Thursday 8 September 2016

भारत के सरस्वती नदी के साथ जुड़ा रहस्य

हिन्दू धर्म के 90 हजार से भी ज्यादा वर्षों के लिखित इतिहास में लगभग 20 हजार वर्ष पूर्व नए सिरे से वैदिक धर्म की स्थापना हुई और नए सिरे से सभ्यता का विकास हुआ। प्रारंभ में ब्रह्मा और उनके पुत्रों ने धरती पर विज्ञान, धर्म, संस्कृति और सभ्यता का विस्तार किया। इस दौर में शिव और विष्णु सत्ता, धर्म और इतिहास के केंद्र में होते थे। देवता और असुरों का काल अनुमानित 20 हजार ईसा पूर्व से लगभग 7 हजार ईसा पूर्व तक चला। फिर धरती के जल में डूब जाने के बाद ययाति और वैवस्वत मनु के काल और कुल की शुरुआत हुई।

पहली बात तो यह जानना जरूरी है कि उत्तर भारत और दक्षिण भारत में भिन्न-भिन्न सभ्यताएं नहीं थी बल्कि एक ही सभ्यता के दो रूप थे। आर्य कोई जाती नहीं और ना वे कहीं बाहर से आए थे। सभी भारतीय द्रविड़ है। स्थान विशेष और वातावरण के लंबे काल के चलते रंग और रूप में थोड़ा बहुत अंतर है।

हिमालय से निकलकर सिन्धु और सरस्वती नदी अरब के समुद्र में गिर जाती है। इतिहासकार मानते हैं कि 1700 से 1800 ईसा पूर्व सरस्वती नदी लुप्त हो गई और सिंधु ने अपनी दिशा बदल दी। अधिकतर इतिहासकार भारत के इतिहास की पुख्ता शुरुआत सिंधु नदी की घाटी की मोहनजोदड़ो और हड़प्पाकालीन सभ्यता से मानते थे लेकिन अब जबसे सरस्वती नदी की खोज हुई है, भारत का इतिहास बदलने लगा है। अब माना जाता है कि यह सिंधु घाटी की सभ्यता से भी कई हजार वर्ष पुरानी है।

एक फ्रेंच प्रोटो-हिस्टोरियन माइकल डैनिनो ने नदी की उत्पत्ति और इसके लुप्त होने के संभावित कारणों की खोज की है। वे कहते हैं कि ऋग्वेद के मंडल 7वें के अनुसार एक समय पर सरस्वती बहुत बड़ी नदी थी, जो कि पहाड़ों से बहकर नीचे आती थी। अपने शोध 'द लॉस्ट रिवर' में डैनिनो कहते हैं कि उन्हें बरसाती नदी घग्घर नदी का पता चला। कई स्थानों पर यह एक बहुत छोटी-सी धारा है लेकिन जब मानसून का मौसम आता है, तो इसके किनारे 3 से 10 किलोमीटर तक चौड़े हो जाते हैं। इसके बारे में माना जाता है कि यह कभी एक बहुत बड़ी नदी रही होगी। यह भारत-तिब्बत की पहाड़ी सीमा से निकली है।
उन्होंने बहुत से स्रोतों से जानकारी हासिल की और नदी के मूल मार्ग का पता लगाया। ऋग्वेद में भौगोलिक क्रम के अनुसार यह नदी यमुना और सतलुज के बीच रही है और यह पूर्व से पश्चिम की तरह बहती रही है। नदी का तल पूर्व हड़प्पाकालीन था और यह 4 हजार ईसा पूर्व के मध्य में सूखने लगी थी।

इसरो के वैज्ञानिक एके गुप्ता का कहना है कि थार के रेगिस्तान में पानी का कोई स्रोत नहीं है लेकिन यहां कुछ स्थानों पर ताजे पानी के स्रोत मिले हैं। जैसलमेर जिले में जहां बहुत कम बरसात होती है (जो कि 150 मिमी से भी कम है), यहां 50-60 मीटर पर भूजल मौजूद है। इस इलाके में कुएं सालभर नहीं सूखते हैं। इस पानी के नमूनों में ट्राइटियम की मात्रा नगण्य है जिसका मतलब है कि यहां आधुनिक तरीके से रिचार्ज नहीं किया गया है। स्वतंत्र तौर पर आइसोटोप विश्लेषण से भी इस तथ्य की पुष्टि हुई है कि रेत के टीलों के नीचे ताजा पानी जमा है और रेडियो कार्बन डाटा इस बात का संकेत देते हैं कि यहां कुछेक हजार वर्ष पुराना भूजल मौजूद है। आश्चर्य की बात नहीं है कि ताजे पानी के ये भंडार सूखी तल वाली सरस्वती के ऊपर हो सकते हैं।

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