Sunday 30 October 2016

स्नाइपर राइफल से सबसे ज्यादा मौत बांटने वाला

1925 की बात है, सिमो हाया एक साधारण से दिखने वाले व्यक्ति थे। 19 साल के इस आदमी की लंबाई  5′ 3″ थी। 350 दिन की आर्मी ट्रेनिंग खत्म हो चुकी थी। असल में इनका फुल टाइम जॉब खेती करना था और पार्ट टाइम में सेना की नौकरी । ये reserved केटेगरी में थे। याने आपने ट्रेनिंग लिया है, और कभी यिद्ध छिड़ा तो सेना उस वक़्त आपको कॉल कर सकती है।

33साल उम्र हो चुकी थी अब इन्होंने पूरी तरह खेती अपना लिया था और साथ में शिकार करके जानवर लाते थे जिसके मांस बेचने का कार्य करते थे। अचानक एक दिन ऐसा आया जब राइफल उठानी पड़ी।

सोवियत यूनियन ने फ़िनलैंड में घुसपैठ कर दी थी। नवम्बर 1939 में 4 लाख सोवियत सैनिकों ने हमला किया , फ़िनलैंड के पास कुल मिलाकर सिर्फ 80 हज़ार सैनिक थे। इसे WINTER WAR के  नाम से जाना जाता है। सिमो हाया ने सेना के पास जाकर अपना नाम लिखवाया, चूँकि वो बन्दूक से जानवरों का शिकार किया करते थे, इसलिए उनको "स्नाइपर" टीम में शामिल किया गया। इसके बाद तो आगे सब इतिहास है।

इनके पास उस समय की Model 28-30 नाम की राइफल थी। इस समय किसी को नहीं पता था कि ये विरोधी खेमे में इतना आतंक मचा देंगे। कुल मिला कर ऑफिशली इन्होंने उस युद्ध में 503 सैनिकों को मार गिराया था।

इन्होंने ऊंचाई पर जहां मोर्चा लिया वो दूर दूर तक बर्फ से ढका हुआ था। इन्होंने स्पेशल सफ़ेद वर्दी पहनी थी।  जो इस तरह डिजाईन की हुयी थी बर्फ के बीच ये नजर नहीं आते थे। इसके बाद ये बर्फ में थोड़ा सा गड्ढा करके लेट जाते , ऊपर से बर्फ रखते। स्नाइपर राइफल को भी बर्फ के अंदर रखते और सिर्फ उसकी नाल ऊपर होती। यहाँन तक कि चेहरे पर भी सफ़ेद नकाब रखते थे जिसमें सिर्फ आँखों के पास दो छेद होते थे।

युद्ध के दौरान सोवियत को अचानक लगा कि उनके बहुत सैनिक नहीं हैं, उन्होंने सोचा, युद्ध ही चल रहा है तो शायद मारे गए होंगे। लेकिन जल्दी ही एक खबर आयी कि कोई स्नाइपर है जिसे लोग "WIND OF DEATH" के नाम से बुलाते हैं उसी ने उनके सैनिकों को मारा है। इसके बाद सोवियत यूनियन ने भी फिर कुछ अपने स्नाइपर सैनिकों को भेजा पर कोई लौट कर नही आया... अब सिमो हाया मौत का दूसरा नाम बन चुके थे।

इसके बाद इसे मारने के लिए एक पूरी बटालियन भेजी गयी... और वही हुआ जिसका डर था... बहुत ही बड़ी क्षति हुई... बड़ी संख्या में सैनिक मारे गए और सिमो हाया का पता भी नही चला। अंत में सिमो पर बम्ब से हमले करके मारने को दल भेजा गया पर वो भी नाकाम रहे। अब तक सिमो के कई नाम पड़ चुके थे.. जिसमें "WHITE ऑफ़ DEATH" काफी प्रसिद्ध हुआ।

माना जाता है इनके कपडे ने इनकी सफलता में बड़ा योगदान दिया। ये सभी को देख सकते थे पर मीलों फैले बर्फ ये कहाँ पर हैं कोई देख नही पाता था। बर्फ में दबे इनके ऊपर निशाना लगाना भी सम्भव नहीं था, इनके अंदर नेचुरल निशानेबाजी की कला थी। बर्फ के अंदर से शांत स्थिर साँसों के साथ अपनी बाज जैसी आँखों से इन्होंने काफी ज्यादा सैनिक मारे लेकिन ऑफिशली 503 दर्ज है। स्नाइपर राइफल में सबसे ऊपर इनका ही नाम है। किसी ने सोचा नहीं था कि इतनी कड़ाके की ठंड में कोई बर्फ के अंदर पड़ा होगा।

बाद में युद्ध खत्म हुआ। दोनों देशों में अमन चैन हुयी तो खुद सोवियत सैनिकों ने इनसे कुछ दिन की ट्रेनिंग देने के लिए आग्रह किया। 96 साल की उम्र में 2002 को निधन हुआ। इनकी उस राइफल को लोग संग्रहालय में आज भी उत्सुकता से देखते हैं।

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