Sunday 30 October 2016

मुसलमानो की भयंकर मूर्ति पूजा

मुस्लमान हमेशा कहते हैं कि हम मूर्ति पूजा नहीं करते लेकिन .....
** अल्लाह की कोई भी प्रतीक चिन्ह बनाना बुतपरस्ती के तहत आता है चाहे वो मस्जिद बनाना हो या अल्लाह का नाम लिखना हो अथवा 786 लिखना हो

** काबा की तरफ मुंह करके नमाज या ध्यान लगाना ठीक वैसा ही है जैसे मूर्तिपूजक मूर्ति की तरफ ध्यान लगाते हैं

** हजरे असवाद को चूमना ठीक वैसा ही है जैसे क्रिश्चन JISUS का लॉकेट चूमते हैं.

** काबा के पत्थर को छूना क्या ठीक वैसा ही नहीं है जैसे हिन्दू शिवलिंग छूते हैं ....?????

** 86 या अल्लाह लिखना क्या हम हिन्दुओं के ॐ या स्वास्तिक लिखने की नक़ल नहीं है...???????

** ज़मज़म के पानी को पवित्र मानना क्या हुबहू हम हिन्दुओं के गंगा को पवित्र मानने जैसा नहीं हैं ?

** काबा में हिन्दुओं की तरह बिना सिलाई वाला एकरंगा कपडा पहनना , मक्का में मुंडन करवाना ..... ये सब क्या है...???

** चाँद - तारे को अल्लाह का चिन्ह मानना क्या है ...????

** दरगाह पर सड़े गले लाश के सामने अल्लाह -मौला का भजन गला फाड़ -फाड़ कर गाना............ क्या है...????

** आदम को अल्लाह का image मानना .....क्या है....????

** नबी (रसूल या मुहम्मद ) ,अपने माता- पिता या किसी व्यक्ति का सम्मान करना क्या पूजा की श्रेणी में नहीं आता है....????

दरअसल ये लोग हिन्दू ही थे सबकुछ अलग और विपरीत नियम बनाए लेकिन तरीका वही रह गया उसे बदलना संभव नहीं हुआ ..

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