रावण का नाभि चक्र सिद्ध था। श्री राम जब भी रावण के किसी अंग पर घात करते तो वह पुन: कुछ समयपश्चात् ठीक (heal) हो जाता। पहले लड़ाई ऊर्जा की होती थी। विभिन्न
अंगो से ऊर्जा को बाणो के माध्यम से सोख लिया जाता था।
बड़े योद्धा बुलेट प्रूफ जाकेट पहने रहते थे अर्थात उच्च कोटि के कवंच धारण किये रहते थे।
बाणो के द्वारा जिनको भेदना सम्भव नही होता था इस कारण ऊर्जा बाणो का प्रयोग कर शत्रु को क्षति पहुँचाई जाती थी।
कहते है कि इन्द्रजीत ने राम लक्ष्मण को
नागपाश में बाँध दिया था। यह श्री राम
लक्ष्मण के नाग प्राणो को विक्षिप्त कर दिया था। अनाहत चक्र में नाग लघु प्राण होते है जिनको यदि विकृत कर दिया जाए तोहृदय गति रुक जाती है। पवनसुत हनुमान जी
वायु (अर्थात प्राण) विज्ञान के सिद्ध साधक थे उन्होंने इस विकृति को दूर कर श्री राम
लक्ष्मण जी को बेहोशी से उबारा। इसी प्रकार श्री राम ने रावण के नाभि चक्र से ऊर्जा को
सोख लिया इसमें रावण का अन्त हुआ।
यदि हम इन दोनों केन्द्रोको activate कर लें और दोनों के बीच एक circuit बना लें जो
अवरोध रहित हो,जिसमें से होकर ऊर्जा का flow सही से हो जाए तो हमें प्रचुर मात्रा
में ऊर्जाकी उपलब्धि हो सकती है।
अंगो से ऊर्जा को बाणो के माध्यम से सोख लिया जाता था।
बड़े योद्धा बुलेट प्रूफ जाकेट पहने रहते थे अर्थात उच्च कोटि के कवंच धारण किये रहते थे।
बाणो के द्वारा जिनको भेदना सम्भव नही होता था इस कारण ऊर्जा बाणो का प्रयोग कर शत्रु को क्षति पहुँचाई जाती थी।
कहते है कि इन्द्रजीत ने राम लक्ष्मण को
लक्ष्मण के नाग प्राणो को विक्षिप्त कर दिया था। अनाहत चक्र में नाग लघु प्राण होते है जिनको यदि विकृत कर दिया जाए तोहृदय गति रुक जाती है। पवनसुत हनुमान जी
वायु (अर्थात प्राण) विज्ञान के सिद्ध साधक थे उन्होंने इस विकृति को दूर कर श्री राम
लक्ष्मण जी को बेहोशी से उबारा। इसी प्रकार श्री राम ने रावण के नाभि चक्र से ऊर्जा को
सोख लिया इसमें रावण का अन्त हुआ।
यदि हम चुम्बकीय शक्ति को देखें तो दो धुव्र उत्तरी व दक्षिणी होते है।चुम्बकीय शक्ति को विद्युत शक्ति में व विद्युत शक्ति को चुम्बकीय शक्ति मेंपरिवर्तन किया जा सकता
है। यदि हम अध्यापक विज्ञान की बात करें, यहाँ भी शास्त्र पुरुष और प्रकृति की
बात करते है। इन्हीं को शिव और शक्ति भी कहा जाताहै। ऋषियों के अनुसार ‘यत ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे’ अर्थात जो कुछ ब्रह्माण्ड मेंहै वह इस पिण्ड अर्थात शरीर में भी है। हमारे शरीर में भी दो केन्द्र है। एक ब्रह्मा चेतना का जिसको सहस्त्रार कहा जाता है व दूसरा
प्राण शक्ति का जिसकोमूलाधार कहा जाता है। चेतना व प्राण दोनों मिलकर ही मानव जीवन की संरचनाकरते है व जीवन के विविध व्यापार सम्पन्न होते है।
यदि हम इन दोनों केन्द्रोको activate कर लें और दोनों के बीच एक circuit बना लें जो
अवरोध रहित हो,जिसमें से होकर ऊर्जा का flow सही से हो जाए तो हमें प्रचुर मात्रा
में ऊर्जाकी उपलब्धि हो सकती है।
प्रकृति में उपस्थित वस्तुओं के क्रमबध्द अध्ययन से ज्ञान प्राप्त करने को ही विज्ञान कहते हैं। या किसी भी वस्तु के बारे में विस्तृत ज्ञान को ही विज्ञान कहते हैं।
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