Monday 5 September 2016

इस्लामोगुल्ला कड़वा है पर खाना पड़ेगा

अब्दुल आया... उसके हाथ में एक मिठाई का डब्बा था ... उसने आते ही कहा..
ये लो मिठाई खाओ.. ये पुरे विश्व में बहुत प्रसिद्द है ... बहुत ही मीठी है.. लो तुम्हे भी यह मिठाई खाने को दावत दे रहा हूँ....

अच्छा पर इसका नाम क्या है ?

इस्लामुगुल्ला...

अच्छा लाओ..

(मैंने खाया ... तो एकदम मिर्ची भरा था कसैला... तीखा... दुर्गन्धित....)

अबे यार ये तो बहुत गन्दा है तीखा है...

नहीं नहीं ये बहुत मीठा है .. हमारे किताब में लिखा है ...

अबे किताब में लिखा है वो तो ठीक है पर सामने दिखना भी तो चाहिए इसका स्वाद...

तुम समझे नहीं अगर हमारे किताब में लिखा है कि ये दुनिया का सबसे अच्छा मिठाई है तो बस है और तुम्हे भी मानना पड़ेगा कि अच्छा है ..

अरे अब्दुल जो चीज़ अच्छी होगी उसके बारे में तो दुनिया कहेगी की अच्छी है मुझे पता चला है कि इस मिठाई को जिस जिस ने खाया वो पागल कुत्ते की तरह दूसरों को खिलाता है और खाने से मना करने वाले को मार देता है ... 

तुम समझे नहीं हमारे किताब में लिखा है की तीखा होने के बाद भी इसको मीठा कहने वाला जन्नत जाएगा...तभी तो इतने लोग इसको खा रहे हैं...

अबे वो तो सूअर भी दिनरात मैला खाते हैं तो क्या मैं सुवर बन जाऊ? अच्छा होता तो मैं खुद मांग कर.... खरीद कर खाता...ना....

लाहौल बिला कुवत तुमने इस मिठाई को मैला कहा.. किताब में लिखा है जो इसको ख़राब कहे उसको मार डालो .. अब मैं तुम्हे मारने जा रहा रहा हूँ...

अच्छा पर तुमने देखा नहीं .. तुम जिस जगह खड़े हो वहीँ तुम्हारे पैर के नीचे बम लगा है .. तुमने पैर हटाया की बम फटा ...

अबे ये ... ये...

हाँ मैं वो हिन्दू हूँ जो तेरी असलियत जानता था इसलिए पहले से सब तैयारी रखी थी...

कोई बात नहीं अब तो काफिर के हाथों मरने के बाद मेरा जन्नत पक्का हो गया है ... या अली ... 72 हूर जिंदाबाद...
(और अब्दुल भाई वहीँ कूद कर फट गए)

No comments:

Post a Comment