Sunday 23 October 2016

मेरे गाँव की क्रिकेट लाइफ

अब तो क्या रविवार और क्या सोमवार.. हर दिन एक ही जैसा है। स्कूल के दिनों में जरूर शनिवार और रविवार का इंतज़ार होता था। 10 बजे से स्कूल शुरू होता और 4 बजे तक चलता फिर आधे घंटे में जल्दी से घर जाता और बैट बॉल निकाल दो घंटे के लिए मैदान में।
स्कूल से कॉलेज में गया.. समय बीतता गया मगर क्रिकेट नहीं छूटा... हाँ बीच में मार्शल आर्ट सीखने का समय आया तो इस दौरान 7 साल के लिए क्रिकेट छूट गया। 7 साल बाद जब यूँही वापिस एक दिन क्रिकेट खेलने को मिला तो पहली बार टेनिस बॉल से खेला.. कौर्केट बॉल, ड्यूज बॉल आदि का ज़माना जा चूका था। टेनिस बॉल के आने से खेल भी बदल गया था अब ग्रोउंडेड शॉट नहीं बल्कि उड़ा के मारने वाला ही अच्छा खिलाडी था।
सुबह में अगर आप 6 से 9 खेल ही लेते हैं तो क्या जाता है? फिटनेस खिलाडियों वाली बनी रहती है।
मैं भी खेलता था सुबह में। एक टीम थी जिसमे ज्यादातर व्यापारी लोग थे, 9 बजे लौट जाते हैं फिर नहा धोकर 11 बजे तक दूकान खोल देते हैं।
हाँ तो मुझे टेनिस बॉल से खेलने में बड़ी परेशानी आयी मैं उसे ग्रोउंडेड शॉट मारता था पर जल्दी ही खेल को बदल लिया.. दुबला पतला तो था लेकिन मार्शल आर्ट से कलाई और कंधे के अंदर जो ताकत आयी थी वो यहाँ पता चला... जब मेरे लगाए शॉट मैदान के बाहर गिरने लगे।

रविवार को मैच खेलते थे.. मेरा डाउन था 3rd या 4th...  एक दो बार नहीं बल्कि कई बार ऐसी पारियां खेली और मैच जिता कर दिया था कि सभी मेरे फैन थे, और आप जिसके खिलाफ खेलते हैं वो भी फैन हो जाते हैं धीरे धीरे शहर और उससे बाहर भी सभी जानने लग गए। ऐसे कई किस्से हैं क्रिकेट के जो यादगार हो गए। एक बार यूँही खेलते हुए इतने सार छक्के मार दिए कि खेल के बाद मेरे एक दोस्त ने कहा.. क्या भाई तुमने तो भीड़ लगा दी.. उधर देख .. सारे लोग अपना खेल छोड़ तेरी बैटिंग देख रहे हैं...
टीम में अगर मैच के दौरान अगर 2 या तीन विकेट जल्दी गिर जाते तो सभी यही कहते कि "तो क्या हुआ अभी समीर भैया तो हैं ना ".... लेकिन मैं आम आदमी ही था ऐसे हालात में हालत खराब होती थी लेकिन ऐसे ही हालात में अच्छा खेलने की वजह से तो सभी को इतना विश्वास था।
चूँकि शहर के सभी क्रिकेट खेलने वाले अब जान ही चुके थे तो मैच में सबका टारगेट मैं ही रहता था.. कि बस इनको आउट कर दो और मैच जीत लो... 
लेकिन ये क्रिकेट है कभी कभी जल्दी भी आउट होता, मैच भी नहीं जीतते.. लेकिन ज्यादातर मौकों पर मैंने वन मैन आर्मी की तरह मैच जितायी थी।
मुझसे सब इसलिए परेशां थे कि चाहे ऑफ साइड में बॉल दो या फ्रंट साइड में या लेग साइड ... कहीं से समस्या नहीं थी।
एक टूर्नामेंट ऐसा भी था जहां मेरी टीम हारती गयी और मैं मैन ऑफ द मैच का पुरुस्कार फिर भी लेता गया।
एक बार एक मुल्ले की टीम से मैच खेल रहा था, एक मुस्लिम से थे सारे.. इतना धोया कि उसका मुल्ला कप्तान अपने गेंदबाज पर झल्लाने लगा.. आखिर में गेंदबाज और कप्तान में ही लड़ाई हो गयी.. गेंदबाज ने कहा कि हर तरह की हरेक साइड गेंद फेंक चूका हूँ.. और क्या करूँगा..जिधर गेंद फेंकता हूँ बाउंडरी मार देता है , ज्यादा समझता है तो खुद बॉल कर ले ?

किस्से हैं... कहानी है.. वो भी अनंत... .. शायद आप सभी के भी होंगे अगर क्रिकेट खेल होंगे.. हर बार मैदान में दोस्तों के बीच ख़ास घटना घटती ही है। अब करीब 12 साल से क्रिकेट नहीं खेला.. सब दूर हो गए, जॉब में लग गए.. कुछ के शरीर इतने lazy हो गए कि अब वो लोग खेल भी नहीं सकते।

इस बार जब घर लौटा था एक दिन फील्ड में गया.. देखा सभी नए बच्चे थे.. एक समय था जब मेरे फील्ड में घुसते ही सभी लोग पहचान लेते थे पर अब नए बच्चे थे कोई मुझे नहीं जानता था.. उस समय के सारे लोग replace हो चुके थे।
काश फिर से वो समय आ जाता जब सुबह सुबह दोस्त मुझे खिड़की से आवाज देते थे.." भैया.. जल्दी चलिए.. सब इंतज़ार कर रहे हैं फील्ड में"
::यादें::

No comments:

Post a Comment