Monday 24 July 2017

मुस्लिम दुकानों से खरीदारी याने अपनी बर्बादी पर हस्ताक्षर

हम कब समझेंगे कि मुसलमानों के दुकानों से तब तक कोई सामान नहीं खरीदना है जबतक कि बहुत ही आवश्यक ना हो जाये ... मैने नजदीक के कई कपड़े और जूते के दुकान वालों को देखा कि मार्च अप्रैल से ही हज़ारों लाखों रुपये का इन्वेस्टमेंट करना शुरू कर देते हैं.. गोदाम में लाखों के माल जमा करने लगते हैं.. सिर्फ इसलिए कि सितंबर से हिंदुओं का त्योहार आने वाला है...

क्या मुसलमान ईद में हिंदुओं के दुकाणों से कुर्ते टोपी खरीदते हैं.. कुर्बानी देने के लिए बकरी .. भी उन्हें मुस्लिमों से मिलता है, बकरीद में भी यही होता है, याने इन दो त्योहारों में हिंदुओं को कोई फायदा नहीं मिलता... और हिन्दू त्योहारों में ?

हिन्दू त्योहारों में सारे हिन्दू साल भर के पैसे मुसलमानो के लिए उलट देते हैं.. दुर्गा पूजा से ये मूर्खता चालू होती है जो अगले साल के मार्च में आने वाली होली तक चालू रहती है..

अरे किसको पैसे दे रहे हो ? उसको जो तुम्हारे पैसे का नमक खाकर तुम्हे ही काटने की सोच रहा है ? जो तुम्हारे पैसे लेकर अपने बहन बेटियों के जिस्म पर जेवर दे रहा है और तुम्हारी बहन बेटियों के कपड़े फाड़ बलात्कार को अंजाम दे रहा है ... तुम्हारे ही खिलाफ क्राइम करके तुम्हारे ही पैसे से वो पुलिस थाने को मैनेज करेगा और कोर्ट में भी देख लेगा।।

भाइयों, इस पोस्ट के विरोध में कृपया लाखों आतंकवादी के बीच मे एक "कलाम" का नाम ना घुसेडें.. क्योंकि कलाम जी हज़ारों दंगों में से एक भी दंगे रोकने में सफल नहीं हुए... तो मुझे मत पढ़ाओ..

चलो ठीक है अगर हिन्दू आपसे 10 रूपये ज्यादा ही ले लेता है कपड़े या जूते की दुकान में ... तो ले लो.. ना... अपनी मौत के सौदागरों को पैसे देने के मुकाबले ये फायदेमंद सौदा रहेगा...

मैन तो सोच लिया है, 2 पैसे ज्यादा देना पड़े तो दूंगा पर हिन्दू भाई के दुकान से लूंगा... बस पंचर मुस्लिम के यहां बनवाऊंगा.. क्योंकि मजबूरी है।

No comments:

Post a Comment