Monday 26 September 2016

मोदीजी पाकिस्तान के ऊपर ऐसे बरसिये

मैं ये नहीं कहता कि आलोचना करना या शब्दों के बाण चलाना गलत है, लेकिन ये नेतागिरी वाले पारंपरिक शब्दो से मुझे बहुत चिढ है। हम देख रहे हैं, हम कह रहे है, हमारा पड़ोसी, एक देश आतंकवाद फैला रहा है, आतंकवाद की परिभाषा, आतंकवाद मानवता की दुश्मन, आतंकवाद का धर्म नहीं...... जैसे महा फ़ालतू शब्दों की जगह जो बोलो वो बिलकुल पानी की तरह साफ़ साफ़ हो... सीधे तौर पर नाम लो... साफ़ लगे कि बस आपने मुजरिम का कॉलर पकड़ लिया है।
ये क्या है, पडोसी... पडोसी... एक देश... आतंकवाद का धर्म नहीं... क्या छुपा रहे हो.... किससे ? और क्यों ?

बड़े बड़े मंच मिलते है, बड़े मौके होते हैं, वहाँ पर गरजते भी अच्छे हैं लेकिन ढंग से दबंग बनकर नहीं। आँखों में आँखें डाल लेते हो पर जुबान डर जाती है।

क्या मोदीजी  इस तरह से विश्वस्तरीय मंच से बोल सकते हैं .....

"मैं कहना चाहता हूँ कि पाकिस्तान में आतंकवादी संगठन चल रहे हैं, इसे और कोई नहीं बल्कि खुद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ.... सेना प्रमुख राहील शरीफ के साथ चला रहे हैं। कई वीडियो है कई गवाह है जो प्रमाणित हैं, दुनिया के सारे आतंकवादियों को पाकिस्तान अपने स्तर से मदद करता है और खुलेआम करता है, इसके बाद भी समूचा विश्व आज विचार ही कर रहा है कि ऐसे आतंकी देश को आतंकी देश घोषित करें या ना करें ? क्या आप देशों के नागरिकों के लिए आतंकवाद खतरा नहीं है, क्या आपके देश के नागरिक महत्वपूर्ण नहीं है ? अगर हैं तो इसे सिर्फ भारत की समस्या क्यों मान लिया जाता है ? क्या आतंकी हमले आपके यहाँ नहीं हुए ?

मैं सारे विश्व के आतंक विरोधी देशों से कहना चाहता हूँ कि किस तरह की कूटनीति के तहत आप ऐसे देश को संरक्षित करने का काम करते हैं ? नजर फेर लेने का कार्य किस वजह से है ? क्या हम सारे देश का यही काम है कि जब आपके देश में आतंकवादी हमला हो तो मैं निंदा करूँ और मेरे देश में हों तो आप निंदा करो ? निंदा करने से अच्छा होगा हम आपस में मिल कर पाकिस्तान , सीरिया, अफगानिस्तान जैसे देशों के खिलाफ मिलकर हमले करें, नेस्तनाबूत कर दें और ये हमारे नागरिकों के लिए होगा... अपने देश के लिए होगा।

क्या मैं सबूत दूँ आपको कि पाकिस्तान में आतंकवाद पलता है ? क्या आपके यहाँन के गुप्चर संस्थाओं ने ऐसी खबर सबूत के साथ आपको नहीं दी है ? आप भी सब जानते हैं। अमेरिका को भी कहना चाहता हूँ कि आपने खुद ओसामा बिन लादेन को कहाँ पकड़ा ? पाकिस्तान में ही ना ... वो भी तब जब उसने हमेशा आपको कहा कि ओसामा पाकिस्तान में नहीं है, फिर भी आप उसे आतंकी देश घोषित करने में सोचते हैं ?

आइये खुलकर... सामने आइये और सबूतों के आधार पर पाकिस्तान सीरिया मिस्र आदि जैसे देशों के खिलाफ अभी खड़े हो जाइये वरना आने वाले समय में खड़े होने के लायक भी ताकत आपसे छीन ली जायेगी।"

Sunday 25 September 2016

एक इसरायली को मारने के लिए 107 मुस्लिम

सारे मुसलमानो ने एक एक इसरायली को मारने की कसम खाई हुयी है, अगर जनसंख्या के हिसाब से टीम देखि जाए तो ... एक यहूदी की तुलना में 107 मुसलमान हैं। याने एक यहूदी को मारने के लिए 107 मुस्लमान लगे हैं पर पिट पिटा के आ जाते हैं।

आज दुनिया में तकनीक ने जो लाभ पहुंचाए हैं उनमें सबसे बड़ा योगदान यहूदियों का है। 105 सालों में यहूदियों ने 180 नोबल पुरस्कार लिए हैं जबकि मुस्लिम देशों से सिर्फ तीन ही ने ये हासिल किया है। मुसलमानों के अपने 57 देशों में एक भी ऐसा नहीं है जहां शत-प्रतिशत साक्षरता हो। अधिकतर देशों ने तो 50 प्रतिशत साक्षरता की ऊंचाई को भी नहीं छुआ है, जबकि इस्रायल में शत प्रतिशत लोग पढ़े लिखे हैं।

अमरीका के यहूदी तो इतने धनाढ्य और प्रभावशाली हैं कि अमरीका की 95 प्रतिशत उद्योग यहूदियों के हैं। कार बनाने से लगाकर खनिज तेल के उद्योग में जो रिफाइनरियां तैयार की जाती हैं उन पर यहूदियों का एकाधिकार है। दुनिया में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के 78 प्रतिशत साम्राज्य पर यहूदियों का कब्जा है। मीडिया संबंधी मशीनरी और तंत्र पर भी इन्हीं का एकाधिकार है।

इस्रायल में पानी की तंगी होने के बावजूद वे हर प्रकार के खाद्य पदार्थ तैयार कर लेते हैं। दिलचस्प बात तो यह है कि जब इस्लामी देशों के बीच सैनिक संघर्ष होता है तब इस्लामी देश चोरी छिपे इस्रायल से ही हथियार मंगवाते हैं।
प्रथम और दूसरे विश्वयुद्ध में यदि यहूदियों ने ईसाइयों की सहायता नहीं की होती तो यूरोप मिट्टी में मिल जाता। यहूदियों के सम्मान की बात बहुत देर से ईसाइयों के दिमाग में आई।

Wednesday 21 September 2016

भारत का डीएनए ही कायरतापूर्ण है ?

भारत की मूल प्रवृ‍त्ति युद्ध से भागने की है। इस देश का इतिहास बताता है कि हमने किसी भी देश पर हमला नहीं किया, वरन आक्रमणकारी से बचने के लिए ही हथियार उठाए हैं।
भारत पराजित मानसिकता वाले लोगों का देश है, रवैया हमेशा बचाव करने का है और वह भी तब जब हमारी जान पर बन आए। यह सच्चाई है कि आक्रमणकारी को केवल एक बार घुसकर मरना होता है और वह हमेशा ही इस काम में सफल होता है जबकि बचाव करते हुए हमें हर बार लड़ाई को जीतना पड़ता है और अपने नुकसान को सीमित रखना पड़ता है।

पाकिस्तान के लोग, फौज, आईएसआई और आतंकवादी यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत ऐसे लोगों का देश है, जो कि तनिक से प्रतिरोध से झुक जाता है। यह हिन्दू मानसिकता का परिचायक है। देश का बंटवारा मानसिक हार की वजह से हुआ। बिना लड़े ही चल रहे दंगों ने हार मनवा दी, इसलिए दंगे एक कामयाब तरीके बन गए मुसलमानो के लिए।

मुस्लिम आतंकवादियों को कश्मीरी या पुरे भारत के मुस्लिमों के घरों में पनाह ही नहीं मिलती रही वरन कश्मीरियों की रोटी और बेटी भी इन बुरहानवानियों को मिलती रही। दिल्ली और केंद्र की सरकारें इन विद्रोहियों, देशद्रोही अलगाववादियों की इस तरह देखरेख करती रही हैं मानो ये अलगाववादी न होकर हजरत के बाल हों। हमारे लोकतंत्र का नमूना देखिए कि सुप्रीम कोर्ट की नजर में भी ये अलगाववादी बिलकुल निरापद हैं।

देश की राजनीति केवल सत्ता हासिल करने के लिए है इसलिए जब भी कभी आतंकवादी पकड़े जाते हैं तो उन्हें घाटी की जेलों में किसी देवी-देवता की तरह से रखा जाता है। जिहादियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की बजाय नेशनल सिक्यूरिटी गार्ड्‍स के जवान ऐसे नेताओं की सुरक्षा में लगे रहते हैं। हमारे नेता इतने गिरे गए हैं कि मुस्लिम वोटों के लालच में पाकिस्तानियों से गले मिलने के लिए कराची और लाहौर तक की सैर करते हैं।

दुनिया में कोई भी देश अपनी कार्रवाइयों को इस बात से प्रभावित नहीं होने देता कि दुनिया के दूसरे देश क्या कहेंगे? अमेरिका और चीन को जब भी सैनिक कार्रवाई करनी होती है, वे करते हैं। इसराइल ऐसा करता है लेकिन हम शांतिप्रिय भारतीय ऐसा करने के बारे में नहीं सोचते हैं।
हमारी असली समस्या है कि भारत के सांस्कृतिक डीएनए में संघर्षों से बचने, डरने की प्रवृत्ति छिपी हुई है और हम बार-बार गुस्से से आग-बबूला होते हैं लेकिन निर्णायक कार्रवाई करने में हाथ पैर फूल जाते हैं।

Wednesday 14 September 2016

अखंड भारत का रहस्य

वैज्ञानिकों की मानें तो लगभग 19 करोड़ साल पहले सभी द्वीपराष्ट्र एक थे और चारों ओर समुद्र था। यूरोप, अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका सभी एक दूसरे से जुड़े हुए थे। अर्थात धरती का सिर्फ एक टुकड़ा ही समुद्र से उभरा हुआ था।

इस इकट्ठे द्वीप के चारों ओर समुद्र था और इसे वैज्ञानिकों ने नाम दिया- 'एंजिया'। सवाल उठता है कि यह द्वीप कहां था और इस द्वीप पर क्या-क्या था। क्या एंजिया ही बना बाद में एशिया?

वैज्ञानिक खोजों से पता चला कि हिमालय और उसके आसपास के क्षेत्र प्राचीन धरती हैं। पुराणों में कैलाश पर्वत को धरती का केंद्र माना है। वैज्ञानिकों अनुसार तिब्बत सबसे पुरानी धरती है। तिब्बत को वेद और पुराणों में त्रिविष्टप कहा है जहां सबसे प्राचीन मानव रहते थे।

प्रारंभिक वैदिक काल में कैलाश पर्वत धरती का मुख्य केंद्र हुआ करता था। भौगोलिक दृष्टि से यह स्थान सबसे महत्वपूर्ण है। यह हिमालय का भी केंद्र है। हिमालय की पर्वत श्रेणियां, वादियां, घाटियां और जंगली जानवर प्राचीनतम माने जाते हैं। हालांकि भूवैज्ञानिकों के एक शोध अनुसार आरावली की पहाड़ियां विश्व की सबसे प्राचीन पहाड़ियां मानी गई है, लेकिन तब वह जल में डुबी हुई थी।

इस तरह बनें द्वीप या महाद्वीप : बीसवीं सदी के दौरान, भूवैज्ञानिकों ने प्लेट टेक्टॉनिक सिद्धांत को स्वीकार किया, जिसके अनुसार महाद्वीप पृथ्वी के ऊपरी सतह पर सरकते हैं, जिसे कॉन्टिनेन्टल ड्रीफ्ट कहते हैं।

पृथ्वी की सतह पर सात बड़े और कई छोटे टेक्टॉनिक प्लेट होते हैं और यही टेक्टॉनिक प्लेट्स एक दूसरे से दूर होते हैं, टूटकर अलग होते हैं, जो समय बीतते महाद्वीप बन जाते हैं। इसी कारण से, भूवैज्ञानिक इतिहास से पहले और आज के महाद्वीपों से पहले कई दूसरे महाद्वीप हुआ करते थे।

भूवैज्ञानिक मानते हैं कि महाद्वीपों के निर्माण में ज्वालामुखी, भूकंप के अलावा धरती की घूर्णन और परिक्रमण गति का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

पृथ्वी के अक्ष पर चक्रण को घूर्णन कहते हैं। पृथ्वी पश्चिम से पूर्व दिशा में घूमती है और एक घूर्णन पूरा करने में 23 घण्टे, 56 मिनट और 4.091 सेकेण्ड का समय लेती है। इसी से दिन व रात होते हैं।

पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अंडाकार पथ पर 365 दिन, 5 घण्टे, 48 मिनट व 45.51 सेकेण्ड में एक चक्कर पूरा करती है, जिसे उसकी परिक्रमण गति कहते हैं। पृथ्वी की इस गति की वजह से ऋतु परिवर्तन होता है।

पुख्ता सबूत वाले बाहर, शक वाले अंदर

भई मैं एक बात बोलता हूं जब लालू, शहाबुद्दीन , सलमान सब जेल से बाहर रह सकते हैं तो साध्वी प्रज्ञा, आसाराम, धनञ्जय देसाई जैसे लोग को अंदर रख कर किस तरह से कानून के प्रति विश्वास रखने को कह रहे हैं ? सबसे बड़ी बात तो ये है कि जिसके प्रति सबूत होते हैं, जिसे सबूत के वजह पर गिरफ़्तारी की जाती है, उसे ही बाद में छोड़ दिया जाता है और जिसे बिना सबूत के सिर्फ किसी की गवाही या शक के बिना पर गिरफ्तार किया जाता है उसे ही नहीं छोड़ा जाता है। ये चल क्या रहा है कोरट में ?

जिसके सबूत पर गिरफ़्तारी है, उसके वही सबूत बाद में उसी कोर्ट में सबूत नहीं माने जाते।
दूसरी तरफ जिसका सबूत नहीं है बस हल्ला हंगामे और मीडिया के दवाब में जिसे गिरफ्तार किया गया उसके लिए कोर्ट में पेश करने को सबूत खोजे जाते हैं।

माने कि जेल में बंद करने के बाद सबूत खोज रहे है...... अब खोज रहे है मतलब सबूत है नहीं..... तो जेल में रख के सबूत खोजोगे ? ? मैंने तो सुना कि सबूत पर गिरफ़्तारी होती है। अरे ये हो क्या रहा है अम्बेडकर के संविधान में ? संविधान ही तो गलत नहीं लिख गया वो आदमी ? हर आदमी संविधान का नाम ले के ही बड़े बड़े कारनामे किये जा रहा है।

जजों के ऊपर भी कोई है कि नहीं ?

Monday 12 September 2016

धरती का पहला मानव कौन था

अभगच्छत राजेन्द्र देविकां विश्रुताम्।
प्रसूर्तित्र विप्राणां श्रूयते भरतर्षभ॥- महाभारत

अर्थात्- सप्तचरुतीर्थ के पास वितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई। प्रमाण यही बताते हैं कि आदि सृष्टि की उत्पत्ति भारत के उत्तराखण्ड अर्थात् इस ब्रह्मावर्त क्षेत्र में ही हुई। वेद अनुसार प्रजापतियों के पुत्रों से ही धरती पर मानव की आबादी हुई। आज धरती पर जितने भी मनुष्य हैं सभी प्रजापतियों की संतानें हैं।

* स्वायंभुव मनु को आदि भी कहा जाता है। आदि का अर्थ प्रारंभ। इस आदि शब्द से ही आदम शब्द की उत्पत्ति हुई होगी। स्वायंभुव मनु की उत्पत्ति ब्रह्मा ने की थी। पुराणों में उनकी उत्पत्ति की कथा अलग-अलग तरीके से बताई गई है जिससे भ्रम उत्पन्न होता है, लेकिन इतना तो तय है कि उनकी उत्पत्ति ब्रह्मा से हुई थी। ब्रह्मा और मनु की परंपरा वाला धर्म अब भारत में नहीं पाया जाता। भारत में विष्णु और शिव सहित अन्य देवी और देवताओं की परंपरा से प्राप्त धर्म का पालन होता है।

* संसार के प्रथम पुरुष स्वायंभुव मनु और प्रथम स्त्री थीं शतरूपा। भगवान ब्रह्मा ने जब 11 प्रजातियों और 11 रुद्रों की रचना की तब अंत में उन्होंने स्वयं को दो भागों में विभक्त कर लिया। पहले भाग का नाम 'का' था और दूसरे भाग का नाम 'या' था। पहला भाग मनु के रूप में और दूसरा शतरूपा के रूप में प्रकट हुआ। कहते हैं कि ब्रह्मा ने प्रजापतियों को प्रकाश से, रुद्रों को अग्नि से और स्वायंभुव मनु को मिट्टी से बनाया था।

* हिंदू धर्म में स्वायंभुव मनु के ही कुल में आगे चलकर स्वायंभुव सहित क्रमश: 7 मनु हुए और 7 होना बाकी है। महाभारत में 8 मनुओं का उल्लेख मिलता है। श्वेतवराह कल्प में 14 मनुओं का उल्लेख है। इन चौदह मनुओं को ही जैन धर्म में कुलकर कहा गया है।

* स्वायंभुव मनु एवं शतरूपा के कुल पांच सन्तानें थीं जिनमें से दो पुत्र प्रियव्रत एवं उत्तानपाद तथा तीन कन्याएं आकूति, देवहूति और प्रसूति थे।

* आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ। देवहूति का विवाह प्रजापति कर्दम के साथ हुआ। ये सभी प्राजापति ब्रह्मा के पुत्र थे।

* स्वायंभुव मनु के दो पुत्र- प्रियव्रत और उत्तानपाद। उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नी थीं। राजा उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए।

* स्वायंभुव मनु के दूसरे पुत्र प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था जिनसे आग्नीध्र, यज्ञबाहु, मेधातिथि आदि दस पुत्र उत्पन्न हुए।

* प्रियव्रत की दूसरी पत्नी से उत्तम तामस और रैवत- ये तीन पुत्र उत्पन्न हुए जो अपने नामवाले मनवंतरों के अधिपति हुए।

* महाराज प्रियव्रत के दस पुत्रों में से कवि, महावीर तथा सवन ये तीन नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे और उन्होंने संन्यास धर्म ग्रहण किया था।

* महाराज मनु ने बहुत दिनों तक इस सप्तद्वीपवती पृथ्वी पर राज्य किया। जब महाराज मनु को मोक्ष की अभिलाषा हुई तो वे संपूर्ण राजपाट छोड़कर अपनी पत्नी शतरूपा के साथ नैमिषारण्य तीर्थ चले गए।

* मनु ने सुनंदा नदी के किनारे सौ वर्ष तक तपस्या की। दोनों पति-पत्नी ने नैमिषारण्य नामक पवित्र तीर्थ में गौमती के किनारे भी बहुत समय तक तपस्या की। उस स्थान पर दोनों की समाधियां बनी हुई है।

* स्वायम्भु मनु के काल के ऋषि मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलह, कृतु, पुलस्त्य, और वशिष्ठ हुए। राजा मनु सहित उक्त ऋषियों ने ही मानव को सभ्य, सुविधा संपन्न, श्रमसाध्य और सुसंस्कृत बनाने का कार्य किया।

* राजा प्रियव्रत के ज्येष्ठ पुत्र आग्नीध्र जम्बूद्वीप के अधिपति हुए। अग्नीघ्र के नौ पुत्र जम्बूद्वीप के नौ खण्डों के स्वामी माने गए हैं, जिनके नाम उन्हीं के नामों के अनुसार इलावृत वर्ष, भद्राश्व वर्ष, केतुमाल वर्ष, कुरु वर्ष, हिरण्यमय वर्ष, रम्यक  वर्ष, हरि वर्ष, किंपुरुष वर्ष और हिमालय से लेकर समुद्र के भूभाग को नाभि खंड कहते हैं। नाभि और कुरु ये दोनों वर्ष धनुष की आकृति वाले बताए गए हैं। नाभि के पुत्र ऋषभ हुए और ऋषभ से ‘भरत’ का जन्म हुआ। भरत के नाम पर ही बाद में इस नाभि खंड को भारतवर्ष कहा जाने लगा।

हिन्दुओं के प्रमुख वंश, जानिए अपने पूर्वजों को

भारतीय लोग ब्रह्मा, विष्णु, महेश और ऋषि मुनियोंकी संतानें हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश के कई पुत्र और पुत्रियां थी। इन सभी के पुत्रों और पुत्रियों से ही देव (सुर), दैत्य (असुर), दानव, राक्षस, गंधर्व, यक्ष, किन्नर, वानर, नाग, चारण, निषाद, मातंग, रीछ, भल्ल, किरात, अप्सरा, विद्याधर, सिद्ध, निशाचर, वीर, गुह्यक, कुलदेव, स्थानदेव, ग्राम देवता, पितर, भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वैताल, क्षेत्रपाल, मानव आदि की उत्पत्ति हुई।

पुराण भारतीय इतिहास को जलप्रलय तक ले जाते हैं। यहीं से वैवस्वत मन्वंतर प्रारंभ होता है। वेदों में पंचनद का उल्लेख है। अर्थात पांच प्रमुख कुल से ही भारतीयों के कुलों का विस्तार हुआ।

संपूर्ण हिन्दू वंश वर्तमान में गोत्र, प्रवर, शाखा, वेद, शर्म, गण, शिखा, पाद, तिलक, छत्र, माला, देवता (शिव, विनायक, कुलदेवी, कुलदेवता, इष्टदेवता, राष्ट्रदेवता, गोष्ठ देवता, भूमि देवता, ग्राम देवता, भैरव और यक्ष) आदि में वि‍भक्त हो गया है। जैसे-जैसे समाज बढ़ा, गण और गोत्र में भी कई भेद होते गए। बहुत से समाज या लोगों ने गुलामी के काल में कालांतर में यह सब छोड़ दिया है तो उनकी पहचान कश्यप गोत्र मान ली जाती है।

आज संपूर्ण अखंड भारत अर्थात अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और बर्मा आदि में जो-जो भी मनुष्य निवास कर रहे हैं, वे सभी निम्नलिखित प्रमुख हिन्दू वंशों से ही संबंध रखते हैं। कालांतर में उनकी जाति, धर्म और प्रांत बदलते रहे लेकिन वे सभी एक ही कुल और वंश से हैं।

गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि कुल का नाश तब होता है जबकि कोई व्यक्ति अपने कुलधर्म को छोड़ देता है। इस तरह वे अपने मूल एवं पूर्वजों को हमेशा के लिए भूल जाते हैं। कुलहंता वह होता है, जो अपने कुलधर्म और परंपरा को छोड़कर अन्य के कुलधर्म और परंपरा को अपना लेता है। जो वृक्ष अपनी जड़ों से नफरत करता है उसे अपने पनपने की गलतफहमी नहीं होना चाहिए।

भारत खंड का विस्तार : महाभारत में प्राग्ज्योतिष (असम), किंपुरुष (नेपाल), त्रिविष्टप (तिब्बत), हरिवर्ष (चीन), कश्मीर, अभिसार (राजौरी), दार्द, हूण हुंजा, अम्बिस्ट आम्ब, पख्तू, कैकेय, गंधार, कम्बोज, वाल्हीक बलख, शिवि शिवस्थान-सीस्टान-सारा बलूच क्षेत्र, सिन्ध, सौवीर सौराष्ट्र समेत सिन्ध का निचला क्षेत्र दंडक महाराष्ट्र सुरभिपट्टन मैसूर, चोल, आंध्र, कलिंग तथा सिंहल सहित लगभग 200 जनपद वर्णित हैं, जो कि पूर्णतया आर्य थे या आर्य संस्कृति व भाषा से प्रभावित थे। इनमें से आभीर अहीर, तंवर, कंबोज, यवन, शिना, काक, पणि, चुलूक चालुक्य, सरोस्ट सरोटे, कक्कड़, खोखर, चिन्धा चिन्धड़, समेरा, कोकन, जांगल, शक, पुण्ड्र, ओड्र, मालव, क्षुद्रक, योधेय जोहिया, शूर, तक्षक व लोहड़ आदि आर्य खापें विशेष उल्लेखनीय हैं।

आज इन सभी के नाम बदल गए हैं। भारत की जाट, गुर्जर, पटेल, राजपूत, मराठा, धाकड़, सैनी, परमार, पठानिया, अफजल, घोसी, बोहरा, अशरफ, कसाई, कुला, कुंजरा, नायत, मेंडल, मोची, मेघवाल आदि हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध की कई जातियां सभी एक ही वंश से उपजी हैं। खैर, अब हम जानते हैं हिन्दुओं (मूलत: भारतीयों) के प्रमुख वंशों के बारे में जिनमें से किसी एक के वंश से आप भी जुड़े हुए हैं। आपके लिए यह जानकारी महत्वपूर्ण हो सकती।

जो खुद को मूल निवासी मानते हैं वे यह भी जान लें कि प्रारंभ में मानव हिमालय के आसपास ही रहता था। हिमयुग की समाप्ति के बाद ही धरती पर वन क्षेत्र और मैदानों का विस्तार हुआ तब मानव वहां जाकर रहने लगा। हर धर्म में इसका उल्लेख मिलता है कि हिमालय से निकलने वाली किसी नदी के पास ही मानव की उत्पत्ति हुई थी। वहीं पर एक पवित्र बगिचा था जहां पर प्रारंभिक मानवों का एक समूह रहता था। धर्मो के इतिहास के अलावा धरती के भूगोल और मानव इतिहास के वैज्ञानिक पक्ष को भी जानना जरूरी है।

सबसे प्राचीन कुल : ब्रह्मा कुल : ब्रह्माजी की प्रमुख रूप से तीन पत्नियां थीं। सावित्री, गायत्री और सरस्वती। तिनों से उनको पुत्र और पुत्रियों की प्राप्ति हुई। इसके अलावा ब्रह्मा के मानस पुत्र भी थे जिनमें से प्रमुख के नाम इस प्रकार हैं- 1.अत्रि, 2.अंगिरस, 3.भृगु, 4.कंदर्भ, 5.वशिष्ठ, 6.दक्ष, 7.स्वायंभुव मनु, 8.कृतु, 9.पुलह, 10.पुलस्त्य, 11.नारद, 12. चित्रगुप्त, 13.मरीचि, 14.सनक, 15.सनंदन, 16.सनातन और 17.सनतकुमार आदि।

मीना बाजार शुरू हुआ था अकबर के काम वासना के लिए

मीना बाजार लगभग सभी लोग जाते होंगे पर इसका इतिहास जरूर जानना चाहिए। भारत के ज्ञात इतिहास में कामुक वृत्ति के दो चरित्र मिलते हैं। एक मांडव का गयासुद्दीन और दूसरा अकबर। इनमें भी अकबर ने गयासुद्दीन को बहुत पीछे छोड़ दिया। गयासुद्दीन के पथ पर आज भी सभी मुस्लिम चलते हैं यानी सिर्फ हिन्दू लड़कियों को शिकार बनाओ मुस्लिम को नहीं। लेकिन, अकबर ने तो मानवता की सारी मर्यादाएं तोड़ दी थीं। क्या शत्रु, क्या मित्र, क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, क्या प्रजा, क्या दरबारी, किसी की सुंदर बहन-बेटी इस 'कामी कीड़े' की वासना से नहीं बच पाई थी।

मुस्लिम प्रजा के साथ-साथ हिन्दुओं ने भी परदा प्रथा को अपना लिया था। इस कारण बुरके और घूंघट में छिपी सुंदर स्त्रियों को ढूंढ निकालना आसान नहीं था। दरबारियों के जनानखाने सुंदर हिन्दू, मुसलमान महिलाओं से भरे पड़े थे। दरबारियों की कन्याएं भी जवान हो रही थीं, किंतु परदे की ओट में थीं। धूर्त अकबर ने अपने दरबारियों और प्रजा की सुंदर महिलाओं को खोजने का एक आसान उपाय निकाला। उसने राजधानी में मीना बाजार लगाने की परंपरा डाली।

अकबर का मीना बाजार : आगरे के किले के सामने मैदान में मीना बाजार लगना प्रारंभ हुआ। शुक्रवार को पुरुष वर्ग तो पांच बार की नमाज में व्यस्त रहता था। इस दिन किले में और किले के आसपास पुरुषों का प्रवेश वर्जित था। सारे मैदान में महिलाएं दुकान सजाकर बैठती थीं और महिलाएं ही ग्राहक बनकर आ सकती थीं।

अकबर का आदेश था कि प्रत्येक दरबारी अपनी महिलाओं को दुकान लगाने के लिए भेजे। नगर के प्रत्येक दुकानदार को भी हुक्म था कि उनके परिवार की महिलाएं उनकी वस्तुओं की दुकान लगाएं। इस आदेश में चूक क्षम्य नहीं थीं। किसी सेठ और दरबारी की मीना बाजार में दुकान का न लगाना अकबर का कोपभाजन बनना था।

धीरे-धीरे मीना बाजार जमने लगा। निर्भय बेपरदा महिलाएं खरीद-फरोख्त को घूमने लगीं। अकबर की कूटनियां और स्वयं अकबर स्त्री वेश में मीना बाजार में घूमने लगे। प्रति सप्ताह किसी सेठ या दरबारी की सुंदर महिला पर गाज गिरती। वह अकबर की नजरों में चढ़ जाती अकबर की कूटनियां किसी भी प्रकार उसे किले में पहुंचा देतीं।
कुछ तो लोकलाज का भय, कुछ पति के प्राणों का मोह, लुटी-पिटी महिलाओं का मुंह बंद कर देता। साथ ही अन्य महिलाओं द्वारा यदि पुरुषों तक बात पहुंचती भी तो मौत के डर से मन-मसोसकर रह जाते। अस्मतें लुटती रही और मीना बाजार चलता रहा।

कभी-कभी कोई अत्यंत सुंदर स्त्री अकबर को भा जाती और वह उसके घर वालों के संदेश भिजवा देता कि डोला हरम में भिजवा दें। यदि स्त्री विवाहित हुई तो उसके पति को तलाक के लिए बाध्य करता। इस प्रकार कई दरबारियों की कन्याएं और विवाहिताएं आगरे के किले में लाई गईं। उच्च वंश के शाह अबुल माली और मिर्जा शर्फुद्दीन हुसैन जैसे लोगों की महिलाएं भी अकबर की वासना की शिकार बनी थीं। इन्हीं दिनों एक शेख की पत्नी अकबर की निगाह में चढ़ गई। अकबर ने शेख पर दबाव डाला कि अपनी पत्नी को तलाक दे दे ताकि मैं उसे अपने हरम में डाल सकूं। न तो शेख अपनी पत्नी को छोड़ना चाहता था, न उसकी पत्नी ही इस पशु के पास जाना चाहती थी।

आगरा के और भी 10-12 परिवारों की महिलाओं को अकबर अपने हरम में डालना चाहता था। आखिर आगरा के चुनिंदा मुसलमान दर‍बारियों की एक गुप्त बैठक हुई जिसमें अकबर की हत्या की योजना बनाई गई। शर्फुद्दीन का एक हिन्दू गुलाम था फुलाद, बाड़मेर का रहने वाला, ऊंचा-पूरा, कद्दावर जवान आबूमाली के मित्र शर्फुद्दीन ने उसे अपनी गुलामी से मुक्त किया और बदले में अकबर को मार डालने का वचन लिया।

सदा अंगरक्षकों से घिरे रहने वाले अकबर को तलवार या भाले से मारना संभव नहीं था। बंदूकें उस समय बारूद की एक नाल या दो नाल की हुआ करती थीं, जिनसे एक या दो बार ही फायर किया जा सकता था। तब निर्णय हुआ कि तीर से अकबर को मारा जाए। तीर भी अधिक दूरी से मारना था, इस कारण मजबूत कमान की जरूरत पड़ी ताकि तीर शरीर के भीतर तक पैठ सकें। फुलाद ने तीरंदाजी के अभ्यास में कई धनुष तोड़ डाले, फिर एक लोहे का बना कन्धहारी धनुष उसे दिया गया, लोहे के धनुष से अभ्यास के बाद घातक दल अवसर की ताक में रहने लगा।

आगरा में तो काम बना नहीं। पता लगा जनवरी 1564 में अकबर शेख निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर जियारत के लिए जाना चाहता है। घातक दल के लोग जनवरी के प्रथम सप्ताह में दिल्ली पहुंच गए और उपयुक्त स्थान की तलाश कर घात लगाकर बैठ गए। औलिया की दरगाह के मार्ग में माहम अनगा द्वारा निर्मित एक दुमंजिला मदरसा भी था। इसी मदरसे की छत पर फुलाद तीरों का तरकश लेकर जा बैठा। माहम अनगा के पु‍त्र आदम खां को किले की दीवार से गिराकर अकबर ने मरवाया था और पुत्र के गम में कुछ दिन बाद अनगा भी मर गई थी। अनगा का परिवार भी अकबर के खून का प्यासा था और हत्या-योजना में शामिल था।

11 जनवरी 1564 को अकबर ने औलिया की दरगाह पर जा दर्शन किए। अकबर दरगाह से लौट रहा था। उसके अंगरक्षक बिखरे हुए थे। कुछ तो साथ थे कुछ आगे बढ़ गए थे और कुछ दरगाह में प्रार्थना के लिए रुके थे। अकबर जैसे ही मदरसे के नीचे आया, एक सनसनाता तीर आकर उसका कंधा बिंध गया। अकबर जोर से चीख पड़ा। अंगरक्षकों ने उसे अपनी ढालों की ओट में ले लिया और तीर की दिशा में निगाहें दौड़ाईं। देखा तो मदरसे की छत से ए‍क विशालकाल व्यक्ति तीर बरसा रहा है। सन्नाते तीर अंगरक्षकों की ढालों से टकरा रहे थे। लोग मदरसे की ओर तलवारें सूंत दौड़ पड़े। फुलाद के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए।

अंगरक्षक घुड़सवारों ने अकबर की सवारी के मार्ग में आने वाले सभी बाजार बंद करवा दिए। प्रत्येक घर के खिड़की-दरवाजे बंद करवा दिए गए। घरों की छतों पर मुगल निशानेबाज बैठा दिए गए। इस प्रकार पूर्ण सुरक्षा के साथ अकबर दिल्ली के महल में लाया गया। तीर काफी भीतर तक धंस गया था और लगातार खून बह रहा था। कुशल जर्राहों (सर्जन) ने कंधे से तीर निकला। दस दिन तक हकीमों से इलाज करवा अकबर पालकी में बैठ आगरा लौटा। गहरे घाव के कारण वह घोड़े की सवारी के अयोग्य था और हाथी की सवारी में निशानेबाजों का खतरा था। (स्मिथ पृष्ठ 61)

मौत के भय ने अकबर को झकझोर दिया था। उसने बलात लोगों की पत्नियां छीनना तो बंद कर दिया, लेकिन मीना बाजार चलता रहा और महिलाओं की आबरू लुटती रही। फर्क इतना था कि औरतें हमेशा के लिए हरम में रोकी नहीं जाती थीं। एकआध दिन या कुछ घंटों के बाद छोड़ दी जाती थीं।

महाराणा की भतीजी जब आयी मीना बाजार में तो अकबर की छाती पर चढ़ बैठी, इसकी कहानी लगभग सबने पढ़ी ही है।