Sunday 1 November 2015

बच्चों को जरूर पढ़ाइये ये किताबें

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार बच्चे के प्रथम 7 वर्ष तक उसे हर तरफ से सहज रूप में जानकारी देना चाहिए। उसमें उत्सुकता और सीखने की लगन को बढ़ाना चाहिए। 7 वर्ष की उम्र तक उसे सभी ओर से भरपूर प्यार और दुलार मिलना चाहिए।

इसीलिए हम बताना चाहते हैं कि ऐसी कौन-सी किताबें हैं जिनकी कहानियों को बच्चों को सुनाने से उनमें हर तरह का ज्ञान और जानकारी का विकास होता है। इससे उनमें विचार और अनुभव करने की क्षमता का भी विकास होता है। आओ हम जानते हैं ऐसी 10 किताबें जिनको पढ़कर आपका बच्चा हर तरह की बातें सीख सकता है। उन किताबों की सभी कहानियां लगभग चित्रों के रूप में भी प्रस्तुत हैं और टेक्नोलॉजी के विकास के साथ ही अब वे एनिमेशन का भी रूप ले चुकी हैं।

संस्कृत नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान माना जाता है। पंचतंत्र एक विश्वविख्यात कथा ग्रंथ है। इस ग्रंथ के रचयिता पंडित विष्णु शर्मा हैं। मनोविज्ञान, व्यावहारिकता तथा राजकाज के सिद्धांतों से परिचित कराती पंचतंत्र की कहानियां दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। इस किताब का अनुवाद विश्व की लगभग हर भाषा में हो चुका है। इस किताब के आधार पर ही दुनिया में इसी तरह की अन्य किताबें लिखी गईं। पंचतंत्र को संस्कृत भाषा में 'पांच निबंध' या 'अध्याय' भी कहा जाता है।
पंचतंत्र का रचनाकाल : महामहोपाध्याय पं. सदाशिव शास्त्री के अनुसार पंचतंत्र के रचयिता विष्णु शर्मा थे और विष्णु शर्मा चाणक्य का ही दूसरा नाम था। चाणक्य ने ही वात्स्यायन नाम से कामसूत्र लिखा था। अतः पंचतंत्र की रचना चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में ही हुई है और इसका रचनाकाल 300 ईपू माना जा सकता है। लेकिन कुछ विद्वान ऐसा नहीं मानते। उनका कथन है कि चाणक्य का दूसरा नाम विष्णुगुप्त था, विष्णु शर्मा नहीं तथा उपलब्ध पंचतंत्र की भाषा की दृष्टि से तो यह गुप्तकालीन रचना प्रतीत होती है। महामहोपाध्याय पंडित दुर्गाप्रसाद शर्मा ने विष्णु शर्मा का समय अष्टम शतक के मध्य भाग में माना है, क्योंकि पंचतंत्र के प्रथम तंत्र में 8वीं शताब्दी के दामोदर गुप्त द्वारा रचित कुट्टिनीमत की फ्पर्यघ्कः स्वास्तरणम्य् इत्यादि आर्या देखी जाती है अतः यदि विष्णु शर्मा पंचतंत्र के रचयिता थे तो वे अष्टम शतक में हुए होंगे। हालांकि अधिकतर विद्वान मानते हैं कि श्री विष्णु शर्मा चंद्रगुप्त मौर्य के पश्चात ईसा पूर्व पहली शताब्दी में हुए होंगे। अरब में कैसे पहुंचा पंचतंत्र : डॉक्टर हर्टेल के अनुसार पंचतंत्र का अनुवाद छठी शताब्दी में ईरान की पहलवी भाषा में हुआ था। हर्टेल ने 50 भाषाओं में इसके 200 अनुवादों का उल्लेख किया है। छठी शताब्दी (550 ई.) में जब ईरान के सम्राट ‘खुसरू’ थे तब उनके राजवैद्य और मंत्री ने ‘पंचतंत्र’ को अमृत कहा था। आठवीं शताब्दी (मृ.-760 ई.) में पंचतंत्र की पहलवी अनुवाद के आधार पर ‘अब्दुलाइन्तछुएमुरक्का’ ने इसका अरबी अनुवाद किया जिसका अरबी नाम ‘मोल्ली व दिमन’ रखा गया। इस तरह पंचतंत्र की कहानियां मिस्र और योरप में भी प्रसिद्ध हो गईं और वहां की स्था‍नीय भाषा में इसका अनुवाद किया गया। यूरोप में इस पुस्तक को 'द फेबल्स ऑफ बिदपाई' के नाम से जाना जाता है। पंचतं‍त्र के बारे में : पंचतंत्र की कहानियां सभी विषयों को बड़े ही रोचक तरीके से सामने रखकर व्यक्ति को बहुत ही अच्छी सीख देती हैं। व्यावहरिक जीवन में इसकी कहानियां खूब सहायता करती हैं। पंचतंत्र की कहानियां बहुत जीवंत हैं। पंचतंत्र की ये कथाएं मानव स्वभाव को समझने और सावधानीपूर्वक व्यवहार करने की समझ का विकास करती हैं। प्रत्येक कथा जीवन को पढ़कर यह ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कैसे सफल हों। पंचतंत्र में 5 भागों में विभाजित कुल 87 कथाएं हैं जिनमें से अधिकांश प्राणी कथाएं हैं। प्राणी कथाओं का उद्गम सर्वप्रथम महाभारत में हुआ था। इस किताब के 5 तंत्र या विभाग हैं इसीलिए इसे पंचतंत्र कहा जाता है। ये भाग हैं- 1. मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव) 2. मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति (मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ) 3. काकोलुकीयम् (कौवे एवं उल्लुओं की कथा) 4. लब्धप्रणाश (हाथ लगी चीज (लब्ध) का हाथ से निकल जाना (हानि)) 5. अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें; हड़बड़ी में कदम न उठाएं)

****अगले पोस्ट में अगली किताब****(जारी)

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