Thursday 11 January 2018

नवबौद्धों का महात्मा बुद्ध के साथ विश्वासघात

आज भगवान बुद्ध भी रो रहे हैं.... भगवान बुद्ध ने कभी भी नफरत का संदेश नहीं दिया था न ही उन्होंने कभी नया धर्म अथवा संप्रदाय खड़ा किया था। उन्होंने कभी भी ब्रह्मा, विष्णु, शिव, राम और कृष्ण के खिलाफ कुछ नहीं बोला था।

नवबौद्ध संप्रदाय (भीमटे) की उत्पत्ति भारत की आजादी के बाद हुई। इसे अम्बेडकरवादियों का नवबौद्ध संप्रदाय कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि अम्बेडकर के नेतृत्व में 14 अक्तूबर 1956 को हुई नवबौद्ध क्रांति के बाद इसे उन गैर हिंदू और गैर बौद्धों ने ज्यादा संचालित किया जो हिन्दू धर्म को तोड़ना चाहते थे।

कभी एकलव्य के अंगूठे की बात हो अथवा किसी शम्बूक की दंतकथा हो, चुन चुन कर ऐसे संदर्भ निकाले जाते हैं जिनके माध्यम से हिन्दू समाज की एकता एवं समरसता पर प्रहार किया सके और बड़ी चालाकी से उन कथाओं एवं प्रसंगों को नकार दिया जाता है जो हिंदुओं में ऐसी जातीयता नफरत को नकारती हो..

महाकश्यप ने बौद्ध धर्म को दुनियाभर में प्रचारित करने का कार्य किया जो कि जाति के आधार पर मगध के एक ब्राह्मण थे ... और तो और इन मूर्ख अम्बेडकरवादियों को पता नहीं कि महात्मा बुद्ध खुद एक क्षत्रिय राजकुमार थे ? ?

बुद्ध के प्रमुख गुरु थे-गुरु विश्वामित्र, अलारा, कलम, उद्दाका रामापुत्त आदि। नवबौद्ध जब नागपुर में प्रतिज्ञा करते हैं तो उसमें कहते हैं कि ..
"मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूंगा और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा।"

और भगवान बुद्ध खुद इन्ही के ध्यान में जाकर ज्ञान प्राप्त करते हैं... ये नवबौद्ध महात्मा बुद्ध की आड़ में सिर्फ आरक्षण के लिए देश की संस्कृति और अपने पूर्वजों से गद्दारी कर रहे हैं..

2 comments:

  1. अबे क्या बकवास है ये। सुधर जा। रामायण और महाभारत तो बुद्ध के बाद लिखे गए हैं । हां ये सही बात है ब्राह्मण थे आज भी हैं। हिन्दू धर्म कोई धर्म नही ब्राह्मण धर्म था पहले ।

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  2. तो बच्चे बौद्ध ग्रंथों में राम कैसे है

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