Thursday 28 July 2016

हिन्दू धर्म का प्रसार भारत के बाहर क्यों नहीं ?

कुछ अज्ञानी और विधर्मी यह सवाल करते हैं कि अगर हिन्दू धर्म कई हजार वर्ष पुराना है तो फिर भारत के बाहर इसका प्रचार-प्रसार क्यों नहीं हुआ?
इनको धरती का प्राचीनतम भौगोलिक नक्शा पता नहीं वरन ऐसा नहीं कहते। जब संपूर्ण धरती पर ही प्राचीनकाल में सिर्फ हिन्दू ही एकमात्र धर्म था तो इसके प्रचार-प्रसार का क्या मतलब।
खैर, सभी जानते है कि पहले ये धरती पूरी तरह जलमग्न थी। उस समय सिर्फ पानी वाले ही जंतु थे इंसान नहीं। इसके बाद जो पहले कठोर हिस्सा पानी से बाहर निकला वो हिमालय का भाग था। इस तरह से पूरी धरती पर साथ द्वीप निकले याने बने।

इन सातों द्वीपों को जम्बूद्वीप कहा जाता था। एक ही देश जिसके सात हिस्से थे। प्राचीनकाल में अफ्रीका और दक्षिण भारत के अधिकतर हिस्से जल में डूबे हुए थे। जल हटा तो यहां जंगल और जंगली जानवरों का विस्तार हुआ। यहीं से निकलकर व्यक्ति सुरक्षित स्थानों और मैदानी इलाकों में रहने लगा। यह स्थान उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के बीचोंबीच था जिसे आज हम अलग अगल नामों से पुकारते हैं। यह क्षेत्र दक्षिणवर्ती हिमालय के भूटान से लेकर हिन्दूकुश पर्वत के पार इसराइल तक था।

पुरे जम्बूद्वीप में सनातन धर्म याने हिन्दू धर्म का प्रचार प्रसार शिव के सात शिष्यों ने किया था। इसके बाद अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा, अथर्वा, वशिष्ठ, विश्वामित्र, भारद्वाज, मरीचि, कश्यप, अत्रि, भृगु, गर्ग, अगस्त्य, वामदेव, शौनक, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, नारद, विश्‍वकर्मा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, जमदग्नि, गौतम, मनु, बृहस्पति, उशनस (शुक्राचार्य), विशालाक्ष, पराशर, पिशुन, कौणपदंत, वातव्याधि और बहुदंती पुत्र आदि ऋषियों ने वैदिक ज्ञान की रोशनी को संपूर्ण धरती को नहला दिया। पहली बार लोगों ने धर्म के अनुसार चलना रहना और व्यवहार करना सीखा। दुनिया के हर हिस्से में आज भी हिंदुओं की निशानियां है। आज का जो भारत है वो तो सिकुड़ कर और गैरधर्मियों से हारते हारते हुआ है।

सिर्फ हज़ार साल पहले तक रूस हिन्दुराष्ट्र था। चीन का नाम हरिवर्ष था। मंगोलिया, अफगानिस्तान, नेपाल, पाकिस्तान, सब तो हाल के समय का इतिहास है। अब पाकिस्तान के बच्चे ही सौ साल बाद आपसे कहेंगे कि
भगवान पाकिस्तान में क्यों जन्म लिए ?

पहले ईसाई, मुस्लिम, यजीदी, पारसी, सिख कोई धर्म नहीं था। धरती पर दो ही अलग अलग तरह के मनुष्य थे.... सुर और असुर। और सबसे बड़ी बात असुरों का धर्म भी वेद याने सनातन धर्म ही था।

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