Sunday 2 April 2017

भारत के लोगों को परेशान करता भारतीय कानून

आखिर ये हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ही अंतिम फैसला देगी तो सिविल कोर्ट को रखा क्यों है टाइमपास के लिए ? अगर कोर्ट में गलत फैसला आता है, जज घूसखोर है तो एक आम आदमी कहाँ शिकायत करेगा ? सबसे बड़ी बात जज के ऊपर भी देश में कोई है ? या वो ही लोग भगवान बन गए हैं ? ? मैं देख रहा हूँ अरबों खरबों रूपये के जमीन को जान बूझ कर जमीन माफिया वाले सुप्रीम कोर्ट ले जाते हैं जहां से कुछ लाख खर्च करके फैसले ले आते हैं क्योंकि विरोध में वहाँ लड़ने वाले कोई होता ही नहीं और फिर सुप्रीम कोर्ट का आर्डर आ जाए तो फिर परेशानी ही खत्म ? ?

तो क्या सुप्रीम कोर्ट सिर्फ पैसे वालों के लिए हैं ? गरीबों के लिए नहीं है ? फिर ऐसे कोर्ट का इतना सम्मान क्यों ? क्या अगर मेरे पास पैसा नहीं है तो मैं वहाँ कोर्ट में लड़ नहीं सकता ? सरकारी वकील को तो लड़ना चाहिए ? और अगर कुछ भी ना हो तो क्या आदमी बिना वकील के अपनी बात नहीं रख सकता ? आखिर कोर्ट वकील याने एक बिचौलिया बीच में क्यों रखता है ? क्या कोर्ट एक परेशां आदमी के कागजात और परेशानी सुनकर फैसले नहीं दे सकता.. क्या उसके लिए आदमी को ये बताना जरूरी है कि मेरी परेशानी इस धारा के अंतर्गत है ? क्या कोर्ट नहीं जानती कि उसकी परेशानी किस क़ानूनी धारा के अंतर्गत आती है ? क्या आम आदमी अपनी भाषा में अपना पक्ष बिना वकील के ही रखे तो जज नहीं समझ सकता ? पहले के समय में राजा महाराजा के आगे सिर्फ पक्ष विपक्ष के पीड़ित लोग खड़े होते थे तो राजा सुनवाई कर लेता था.. फैसले दे देता था.. तो अब साथ में वकील क्यों ? इतना खर्च क्यों ? कागजात और फॉर्म के नाम पर लूट क्यों ? क्यों कोर्ट को पीटेशन हिंदी में नहीं लिखा जा सकता ?  आखिर कानून आम आदमी के लिए क्यों नहीं है ? क्यों ये सिर्फ पैसे वालों की गुलाम बनकर चाकरी कर रही है ? Narendra Modi

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