Sunday 12 August 2018

क्या दलितों का लालच देश खत्म करने पर आमादा है ?

मुस्लिमों के लिए चाहे कुछ भी किया जाए वो भाजपा को वोट नहीं करते... इसी तरह दलितों के लिए आप कुछ भी करो.. पर उनकी प्राथमिकता में पहले लालू, अखिलेश, माया होगी.. उसके बाद ही भाजपा आती है...
उसी क्रम में देखा जाए तो सवर्ण समाज के लिए सबसे पहले भाजपा ही है.. उसके बाद ही कोई और...

भाजपा देशभक्तों की पार्टी मानी जाती है तो इसके पीछे कारण भी उचित हैं... मुस्लिम और दलित हमेशा अपने नेताओं के माध्यम से देशविरोधी एजेंडे में शामिल हो जाते हैं... भले ही वो इनकार करें... जबकि देशहित के मुद्दे पर भाजपा को सिर्फ सवर्णों का साथ मिलता है...

इसमें भी अगर अंतर करना हो तो सिर्फ इतना कह सकते हैं कि मुस्लिम को देशविरोध के लिए किसी नेता, मौलवी या किसी कारण की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि मुस्लिम होना ही भारतीय संस्कृति और देश का विरोध मान लेना पर्याप्त है.. इस पर कोई चाहे तो बहस कर सकता है..

वहीँ दूसरी तरफ दलितों को समझने के लिए ऐसे समझिये,  मान लीजिए कि....
"आपकी नजर किसी दुकान में रखे हीरे जड़ित जेवर पर है.. आपकी पूरी इच्छा है कि काश ये मेरा होता... अचानक एक आदमी आये और कहे कि भाई.. देखो चारों तरफ.. ना कोई गार्ड है, ना cctv, ना कोई परिंदा... तू दुकान तोड़ के ले सकता है..
किसी ने उकसाया, माहौल मिला और सारी नैतिकता को ताक पर रखकर आप दुकान से "चोरी" करने को हमला कर देते हो... "

दलित यही कर रहे हैं.. कोई आता है और कहता है.. निराश क्यों हो ? तू ये भी ले सकता है, वो भी ले सकता है, इसको भी जेल भेज सकता है. .. और उसको भी.. बस मुझे वोट दो .. मैं उस दुकान (देश) पर हमला करने का माहौल बना दूंगा..
दलित अपने कदम आगे बढ़ा देता है.. लालच बुरी बला है...

आज देश के नेता .. देश के लिए राजनीति नहीं कर रहे.. ना फैसले ले रहे हैं.. वो वोट की राजनीति कर रहे हैं... क्योंकि अगर नहीं करेंगे.. तो दलित या मुस्लिम चोरी ना करने देने के लिए उस पार्टी को वोट नहीं देंगे...
आप चोरी करने दो.. तो ही वोट देंगे... ये अलग बात है इस चोरी को वो अपना "मूल अधिकार" जैसे शब्द देते हैं..

हम भाजपा को भी दोष क्यों दें अगर आज देश की ये स्थिति है.. मान लो कि कोई ऐसी पार्टी आ जाये जो देश हित की बात करता है तो दलित और मुस्लिम वोट नहीं करेंगे, ऐसे में वो हार जाएगी..

समस्या ये भी है कि दलितों का लालच सुनामी की तरह मुंह फाड़े आगे बढ़ता जा रहा है.. वो इसके लिए मुस्लिम जैसे संस्कृति विहीन और लुटेरी कौम के साथ गलबहियां करके सबकुछ मिटा देने पर आमादा हैं... 

खास बात तो ये है, मुस्लिम ... दलितों को साथ लेकर सवर्णों से निपट रहे हैं... देश पर कब्ज़ा करने के लिए राह का रोड़ा सिर्फ सवर्ण है.. वो दलित नहीं जो आए दिन छोटी छोटी मांगों के लिए इस्लाम अपनाने की धमकी देते हैं.. या अपना भी लेते हैं.. उनके लिए धर्म मायने रखती ही नहीं.. वो बहन से भी निकाह कर लेंगे और गौमांस भी खा लेंगे...
तभी तो भीम और मीम का रिश्ता परवान चढ़ रहा है... मीम ने हिन्दू समाज के एक महत्वपूर्ण किले को अपनी ताकत बना लिया है.. हम ये भी कह सकते हैं कि अंबेडकर ने जो पौधा लगाया था वो जहरीला पेड़ बन चुका है...

क्योंकि मुस्लिम को पता है कि एक बार देश पर कब्ज़ा हो जाये तो ये दलित हमारे सामने संघर्ष कर ही नहीं पाएंगे.. आधे तो यूँही इस्लाम स्वीकार कर लेंगे.. और बाकी आधे काट दिए जाएंगे.. पाकिस्तान में कितने हिन्दू दलित हैं ?

अब इसके बाद वर्तमान की चर्चा करें तो मोदी सरकार चार साल में किसी भी मोर्चे पर सफल नहीं दिख रही... लेकिन विचारणीय ये भी तो है कि जब देश के अंदर इस तरह की जनता हो तो कौन सी सरकार सफल होगी ? ?

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