बाजी राउत के पिता का नाम हरी राउत था। बाजी अपने घर की पांचवीं सन्तान थे। वह छोटी उम्र में कुशल नाविक की भांति नाव चलाता था। मछली पकड़ना उसने अपने पिता से सीखा था और यही उसके परिवार का व्यवसाय भी था। लेकिन जैसे ही वह कुछ जानने और समझने लायक हुआ, पिता का आश्रय उसके सिर से उठ गया। इसी समय अंगुल, ढेंकनाल और आस-पास के क्षेत्रों में अंग्रेजों का विरोध तेजी से हो रहा था।
11 नवम्बर 1938 को बाजी अपनी नाव से मछली पकड़ रहा था। इसी दौरान कुछ अंग्रेज सिपाही आए और उससे कड़क आवाज में ब्राह्मणी नदी पार कराने को कहा। वे लोग कुछ ग्रामीण आंदोलनकारियों को मारकर भाग रहे थे। सिर्फ 12 साल के बाजी ने अंग्रेजों के लिए चप्पू चलाने से मना कर दिया। किसी धमकी का कोई असर नहीं हुआ।
अंग्रेजों ने गुस्से में आकर उन्हें गोली मार दी। महज 12 साल की उम्र में देश के लिए वो शहीद हो गए। इतिहास में इन्हें सबसे कम उम्र का बलिदानी माना जाता है। दुःख की बात है कि इनके गाँव में आज भी बिजली पानी सड़क आदि की कोई अच्छी सुविधा नहीं है।
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