Sunday 20 November 2016

फांसी चढ़े लेकिन इस्लाम कबूल नहीं किया

हकीकत राय का जन्म स्यालकोट (पंजाब) में 1911 में हुआ था। उनके पिता का नाम था भागमल खत्री। जब वह 11 वर्ष के थे तो उनका विवाह कर दिया गया। उन दिनों फारसी पढ़े बिना पंजाब में किसी हिन्दू को नौकरी नहीं मिलती थी, इसलिए उस बालक के पिता ने उस बालक को फारसी पढ़ाना जरूरी समझकर एक मदरसे में भर्ती करा दिया। एक दिन जब मदरसे के कुछ मुस्लिम लड़कों ने दुर्गा भवानी की निन्दा की, हंसी उड़ाई तो हकीकत को बड़ा गुस्सा आया। उसने उनसे कहा, "अगर मैं भी फातिमा बीबी की बुराई करूं तो तुम्हें कैसा लगेगा?' जब वहां मौलवी आया तो मुस्लिम लड़कों ने उससे हकीकत की शिकायत की कि "इसने हमारी फातिमा बीबी (पैगम्बर मोहम्मद की बेटी) को गाली दी है'। यद्यपि हकीकत ने फातिमा को कोई गाली नहीं दी थी फिर भी हकीकत को ले जाकर स्यालकोट के उस काजी के सामने खड़ा किया गया, जो ऐसे मामलों में सजा देता था। काजी ने हकीकत को मौत की सजा सुना दी। फिर उसे लाहौर के हाकिम के पास ले जाया गया जिसने उससे कहा कि "तुम मुसलमान बन जाओ तो तुम्हारी जान बख्शी जा सकती है'। तभी हकीकत के माता-पिता और पत्नी वहां आयी। माता-पिता बड़े दु:खी होकर रोने लगे, हकीकत से कहा, "बेटा! तुम मुसलमान हो जाओ इससे जान बच जाएगी'। पर हकीकत अपने धर्म पर अडिग रहा। उसे लाहौर में जल्लादों से कत्ल करा दिया गया। उस दिन 1974 की वसंत पंचमी थी।'।

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