Friday 2 June 2017

हिंदुओं में कोई भी हो सकता है पंडित ब्राह्मण ऋषि मुनि

शंकराचार्य जब काशी गए तो वहां मार्ग में उनके सामने एक चांडाल (श्मशान घाट में संस्कार कर्म करने वाला) आ गया। तब हिन्दू धर्म की जाति-व्यवस्था में चांडाल का काम सबसे निम्न स्तर का माना जाता था। शंकराचार्य ने चांडाल से रास्ते से परे हटने को कहा। जवाब में वह उनके सामने हाथ जोड़कर बोला, ‘‘क्या हटाऊं, अपना शरीर या आत्मा? आकार या निराकार?’’ इन सवालों ने शंकराचार्य को  झकझोर दिया। उन्होंने उस चांडाल को ही अपना गुरु मान लिया। कहा जाता है, चांडाल के रूप में स्वयं शिव आए थे, पारम्परिक वर्ण व्यवस्था में पूरी तरह रचे-पगे शंकर को व्यावहारिक अद्वैत का मर्म समझाने।

जब आरक्षण जैसा कोढ़ नहीं था तब कई SC ST वाले ही ऋषि मुनि पंडित ब्राह्मण थे.. महर्षि मतंग शूद्र कही जाने वाली जाति के थे और चांडालों के लिए कार्य करते थे।

ऐतरेय उपनिषद के रचयिता महर्षि ऐतरेय भी निम्न जाति के थे। उनकी मां ऐतरा सेविका थीं। सत्यकाम जाबाला की तरह गणिका के बेटे थे मगर बाद में सुप्रसिद्ध ऋषि बने।

न्याय और नीति के ज्ञाता विदुर दुनियाभर में विख्यात हैं। विदुर राजा धृतराष्ट्र की दासी के बेटे थे। सारे पुराण सूत उवाच से शुरू होते हैं, क्योंकि पुराणों को सुनाने का सम्मान सूत ऋषि को दिया गया है जो निम्न जाति के थे।

खुद गीता कहने वाले कृष्ण यादव जाति के माने जाते हैं जो आज के ‘अन्य पिछड़े वर्गों’ में से एक है। हम उसी यादव कृष्ण को पूजते हैं.. पर उसी यादव समाज का हाल देखिये.. लालू यादव मुलायम अखिलेश शरद को देखिए जो पूरी तरह से हिंदुत्व याने हिन्दू विरोधी हैं. .. उसी के पीछे यादव चल कर कृष्ण को अपमानित करते हैं..

संत कबीरदास जैसे जुलाहा जाति के लोग थे तो रैदास जैसे चर्मकार भी, तुकाराम जैसे छोटे व्यापारी थे तो जनाबाई जैसी सेविका भी, ज्ञानेश्वर जैसे ब्राह्मण थे तो कनकदास जैसे चरवाहे भी थे। सबको हिन्दू समाज ने ऋषि मुनि भगवान समान दर्जा दिया.. लेकिन क्यों ? क्योंकि वो हिन्दू धर्म के मूल भावनाओं पर चल रहे थे.. ना कि इस अम्बेडकरी गलत नीतियों पर.. वहां लालच नहीं था पर यहां है... आज भी वक़्त है सारे sc st दलित यादव वापिस अपने पूर्वजों की तरह अपने कर्मों से पूज्य बनें.. हम इंसान के अंदर व्याप्त गुणों को हमेशा से ऊपर रखते आये हैं.. आज भी जरूर रखेंगे।

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