Monday 12 September 2016

हिन्दुओं के प्रमुख वंश, जानिए अपने पूर्वजों को

भारतीय लोग ब्रह्मा, विष्णु, महेश और ऋषि मुनियोंकी संतानें हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश के कई पुत्र और पुत्रियां थी। इन सभी के पुत्रों और पुत्रियों से ही देव (सुर), दैत्य (असुर), दानव, राक्षस, गंधर्व, यक्ष, किन्नर, वानर, नाग, चारण, निषाद, मातंग, रीछ, भल्ल, किरात, अप्सरा, विद्याधर, सिद्ध, निशाचर, वीर, गुह्यक, कुलदेव, स्थानदेव, ग्राम देवता, पितर, भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वैताल, क्षेत्रपाल, मानव आदि की उत्पत्ति हुई।

पुराण भारतीय इतिहास को जलप्रलय तक ले जाते हैं। यहीं से वैवस्वत मन्वंतर प्रारंभ होता है। वेदों में पंचनद का उल्लेख है। अर्थात पांच प्रमुख कुल से ही भारतीयों के कुलों का विस्तार हुआ।

संपूर्ण हिन्दू वंश वर्तमान में गोत्र, प्रवर, शाखा, वेद, शर्म, गण, शिखा, पाद, तिलक, छत्र, माला, देवता (शिव, विनायक, कुलदेवी, कुलदेवता, इष्टदेवता, राष्ट्रदेवता, गोष्ठ देवता, भूमि देवता, ग्राम देवता, भैरव और यक्ष) आदि में वि‍भक्त हो गया है। जैसे-जैसे समाज बढ़ा, गण और गोत्र में भी कई भेद होते गए। बहुत से समाज या लोगों ने गुलामी के काल में कालांतर में यह सब छोड़ दिया है तो उनकी पहचान कश्यप गोत्र मान ली जाती है।

आज संपूर्ण अखंड भारत अर्थात अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और बर्मा आदि में जो-जो भी मनुष्य निवास कर रहे हैं, वे सभी निम्नलिखित प्रमुख हिन्दू वंशों से ही संबंध रखते हैं। कालांतर में उनकी जाति, धर्म और प्रांत बदलते रहे लेकिन वे सभी एक ही कुल और वंश से हैं।

गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि कुल का नाश तब होता है जबकि कोई व्यक्ति अपने कुलधर्म को छोड़ देता है। इस तरह वे अपने मूल एवं पूर्वजों को हमेशा के लिए भूल जाते हैं। कुलहंता वह होता है, जो अपने कुलधर्म और परंपरा को छोड़कर अन्य के कुलधर्म और परंपरा को अपना लेता है। जो वृक्ष अपनी जड़ों से नफरत करता है उसे अपने पनपने की गलतफहमी नहीं होना चाहिए।

भारत खंड का विस्तार : महाभारत में प्राग्ज्योतिष (असम), किंपुरुष (नेपाल), त्रिविष्टप (तिब्बत), हरिवर्ष (चीन), कश्मीर, अभिसार (राजौरी), दार्द, हूण हुंजा, अम्बिस्ट आम्ब, पख्तू, कैकेय, गंधार, कम्बोज, वाल्हीक बलख, शिवि शिवस्थान-सीस्टान-सारा बलूच क्षेत्र, सिन्ध, सौवीर सौराष्ट्र समेत सिन्ध का निचला क्षेत्र दंडक महाराष्ट्र सुरभिपट्टन मैसूर, चोल, आंध्र, कलिंग तथा सिंहल सहित लगभग 200 जनपद वर्णित हैं, जो कि पूर्णतया आर्य थे या आर्य संस्कृति व भाषा से प्रभावित थे। इनमें से आभीर अहीर, तंवर, कंबोज, यवन, शिना, काक, पणि, चुलूक चालुक्य, सरोस्ट सरोटे, कक्कड़, खोखर, चिन्धा चिन्धड़, समेरा, कोकन, जांगल, शक, पुण्ड्र, ओड्र, मालव, क्षुद्रक, योधेय जोहिया, शूर, तक्षक व लोहड़ आदि आर्य खापें विशेष उल्लेखनीय हैं।

आज इन सभी के नाम बदल गए हैं। भारत की जाट, गुर्जर, पटेल, राजपूत, मराठा, धाकड़, सैनी, परमार, पठानिया, अफजल, घोसी, बोहरा, अशरफ, कसाई, कुला, कुंजरा, नायत, मेंडल, मोची, मेघवाल आदि हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध की कई जातियां सभी एक ही वंश से उपजी हैं। खैर, अब हम जानते हैं हिन्दुओं (मूलत: भारतीयों) के प्रमुख वंशों के बारे में जिनमें से किसी एक के वंश से आप भी जुड़े हुए हैं। आपके लिए यह जानकारी महत्वपूर्ण हो सकती।

जो खुद को मूल निवासी मानते हैं वे यह भी जान लें कि प्रारंभ में मानव हिमालय के आसपास ही रहता था। हिमयुग की समाप्ति के बाद ही धरती पर वन क्षेत्र और मैदानों का विस्तार हुआ तब मानव वहां जाकर रहने लगा। हर धर्म में इसका उल्लेख मिलता है कि हिमालय से निकलने वाली किसी नदी के पास ही मानव की उत्पत्ति हुई थी। वहीं पर एक पवित्र बगिचा था जहां पर प्रारंभिक मानवों का एक समूह रहता था। धर्मो के इतिहास के अलावा धरती के भूगोल और मानव इतिहास के वैज्ञानिक पक्ष को भी जानना जरूरी है।

सबसे प्राचीन कुल : ब्रह्मा कुल : ब्रह्माजी की प्रमुख रूप से तीन पत्नियां थीं। सावित्री, गायत्री और सरस्वती। तिनों से उनको पुत्र और पुत्रियों की प्राप्ति हुई। इसके अलावा ब्रह्मा के मानस पुत्र भी थे जिनमें से प्रमुख के नाम इस प्रकार हैं- 1.अत्रि, 2.अंगिरस, 3.भृगु, 4.कंदर्भ, 5.वशिष्ठ, 6.दक्ष, 7.स्वायंभुव मनु, 8.कृतु, 9.पुलह, 10.पुलस्त्य, 11.नारद, 12. चित्रगुप्त, 13.मरीचि, 14.सनक, 15.सनंदन, 16.सनातन और 17.सनतकुमार आदि।

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