सुबह हुयी तो दलित भाई उठा, देवी माता मायावती का नाम लिया, और फिर नहा धोकर पास के मंदिर में चल पड़ा।
वहाँ जबरदस्त भीड़ लगी थी। सबसे आगे मोटे मोटे नेता टाइप लोग थे।
फिर माया चालीसा शुरू हुयी, इस चालीसा में सवर्णों को, हिन्दू धर्म को को खूब भला बुरा कहने वाले दोहे थे। सबने झूम झूम गाया।
इसके बाद आरती चालू हुयी। एक थाल में दीप की जगह नोट के बंडल रखकर दीप जलाये गए और महिमा गान फिर से हुआ। इस आरती को लेने में सिक्के डालने नहीं बल्कि उठाने थे, किसी किसी ने दो दो सिक्के उठाये। प्रसाद में मांस था, चूहे बकरी आदि का।
वहाँ एक साधू था, जो सबकुछ करवा रहा था वह कई सालों से उस मंदिर में लगे हथिनी और देवी मायावती की पूजा कर रहा था। सभी भक्त चले गए तो वो साधू फिर तल्लीन हो गया तपस्या में। रात हुयी तो सवर्णों को गाली देने वाला मन्त्र 1001 पढ़ा और दो सवर्णों का गला काटकर बलि चढ़ाई। सवर्णों के खून से जैसे ही देवी माया की मूर्ति को नहलाया गया, मायावती ने आँखें खोल दी।
आकाशवाणी जैसी आवाज से बोलीं..
" भक्त हम खुश हुये, ये लो बसपा का टिकट, बस मिटा दो हिन्दू धर्म और समाज को"
कहकर फिर मूर्ति बन गयी। साधू को तपस्या का फल मिला वो मनदिर छोड़ चला गया और दूसरे साधू ने मंदिर का कार्यभार संभाल लिया।
(आज से 50 साल बाद की सच्ची कहानी)
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