध चलता रहा। लेकिन हुमायूं की शाही सेना से इस युद्ध में स्वामी महेश्वरानंद और रानी जयराज कुमारी लड़ते हुए अपनी बची हुई सेना के साथ शहीद हो गई और जन्मभूमि पर पुन: मुगलों का अधिकार हो गया।

मुगल शासक अकबर के काल में शाही सेना हर दिन के इन युद्धों से कमजोर हो रही थी अत: अकबर ने बीरबल और टोडरमल के कहने पर खस की टाट से उस चबूतरे पर 3 फीट का एक छोटा-सा मंदिर बनवा दिया। अकबर की इस कूटनीति से कुछ दिनों के लिए जन्मभूमि में रक्त नहीं बहा। यही क्रम शाहजहां के समय भी चलता रहा।

फिर औरंगजेब के काल में भयंकर दमनचक्र चलाकर उत्तर भारत से हिन्दुओं के संपूर्ण सफाए का संकल्प लिया गया। उसने लगभग 10 बार अयोध्या में मंदिरों को तोड़ने का अभियान चलाकर यहां के सभी प्रमुख मंदिरों और उनकी मूर्तियों को तोड़ डाला। औरंगजेब के समय में समर्थ गुरु श्रीरामदासजी महाराज के शिष्य श्रीवैष्णवदासजी ने जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए 30 बार आक्रमण किए।

नासिरुद्दीन हैदर के समय में मकरही के राजा के नेतृत्व में जन्मभूमि को पुन: अपने रूप में लाने के लिए हिन्दुओं के 3 आक्रमण हुए जिसमें बड़ी संख्या में हिन्दू मारे गए। इस संग्राम में भीती, हंसवर, मकरही, खजूरहट, दीयरा, अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह आदि सम्मिलित थे। हारती हुई हिन्दू सेना के साथ वीर चिमटाधारी साधुओं की सेना आ मिली और इस युद्ध में शाही सेना को हारना पड़ा और जन्मभूमि पर पुन: हिन्दुओं का कब्जा हो गया। लेकिन कुछ दिनों के बाद विशाल शाही सेना ने पुन: जन्मभूमि पर अधिकार कर लिया और हजारों रामभक्तों का कत्ल कर दिया गया।

नवाब वाजिद अली शाह के समय के समय में पुन: हिन्दुओं ने जन्मभूमि के उद्धारार्थ आक्रमण किया गया। 'फैजाबाद गजेटियर' में कनिंघम ने लिखा- 'इस संग्राम में बहुत ही भयंकर खून-खराबा हुआ। 2 दिन और रात होने वाले इस भयंकर युद्ध में सैकड़ों हिन्दुओं के मारे जाने के बावजूद हिन्दुओं ने श्रीराम जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया। इतिहासकार कनिंघम लिखता है कि ये अयोध्या का सबसे बड़ा हिन्दू-मुस्लिम बलवा था। हिन्दुओं ने अपना सपना पूरा किया और औरंगजेब द्वारा विध्वंस किए गए चबूतरे को फिर वापस बनाया। चबूतरे पर 3 फीट ऊंचे खस के टाट से एक छोटा-सा मंदिर बनवा लिया जिसमें पुन: रामलला की स्थापना की गई। लेकिन बाद के मुगल राजाओं ने इस पर पुन: अधिकार कर लिया।

30 अक्टूबर 1990 को हजारों रामभक्तों ने मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव द्वारा खड़ी की गईं अनेक बाधाओं को पार कर अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया। लेकिन 2 नवंबर 1990 को मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया जिसमें सैकड़ों रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं। सरयू तट रामभक्तों की लाशों से पट गया था।

ये संक्षिप्त इतिहास है जिसे पढ़कर समझ आ जायेगा कि राम मंदिर के लिए कैसे लाखों करोड़ों हिंदुओं ने जान दी है... और मुस्लिमों ने भी कैसे इस मंदिर को ढहाने के लिए सैकड़ों लड़ाइयां लड़ीं.. क्योंकि उनका पता था कि श्रीराम का ये मंदिर क्या महत्व रखता है... वरना क्या जरूरत थी कि मुस्लिम शासक इसे ही गिराने के पीछे पीढ़ी दर पीढ़ी लगे रहे... कुछ तो बात रही होगी...

लेकिन हिन्दू भी पीढ़ी दर पीढ़ी टक्कर देते रहे.. पूरे अयोध्या की धरती को अपने खून से सींच डाला... और  बारंबार मन्दिर को वापिस खड़ा किया।। आज उस लड़ाई की बागडोर हमारे हाथों में है... जिसे पूरा करना ही बलिदान हुए पूर्वजों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।।