Friday 27 January 2017

मैंने लिखना क्यों शुरू किया

मैं एक साधारण सा आम आदमी हूँ... किसी भी विषय के पीछे उसका आंकड़ा खोजने नहीं जाता.. न ज्यादा ईस्वी और तारीख निकालने बैठता हु और ना ही बहुत वजनदार शब्दों को जानता हूँ.. मुझे हमेशा से लगता था कि जो सामने हो रहा है अगर उसकी वजह साफ़ है.. आरोपी सामने है तो उसको लिखने और बोलने के लिए इतना ड्रामा क्यों ? सीधा बोलो.. और दैनिक जीवन की जो भाषा आती है उसी में बोलो ताकि वो सबको अपने जैसी लगे...

जब टीवी पर और अखबारों में किसी विषय पर कुछ पढता तो दिमाग भन्ना जाता था.. क्योंकि दस पेज तक विषय की व्याख्या, इतिहास, दोष, फायदे, निदान आदि सब लिखकर भी ये नहीं लिख पाते थे कि इस्लाम ही आतंकवाद है और मुस्लिम ही आतंकवादी होते हैं... वामपंथी याने कंम्यूनिस्ट पार्टी ही नक्सलवादी है... पुलिस ही अपराधियों की सबसे अच्छी दोस्त है और कोर्ट में बैठा जज ही सबसे ज्यादा अन्याय करता है...

पूरा सेमीनार खत्म.. पूरी बैठक खत्म... घंटों चला टीवी का डिबेट भी खत्म.. स्टिंग ऑपरेशन भी खत्म ... पूरा का पूरा 2000 शब्दों का संपादकीय भी खत्म ... और सुनने, देखने , पढ़ने वाले का धैर्य भी खत्म लेकिन उस विषय का निचोड़, रस.. मुख्य आरोपी का कहीं अता पता ही नहीं.... ये देख कर हमेशा सोचता था कि इस विषय पर मैं बोल पाता.. अगर चार लोग भी सुन लेते तो मेरे अंदर का गुबार निकल जाता.. और इन मठाधीशों को औकात दिखा देता...

मुझे पता नहीं था ये मौका सोशल मीडिया से मिलेगा... लेकिन मिला.. दो साल तक पहले दूसरों को पढ़ा. . उनसे सीखा... लेकिन नक़ल नहीं की... खुद से सोचना शुरू किया ... मुझे लगा ये लोग भी बहुत सारे विषय हैं जो छोड़ देते हैं.. जैसे कोई सिर्फ धर्म पर ही लिखता है, कोई राजनीती के ही पीछे पड़ा है.. कोई नास्तिक बना बैठा है... मुझे हर चीज पर बोलना था, समझना था... बताना था... अपनी बात रखनी थी... वास्तव में मैं आम जीवन में इतना कम बोलता हूं कि शायद किसी को यकीन भी ना हो.. लेकिन दिल में तो इतनी बातें थी.. कि बस... कुछ लोग जो फ्रेंडलिस्ट में हैं वो चिढ़ते भी हैं.. कुछ मेरे एक शब्द की गलती पर मौके की ताक में रहते हैं .. ऐसा होता है.. ये ईर्ष्या की भावना.. ये लाइक्स, कमेंट की प्रतिद्वंदिता होती है.. पर मैंने इसके लिए नहीं लिखा... कभी लाइक्स नहीं भी मिले पर मैंने फिर भी पोस्ट हटाया नहीं.. मुझे जो अच्छा लगता है मैं पोस्ट करता हूँ.. आज मैं अपने पोस्ट को फेसबुक में नहीं बल्कि गूगल में सर्च मारता हूँ और वो मिल जाती है... जिनकी आईडी या पेज मैंने सुना तक नहीं... वहाँ भी मेरी वो पोस्ट पड़ी होती है... मुझे इससे ज्यादा क्या चाहिए... कि लोग सच का साथ देते हैं।

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