Thursday 5 June 2014

वीर ब्रह्मेश्वर मुखिया ने ग़रीब मज़लुमो के लिए स्थापित किया था रणवीर सेना


ये उस वक़्त की बात थी जब कॉंग्रेस के बाद लालू यादव का राज आया था और लालू का मुस्लिम प्रेम किसी से छुपा हुआ नही था .. उसी वक़्त तक एमसीसी नक्शली संगठन ने अपनी जड़ें पूरे बिहार में जमा ली थी ..इस एमसीसी में जहाँ पिछड़ी जाति के लोग थे वहीं मुसलमान भी इस में शामिल थे .. 
यही नही खुद लालू का समर्थन अप्रत्यक्ष रूप से था तो कम्यूनिस्ट पार्टी के लोग इसके कमांडर हुआ करते थे .. (वैसे ये आज भी चल रहा है )...
उस समय की ये हालत थी की ये लोग लाल झंडा ले कर किसी भी अगड़ी जाति के आदमी के खेत पर जा कर वो झंडा गाड़ देते और क़ब्ज़ा कर लेते .. अमूमन तो उस खेत के मालिक को मार ही डालते थे ..

अगर कुछ नही मिला तो बस यूँ ही किसी भी गाँव में घुस जाते और जितने भी अगड़ी जाती के लोग होते उनके घर को जला देते .. और बीवी बाल बच्चे के साथ सारे भूमिहार राजपूतों को वहीं मार दिया करते .. कोई केस नही बनता था कोई ऐक्शन नही लिया जाता था ..

क्यूँ की इनके लिए एक तर्क था जो लालू से ले कर नीतीश कुमार दिया करते थे की "ये हमारे ही भाई है जो भटक गये हैं .. इनको मुख्यधारा में लाया जाएगा "

वो बहुत भयानक दिन थे .. बिहार के गाँव से देहात से लोग पलायन करने लगे .. पूरे का पूरा गाँव अगड़ी जातियों से खाली होने लगी .. ये बिल्कुल वैसा ही था जैसा कश्मीरियो के साथ असम के लोगों के साथ हुआ है .. अगड़ी जातियों के खिलाफ ये हाल हो गया था की बहुत सारे शहर चले गये तो कुछ ने अपने बच्चों को गाँव से बाहर ही भेज दिया थालोग बिहार में अपनी जाति बताने में डरने लगे थे .. आप कहीं गाँव गये.. चार लोग आपके सामने आए .. और पूछे की नाम क्या है .. आप ने नाम बताया जाति बताई .. बस वहीं पर हत्या ....

लेकिन उसी वक़्त लोहे को लोहा ही काटता है के तर्ज पर कोई मसीहा बन कर खड़ा हुआ .. ये नब्बे के दशक की बात है जब प्रतिबंधित संगठन भाकपा माले लिबरेशन से जब लोहा लेने कि बात आई तब भूमिहारों ने अवतारी पुरुष रणवीर चौधरी के नाम पर “ रणवीर किसान समिति “ बनाई | ब्रह्मेश्वर नाथ सिंह (शहीद वीर ब्रह्मेश्वर मुखिया) ने मुक़ाबले के लिए रणवीर सेना का निर्माण किया ..और छोटे से संगठन के साथ ही सही पर डट कर मुक़ाबला किया .. मुझे नही लगता ये ग़लत काम था .. सम्मान के साथ जीने का यह आख़िरी रास्ता था .. अपने बच्चों और परिवार को बचाने का यही विकल्प था .. ये रणवीर सेना के सिर्फ़ अस्तित्व में आते ही लोग वापिस अपने पुरखों के ज़मीन पर लौटने लगे .. भय ख़त्म हुआ .. चारों तरफ लड़ाई छिड़ गयी थी .. पर अंदर से दुखी और सताए हुए भूमिहारों ने जब पलट हमला किया तो एमसीसी नक्शली संगठन के पाँव उखड़ गये ..
भूमिहारों के बारे में वैसे भी कहावत है :

"खनक जाए हाथों में उसे तलवार कहते हैं,
निकाल दे जो बालू से तेल उसको भूमिहार कहते हैं "

(ये पोस्ट इस सन्दर्भ में है की ब्राह्मेश्वर मुखिया को मीडीया ने और लोगों ने बहुत बदनाम किया है लेकिन हथियार उठा ने के पीछे क्या मजबूरी थी .. ये किसी ने नहीं बताया )


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