Wednesday 10 August 2016

क्या करें हिंदूवादी ? ?

हिन्दू अपने देश में कमजोर हैं..... अब सच तो यही है। पर अब ये नहीं होगा इसकी तैयारी करनी चाहिए।

सबसे सीधा रास्ता है, अपने जैसे लोगों को तैयार करके जबर्दस्त एकता का परिचय देना होगा। हमारी सहायता के लिए कम से कम इस वक़्त ना सरकार है, ना पुलिस, ना नेता, ना कोई जाति समूह, ना दूसरे मजहब के लोग।। विश्वास ना हो तो कश्मीरी हिंदुओं को देख लो, इनके तरफ से कोई नहीं है।

जातिवाद मिटायेंगे, दलितों में हिंदुत्व का भाव जगायेंगे, ये सब फालतू की बात है, ये कार्य हज़ारों साल में नहीं हुआ था, जिन दलितों को या किसी भी जाति को समझदारी होगी वो खुद जुड़ेगा, हम इतना कर सकते है कि भेदभाव नहीं करेंगे। इससे ज्यादा क्या करेंगे ? वैसे भी अब ये सब पुरानी बात है, बस इसे खींचा जा रहा है, मुफ्त की सुविधा और वोट के लिए।

सवर्णो की समस्या है कि वो इस्लाम कभी इस्लाम स्वीकार नहीं कर सकते, जबकि दलितों के सामने ये समस्या नहीं है, वो बौद्ध धर्म में जा सकते हैं तो इस्लाम में क्यों नहीं ? ? तो समस्या ख़ास लोगों को ही है और शुरुआत इनको ही करना पड़ेगा।

जब बात करते हैं शुरुआत की तो लोग डर जाते हैं क्योंकि वो लड़ना नहीं चाहते, घायल होना या संपत्ति का नुक्सान नहीं चाहते, लेकिन वो तो एक दिन होना ही है चाहो या मत चाहो। बावजूद इसके मैं किसी ऐसी लड़ाई की बात नहीं कह रहा, क्योंकि ये वक़्त ऐसी लड़ाई का है भी नहीं। जिस दिन शारीरिक लड़ाई का वक़्त आयेगा उस दिन तो आपको ना चाहते हुए भी हथियार के साथ बाहर कदम रखना पड़ेगा।

फिलहाल लड़ाई मानसिक है, इसको लड़ना पड़ेगा, इस वक़्त वो लोग खुद को मजबूत करने में लगे हैं, क्योंकि उनका लंबा प्रोग्राम एक योजना के तहत चलता है, जैसे कि नए नए मस्जिद बनाना, मोहल्ले बढ़ाते जाना, बाजार के ज्यादातर दूकान खरीदना या किराया पर लेना, सऊदी में किसी सदस्य को भेजकर यहाँ अमीर होना, कट्टरता का विस्तार , आतंकियों का समर्थन और अपने स्तर से सहायता, और इन सबके लिए अपने नेताओं की संख्या राज्यसभा व् लोकसभा में बढ़ाना इत्यादि।

आप क्या कर रहे हैं ? आप भी कीजिये। मंदिरों में दान देते हैं, थोड़ा सा हिन्दू संगठनों को दीजिये, 50 रूपये ही दीजिये, 100 रुप्येही दीजिये। सबसे ज्यादा कमजोर हिन्दू यहीं से है जबकि सबसे ज्यादा अमीर लोग देश में हिन्दू ही हैं। पर कोई धर्म के लिए सही जगह 100 रुपये नहीं देना चाहता। साईं बाबा पर रुपये , सोना चांदी चढ़ाते हो , दंगे में साईं बाबा बचाने नहीं आएंगे। उस वक़्त वो छोटे छोटे संगठन ही बचाने आएंगे जिनको आपने कभी एक रूपया नहीं दिया होगा पर जान की कीमत उनके ऊपर निर्भर होगी।

अभी की लड़ाई सिर्फ ताकत बढ़ाने की चल रही है, इसमें हमसब पीछे है क्योंकि कोई गाइड लाइन नहीं है। अभी से कमाते रहिये, जैसे जी रहे हैं वैसे ही जीते रहिये लेकिन थोड़ा परिवर्तन करने का समय है। अगर भविष्य देख सकते हो तो देखो, तुम्हारे और उनके बीच सिर्फ तुम्हारी 'जनसंख्या' है इसी वजह से उन्होंने कदम रोक के रखे है वो भी अगले 20 साल में बदल जायेगा, फिर ? ? क्योंकि वो तुम्हारी बराबरी में आने का इंतज़ार नहीं कर रहे, वो 50-50 का अनुपात हो ऐसा नहीं चाहते, जिस दिन 30-70 भी आ गया तो लड़ाई सड़कों पर आ जायेगी।

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