Thursday 22 February 2018

एक हिन्दू लड़की के निकाह की कहानी

एक लड़की थी... शोभा... उसके माँ बाप ने उसकी शादी की सोच रखी थी.. अपनी बेटी की शादी के लिए जैसे तैसे जोड़ तोड़ करके पैसे जमा करते रहे... माँ ने जेवर वगैरह पहनने की जगह सहेज कर सुरक्षित रखना जरूरी समझा... ताकि बेटी की शादी में दे सके... सबकुछ ठीक ही चल रहा था.. इसी बीच एक दिन बेटी गायब हो गयी.. एक हफ्ते बाद खबर आई कि बेटी किसी लड़के के साथ भाग गई है.. और शादी कर चुकी है. ..

और फिर ये भी पता चला कि वो लड़का एक मुसलमान है... अब तो जैसे माँ बाप कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रह गए थे...
एक दिन लड़की ने फोन किया...
"पापा.. आप गुस्सा है... क्योंकि मैने गलत कदम उठाया पर हमें स्वीकार कर लीजिए... "

पिता ने कहा..
"बेटी .. तूने अगर भागकर किसी हिन्दू से भी शादी की होती तो घर मे जगह दे देता... पर ये तूने क्या किया... मुसलमान से ?"

"पर पापा पहले तो जिंदगी भर आप मुझसे यही कहते रहे कि सब इंसान एक जैसे होते हैं, सभी एक ही ईश्वर के  बच्चे हैं... हिन्दू मुस्लिम .. एक हैं... बोलिये... और अब आप ये क्या कह रहे हैं ?"

(अब उसके पिता को जैसे लकवा मार गया... अब समझ आया .. उसने अपनी परवरिश में खुद कितनी बड़ी गलती की थी... जिस नैतिक शिक्षा को वह अपना बड़प्पन समझता था... आज वो उसके ही मुंह पर तमाचा बन के लगा था... आखिर चूक उनसे ही हुई थी...)

"हां बेटी.. मेरी ही ग़लती है.. पर क्या तुम इतनी बच्ची थी कि किसी के धर्म मे मौजूद उसके बुराइयों को ना देख सको... ? किसी से शादी के बाद सिर्फ उसका मुंह देखकर जिंदा नहीं रहना होता है.. बल्कि उसके समाज के नियम कानूनों को अपनाकर जिंदा रहना होता है.. जो तुम्हे कुछ दिनों में समझ आने लगेगा"

फोन काट दिया गया...

समय फिर से बीतता रहा.. मां बाप की जिंदगी जैसे नरक बन गयी थी.. हर आदमी उपहास उड़ाता... परिवार में ही कितने थे जो मुंह पर जहरीली बातें बोल जाते थे.. कहीं किसी समारोह आदि में जाते तो देखते कि... लोग उनकी तरफ इशारा करके आपस मे हंसते और बातें करते... कुछ तो ऐसी जगहों पर भी "मुझे दुख हुआ जानकर" बोलते और शर्मसार करते... धीरे धीरे दोनों ने ऐसी जगहों पर जाना ही बन्द कर दिया...

लेकिन अपमानित होना तो जैसे अब जिंदगी का हिस्सा था.. कोई मिलता तो समाज में पूछे जाने वाले ये प्रश्न हमेशा पीछा करते ... आपके कितने बच्चे है... क्या करते हैं.. बेटी है ?... अच्छा तो शादी कहां हुई ..?

सिर्फ 1 साल बाद बेटी से फिर बात हुई... रोते हुए बोली...

"पापा...आप सही थे... इधर की जिंदगी बिल्कुल अलग है... मुझे बचा लीजिये... 3 - 4 महीने बाद ही मेरा नाम बदलने के लिए टॉर्चर किया.. मार पीट की.. अब.. अब मेरा नाम कुछ और है... दिन रात पर्दे में रहने को कहते हैं.. पर्दे में ही बाहर जाने को क़हते हैं... पापा ये लोगों का समाज एक जंगल जैसा है.. यहां घरों में ना कोई बहन है ना कोई... बहू... मैं क्या करूँ ? पापा आपने जिंदगी में कभी क्यों नहीं बताया कि मुसल्मान हिंदुओं के जैसे नहीं होते..   कभी इनकी सच्चाई क्यों नहीं बताई ?"

"और जिन्होंने तुम्हे सच्चाई बताई थी.. उसकी बात मानी थी?"

(अब बेटी को याद आ रहा था कि जब भी कुछ लोगों ने ऐसा बताया तो कैसे उनसे उनको पिछड़ा हुआ कह कर  लड़ती थी.. उल्टे अपमानित करती थी...)

"पापा अब क्या... करूँ ..?"

"जब तुमने निकाह किया तो मुझसे नहीं पूछा... अब क्यों ? "

बेटी उस दिन फोन पर बहुत देर तक रोती रही... और सुबकते हुए बोली..
"मैं माफी के लायक तो नहीं हूं.. पर माफ कर देना"

अगले दिन पता चला.. बेटी ने आत्महत्या कर ली है...

पर पिता खुश था...

क्योंकि बेटी ने जहर अकेले नहीं खाया था.. उसने सबको बराबर सजा दी थी.. अपने पति को... अपने उस सास ससुर को... भी... कुल सात लोग उस घर मे मरे पड़े थे..

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