Friday 7 October 2016

लाखों हिंदुओं का हत्यारा पीर बाबा की भक्ति

सन् 711 में सिंध के राजा दाहिर को हराने के बाद मुस्लिम सुल्तानों के पैर सिंध में जम गये थे। लेकिन वे कभी अपने राज्य का विस्तार नहीं कर सके, क्योंकि गुजरात और राजपूताना के राजा बप्पा रावल और उनके वंशजों ने कभी उनको सिंध के पूर्व में आगे नहीं बढ़ने दिया
उस समय की परिस्थितियों में 300 वर्षों से अधिक समय तक इस्लामी आँधी को रोक रखना भी मामूली बात नहीं थी।

कासिम के बाद भारत पर पहला बड़ा आक्रमण गजनी के सुल्तान महमूद ने किया था, प्रेरणा मिली कि इस्लाम को भारत में फैलाया जाये। उसने सुना था कि भारत के मन्दिरों में बहुत दौलत है और वहाँ के राजााओं के पास भी अकूत सम्पत्ति है, इसलिए वह दौलत लूटने के साथ ही इस्लाम को फैलाना चाहता था. महमूद गजनवी ने भारत के विभिन्न भागों पर 17 बार आक्रमण किये थे। कभी लाहौर, कभी कश्मीर, कभी राजपूताना के कुछ क्षेत्र उसने जीते भी, उसने मथुरा, कन्नौज तक भी धावे किये, लेकिन कभी वह अपने पैर नहीं जमा सका और हर बार उसे तुरन्त ही वापस भागना पड़ा।

इसका कारण यह था कि वह अचानक ही किसी स्थान पर धावा करता था और आसपास के शासकों को इकट्ठे होने का मौका नहीं मिलता था, लेकिन जैसे ही वे एक साथ मिलकर उसके मुकाबले को आते थे, वैसे ही वह लूट का माल और अपनी जान लेकर वापस भाग जाता था।

1024 में अपने 17वें आक्रमण में वह अपनी सारी सेना के साथ आया और इस बार उसका लक्ष्य था सोमनाथ का विश्व प्रसिद्ध मन्दिर, जहाँ की दौलत के बारे में उसने बहुत सुन रखा था। उस समय तक बप्पा रावल के वंशज भी कमजोर हो गये थे और कई राज्यों में बँट गये थे
महमूद को सोमनाथ में जीत आसानी से नहीं मिली। गुजरात और राजपूताना के शासकों और जनता ने उसका जमकर मुकाबला किया, हजारों-लाखों हिन्दुओं ने अपने प्राणों की बलि दी।

लेकिन कुछ लोगों की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और विश्वासघात के कारण वह सोमनाथ पर कब्जा करने में सफल हुआ। उसने सबसे पहले मन्दिर के पुजारियों को मारा और सारी सम्पत्ति लूटने के साथ ही वहाँ के शिवलिंग को भी तोड़ डाला।

मूद ने खुलकर कहा था कि ”मैं बुतशिकन (मूर्तिभंजक) हूँ, बुतपरस्त (मूर्तिपूजक) नहीं।“ वह हिन्दुओं से कितनी घृणा करता था, इसका पता इस बात से चलता है कि उसने शिवलिंग के टुकड़ों को खच्चरों पर लदवाकर गजनी भेज दिया था, जहाँ उनको एक प्रमुख मस्जिद की सीढि़यों पर लगा दिया गया, ताकि उन पर नमाज पढ़ने आने वालों के पैर पड़ें। वे टुकड़े आज भी वहीं लगे हुए हैं।

लगभग 5 वर्ष बाद उसके भांजे सालार मसूद ने भारत पर स्थायी कब्जा करने की नीयत से लगभग 1 लाख सैनिकों की सेना के साथ भारत पर आक्रमण किया था और समूचे उत्तर भारत को पार करते हुए बहराइच तक पहुँच गया था। उसका उद्देश्य वाराणसी के विश्वविख्यात विश्वेश्वर महादेव के मन्दिर को तोड़ना और उसकी सम्पत्ति को लूटना था। लेकिन बहराइच में घाघरा के किनारे 22 हिन्दू राजाओं की सेनाओं ने राजा सुहेलदेव पासी के नेतृत्व में उसकी सारी सेना को गाजर-मूली की तरह काट डाला।

लेकिन सालार मसूद की कब्र गाजी बाबा के नाम से पूजी जाती है और सुहेलदेव जी को कोई जानता तक नहीं।

यह गौरवशाली कहानी स्वतंत्र भारत के इतिहासकारों ने जानबूझकर छिपायी है। लेकिन सत्य कभी हमेशा छिपा नहीं रह सकता। अगली बार इस युद्ध का विस्तार वर्णन।

No comments:

Post a Comment