Wednesday 14 September 2016

पुख्ता सबूत वाले बाहर, शक वाले अंदर

भई मैं एक बात बोलता हूं जब लालू, शहाबुद्दीन , सलमान सब जेल से बाहर रह सकते हैं तो साध्वी प्रज्ञा, आसाराम, धनञ्जय देसाई जैसे लोग को अंदर रख कर किस तरह से कानून के प्रति विश्वास रखने को कह रहे हैं ? सबसे बड़ी बात तो ये है कि जिसके प्रति सबूत होते हैं, जिसे सबूत के वजह पर गिरफ़्तारी की जाती है, उसे ही बाद में छोड़ दिया जाता है और जिसे बिना सबूत के सिर्फ किसी की गवाही या शक के बिना पर गिरफ्तार किया जाता है उसे ही नहीं छोड़ा जाता है। ये चल क्या रहा है कोरट में ?

जिसके सबूत पर गिरफ़्तारी है, उसके वही सबूत बाद में उसी कोर्ट में सबूत नहीं माने जाते।
दूसरी तरफ जिसका सबूत नहीं है बस हल्ला हंगामे और मीडिया के दवाब में जिसे गिरफ्तार किया गया उसके लिए कोर्ट में पेश करने को सबूत खोजे जाते हैं।

माने कि जेल में बंद करने के बाद सबूत खोज रहे है...... अब खोज रहे है मतलब सबूत है नहीं..... तो जेल में रख के सबूत खोजोगे ? ? मैंने तो सुना कि सबूत पर गिरफ़्तारी होती है। अरे ये हो क्या रहा है अम्बेडकर के संविधान में ? संविधान ही तो गलत नहीं लिख गया वो आदमी ? हर आदमी संविधान का नाम ले के ही बड़े बड़े कारनामे किये जा रहा है।

जजों के ऊपर भी कोई है कि नहीं ?

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