Sunday 29 April 2018

इस्लाम का जाहिलपना

यार अब्दुल , ये ठीक नहीं.. बहन से निकाह .. ना.. बिल्कुल गलत... बात है...

तुम जाहिल लोग क्या समझोगे इस्लाम...  हम बाहर जाकर रेप तो नहीं करते ना.. हम घर के अंदर ही शांत हो लेते हैं.. तुम जाहिल लोग इतने वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहां से लाओगे.. ना जेल, ना केस, ना पोस्को ... ये होती है जीवन सुरक्षा...

अरे लेकिन हलाला.... वगैरह.. कितना पाप है.. यार.. अपनी बीवी .. दूसरे के बिस्तर पर दे देना.. बोलो...

क्या बोलो... जाहिल गंवार.. हो तुमलोग... बीवी हमारी है... दर्द तुमको होता है... आख़िर क्यों ? अरे एक मुस्लिम औरत .. जिसका भाई भी.. और पति भी... बाद में ससुर भी.. मतलब उसके लिए एक और मौलवी मौलाना बढ़ ही गया तो किसलिए इतनी हाय तौबा ?

मगर यार गलत है.. यार.. मतलब... मैं क्या कहूँ.. अब्दुल..

तुम कुछ कहने लायक आज रहे कहां मेरे तर्कों के आगे... ? जाहिल आदमी. .. अरे हम निकाह करते हैं... मान लो बच्चे पैदा करने की कूवत नहीं. . तो उसका भाई है, ससुर है. .. सारी मुस्लिम कौम मदद करती है.... कौमी एकता है.. और तुम जाहिल लोग.. ये सब वैज्ञानिक दृष्टिकोण समझोगे भी कैसे ? ?

अरे यार गलत है... तो गलत है. . ये मतलब.....

जाहिल.. आदमी.. बस... अब कोई बहस नहीं..

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