Sunday 8 January 2017

12 वर्ष का रामचंद्र.. गुमनाम शहीद

12वर्ष का रामचन्द्र कक्षा 6 में पढ़ता था। सब लोग उसे "रामजी' कहते थे, उसका जन्म 1 सितम्बर '29 को उत्तर प्रदेश में देवरिया जिले के एक गांव नौतान हथियागढ़ में हुआ था। उसके पिता का नाम बाबूलाल था। उन दिनों "अंग्रेजो! भारत छोड़ो' और "करो या मरो' आन्दोलन की उग्र आंधी चल रही थी। चारों ओर अंग्रेजों के विरुद्ध नारे लगतेे और झण्डा-गीत "झण्डा ऊंचा रहे हमारा' गाते हुए जनता के जुलूस निकलते। पुलिस दल उन जुलूसों को रोकता, न रुकने पर उसमें शामिल लोगों को गिरफ्तार कर लिया जाता। यह वातावरण देखकर बालक रामचन्द्र का मन पढ़ाई से उचट गया। उसे उस झण्डा-गीत की कुछ पंक्तियां कण्ठस्थ हो गयी थीं, जिन्हें वह घर में और बाहर खेलते हुए गुनगुनाया करता था। फिर जोश में भरकर वह भी घर में बिना किसी को बताए आजादी के लिए चल रही सभाओं और गांव में निकलने वाले जुलूसों में जाने लगा। सन् 1942 के अगस्त में देवरिया के रामलीला मैदान में एक बहुत बड़ी सभा हुई। रामचन्द्र भी गांव के कुछ लोगों के साथ सभा स्थल पर पहुंच गया और सभा के बीच जमकर बैठ गया। जब लोग ऊंचे स्वर में यह नारा लगाने लगते कि "अंग्रेजो! भारत छोड़ो' तो रामचन्द्र भी चिल्ला उठता "अंग्रेजो! भारत छाड़ो' और फिर "वन्देमातरम्!' "भारत माता की जय' के नारे भी साथ-साथ लगने लगते। भाषण चल ही रहा था कि उसी समय पुलिस वहां पहुंची और लोगों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं। अनेक लोग गोलियों से घायल हो गए, कई शहीद भी हो गए। 12 वर्षीय बालक रामचन्द्र को भी कई गोलियां लगीं और वह "वन्देमातरम्' कहते-कहते रामलीला-मैदान में ही गिरकर बलिदान हो गया।

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