मैं ये बचपन से देखता आ रहा हूँ कि हमारे शहर में कुछ मार्किट हैं जो बहुत फेमस है और जहां पर महिलाओं के जरुरत की चीज़ें ही ज्यादा बिकती है .. इस जगह पर कपडे वगैरह के अलावा .. लेडिज बैग . मेकअप के सारे सामान .. बिकते हैं .. और लेडिज टेलर भी उसी मार्किट के अन्दर बहुत सारे हैं ..
फिर मैं जब अपने शहर से निकला और दुसरे शहरों में गया .. तो वहाँ भी इसी तरह के मार्किट कहीं ना कहीं देखे.. फिर जब बड़े शहरों में गया... तो वहाँ भी ऐसा ही कुछ दिखा...
इसके बाद जो आश्चर्य करने वाली बातें थी वो ये कि ये मार्किट के अन्दर नब्बे प्रतिशत दुकानदार मुस्लिम थे .. कहीं कहीं तो हिन्दू थे ही नहीं ..और थे भी तो पुश्तैनी कोई दूकान वहाँ चली आ रही है तभी थी ...
इसके बाद बचपन से ही देखा तो था पर महसूस अब हो रहा है वो ये कि सारे मुस्लिम जो इस मार्किट के थे वो भी और जो पुरे शहर में जहां कहीं भी किसी भी तरह की दूकान लगाए बैठे थे .. वो सब ईद और बकरीद के आने से खुश नहीं होते बल्कि दशहरा और दीपावली होली के आने से खुश होते हैं...
और जैसे कि वो लोग अभी से हिन्दू त्योहारों का बहुत बेसब्री से इंतज़ार करते हैं .. दूकान में माल भरना शुरू कर देते हैं.. दूकान की साफ़ सफाई .. और जो भी कर्ज ले कर पूंजी लगाना हो वो सब करते हैं ..
और जब त्यौहार आते हैं तो सारे हिन्दू लोग इनके मार्किट में टूट पड़ते हैं.. मार्किट के अन्दर चलना मुश्किल होता है .. धक्का मुक्की होती है.. और अपने सारे पैसे इनके हाथों में दे कर जिहाद को बढ़ावा देने के लिए आ जाते हैं ..., महिलाओं को महामूर्ख भी किस मुंह से कहें अगर उनको जिहाद या इस्लाम के मंशा के बारे में पता ही नहीं है .. ? ये तो नासमझी में जाती है.. मासूमियत में जाती है..
लेकिन सोचना चाहिए कि दूसरी तरफ सब मक्कार धूर्त... जिहाद को अंजाम देने में समर्थन करने वाले हाथ हैं जो आपसे पैसे ले कर अपना मकसद पूरा करने में या करवाने में लगे हैं ...यही नहीं उसी मार्किट से उन दुकानदार के लड़के अपने लव जिहाद को अंजाम देने में भी जुट जाते हैं ..
भाइयों .. अभी पर्व आना है.. सारे मुस्लिम आपलोगों से भी ज्यादा तैयारी कर रहे हैं .. आपके पैसे लूट कर आपके ही पिता भाई और बेटे को मारने वाले जिहादियों को समर्थन करने के लिए .. देशद्रोहियों के लिए ..
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