Sunday 8 June 2014

जानिए रत्नों का रहस्यमय संसार :: रत्नों का पौराणिक महत्व:::

रत्न चौरासी माने गए हैं। नौ प्रमुख रत्न तथा शेष उपरत्न माने जाते हैं। इन नौ प्रमुख रत्नों का नवग्रहों से संबंध माना जाता है।


सूर्य- माणिक्य, चन्द्रमा-मोती, मंगल- मूंगा, बुध- पन्ना, बृहस्पति- पुखराज, शुक्र- हीरा, शनि- नीलम, राहु- गोमेद, केतु- लहसुनिया।

पुराणों में कुछ ऐसे मणि रत्नों का वर्णन भी पाया जाता है, जो पृथ्वी पर पाए नहीं जाते।

* चिंतामणि * कौस्तुभ मणि * रुद्र मणि * स्यमंतक मणि

ऐसा माना जाता है कि चिंतामणि को स्वयं ब्रह्माजी धारण करते हैं। कौस्तुभ मणि को नारायण धारण करते हैं। रुद्रमणि को भगवान शंकर धारण करते हैं। स्यमंतक मणि को इंद्र देव धारण करते हैं। पाताल लोक भी मणियों की आभा से हर समय प्रकाशित रहता है। इन सब मणियों पर सर्पराज वासुकी का अधिकार रहता है। 


प्रमुख मणियां 9 मानी जाती हैं- घृत मणि, तैल मणि, भीष्मक मणि, उपलक मणि, स्फटिक मणि, पारस मणि, उलूक मणि, लाजावर्त मणि, मासर मणि।


इन मणियों के संबंध में कई बातें प्रचलित हैं। 

* घृतमणि की माला धारण कराने से बच्चों को नजर से बचाया जा सकता है। 
* इस मणि को धारण करने से कभी भी लक्ष्‍मी नहीं रूठती। 
* तैल मणि को धारण करने से बल-पौरुष की वृद्‍धि होती है। 
* भीष्मक मणि धन-धान्य वृद्धि में सहायक है। 
* उपलक मणि को धारण करने वाला व्यक्ति भक्ति व योग को प्राप्त करता है। 
* उलूक मणि को धारण करने से नेत्र रोग दूर हो जाते हैं। 
* लाजावर्त मणि को धारण करने से बुद्धि में वृद्धि होती है। 
* मासर मणि को धारण करने से पानी और अग्नि का प्रभाव कम होता है

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