कोई भी प्रधानमंत्री इससे पहले इतनी निर्भीकता से हिन्दू त्यौहार नहीं मनाया करता था। चुपके से एक फॉर्मेलिटी के रूप में देशवासियों के नाम एक "बधाई संदेश" प्रसारित हो जाता था बस।
इसके विपरीत जैसे ही ईद या बकरीद आती थी तो छम्मकछल्लो बन के उछल उछल कर टोपी लगाते और नाच नाच कर सेवैयियों की दावतें देते और खाते थे। ये सब हरकतें ऐसा महसूस कराती थी कि हिन्दू संस्कृति दोयम दर्जे की है और मुस्लिम ही सबसे बड़ी प्राथमिकता हैं।
अब उल्टा हो गया है, जो सचमुच दोयम दर्जे के हैं उनके साथ वैसा ही किया जा रहा है। पहले झूठ को सच दिखाने के लिए ऐसे नाटक किये जाते थे और अब तो खुलेआम कभी वैष्णो देवी, कभी पशुपतिनाथ, कभी काशी के घाट, कभी कामाख्या, दुर्गा पूजा के खुले मैदान में प्रधानमंत्री नजर आते हैं। समय बलवान होता है, लेकिन ये बलवान बनाया है हिंदूवादियों ने, अब गर्व करने का समय तो है।
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