Sunday 2 October 2016

जब मथुरा के हर घर में हथियार के साथ डट गया हिन्दू

जो लोग हिंदुओं पर यह कह कर सवाल उठाते हैं कि युद्ध के समय में लोग महंगाई का रोना रोयेंगे उन्हें इतिहास की ये सच्ची कहानी जरूर पढ़नी चाहिए कि कैसे अकबर के खिलाफ लड़ने वाले सैनिकों के लिए पूरे शहर ने घर के एक एक अन्न को उनके नाम कर दिया था, खुद भूखे रहते पर सैनिकों को भूखे नहीं रहने देते थे। पढ़िए इस गौरवशाली लड़ाई को जो मथुरा के मंदिरों के विध्वंस से शुरू हुआ।

अकबर ने मथुरा के मंदिरों को तोड़ कर मस्जिद बना दी थी । वहाँ अकबर का ही शासन था। आपको विश्वास नहीं होगा कि मथुरा 350 सालों तक मंदिरविहीन रहा। वहाँ की कई पीढ़ी पूजा पाठ ना कर सकी। बस कृष्ण की जमीन पर बनी मस्जिदों को देख कर मन ही मन रोया करते थे। इसी बीच एक घटना हुई कि राजा मानसिंह बंगाल विजय कर लौटे, अकबर ने कुछ मांगने को कहा और फंस गया। मान सिंह ने मथुरा की रियासत मांगी, जो फिर मज़बूरी में देनी पड़ी।

मथुरा से मुग़ल फौजें हटा ली गयी पर निगरानी के लिए काजी व् अन्य बने रहे, इस मौके के इंतज़ार में हिंदु कब से बैठे थे, रातों रात मस्जिद गिरा दी गयी और श्रीकृष के मंदिर बनने शुरू हो गए, निःशुल्क श्रमिकों का रेला उमड़ पड़ा। अब यहां सैनिक थे आमेर कछवाहा जो हिन्दू धर्म से थे। जल्दी जल्दी में मूर्ति कौन बनाता सो शिवलिंग की स्थापना कर दी गयी। ना जाने कितने सालों के बाद लोगों ने मंदिर देखा था सो भारी भीड़ उमड़ पड़ी। आगरे से एक-दो जत्थे धर्मांध मुस्लिम सैनिकों के आए भी, लेकिन जोश से भरे हजारों दर्शनार्थियों के बदले तेवर देख चुपचाप खिसक लिए। अब यहां से कहानी शुरू हुई।

शेख अब्दुल नबी सदर ने फरमान जारी किया कि बिना इजाजत बन रहे मथुरा के मंदिर को तोड़ दिया जाए, साथ ही दो हजार मुगल सैनिक मथुरा रवाना कर दिए। आगरा से उड़ी खबर मथुरा पहुंची, अब मंदिर तोड़ दिया जाएगा...! आग की तरह खबर गांवों में फैल गई। मथुरा के चहुंओर बसा 'अजगर' फुफकार उठा। अ से अहीर, ज से जाट, ग से गड़रिए और र से राजपूत सिर पर कफन बांधकर मथुरा पर उमड़ पड़े।

जन्मभूमि परिसर और मथुरा की गलियां भर गईं। जैनों, अग्रवालों, कायस्थों ने धन की थैलियां खोल दीं। मथुरा का हर हिन्दू घर रसोड़ा बन गया। हिन्दू देवियां रात-दिन पूड़ी-साग बनातीं और उनके मरद हाथ जोड़-जोड़ मिन्नतें कर बाहर से आए धर्मयोद्धाओं को खिलाते। वणिकों की गाड़ियां घर-घर आटा बांटती फिरतीं। सारा मथुरा उत्सव नगर बन गया था।

मुगल दस्ता मथुरा पहुंचा तो गली-मोहल्लों में खचाखच भरे हथियारबंद हिन्दुओं को देख सहम गया। तब घूमकर मुगल घुड़सवार जन्मभूमि पहुंचे। वहां भी हिन्दू जनता अटी पड़ी थी। मुगलों को जन्मभूमि की ओर जाते देख मथुरा के कछवाहा सैनिक भी घोड़ों पर बैठ उसी ओर चल दिए। कछवाहा सैनिकों को देख मुगलों की हिम्मत बंधी। मुगल सरदार ने ऊंची आवाज में परिसर में खड़े हिन्दुओं से कहा- 'आप लोग यह जगह खाली कर दीजिए, यहां बिना इजाजत काम हो रहा है, नहीं तो खून-खराबा हो जाएगा।

लेकिन कोई टस से मस नहीं हुआ। ये तो मौत को गले लगाने आए थे, कौन हटता, कौन मां का दूध लजाता? तब मुगलों ने तलवारें सूंत लीं। परिसर में खड़े हिन्दू भी गेती-फावड़े, लाठी-बल्लम, पत्थर-ईंट जो भी मिला, लेकर सन्नद्ध हो गए। मुगल घुड़सवार हमला करें, उसके पूर्व ही कछवाहा सैनिक तलवारें खींच मुगलों और जनता के बीच आ गए। कछवाहा सरदार ने मुगल सालार से कहा- '‍मियां! एक भी हिन्दू को हाथ लगाने की ‍हिम्मत की तो तुम्हारी यहीं कब्रें बना दी जाएंगी।'

इस बदली परिस्थिति में मुगल चकरा गए। जनता से तो जैसे-तैसे भिड़ लेते, लेकिन शाही कछवाहा सैनिकों से पार पाना कठिन है। सारी जनता इनके साथ है। गनीमत इसी में है कि लौट चला जाए। और बागें मुड़ गईं, मुगल जैसे आए थे, वैसे ही लौट चले।

इसके बाद अगर आप पढेंगे तो आपको समझ आएगा कि अकबर ये खबर पाते ही समझ गया था ये महाविनाश की शुरुआत है। हालाँकि चौबे का क़त्ल करवाया गया, पर यहाँन से जो विद्रोह शुरू हुआ वो सल्तनत को आखिर में उड़ा ही ले गया।

जो आर्यसमाजी कहते हैं मंदिर और मूर्ति से क्या होता है उन्हें ये सच्चा इतिहास पढ़ और समझ लेना चाहिए, कि कैसे एक मंदिर लाखो करोड़ों हिंदुओ को मरने और मारने के संकल्प से भर देता है।

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