Tuesday 25 October 2016

जब आडवाणी ने गोली का जवाब गोली से देने की योजना बनायी थी

आडवाणी जब भारत के गृहमंत्री थे, तब उन्होंने इज़रायल की खुफिया एजेंसी मोसाद (इसके बारे में पिछले पोस्ट में बता चुका हूँ) को भारत में अपना जाल फैलाने की इजाज़त दी थी. कहा जाता है कि इसके पीछे पाकिस्तान को तबाह कर जम्मू-कश्मीर को आजाद कराने की आडवाणी की छिपी हुई हसरत काम कर रही थी.
आडवाणी ने न केवल मोसाद को खुली छूट दी बल्कि भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ को अपनी तहकीकात में मिलने वाली पाकिस्तान के खिलाफ सभी सूचनाओं को मोसाद के साथ साझा भी करने का करार किया. बीजेपी सरकार ने एक खास मानसिकता के तहत भारत में इज़रायल की मदद से इस्लामिक आतंकवाद के जवाब में उसी तरह से जवाब देने की कोशिश की. इसके लिए बहुत बड़ा खुफिया जाल इज़रायल और अमरीका के सहयोग से भारत में बिछाया गया.

इस तरह बीजेपी सरकार के कार्यकाल के दौरान भारत में रॉ, सीआईए और मोसाद का गठजोड़ बना. इस गठजोड़ का आधार ये है कि दोनों देशों का दुश्मन एक ही है. मतलब इस्लामिक आंतकवाद और पाकिस्तान. बीजेपी सरकार ने इज़रायल और अमेरिका के साथ मिल कर आतंकवाद और पाकिस्तान के खिलाफ स्ट्राइक एंड क्रश यानी हमला करने और कुचलने की नीति बनायी. इस तरह भारत में मोसाद ने अपने पैर जमाने शुरू किये.

भारत की खुफिया एजेंसी और मोसाद के बीच सहयोग बढ़ा. भारत और इज़राइल के बीच इस समझौते के लिए आडवाणी ने गृहमंत्री रहते सन 2000 में इजरायल का दौरा भी किया था.

बताया जाता है कि इसके बाद भारत, इज़रायल और अमेरिका की खुफिया एजेंसियों और कट्‌टर धार्मिक नेताओं के साथ बैठकों का दौर शुरू हो गया. आपको जानकार आश्चर्य होगा कि इस बैठक में आरएसएस के मुखिया, यहूदियों के मुखिया ने कई बार भाग लिया था जिसके रिकॉर्डिंग मोसाद के पास है।

मोसाद की मदद के लिए सीआईपीयू यानी सेंट्रल इंटेलीजेंस प्रोसेसिंग यूनिट बनाया गया. इसमें आईबी, सीबीआई, बीएसएफ और होम मिनिस्ट्री के उच्च अधिकारी सीधे तौर पर शरीक थे. अपनी योजना को आधिकारिक रूप देने के लिए पिछले दरवाज़े से वर्ल्ड कौंसिल ऑफ रिलीजस लीडर्स का गठन हुआ और हिंदू-यहूदी समिट का सिलसिला शुरू हुआ.

जिस तरह से हिन्दू धर्म की वजह से आरएसएस की स्थापना हुई उसी तरह यहूदी धर्म की वजह से मोसाद का गठन हुआ था।

5-7 फरवरी, 2007 में पहला यहूदी-हिंदू लीडरशिप समिट हुआ. दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में इसका आयोजन किया गया. इसमें हिंदुओं की तरफ संघ से जुड़े और उसके नजदीकी 30 धर्माचार्यों ने हिस्सा लिया. कुल मिलाकर ये आडवाणी थे जिसने इस तरह से आतंकवाद से लड़नी की सोची और एक पूरा प्लान बनाया।

आडवाणी जी ने जिस आक्रमकता से आतंकवाद से निपटने के लिए प्लान तैयार किया था वो सब अगले चुनाव में बीजेपी के हारते ही लहूलुहान हो गया। कांग्रेस अपने आतंकवाद और मुस्लिम प्रेम के लिए ही जानी जाती है। कांग्रेस ने तुरंत भारत में मोसाद को कमजोर किया और बोरिया बिस्तर समेटना को कहा क्योंकि आतंकवाद निपटाने में कई कांग्रेसी जो मुस्लिम नेता थे उनके भी निपटने का खतरा था।

कुल मिलाकर गृहमंत्री आडवाणी जी की सारी मेहनत पर देशवासियों ने गलत वोटिंग करके पानी फेर दिया वरना आज शायद कश्मीर की समस्या का हल हो गया होता और पाकिस्तान भी अपनी औकात में होता। आज फिर से आडवाणी जैसी सोच लेकर ही मोदीजी और राजनाथ आतंकवाद से निपट सकते हैं , आतंकवाद शुद्ध तौर पर धार्मिक आतंकवाद है इसे सेकुलरिज्म और संविधान से नहीं निपटा जा सकता।

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