Monday 31 October 2016

दुनिया के सर्वश्रेष्ठ महिला स्नाइपर

ऐसा नहीं है कि सिर्फ पुरुष ही अच्छे स्नाइपर रहे हैं, कम से कम एक नाम तो रुसी महिला सैनिक का भी है जिसका नाम है Lyudmila Pavlichenko. विश्विद्यालय में पढ़ने वाली लड़की को उस दिन काफी दुःख हुआ जब इसने अपने विश्विद्यालय को नाजियों ने अपने बमवर्षा से उड़ा दिया। ये सीधे मिलिट्री में भर्ती होने गयी।

पर ये आसान नहीं था, वहाँ कहा गया कि ये आपका काम नहीं है ये मर्दों का काम है, जब ये नहीं मानी तो मिल्ट्री अस्पताल में घायल सैनिकों की सेवा में लगा दिया गया, लेकिन एक दिन इन्होंने कमांडर के सामने जिद पकड़ ली कि इसे लड़ाई में ही हिस्सा लेना है।

ठीक है, फिर इन्हें राइफल चलाने की ट्रेनिंग दी गयी। एक दिन जब लड़ाई में शामिल थी और सामने दुश्मन थे तो उंगलियां कांपने लगी, बगल में मौजूद सैनिक गोली चलाने को कह रहे थे... पर ये हो नहीं पा रहा था... अचानक से एक गोली आयी और बगल में मौजूद उस शख्श के सर को उड़ाती चली गयी... वही जो इसे गोली चलाने को कह रहा था... बस परिस्थति बदल गयी... Lyudmila Pavlichenko, ने मरे हुए दोस्त को देखा और ट्रिगर दबा दिया... इसके बाद आगे के वर्षों में जो हुआ वो इतिहास है।

स्नाइपर के लिए सबसे जरुरी उसके कपडे भी होते हैं। ये काले लबादे में होती थी। दुश्मन का ध्यान बंटाने के लिए अपने स्कार्फ को कहीं किसी छोटे पेड़ की टहनी में बाँध देती, जहां स्कार्फ़ हवा से उड़ती रहती, जब दुश्मन वहाँ पहुँचते तो कुछ ही देर में बारी बारी से सबको उड़ा देती।
चाहे बरसात हो या तूफ़ान निशाना चुकता नहीं था।

एक बार वो पेड़ पर चढ़ कर ऊपर से निशाने लगा रही थी, विरोधी दुश्मन की गोली आयी और पेड़ की शाखा को तोड़ते निकल गयी, Lyudmila Pavlichenko ऊंचाई से नीचे गिर पड़ी, वो पड़ी रही, खून बहता रहा, वो जैसे कोमा में थी, हिल डुल नहीं सकती थी, उसे लगा वो मर चुकी है.... घंटो बीत गए, शरीर जैसे का तैसा पड़ा था, सुबह से शाम हो गयी, फिर रात आयी... और पता नहीं कहाँ से जान आयी, उसने आँखें खोली, उठी और चल पड़ी अपने कैम्प की तरफ।

एक बार की लड़ाई में एक गोली उसे भी आकर लगी, और साथ में रहे सारे कमांडर और सैनिक मारे गए, वो घायल थी, कमांडर के मरने से सैनिक भागने लगे... तब वो चीखी... "कायरों भागते कहाँ हो , देखो एक महिला सबके सामने लड़ने को खड़ी है, और तुम मर्द होकर भागते हो '"... सैनिकों के भागते पांव रुक गए।
उसके बाद उस लड़ाई की कमांडिंग उसी समय उसने ले ली। उसने घायल होकर भी कमांडर का रोल निभाया।

एक स्नाइपर को इंतज़ार करना सिखाया जाता है, सांसें रोके वो दुश्मन के निशाने पर आने का इंतज़ार करता है। इसी कड़ी में एक बार Lyudmila Pavlichenko की मुठभेड़ जर्मन स्नाइपर से हो गयी। ये खुद को एक जमीन के अंदर छुपाई हुयी थी, दुश्मन का सिर्फ हेलमेट नजर आता था, इसने इंतेजार करना बेहतर समझा, अपने चेहरे के आगे इसने झाडी, कांटे पत्ते आदि रखे हुए थे। इस बीच एक दो गोली आयी जो इसके बगल से गुजर गयी पर इसके बाद भी चुपचाप लेटी सामने देखते रही। दूसरी तरफ भी स्नाइपर ही थे। एक घंटे बीते, दो घंटे बीते, घंटो बीत गए , दोपहर हो गयी... Lyudmila Pavlichenko बिना पलक झपकाये सामने दुश्मन के हेलमेट को देखते रही। जर्मन स्नाइपर के सब्र का बाँध टूट गया... वो बाहर निकल आया... और इसी के साथ Lyudmila Pavlichenko ने ट्रिगर दबा दिया... परफेक्ट शॉट और दुश्मन ढेर। कुल मिला कर इस दिन 36 दुश्मन इनके निशाने पर आये,एक के बाद एक.. ढेर लग गए।

अब तो जर्मन सेना में Lyudmila Pavlichenko एक खौफ बन चुकी थी, पूरी जर्मन सेना इसे इसके नाम से जानने लगी थी। युद्धक्षेत्र में जर्मन इसे इसका नाम लेकर चुनौती देते ... और अगले पल उनकी आवाज खामोश हो जाती। गोली सीधे भेजे के अंदर।।

ये विश्वयुद्ध काफी लंबा चला था, इस बीच इस युद्ध ने इसके पति को भी छीन लिया, ये भी मेजर थे। शादी के लिए दोनों ने लड़ाई के बीच में ही एक दूसरे को पसंद किया था।

कहते हैं पति के जाने के बाद Lyudmila Pavlichenko काफी क्रूर हो गयी। इसकी सबसे कामयाब तरीका ये था कि ये हमेशा किसी ग्रुप के सैनिक के पैर को निशाना बनाती , वो चीख कर गिर पड़ता, ऐसे में बाकी सैनिक जब उसकी मदद के लिए आते तो वो सबको मारते जाती।

दुर्भाग्य से जर्मन सेना ने जीत हासिल की, Lyudmila Pavlichenko battle ground से नहीं जाना चाहती थी... गोलियों से घायल अवस्था में इसे जबर्दस्ती खींच कर बाहर लाया गया और कहा गया कि युद्ध खत्म हो चूका है। हालाँकि कोई गिनती नहीं होती ऐसे में किसने कितने लोगों को मारा लेकिन ऑफिशली 309  विरोधी सैनिको को मारने का रिकॉर्ड इनके नाम दर्ज है।

Sunday 30 October 2016

मुसलमानो की भयंकर मूर्ति पूजा

मुस्लमान हमेशा कहते हैं कि हम मूर्ति पूजा नहीं करते लेकिन .....
** अल्लाह की कोई भी प्रतीक चिन्ह बनाना बुतपरस्ती के तहत आता है चाहे वो मस्जिद बनाना हो या अल्लाह का नाम लिखना हो अथवा 786 लिखना हो

** काबा की तरफ मुंह करके नमाज या ध्यान लगाना ठीक वैसा ही है जैसे मूर्तिपूजक मूर्ति की तरफ ध्यान लगाते हैं

** हजरे असवाद को चूमना ठीक वैसा ही है जैसे क्रिश्चन JISUS का लॉकेट चूमते हैं.

** काबा के पत्थर को छूना क्या ठीक वैसा ही नहीं है जैसे हिन्दू शिवलिंग छूते हैं ....?????

** 86 या अल्लाह लिखना क्या हम हिन्दुओं के ॐ या स्वास्तिक लिखने की नक़ल नहीं है...???????

** ज़मज़म के पानी को पवित्र मानना क्या हुबहू हम हिन्दुओं के गंगा को पवित्र मानने जैसा नहीं हैं ?

** काबा में हिन्दुओं की तरह बिना सिलाई वाला एकरंगा कपडा पहनना , मक्का में मुंडन करवाना ..... ये सब क्या है...???

** चाँद - तारे को अल्लाह का चिन्ह मानना क्या है ...????

** दरगाह पर सड़े गले लाश के सामने अल्लाह -मौला का भजन गला फाड़ -फाड़ कर गाना............ क्या है...????

** आदम को अल्लाह का image मानना .....क्या है....????

** नबी (रसूल या मुहम्मद ) ,अपने माता- पिता या किसी व्यक्ति का सम्मान करना क्या पूजा की श्रेणी में नहीं आता है....????

दरअसल ये लोग हिन्दू ही थे सबकुछ अलग और विपरीत नियम बनाए लेकिन तरीका वही रह गया उसे बदलना संभव नहीं हुआ ..

स्नाइपर राइफल से सबसे ज्यादा मौत बांटने वाला

1925 की बात है, सिमो हाया एक साधारण से दिखने वाले व्यक्ति थे। 19 साल के इस आदमी की लंबाई  5′ 3″ थी। 350 दिन की आर्मी ट्रेनिंग खत्म हो चुकी थी। असल में इनका फुल टाइम जॉब खेती करना था और पार्ट टाइम में सेना की नौकरी । ये reserved केटेगरी में थे। याने आपने ट्रेनिंग लिया है, और कभी यिद्ध छिड़ा तो सेना उस वक़्त आपको कॉल कर सकती है।

33साल उम्र हो चुकी थी अब इन्होंने पूरी तरह खेती अपना लिया था और साथ में शिकार करके जानवर लाते थे जिसके मांस बेचने का कार्य करते थे। अचानक एक दिन ऐसा आया जब राइफल उठानी पड़ी।

सोवियत यूनियन ने फ़िनलैंड में घुसपैठ कर दी थी। नवम्बर 1939 में 4 लाख सोवियत सैनिकों ने हमला किया , फ़िनलैंड के पास कुल मिलाकर सिर्फ 80 हज़ार सैनिक थे। इसे WINTER WAR के  नाम से जाना जाता है। सिमो हाया ने सेना के पास जाकर अपना नाम लिखवाया, चूँकि वो बन्दूक से जानवरों का शिकार किया करते थे, इसलिए उनको "स्नाइपर" टीम में शामिल किया गया। इसके बाद तो आगे सब इतिहास है।

इनके पास उस समय की Model 28-30 नाम की राइफल थी। इस समय किसी को नहीं पता था कि ये विरोधी खेमे में इतना आतंक मचा देंगे। कुल मिला कर ऑफिशली इन्होंने उस युद्ध में 503 सैनिकों को मार गिराया था।

इन्होंने ऊंचाई पर जहां मोर्चा लिया वो दूर दूर तक बर्फ से ढका हुआ था। इन्होंने स्पेशल सफ़ेद वर्दी पहनी थी।  जो इस तरह डिजाईन की हुयी थी बर्फ के बीच ये नजर नहीं आते थे। इसके बाद ये बर्फ में थोड़ा सा गड्ढा करके लेट जाते , ऊपर से बर्फ रखते। स्नाइपर राइफल को भी बर्फ के अंदर रखते और सिर्फ उसकी नाल ऊपर होती। यहाँन तक कि चेहरे पर भी सफ़ेद नकाब रखते थे जिसमें सिर्फ आँखों के पास दो छेद होते थे।

युद्ध के दौरान सोवियत को अचानक लगा कि उनके बहुत सैनिक नहीं हैं, उन्होंने सोचा, युद्ध ही चल रहा है तो शायद मारे गए होंगे। लेकिन जल्दी ही एक खबर आयी कि कोई स्नाइपर है जिसे लोग "WIND OF DEATH" के नाम से बुलाते हैं उसी ने उनके सैनिकों को मारा है। इसके बाद सोवियत यूनियन ने भी फिर कुछ अपने स्नाइपर सैनिकों को भेजा पर कोई लौट कर नही आया... अब सिमो हाया मौत का दूसरा नाम बन चुके थे।

इसके बाद इसे मारने के लिए एक पूरी बटालियन भेजी गयी... और वही हुआ जिसका डर था... बहुत ही बड़ी क्षति हुई... बड़ी संख्या में सैनिक मारे गए और सिमो हाया का पता भी नही चला। अंत में सिमो पर बम्ब से हमले करके मारने को दल भेजा गया पर वो भी नाकाम रहे। अब तक सिमो के कई नाम पड़ चुके थे.. जिसमें "WHITE ऑफ़ DEATH" काफी प्रसिद्ध हुआ।

माना जाता है इनके कपडे ने इनकी सफलता में बड़ा योगदान दिया। ये सभी को देख सकते थे पर मीलों फैले बर्फ ये कहाँ पर हैं कोई देख नही पाता था। बर्फ में दबे इनके ऊपर निशाना लगाना भी सम्भव नहीं था, इनके अंदर नेचुरल निशानेबाजी की कला थी। बर्फ के अंदर से शांत स्थिर साँसों के साथ अपनी बाज जैसी आँखों से इन्होंने काफी ज्यादा सैनिक मारे लेकिन ऑफिशली 503 दर्ज है। स्नाइपर राइफल में सबसे ऊपर इनका ही नाम है। किसी ने सोचा नहीं था कि इतनी कड़ाके की ठंड में कोई बर्फ के अंदर पड़ा होगा।

बाद में युद्ध खत्म हुआ। दोनों देशों में अमन चैन हुयी तो खुद सोवियत सैनिकों ने इनसे कुछ दिन की ट्रेनिंग देने के लिए आग्रह किया। 96 साल की उम्र में 2002 को निधन हुआ। इनकी उस राइफल को लोग संग्रहालय में आज भी उत्सुकता से देखते हैं।

Saturday 29 October 2016

पाकिस्तान का सबसे बड़ा हथियार भारतीय मुसलमान?

पाकिस्तान के पास जो सबसे बड़ा हथियार है वह उसका परमाणु बम नहीं, बल्कि वे 33 करोड़ मुसलमान हैं जो हमारे देश में रह रहे हैं. अब आप कहेंगे की ये तो 18 करोड़ है ...33नहीं तो आपका जो आंकड़ा है वो जनसंख्या के आधार पर है और मै उन्हें भी जोड़ रहा हूँ जो जनसँख्या में है ही नहीं क्यूँकी कौन जनसँख्या अधिकारी इनकी बस्तियों में घुस के सही से जनसँख्या का रिकॉर्ड बनाएगा ? आज तक नहीं बनाया है।

यह स्ट्रेटेजिक डॉक्ट्राइन 80 के दशक में जनरल जिया-उल-हक ने दी थी. उसने कहा था कि जब भारत में पाकिस्तान से ज्यादा मुसलमान हैं तो हमें अपने फौजी लड़ने के लिए भेजने की क्या जरूरत है?

तब से पाकिस्तान ने भारत के मुसलमानों को रेडिकलाइज (उग्र) करने में इन्वेस्ट (funding)करना शुरू किया. भारत की। कॉन्ग्रेस सरकार ने indirectly एक तरह से समर्थन दे दिया।

अगर बिलकुल कट्टर याने दंगाई मुसलामानों की भी जोड़ेंगे तो ये पूरे भारत की फौजों से तीस - पेंतीस गुना ज्यादा पड़ेंगे। अब अगर पाकिस्तान इन्हें भारत में दंगे-फसाद फैलाने का सिग्नल दे दे, तो आप कैसे संभालोगे?

बाकी के बचे मुसलमान भी या तो मूक दर्शक बनकर हवा का रुख भांपेंगे, या शोर मचाएँगे कि मुसलमानों के साथ कितना अत्याचार हो रहा है. वामपंथी पुरस्कार लौटाने लगेंगे और कांग्रेस जैसे दल सियार की तरह 'हुआँ हुआँ' करने लगेंगे। अगर दो-चार प्रतिशत मुसलमान सचमुच इसके विरोध में भी होंगे तो वे वैसे ही अप्रासंगिक होंगे जैसे 1947 के पहले थे.

भारत के अलग-अलग शहरों में किसी ना किसी बहाने से पचास हजार-एक लाख और ढाई लाख तक मुसलमान मारकाट करने को जुटे हैं, इसलिए कोई कल्पना मत समझिये। हाल ही में पश्चिम बंगाल मालदा की घटना आपके सामने है.
मुंबई के हिंसक प्रदर्शन आप देख चुके भुगत चुके हैं. कभी किसी हिन्दू त्योहार के मौके पर, या कहीं पैगम्बर से गुस्ताखी के विरोध के बहाने से. यह सब उसी मारक हथियार की मिकेनिज्म को दंगे के बहाने पाकिस्तान  टेस्ट करता है।

आतंकी हमलों के विरोध में पाकिस्तान पर आस्तीनें चढ़ाना अपनी जगह है. पर कोई लड़ाई छेड़ने से पहले यह सोच लीजिए कि उनके इस हथियार का आपके पास क्या जवाब है? इस लड़ाई को सरकार तो नहीं लड़ पायेगी, सब आपके हाथ होगा, क्योंकि सेना देश के हरेक मोहल्ले में तो नहीं जाएगी।

Friday 28 October 2016

चीनी राष्ट्रपति ने नवाज को रो रो कर बताया दुखड़ा

चीनी राष्ट्रपति ने नवाज शरीफ को फोन किया..

चीन : क्या भाईजान.. मेड इन चाइना के बहिष्कार ने तो हालत ख़राब कर दी है।

पाकिस्तान : हमारी तो खुद हालत खराब है.. बॉर्डर पर एक के बदले दस मार रहा है..

चीन : साले तुमलोग हो ही अपशगुनी नापाक... ना मैं तेरे साथ होता ना आज इतना बड़ा नुकसान झेलना पड़ता...

पाकिस्तान : अरे पर... हमारा समर्थन करते रहो.. हम करेंगे कुछ.. भारत के मुस्लिम सब मेरे अपने हैं... सभी जिहाद के लिए तैयार हैं..

चीन : अच्छा.. तो कहो ना .. मेड इन चाइना के माल खरीदें ... plz भाईजान..

पाकिस्तान: अह.. वो मुस्लिम दीपावली मनाते नहीं ना तो कैसे खरीदेंगे...

चीन : कमीने हरामी तो क्या अब तेरे लिए मेड इन चाइना का सेवई बनाएं... खजूर बनाएं.... मेड इन चाइना के बकरी बनाएं जिसे तू काटेगा.. साले घटिया लोग .. घटिया त्यौहार... मैं तो डूब गया तेरे चक्कर में...

पाकिस्तान : धैर्य रखिये.. हम करेंगे कुछ...

चीन : अबे चुप कर..

Thursday 27 October 2016

बाबा से जलते हैं संघर्षरत आम लोग

बाबा तो व्यापारी है, साधु संतों को पैसे का क्या काम ? जो साधु कोई सामान बेचे वो साधु कैसे ? इतने पैसे की क्या जरुरत ? ऐसा ही कुछ राजीव दीक्षित जी ने भी एक वीडियो में कह डाला बाबा के लिए .. ज्यादातर लोगों के बाबा से चिढ़ने के पीछे एकमात्र यही एक वजह है, बाबा के पास इतना पैसा क्यों ? बाबा तो व्यापारी बन गए ...

सीधा बोलूं... तो ये वो लोग है जो जिंदगी में करना बहुत कुछ चाहते थे पर अथक मेहनत के बाद भी कुछ उखाड़ नहीं पाए..... आज भी दिन रात अलग अलग व्यवसाय में शरीर गला रहे हैं पर जैसे तैसे ही जीने को मजबूर हैं....

ऐसे नवयुवक जिन्होंने लाखों खर्च किये हैं शैक्षणिक कोर्स पर... और अच्छी नौकरी मिली नहीं .. या मिल तो गयी पर उससे वो बाबा की तरह हज़ार करोड़पति नहीं बन पाए...

भारत में आम लोगों की.. सबसे ज्यादा संख्या है.. यानि ऐसे लोग जिनके पास सिर्फ खाने पीने और पहनने को कमाई आती है या ज्यादा से ज्यादा बाइक और कार मेंटेन करने को... उससे भी ज्यादा बढ़ गए तो घर ले लिया.. बस जिंदगी का end।

सपने तो थे टाटा अंबानी बनने के... बड़ी बड़ी महँगी गाड़ियां चढ़ने के, बड़ी बड़ी पार्टियों में जाने के, शहर में लोग उनके आगे सम्मान में सर झुकाएं ऐसा... हुआ कुछ नहीं... या कहिये .. इस हद तक नहीं हुआ...

हम भारतीयों की सबसे ज्यादा हो स्वभावगत एक सामान्य सी पाई जाने वाली बीमारी है वो यही है कि हम अपने से बड़े, ऊँचे लोगों को देखकर जलते जरूर हैं.. अगर बस चले तो उसको गिरा कर अपने बराबरी में ले आएं, या ये सम्भव नहीं हुआ तो गाली तो दे सकते हैं ना.. बुरा भला कहेंगे.. नए नए इल्जाम लगा देंगे.. कम से कम दिल को इससे सुकून मिलता है...

बाबा रामदेव जब कुछ नहीं थे, सिर्फ योग करते थे, स्वदेशी का प्रचार करते थे तो लोगों को स्वदेशी सामान जो बाजार में था ही नहीं वो चाहिए था.. आंवला जूस, अलोएवेरा जूस, अच्छा च्यवनप्राश, अमृतप्राश, तुलसी जूस, जड़ी बूटियों वाले colgate या पाउडर आदि...

ये सब चाहिए था लेकिन खुद बनाना नहीं चाहते थे, उस वक़्त था कि बाबा आप बोल रहे हो तो किसी तरह बना के भी दे दो। अब बाबा ने बनाना शुरू किया.. उनके लिए जो आज गाली देते हैं... अब बड़े पैमाने पर गालिबाजों को ही ये सब चाहिए था तो बाबा ने बनाया...

कहाँ बनाते.. 8*10 की कोठरी में ? हाथों से ओखली मूसल ले कर दिन भर कूटकूट के आपको देते रहते..? वो भी फ्री में ? हाँ... असल में तो ये चाहिए था जलनखोरों को... ये भारतीय मानसिकता है.. करो.. लेकिन मुझसे ज्यादा ना बढ़ो...

बाबा ने भारतियों की भलाई के लिए संसाधन बढाए, उच्च क़्वालिटी के प्रोडक्ट हो इसके लिए पैसे चाहिए थे.. हज़ारों हज़ार शायद आज लाखों लोग जुड़े कमाई करते हैं उनके लिए वेतन चाहिए... विरोधियों(कांग्रेस, मल्टी नेशनल कंपनियां) से लड़ने के लिए भी पैसे चाहिए... कहाँ से आएगा भाई ?

अब सवाल है बाबा व्यापारी बन गए ? बाबा को आपने व्यापारी बनाया ? आपने स्वदेशी सामान बना लेना था ना ... बाबा ने तो बताया था कि ये सारा जड़ी बूटी का मिश्रण बनाओ और बढ़िया टूथ पाउडर बनता है तो आपने बनाया था क्या ? या जिंदगी में कभी बनाते भी क्या ? ? आपके लिए बनाया क्योंकि आपको चाहिए बना बनाया बिना मेहनत किये सबकुछ।।।।

इसके बाद गुरुकुल शुरू करना था, सस्ता इलाज करना था... दुनिया में योग को फैलाना था... आश्रम को विस्तार देने था... अपने जैसे लाखों युवाओं को वेदों की शिक्षा देकर तैयार करना था... उसके लिए पैसे कहाँ से आएंगे ? कौन देगा ? चंदा भी क्यों मांगते रहे हमेशा?

बाबा व्यापारी बन गए.. खुद को देखो.. गहरे झांको.. ये तुम्हारी अंदर की जलन है... मैं पढ़ा लिखा.. दिन रात मेहनत किया और बाबा सिर्फ ऐसे योग करो वैसे योग करो और कुछ आयुर्वेदिक दवाई बेचकर मुझसे हज़ार गुना आगे हो गए ? नहीं नहीं नहीं... ये नहीं हो सकता... मैं तो गाली बकुंगा.. बाबा पर गंदे इल्जाम लगा दूंगा.. उनको नीचे गिरा दूंगा....

उनकी भी शिक्षा है, उनका भी ज्ञान है, उनकी भी मेहनत है, तेरे जैसे विश्वविद्यालय की डिग्री नहीं है, तेरी वाली किताब नहीं पढ़े है, नेटवर्किंग या इंजिनयेरिंग की...  बस.. उन्होंने कुछ और पढ़ा है, और जो उन्होंने पढ़ा है लोगों को उसकी जरुरत थी... इतनी सी बात है।

दिन रात हिंदुत्व हिंदुत्व करते हो कभी ध्यान से देखोगे तो पता चलेगा योग और प्राणायाम के जरिये वर्षों बाद अगर चिंगारी किसी ने लगाईं तो ये बाबा रामदेव ही थे, ये ही थे जिन्होंने वापिस ॐ का जाप भारतियों में शुरू करवा दिया। लोगों ने आयुर्वेद के बहाने धर्म ग्रंथों में रूचि लेना शुरू कर दिया या बातों में। वापिस अगर ऋषि मुनियों में थोड़ा सम्मान जगा तो ये इनकी मेहनत का नतीजा था.. वरना क्या थी इज्जत ? फिल्मों से ही पता चलता था कि क्या इज्जत रह गयी है।

यही है वो समस्या जिससे कोई बाबा साधु संत कभी सनातन धर्म को ऊपर नहीं ले जा पाता... सनातन धर्म का प्रचार साधू करें लेकिन हिमालय पर बैठे बैठे.. दूसरी तरफ जाकिर नाइक अरबो रुपये कमा के टीवी चैनल खोल के इस्लाम बढ़ाता जा रहा है, सारे मुसलमान साथ है, लेकिन उसके हिंदुओं को देखिये... बाबा के पास पैसा क्यों ? इतना पैसा क्यों ? अबे तेरे पास होता तो तू विलासिता का जीवन जीता.. तू कौन सा गुरुकुल खोल देता ? या आयुर्वेद को बढ़ाता ? तुम जलनखोर नीच लोग हो जो पैसे होते तो स्विट्ज़रलैंड में जा के मालिश करवाते, सोच तो असल में ये है, सपने तो ये थे और है। आज भी वो आदमी भारत के चप्पे चप्पे पर गुरुकुल खोल कर मैकाले और वामपंथियों की शिक्षा से आजादी दिलाना चाहता है , इसी में लगा है, कल होके कहोगे .. हमें तो इसमें एडमिशन फ्री में चाहिए.. यही फ्री तो बर्बाद कर रहा है सबकुछ।

बाबा को तो हिमालय पर तपस्या करते हुए वहीँ से जादू से प्रोडक्ट बना के पहाड़ से नीचे लुढ़का देना चाहिए था, नीचे खड़े ये जलनखोर गालीबाज लोग उसको लपक लेते और बाबा को फिर तपस्या में लीन हो जाना चाहिए था। फिर अगले दिन कुछ प्रोडक्ट लुढ़का देते और वहीँ तपस्या करते रहते। अगर साधु नीचे आ गया ... हमारी दुनिया में तो... हमारे सामने भिक्षा मांगें..  हम देंगे तो खाएं पीएं और नहीं तो अपना समझें... हमें तो तसल्ली मिलेगी कि बाबा हमसे कमतर हैं।
Baba Ramdev

Wednesday 26 October 2016

बाबा रामदेव पर राजीव दीक्षित की हत्या का इल्जाम एक षड्यंत्र

किसी को बुरा लगे तो लगे पर मैं साफ़ बोलता हूं, राजीव दीक्षित की मौत का इल्जाम लगाने का कार्य तब शुरू हुआ जब बाबा रामदेव की संपत्ति से उनको आशानुरूप करोड़ों रुपये नहीं मिले। राजीव जी के साथ एक टोली थी जो बाबा के नजदीक जाने पर बाबा जैसे साम्राज्य के सपने देखने लगे... या बाबा की संपत्ति में हाथ मारने को सोचने लगे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। नतीजा आखिरी चाल चली गयी बाबा को ब्लैकमेल करने का।
इसके लिए कुछ कुतर्क पेश किये गए... जहर दिया गया.. पोस्टमार्टम बाबा ने नहीं करने दिया...  बाबा का धंधा चौपट हो जाता. .. मौत के बाद राजीव भाई के चेहरे पर ज्यादा लाइट देकर चमकाया गया आदि आदि.. सब बेवकूफाना तर्क।।

1.राजीव भाई की मृत्यु जब हुयी तब चेहरे पर ऐसा कुछ नहीं था।
2.जहर दिया होगा तो उसी ने दिया होगा जो आज बाबा पर इल्जाम लगा रहे हैं क्योंकि उस वक़्त वही साथ थे।
3.मृत्यु के समय राजीव जी बाबा से सैकड़ों किलोमीटर दूर दूसरे राज्य में थे।
4.बाबा को राजीव भाई से क्या खतरा? यही ना कि colgate नहीं बिकता या शैम्पू ? ये कुछ प्रोडक्ट से क्या फर्क पड़ता ? जितनी मार्किट में colgate है उससे अच्छा तो है ही, क्या सारे लोग पाउडर फॉर्म में colgate का प्रयोग करते ? कभी नहीं।।
5. उनकी लाश को सैकड़ो किलोमीटर दुरी तय करवा के हरिद्वार लाया गया, तो इतने लंबे समय के बाद क्या लाश के शरीर में चेहरे और होंठ का रंग नहीं बदलेगा ?
6. पोस्टमार्टम करने से रोका ये सिर्फ इल्जाम है। ये सब बाद में तरीके खोजे गए "शक" का पौधा लगाने के लिए।
7. बाबा रामदेव का अपना प्रभा मंडल है. . राजीव जी आगमन के पहले ही बाबा दुनिया भर में लोकप्रिय हो चुके थे, घर घर में योग हो रहा था, ये उनके अपने सामर्थ्य की बदौलत था।
8. बाबा ने पतंजलि के प्रोडक्ट राजीव जी से पूछ कर नहीं निकाले थे। प्रोडक्ट खास कर बालकृष्ण जी के निर्देशन में तैयार होता है क्योंकि बालकृष्ण जी औषधि निर्माण के महारथी हैं।
9. इनके टोली का इल्जाम की पतंजलि के प्रोडक्ट राजीव जी के वजह से हिट हुए, निहायत ही बचकाना आरोप है। ऐसा था तो राजीव जी को अपने नाम से प्रोडक्ट लांच कर देना चाहिए था।
10. आज जब राजीव जी नहीं है तो भी कई गुना तेजी से पतंजलि का कारोबार दुनिया भर में बढ़ रहा है, इसी से साबित होता है यहाँ सबकुछ रामदेवजी का नाम है।
11. राजीवजी की टोली बाबा रामदेव जी की उस वक़्त की संपत्ति देखकर भौंचक्की रह गयी होगी, इंसानों में लालच आती ही है, एक उम्मीद रही होगी कि जल्दी ही राजीव जी के दम पर व्व लोग भी ऐसा अलग साम्रज्य खड़ा करेंगे पर उनके सपने टूट गए ।
12. उनकी मृत्यु के बाद भी उस सपने को छोड़ नहीं पाए.. स्वदेशी बढ़ाने के नाम पर धन माँगा गया होगा जो बाबा ने नहीं दिया क्योंकि उनका विश्वास राजीवजी पर था उनके चेलों पर नहीं.. नतीजा यहीं से बाबा को फंसाने का षड्यंत्र शुरू हो गया।
13. सारे इल्जाम बेतुके हैं लेकिन साधारण लोग फंस जाते हैं। आस्था चैनल वाले जब कैमरा लेकर फोटो लेने आये तो क्या लाइट नहीं जलाते ? टीवी का अपना भारी भरकम लाइट होता है वो जलाया तो उसे ही कह दिया गया कि चेहरा का रंग बदलने के लिए ऐसा किया गया।
14. जब भी कुछ शूट हो जाता है तो एक एडिटर होने के नाते मुझे पता है कि आखिर में वीडियो का कलर करेक्शन किया जाता है ताकि सभी के चहेरे अच्छे दिखें। ऐसा ही आस्था वालों ने बाद में किया , इसको भी उसी से उसी तरह के आरोप से जोड़ दिया गया।
15. आज भी किसने रोक लिया है, सीबीआई जांच के लिए कोर्ट में अपील कर दो।
16. अपने लालच या अंधभक्ति की वजह से किसी को इस तरह नहीं फंसाओ... आज स्वदेशी बढ़ रहा है तो बाबा ही ये काम कर रहे हैं दूसरा कोई नहीं कर रहा। कुछ कमियां हो सकती है।
17. इससे भी ज्यादा स्वदेशी का बुखार चढ़ा हो तो राजीवजी के नाम पर नहीं खुद राजीव जी जैसा ज्ञान हासिल करो और मैदान में आओ, किसी ने रोका नहीं ह।
18. सच तो ये है कि राजीव जी ने एक तरह से झूठी शान में आत्महत्या कर ली, जब डॉक्टर के पास ले जाया गया तो वहाँ भी अड़ गए कि होम्योपैथिक दवा ही लेंगे, अब अस्पताल में रात के वक़्त कहाँ से दवाई आती? और अस्पताल में क्या होम्योपैथिक से इलाज होता है ? ऑपरेशन वाली हालात में एलोपैथिक का समर्थन हर कोई करता है, यहीं राजीव जी ने खुद मौत का रास्ता चुन लिया। बाबा ने हरिद्वार से फोन करके एलोपैथिक लेने को कहा मगर नहीं माने..
Baba Ramdev Patanjali Yogpeeth Trust