Monday 10 October 2016

जब हमारे बगल में बसा मुस्लिम मोहल्ला तो..

बात बड़ी पुरानी है। ना कोई हिन्दू लहर थी ना हिंदुओं की कोई इज्जत। मैं माँ के साथ अपने शहर के एक "प्रभावती अस्पताल" में रहता था। माँ की सरकारी नौकरी थी तो क्वार्टर मिले हुए थे। अस्पताल के पीछे बाउंडरी पर बना था। बाउंडरी के पीछे जंगल था। कुछ साल बीते और जंगल की जगह एक मोहल्ला बसना शुरू हो गया।  देखते ही देखते मोहल्ले का विस्तार हुआ और इसका नाम था इनायत कॉलनी। जैसे जैसे मोहल्ले में आबादी बसती गयी, हमारी समस्या शुरू हो गयी। अस्पताल होने की वजह से बहुत सारी जगह खाली थी, मैदान थे। यहाँ बच्चे खेलते भी थे। अब वहाँ मुस्लिम लड़के आने शुरू हो गए।

अस्पताल में आकर क्वार्टर में रहने वाले परिवारों की बहन बेटियों से छेड़खानी करना, अभद्र इशारे करना, कमेंट करना आदि शुरू हो गए। मैं भी बाकी लोगों की तरह सेक्युलर मुझे क्या पता ये जान बूझकर इस इलाके में आते हैं जिधर हिन्दू रहते हैं ? वो हमेशा झुण्ड में होते। या बगल में इतना हज़ारों लोगों का उनका मोहल्ला था वो आवाज देकर तुरंत सभी लफंगों को बुला लेते।

अस्पताल में जो चौकीदार था उसे एक दो बार ये लोग पीट चुके थे। दूसरे ने भी जिन्होंने विरोध किये उसके क्वार्टर पर हमले करके पीट चुके थे। मुझे लगता था ये बस लोफर लड़के हैं जो ऐसा करते हैं। लेकिन अब हद होनी शुरू हो गयी थी, ये लोग शाम होते ही 20 -30 या 50 लड़के मैदान में आके जम जाते, बियर दारु की बोतलें होती और जुबान पर बहुत ही गंदे गंदे गालियां। लोगों का रहना मुश्किल होने लगा। बहन बेटियों का बाहर निकलना मुश्किल था।

अगर ये मामला आज के समय में मैं देखता तो समझता पर उस वक़्त समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है क्यों हो रहा है ? मैंने पुलिस में संपर्क किया, पुलिस वाले आये और रंगे हाथों इनको मैदान में पकड़ा लेकिन आश्चर्य की बात थी कि सिर्फ नाम पता पूछ के छोड़ दिया। कुछ दिन फिर शांति रही और फिर से वही ड्रामा चालू।

मेरी माँ तो ये सब समझती नहीं थी बात वो बराबर उलझ पड़ती थी। संयोग से माँ जिस पेशे में थी तो ना जाने कितने मुस्लिम परिवार का इलाज भी इनके हाथों से हुआ था इसलिए मुस्लिम भी बहुत लोग थे जो जानते पहचानते थे। एक बार की बात है जब दोपहर को दो तीन लड़के मैदान में सिगरेट फूंक रहे थे और माँ लौट रही थी तो उन लफंगों को देख फिर से उलझ पड़ी। मैं घर में था बाहर निकल पड़ा। वो तीनो लड़के मेरी माँ से उलझ पड़े थे आखिर मेरी माँ एक हिन्दू थी तो वो क्यों रेस्पेक्ट देंगे ?

बात बढ़ती जा रही थी.. माँ खूब खरी खोटी सुनाई जा रही थी... मेरा दिमाग खराब हुए जा रहा था... अचानक से इनायत कॉलोनी के एक घर एक मुस्लिम पुरुष की आवाज आई.. उन लड़कों के नाम लेकर उसने कहा..

"ए छोड़ दो.. "

अचानक से वो लड़के रुक गए, चुप हो गए, अपनी कॉलोनी की तरफ देखा... उस खिड़की की तरफ..जहां से आवाज आई थी....  मुझे कोई नजर नहीं आया पर शायद वो आवाज पहचानते थे.. इसके बाद वो लोग बिना कुछ कहे , वापिस अपने मोहल्ले में चले गए जैसे किसी ने आर्डर दिया हो।

मुझे कुछ समझ नहीं आया उस दिन.. आज जा कर समझ आया। बहुत कुछ समझ आया। इतने सालों बाद जाके समझा। हिन्दू के मोहल्ले में जाके काफिरों को परेशां करना, उनके बहन बेटियों से छेड़छाड़ करना, ये सब पुरे मुस्लिम समाज के तरफ से आदेशानुसार होता है... उस मोहल्ले की औरतें, बूढ़े बुजुर्ग, सबकी इसमें सहमति होती है। वो लोग अपने घरों से, खिड़की से, छतों से अपने बच्चों को अस्पताल परिसर में हुड़दंग मचाते खूब देखा करती थीं पर किसी ने कभी नहीं देखा कि कोई उनके घर के आदमी आया हो और चांटा मारकर ले गया हो।

मैं उस वक़्त लोकल न्यूज़ चैनल में काम करता था शायद इसी से कोई मुझे पहचान गया था और लड़कों को रोक लिया था।

सबसे बड़ी बात इनके अपने मोहल्ले में भी तो सैकड़ों बहन बेटियां थी, आखिर वहाँ पर हुड़दंग छेड़खानी कभी क्यों नहीं ? मुस्लिम लड़कियों के साथ क्यों नहीं ? ये पूरी तरह से योजनाबद्ध होता है, ये पूरी कौम के लोग इसमें हाथ बंटाते हैं, असल में हिंदुओं को टॉर्चर करना इनके लिए बुरा नहीं बल्कि अच्छा काम होता है।

उसके कुछ समय बाद ही मैं मल्टीमीडिया का कोर्स करने शहर से बाहर चला गया और माँ ने भी ट्रांसफर की वजह से क्वार्टर छोड़ दिया। मगर आज भी वो कुछ साल याद आते हैं जब इन्होंने बहुत मानसिक कष्ट दिए थे।

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