Wednesday 17 August 2016

देश बड़ा या धर्म ? ?

आज हमारे ग्रुप में एक भाई ने सवाल कर दिया कि देश बड़ा है या धर्म ? इस पर बहुत लोग उलझन में पड़ गए। किसी ने देश कहा और किसी ने धर्म। अगर मुझसे ये सवाल आज से 5 साल पहले पूछा गया होता तो देश बोलने में 1 सेकण्ड नहीं लगाता पर आज मैं 'धर्म' बोलने में देर नहीं करूँगा।

देश.... क्या है देश ? ? जब तक आप इस देश में है, जबतक आप इस देश में सुरक्षित हैं, तभी तक तो है ये आपका देश। देश तो ये तब भी कहलायेगा जब कोई इस देश पर कब्ज़ा कर ले और आपको भगा दे....... लेकिन तब ये देश उस आक्रमणकारी का होगा, आपका नहीं। मतलब साफ है जब तक देश में आपका राज है तभी तक देश आपका है।

देश बचता है धर्म से। जिस मजहब के लोगों के पास एक भी देश नहीं था उसने सिर्फ धर्म पर अडिग रहकर 52 देश बना लिए (सवाल ये नहीं कि उनका मजहब ख़राब था या अच्छा)। जिसने धर्म से ज्यादा राष्ट्रीयता को महत्त्व दिया उसके हाथ से देश निकल गया। हमारे हाथों से पाकिस्तान के रूप में, अफगानिस्तान के रूप में देश का बड़ा भाग क्यों निकला ? क्योंकि हम धार्मिक कम सेक्युलर ज्यादा हो गए। अगर हिन्दु कट्टर होते, अड़ जाते ... लड़ जाते कि जान जायेगी लेकिन दूसरे धर्म के लोगों को नहीं देंगे अपनी जगह तब पाकिस्तान नहीं बनता।

कैराना, कांधला, अलीगढ, आसाम, कश्मीर आदि क्यों हिंदुओं के हाथ से निकला, क्योंकि उनके लिए देश पहले था धर्म नहीं, नतीजा धर्म भी गया और देश(स्थान) भी गया। अब दो सवाल है....

1. क्या पाकिस्तान में "हिन्दू धर्म" है.... ? ?
2. क्या पाकिस्तान हमारा देश रहा ? ?

याने देश भी गया और धर्म भी गया...

क्यों गया ? क्योंकि भारत की तरफ से गांधी नेहरू जैसे एक जमात ने धर्म छोड़कर सेकुलरिज्म अपनाया। जबकि जिन्ना ने सिर्फ अपने धर्म का बात कहा, देश भी माँगा धर्म के आधार पर माँगा, खून किया सब धर्म के लिए। नतीजा उनका धर्म बचा ही नहीं बल्कि बढ़ा और साथ में देश भी पाया।

हिन्दू उल्टा करते हैं, देश के नाम पर धर्म छोड़ देते हैं, धर्म छोड़ते ही कमजोर हो जाते हैं और इनके हाथ से धर्म तो जाता ही है, देश भी निकल जाता है। मेरा पक्ष यही है इस सवाल पर, आपका सहमत होना जरुरी नहीं।

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