Thursday 5 January 2017

ज़ी न्यूज़ ने भी वेस्ट के नंगई वाले संस्कारों को जायज कहा

Zee news के "ताल ठोंक के" ... इसमें आज मुद्दा देश में हुयी छेड़खानी और जबर्दस्ती के ऊपर था.. मैं बड़ा निराश हुआ .. आज हर किसी ने इस डिबेट में गलत बोला.. हर कोई या तो लड़के का समर्थन करने को मन बनाये हुए था या लड़की का... यहां तक कि खुद रोहित सरदाना गलत बातें करने में नहीं चूके और वेस्टर्न पहनावे की पुरजोर वकालत की।
शाजिया इल्मी, तारिक फ़तेह, या एक मौलाना आदि सबने बहस के दौरान गलत बातें कही।

आखिर 1st जनवरी के समय शराब पीकर नाच रहे लोफर लफंगों के बीच लडकियां छोटे कपड़ों में जाकर क्या उनको भजन आरती की शिक्षा देने गयी थीं ? अगर गयी भी थीं तो क्या वो भजन करते ?

मैं असल में ये भी नहीं कहता कि कपडे ही जिम्मेदार हो सकते हैं.. मैं कहता हूँ एक ख़ास समय और माहौल में कपडे भी दोषी जरूर हो सकते हैं ... समझ आया ?? नहीं समझ आया तो आप भी महिला स्वतंत्रता को लेकर चीखिये।।

तारिक फ़तेह ने कह दिया कि भारत की परंपरा में शराब पीना है... उनको पता नहीं कि शराब और सोमरस में अंतर होता है.. दूसरी बात प्राचीन कहानियों में हमेशा शराब का जिक्र मदिरा शब्द के साथ आया है और ये हमेशा दानव, राक्षस या असुरों के जीवन में आया है, देवताओं के नहीं।

तीसरी बात है लड़के दोषी हैं 100 %, लेकिन दुर्भाग्य से लड़कियों को इसमें 1% का भी दोष नहीं दिया जाता.. यही समस्या की जड़ है।

दुनिया में अच्छे और बुरे लोग हमेशा से थे और रहेंगे.... जब लडकियां वासना जगाने वाले कपडे पहनेंगी तो जो अच्छे लोग होंगे वो अपने मन में आये कामुक भावनाओं को अपने अच्छे संस्कारों से दबा लेने में सक्षम होते हैं.. कम से कम उनका शरीर नियंत्रण में होता है.. उनकी सोच चाहे जो भी हो..

लेकिन इसी परिस्थति में बुरे लोग का शरीर नियंत्रण से बाहर होता है, उनके पैर स्वतः लड़कियों के तरफ बढ़ चलते हैं हाथ झपट्टा मारते हैं.. और वो रेप की कोशिश करते हैं या रेप कर देते हैं.. ये संस्कारविहीन लोग हैं, ये पाश्चात्य और इस्लामिक संस्कृति वाले लोग है, ये दारू सिगरेट गुटखा चरस अफीम कुछ तो लेते ही हैं। नशा एक बड़ा कारण है।

दिक्कत ये है कि जब कोई कपडे की बात करता है तो रोहित सरदाना या बुद्धिजीवी लोग टूट पड़ते हैं.. वास्तव में कपडे आप कहाँ और किनके सामने पहन कर जा रहे हो.. कहने का मतलब ये है.. आप जहां ऐसे कपडे पहन के जा रहे हो वहाँ सारे लोग आपके पहचान के हैं ? परिवार के लोग है ? क्या वहाँ सारे लोग आपके कहने पर आपकी सुनेंगे ? अगर भीड़ या कुछ ही लोग बेकाबू हुए तो क्या आप उस माहौल को नियंत्रण करने के लिए सक्षम हो ? क्या आपको पता है कि वहाँ कैसे कैसे (अच्छे या बुरे) लोग आने वाले हैं ? क्या ये सम्भव है कि हज़ार या सौ या 20 लोग भी कहीं पर हैं तो सब अच्छे संस्कारों वाले होंगे ? क्या आपने जल्दी सुना कि किसी बुर्के वाली के ऊपर भी नए साल में कहीं ऐसी कोशिश हुई ? मतलब ये है कि मुस्लिम ऐसा ज्यादा करते हैं और वो अपनी समाज की लड़कियों पर हमले नहीं करते.. दूसरा हिन्दू भी ऐसा सोचता है कि हमले के लिए हिन्दू लडकियां ही बेहतर है क्योंकि वो है ही ऐसी.. खुले विचारों वाली.. जिससे मौका मिलेगा।

सच बात ये है कि एक आंधी जो चली थी नग्नता की वो अब पूरी हो चुकी है इसलिए नंगई तो होनी ही है। अब नंगों के दौर में इज्जत बचाना है तो वो आपको खुद बचाना है .. बात अमेरिका और फ़्रांस की करेंगे तो पहले देख लीजिए कि यहां अमेरिका जैसे सिक्योरिटी syestem है क्या ? वैसे कानून यहां लागु होते हैं क्या ? आपने तो अमेरिकन स्टाइल अपना लिया पर यहां की पुलिस और सरकार तो वही 1947 वाली स्टाइल में है...

No comments:

Post a Comment