Sunday 20 November 2016

बंगाल के तीन क्रन्तिकारी विनय, बादल और दिनेश की कहानी

बंगाल के तीन क्रांतिकारियों विनय, बादल और दिनेश ने अंग्रेज उच्चाधिकारियों, कुख्यात पुलिस महानिरीक्षक लोमेन, एक अन्य अंग्रेज अधिकारी हडसन, महानिरीक्षक (कारागृह) सिम्पसन, न्यायालय सचिव नेल्सन तथा टामसन आदि को इसलिए गोली मारी थी, क्योंकि इन अंग्रेजों ने मुस्लिमों को हिन्दुओं के विरुद्ध शह देकर दंगे कराए थे, जिनमें अनेक हिन्दुओं की हत्याएं की गई थीं। शहीद विप्लवी विनय बोस के पिता श्री रेवती मोहन बोस के आत्मकथ्य से यह तथ्य उजागर हुआ। उन्होंने बताया कि 1930 में ढाका में मुस्लिमों ने बहुत बड़ा दंगा किया था। लोगों का मानना था कि ये खूनी दंगे, अंग्रेज उच्चाधिकारियों ने ही कराए थे। इसलिए विप्लवी दल पुलिस के बड़े-बड़े अंग्रेज अधिकारियों से प्रतिशोध लेने के रास्ते पर चल पड़ा था। घर की दयनीय आर्थिक स्थिति देखकर विनय बोस ने अपने माता-पिता से यह भी कहा था कि "आप एक वर्ष और काट लें, फिर मैं डाक्टर होकर यहां आते ही बाबा (पिता) को नौकरी नहीं करने दूंगा।' इस तरह का मनोभाव रहने पर भी वह विप्लवी दल में सक्रिय रहकर क्रान्ति-कार्यों में योगदान देता था। 1930 में विनय, बादल और दिनेश, ये तीन युवक ढाका वि·श्वविद्यालय की "बंगाल स्वयंसेवक दल' में सक्रिय थे। इनमें विनय बोस ढाका के मिडफोर्ड मेडिकल कालेज में चतुर्थ वर्ष का छात्र था। 29 अगस्त,1930 को जब कुख्यात अंग्रेज महानिरीक्षक लोमेन और उसका सहयोगी ढाका पुलिस का अंग्रेज अधिकारी हडसन, उक्त मेडिकल कालेज के सामने मौजूद थे, उसी समय विनय बोस ने इन दोनों पर गोलियां चला दीं, जिससे महानिरीक्षक लोमेन वहीं ढेर हो गया और हडसन गम्भीर रूप से घायल हो गया। इस घटना के बाद विनय फरार होकर और अन्य अंग्रेज अधिकारियों को भी गोली मारने की ताक में रहने लगा। 8 दिसम्बर, 1930 को विनय बोस के नेतृत्व में "बंगाल स्वयंसेवक दल' के दो अन्य तरुण दिनेश गुप्त और सुधीर गुप्त कलकत्ता की "राइटर्स बिÏल्डग' में दिनदहाड़े घुसे और उन्होंने वहां मौजूद पुलिस महानिरीक्षक सिम्पसन को गोलियों से भून दिया। वहां मौजूद पुलिस दल के साथ इन लोगों का संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में अंग्रेज न्यायालय सचिव नेल्सन और उनके साथ टामसन जैसे अंग्रेज आई.सी.एस. अधिकारी मारे गए। इस बीच वहां और सैनिक दस्ता भी आ गया। क्रांतिकारियों के पास तीन पिस्तौलें और सीमित संख्या में ही गोलियां थीं। क्रान्तिकारियों की गोलियां जब खत्म होने लगीं तो वे उसी कमरे में बैठ गए, जहां से गोली चला रहे थे और संकल्प किया कि स्वयं अपने को खत्म कर लेंगे पर पुलिस के हाथ नहीं आएंगे। इसके बाद तीनों ने "पोटेशियम साइनाइड' के कैप्सूल निगल लिए, साथ ही अपने को गोली भी मार ली। सुधीर गुप्त उसी दिन समाप्त हो गया। विनय और दिनेश जीवित थे किन्तु अचेत थे। दोनों को मेडिकल कालेज में भर्ती कराया गया। दिनेश ठीक हो गया, पर विनय ने मस्तक के घाव पर बंधी पट्टी खोलकर घाव को उंगली से कुरेदकर विषाक्त बना लिया, जिससे 5 दिन बाद यानी 13 दिसम्बर को प्रात: 6 बजे मेडिकल कालेज में ही वह शहीद हो गया। उसके साथी क्रांतिवीर दिनेश गुप्त को 7 महीने जेल में कैद रखकर घोर यातनाएं दी गईं तथा अगले वर्ष सन् 1931 की 7 जुलाई को कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी कारागार में फांसी दी गई। शहीद दिनेश गुप्त का जन्म ढाका जिले के जशोलांग ग्राम में सन् 1911 की 6 दिसम्बर को हुआ था। उनके पिता का नाम था श्री सतीश चंद्र गुप्त। शहीद सुधीर गुप्त ढाका जिले के पूर्व सिमुलिया ग्राम में सन् 1912 में श्री अवनि गुप्त के यहां जन्मे थे। तीसरे शहीद विनय बोस विक्रमपुर राउतभोग ग्राम में बंगाब्द के भाद्र मास की 26 तारीख को जन्मे थे। इतने शीलवान और विनम्र थे कि पिता श्री रेवती मोहन बोस ने बालक का नाम विनय कृष्ण बोस रखा।

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