Saturday 29 April 2017

The 300 real Indian Sparton

The 300- REAL SPARTON OF INDIA
कुछ साल पहले 1 इंग्लीश फिल्म आई थी द- 300 ,ये फिल्म आधारित थी ग्रीक और पर्शिया के युध पर ,पर्शिया के राजा ने एक विशाल सेना के साथ ग्रीक पर हमला किया ज्यादातर ग्रीक राजाओं ने बिना युध के हार मान ली,परंतु स्पार्टा ने सिर् झुकाने से मना कर दिया ,स्पार्टा के पास सिर्फ 300 सैनिक थे परंतु उन्होने पर्शिया के सेनाओं से जमकर मुकाबला किया .क्यूंकि ये युरोप की घटना थी इसलिये इसे इतिहास में बड़ा स्थान मिला...,
ऐसा ही एक युध भारत में भी हुआ था ,

The 300- (पावन खींद का युध )--भारत की भूमि मे अगर सबसे दूरदर्शी ,साहसी और महान व्यक्ति की गणना की जायेगी तो शिवा जी महराज का नाम सबसे अग्रणी होगा भारतीय इतिहास में बहुत कम लोगों के पास शिवाजी जैसा साहस,दूरदर्शिता और त्याग की क्षमता थी . ,हालांकि की शिवाजी के पिता आदिलशाही में 2000 सिपाहियों वाले छोटे सरदार थे परंतु शिवाजी ने साधारण मराठा युवकों को अजेय योधा बनकर महान मराठा साम्राज्या की स्थापना की .

शिवजी की बढ़ती ताकत को रोकने के लिये आदिलशाही ने बहुत प्रयत्न किये परंतु हर बार उन्हे असफलता ही हाथ लगी ,अफ़ज़ल ख़ान और रुस्तमे जमा के मारे जाने के बाद आदिलशाही ने एक बड़ी सेना सिद्दी जुहार के नेत्रत्वा में भेजी जिसने पन्हाल क़िले के चारों ओर घेरा डाल दिया. हालांकि 4 महीने की घेरा बंदी के बाद भी दोनो पक्षों को कोई सफलता हाथ नही लगी परंतु क़िले में खत्म हो रहे राशन की वजह से शिवाजी ने विशालगड के दुर्ग मे जाने का निश्चय किया ,आदिलशाही सेना को धोके में रखने के लिये .शिवाजी जैसे कद काठी वाले नाई को एक छोटि टुकड़ी के साथ बाहर भेजा गया और शिवाजी दूसरे रास्ते से 500 सैनिकों के साथ विशालगड की ओर निकल गये. ,

परंतु शीघ्र ही आदिल शाही सेना को इस बात का पता लग गया और उसने शिवाजी का पीछा किया ,आदिलशाही सेना को करीब आते देख मराठा सरदार बाजीप्रभु देशपाण्डे ने 300 सैनकों के साथ पावन खींद के पास इस्लामी सेना को रोकने का निश्चय किया इस ऐतिहासिक युध में 300 मराठा वीरों ने 10,000 आदिलशाही इस्लामिक सेना को मौत के घाट उतारा और जब तक शिवाजी सुरक्षित विशालगड क़िले में पहुंच नही गये आदिलशाही सेना को एक इंच भी आगे बढ़ने नही दिया ,मराठा सैनिको ने शरीर पर अनेकों घाव और लगातार खून बहते रहने पर भी तलवार नही छोड़ी ,सिर्फ 300 सैनिकों के हाथों करीब करीब आधी सेना गवाने के बाद आदिलशाही इस्लामिक सेना की आगे बढ़ने और युध करने की हिम्मत नही हुई ।

इस युध का भारतीय इतिहास की किताबों में ज्यादा जिक्र नही है क्यूंकि कांग्रेस्स और धूर्त वामपंथी इतिहासकारों के सिधांत के अनुसार ये धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है।
(28अप्रैल 2013 की पोस्ट)

Thursday 20 April 2017

आडवाणी जोशी पर केस चलना आतंकियों की जीत है

अगर आडवाणी और जोशी जी की कृपा ना होती तो आज मोदीजी का नाम भी कोई नही जानता... आडवाणी जी एक ऐसे इंसान हैं जिन्होंने पहली बार हिंदुओं में हिंदुत्त्व की आग भरी... खुद आगे आकर खड़े हुए... नेतृत्त्व दिया.. खतरे उठाये... हम हिंदुओं के सम्मान को दिलाने के लिए बाबरी मस्जिद की तरफ कूच किया... मोदीजी का नाम लेना जरूरी हो जाता है क्योंकि जहां कांग्रेस ने सीबीआई का इश्तेमाल देश को बर्बाद करने में किया वहीँ मोदीजी भी इससे अलग नही हैं.. क्योंकि अगर आडवाणी जोशी जी आदि के खिलाफ सीबीआई अपनी जांच को बढ़ाती है तो ये तो कांग्रेस को मजबूत करने वाले वजह हैं... जिहादियों को ताक़त देने का काम हो रहा है... बाबरी मस्जिद तो आतंकियों की विचारधारा है... और राम मंदिर हिंदुस्तान का सम्मान है...

सवाल है कि अगर ऐसी ही निष्पक्ष जांच चलानी है तो ... सोनिया गांधी पर, वाड्रा पर, मुलायम पर, लालू पर, यासीन मलिक, बुखारी आदि पर क्यों नहीं ? इतने मंदिर टूटे.. मूर्तियां टूटी... क्या वो बाबरी मस्जिद जैसी अहमियत नहीं रखती.. ?

सैकड़ों सालों के बाद आडवाणी जी के प्रताप से हिंदुओं ने "जय श्रीराम" का उद्घोष करना शुरू किया.. हिंदूत्व के लिए मर मिटने का साहस दिखाया.. और उस आडवाणी जी पर अगर केस चलता है तो ये सीधा सीधा आतंकवाद की जीत होगी।।

योगी जी भी बने सेक्युलर और जिहादियों की चांदी

उत्तरप्रदेश में मुसलमान ... वहां के मुख्यमंत्री योगीजी को चुनौती दे रहे हैं... लेकिन श्रीमान मोदीजी ने योगी पर ऐसा काला जादू कर दिया है कि अब वो भी सिर्फ विकास विकास की झूठी ढपली बजाने में लगे हैं...  दोस्तों ऐसा ही मोदीजी के प्रधानमंत्री बनने पर हुआ था.. एक हवा थी.. एक माहौल था.. एक खौफ था.. कि मोदीजी इस्लाम के मानने वालों को छोड़ेंगे नहीं.. और जब मोदीजी आये तो सभी मुसलमानों ने महीने भर उस माहौल की सच्चाई को भांपा... सभी जिहादी .. आतंकी... गुंडे बैठ कर "तेल और तेल की धार" देखते रहे... फिर अचानक मोदीजी सूफी मौलानाओं को बुलाने लगे.. पुणे के मोहसिन पर रोने लगे... मुसलमान देशभक्त हैं के नारे देने लगे ... नवाज शरीफ को खीर पूड़ी खिलाकर शॉल देने लगे...

बस 30 करोड़ मुसलमानों को पता लग गया कि ये भी सेक्युलर है.. और हमलोग भारत को बर्बाद करने की अपनी सालों पुरानी नीति पर चलते रह सकते हैं. ..इसके बाद बंगाल में कश्मीर में.. पूरे भारत मे... जैसा सबकुछ चल रहा था.. चलने लगा जो
आज भी जारी है... 

दोस्तों इसी तरह यूपी में योगीजी के कट्टर हिंदुत्त्व के छवि को देखते हुए मुसलमानों ने करीब 20-25 दिनों तक हवा को भांपा... फिर एक दो जिहादी कार्य को अंजाम देकर परखा.. और जब देखा कि ये भी मोदीजी की राहों पर हैं तो उत्तरप्रदेश में अपने जिहादी कार्यों को वापिस अंजाम देने में लग गए.... दंगे हो रहे हैं.. पत्थर फेंके जा रहे हैं..  मंदिरों में मांस फेंकें जा रहे हैं.... शिवलिंग और माता की मूर्तियों को खंडित कियाजा रहा है... और योगी जी विकास की पुंगी बजाने में लगे हैं...

मुस्लिम अपनी जिहादी सोच को सिर्फ "डर" से ही बंद करता है... ये समझने में इतना समय क्यों ?

Tuesday 18 April 2017

जिहादियों की जान लेना ही राजा का धर्म

मुल्तान विजय के बाद कासिम के आतंकवादियों ने एक विशेष सम्प्रदाय हिन्दू के ऊपर गांवो शहरों में भीषण रक्तपात मचाया था। हजारों स्त्रियों की छातियाँ नोच डाली गयीं, इस कारण अपनी लाज बचाने के लिए हजारों सनातनी किशोरियां अपनी शील की रक्षा के लिए कुंए तालाब में डूब मरीं।लगभग सभी युवाओं को या तो मार डाला गया या गुलाम बना लिया गया। अरब ने पहली बार भारत को अपना इस्लाम धर्म का रूप दिखाया था।

एक बालक तक्षक के पिता कासिम की सेना के साथ हुए युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। लुटेरी अरब सेना जब तक्षक के गांव में पहुची तो हाहाकार मच गया। स्त्रियों को घरों से खींच खींच कर उनकी देह लूटी जाने लगी।भय से आक्रांत तक्षक के घर में भी सब चिल्ला उठे। तक्षक और उसकी दो बहनें भय से कांप उठी थीं।

तक्षक की माँ पूरी परिस्थिति समझ चुकी थी, उसने कुछ देर तक अपने बच्चों को देखा और जैसे एक निर्णय पर पहुच गयी। माँ ने अपने तीनों बच्चों को खींच कर छाती में चिपका लिया और रो पड़ी। फिर देखते देखते उस क्षत्राणी ने म्यान से तलवार खीचा और अपनी दोनों बेटियों का सर काट डाला।उसके बाद अरबों द्वारा उनकी काटी जा रही गाय की तरफ और  बेटे की ओर अंतिम दृष्टि डाली, और तलवार को अपनी छाती में उतार लिया।

आठ वर्ष का बालक तक्षक एकाएक समय को पढ़ना सीख गया था, उसने भूमि पर पड़ी मृत माँ के आँचल से अंतिम बार अपनी आँखे पोंछी, और घर के पिछले द्वार से निकल कर खेतों से होकर जंगल में भाग गया।

पचीस वर्ष बीत गए। अब वह बालक बत्तीस वर्ष का पुरुष हो कर कन्नौज के प्रतापी शासक नागभट्ट द्वितीय का मुख्य अंगरक्षक था। वर्षों से किसी ने उसके चेहरे पर भावना का कोई चिन्ह नही देखा था। वह न कभी खुश होता था न कभी दुखी। उसकी आँखे सदैव प्रतिशोध की वजह से अंगारे की तरह लाल रहती थीं। उसके पराक्रम के किस्से पूरी सेना में सुने सुनाये जाते थे। अपनी तलवार के एक वार से हाथी को मार डालने वाला तक्षक सैनिकों के लिए आदर्श था। कन्नौज नरेश नागभट्ट अपने अतुल्य पराक्रम से अरबों के सफल प्रतिरोध के लिए ख्यात थे। सिंध पर शासन कर रहे अरब कई बार कन्नौज पर आक्रमण कर चुके थे,पर हर बार योद्धा राजपूत उन्हें खदेड़ देते। युद्ध के सनातन नियमों का पालन करते नागभट्ट कभी उनका पीछा नहीं करते, जिसके कारण मुस्लिम शासक आदत से मजबूर बार बार मजबूत हो कर पुनः आक्रमण करते थे। ऐसा पंद्रह वर्षों से हो रहा था।

फिर से सभा बैठी थी, अरब के खलीफा से सहयोग ले कर सिंध की विशाल सेना कन्नौज पर आक्रमण के लिए प्रस्थान कर चुकी है, और संभवत: दो से तीन दिन के अंदर यह सेना कन्नौज की सीमा पर होगी। इसी सम्बंध में रणनीति बनाने के लिए महाराज नागभट्ट ने यह सभा बैठाई थी। सारे सेनाध्यक्ष अपनी अपनी राय दे रहे थे...

तभी अंगरक्षक तक्षक उठ खड़ा हुआ...

"और बोला- महाराज, हमे इस बार दुश्मन को उसी की शैली में उत्तर देना होगा।"

महाराज ने ध्यान से देखा अपने इस अंगरक्षक की ओर, बोले- "अपनी बात खुल कर कहो तक्षक, हम कुछ समझ नही पा रहे।"

"महाराज, अरब सैनिक महाबर्बर हैं, उनके साथ सनातन नियमों के अनुरूप युद्ध कर के हम अपनी प्रजा के साथ घात ही करेंगे। उनको उन्ही की शैली में हराना होगा।"

महाराज के माथे पर लकीरें उभर आयीं, बोले-
"किन्तु हम धर्म और मर्यादा नही छोड़ सकते सैनिक। "

तक्षक ने कहा-
"मर्यादा का निर्वाह उसके साथ किया जाता है जो मर्यादा का अर्थ समझते हों। ये बर्बर धर्मोन्मत्त राक्षस हैं महाराज। इनके लिए हत्या और बलात्कार ही धर्म है।"

"पर यह हमारा धर्म नही हैं बीर"

"राजा का केवल एक ही धर्म होता है महाराज, और वह है प्रजा की रक्षा। देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें महाराज, जब कासिम की सेना ने दाहिर को पराजित करने के पश्चात प्रजा पर कितना अत्याचार किया था। ईश्वर न करे, यदि हम पराजित हुए तो बर्बर अत्याचारी अरब हमारी स्त्रियों, बच्चों और निरीह प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करेंगे, यह महाराज जानते हैं।"

महाराज ने एक बार पूरी सभा की ओर निहारा, सबका मौन तक्षक के तर्कों से सहमत दिख रहा था। महाराज अपने मुख्य सेनापतियों मंत्रियों और तक्षक के साथ गुप्त सभाकक्ष की ओर बढ़ गए।

अगले दिवस की संध्या तक कन्नौज की पश्चिम सीमा पर दोनों सेनाओं का पड़ाव हो चूका था, और आशा थी कि अगला प्रभात एक भीषण युद्ध का साक्षी होगा।

आधी रात्रि बीत चुकी थी। अरब सेना अपने शिविर में निश्चिन्त सो रही थी। अचानक तक्षक के संचालन में कन्नौज की एक चौथाई सेना अरब शिविर पर टूट पड़ी। अरबों को किसी हिन्दू शासक से रात्रि युद्ध की आशा न थी। वे उठते,सावधान होते और हथियार सँभालते इसके पुर्व ही आधे अरब गाजर मूली की तरह काट डाले गए।

इस भयावह निशा में तक्षक का सौर्य अपनी पराकाष्ठा पर था।वह घोडा दौड़ाते जिधर निकल पड़ता उधर की भूमि शवों से पट जाती थी। आज माँ और बहनों की आत्मा को ठंडक देने का समय था....

उषा की प्रथम किरण से पुर्व अरबों की दो तिहाई सेना मारी जा चुकी थी। सुबह होते ही बची सेना पीछे भागी, किन्तु आश्चर्य! महाराज नागभट्ट अपनी शेष सेना के साथ उधर तैयार खड़े थे। दोपहर होते होते समूची अरब सेना काट डाली गयी। अपनी बर्बरता के बल पर विश्वविजय का स्वप्न देखने वाले आतंकियों को पहली बार किसी ने ऐसा उत्तर दिया था।

विजय के बाद महाराज ने अपने सभी सेनानायकों की ओर देखा, उनमे तक्षक का कहीं पता नही था।सैनिकों ने युद्धभूमि में तक्षक की खोज प्रारंभ की तो देखा-लगभग हजार अरब सैनिकों के शव के बीच तक्षक की मृत देह दमक रही थी। उसे शीघ्र उठा कर महाराज के पास लाया गया। कुछ क्षण तक इस अद्भुत योद्धा की ओर चुपचाप देखने के पश्चात महाराज नागभट्ट आगे बढ़े और तक्षक के चरणों में अपनी तलवार रख कर उसकी मृत देह को प्रणाम किया। युद्ध के पश्चात युद्धभूमि में पसरी नीरवता में भारत का वह महान सम्राट गरज उठा-

"आप आर्यावर्त की वीरता के शिखर थे तक्षक.... भारत ने अबतक मातृभूमि की रक्षा में प्राण न्योछावर करना सीखा था, आप ने मातृभूमि के लिए प्राण लेना सिखा दिया। भारत युगों युगों तक आपका आभारी रहेगा।"

इतिहास साक्षी है, इस युद्ध के बाद अगले तीन शताब्दियों तक अरबों में भारत की तरफ आँख उठा कर देखने की हिम्मत नही हुई।  तक्षक ने सिखाया कि मातृभूमि के लिए प्राण दिए ही नही लिए भी जाते हैं ।
(दोस्तों प्रण लीजिये हमसब वीर तक्षक के रास्तों पर ही चलेंगे)

Sunday 2 April 2017

भारत के लोगों को परेशान करता भारतीय कानून

आखिर ये हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ही अंतिम फैसला देगी तो सिविल कोर्ट को रखा क्यों है टाइमपास के लिए ? अगर कोर्ट में गलत फैसला आता है, जज घूसखोर है तो एक आम आदमी कहाँ शिकायत करेगा ? सबसे बड़ी बात जज के ऊपर भी देश में कोई है ? या वो ही लोग भगवान बन गए हैं ? ? मैं देख रहा हूँ अरबों खरबों रूपये के जमीन को जान बूझ कर जमीन माफिया वाले सुप्रीम कोर्ट ले जाते हैं जहां से कुछ लाख खर्च करके फैसले ले आते हैं क्योंकि विरोध में वहाँ लड़ने वाले कोई होता ही नहीं और फिर सुप्रीम कोर्ट का आर्डर आ जाए तो फिर परेशानी ही खत्म ? ?

तो क्या सुप्रीम कोर्ट सिर्फ पैसे वालों के लिए हैं ? गरीबों के लिए नहीं है ? फिर ऐसे कोर्ट का इतना सम्मान क्यों ? क्या अगर मेरे पास पैसा नहीं है तो मैं वहाँ कोर्ट में लड़ नहीं सकता ? सरकारी वकील को तो लड़ना चाहिए ? और अगर कुछ भी ना हो तो क्या आदमी बिना वकील के अपनी बात नहीं रख सकता ? आखिर कोर्ट वकील याने एक बिचौलिया बीच में क्यों रखता है ? क्या कोर्ट एक परेशां आदमी के कागजात और परेशानी सुनकर फैसले नहीं दे सकता.. क्या उसके लिए आदमी को ये बताना जरूरी है कि मेरी परेशानी इस धारा के अंतर्गत है ? क्या कोर्ट नहीं जानती कि उसकी परेशानी किस क़ानूनी धारा के अंतर्गत आती है ? क्या आम आदमी अपनी भाषा में अपना पक्ष बिना वकील के ही रखे तो जज नहीं समझ सकता ? पहले के समय में राजा महाराजा के आगे सिर्फ पक्ष विपक्ष के पीड़ित लोग खड़े होते थे तो राजा सुनवाई कर लेता था.. फैसले दे देता था.. तो अब साथ में वकील क्यों ? इतना खर्च क्यों ? कागजात और फॉर्म के नाम पर लूट क्यों ? क्यों कोर्ट को पीटेशन हिंदी में नहीं लिखा जा सकता ?  आखिर कानून आम आदमी के लिए क्यों नहीं है ? क्यों ये सिर्फ पैसे वालों की गुलाम बनकर चाकरी कर रही है ? Narendra Modi