Wednesday 24 August 2016

क्रिया योग से ईश्वरत्व पाने वाले चमत्कारिक योगी

लाहिड़ी महाशय को प्यार से ‘‘आनन्दमग्नबाबू’’ कहने वाले अंग्रेज ऑफिस सुपरिंटेन्डेन्ट के ध्यान में सबसे पहले यह बात आयी कि उनके कर्मचारी में कोर्इ अज्ञात श्रेष्ठ परिवर्तन आ रहा हैं।
‘‘सर,आप दु:खी लगते हैं।क्या बात है?’’
एक दिन सुबह लाहिड़ी महाशय ने अपने सुपरिंटेन्डेन्ट से पूछा।

‘‘इंग्लैण्ड में मेरी पत्नी गम्भीर रूप से बीमार है। मुझे बहुत चिंता हो रही है।’’

‘‘मैं आपको उनका कुछ समाचार ला देता हूँ।’’

लाहिड़ी महाशय वहाँ से चले गये और एक एकान्त स्थान में जाकर कुछ देर बैठे रहे।जब वापस आये तो धीरज देने के अंदाज में मुस्करा रहे थे।

‘‘आपकी पत्नी की हालत सुधर रही है; अभी वे आपको पत्र लिख रही हैं।’’. सर्वज्ञयोगीवर ने पत्र के कुछ अंश भी सुना दिये।
‘‘आनन्दमग्न बाबू! उतना तो मैं पहले ही जान गया हूँ, कि आप साधारण मनुष्य नहीं हैं।फिर भी मुझे विश्वास नहीं हो पा. रहा है कि आप अपनी इच्छामात्रसे ही देश और काल की सीमाओं को मिटा सकते हैं। आपकी बात से सांत्वना मिली है अब आप जाइये अपनी टेबल पर काम कीजिये।’’

अन्तत: वह पत्र आ पहुँचा। देखकर सुपरिंटेन्डेन्ट चकित रह गया कि पत्र में न केवल. उसकी  पत्नी के अच्छी होने का शुभ समाचार था, बल्कि उन्हीं शब्दों में वह वाक्य भी. थे जो महान गुरु ने कर्इ सप्ताह पूर्व कह सुनाये थे।

घटना के २०-२५ दिन बाद एक दिन लाहिरी महाशय को फिर साहब ने बुलवा भेजा. साहब के कमरे में पहुँचते ही साहब बोले-``आओ पगला बाबू येही हैं मेरी मैडम और ये हैं.......

``माई गाड``-कहने के साथ ही मेम साहिबा अपनी कुर्सी से उछल पड़ी जैसे करेंट लगा हो.
साहब ने चौंक कर पूछा-``क्या बात है?``
मेम साहब लाहिरी महाशय को देखते बोली-``आप कब आये?``
साहब ने कहा-``ये क्या कह रही हो, क्या मजाक है? पगला बाबू (हमेशा खोये खोये रहते, आँखें आधी बंद रहने से लोग इनको पागल बाबू बुलाते थे ) कब आये मतलब. ये तो यहीं काम करते हैं.``
लाहिरी महाशय मुकराते हुए बिना कुछ बोले बाहर निकल गए. उनके जाने के बाद मेम साहिबा बोलीं-`` बड़े आश्चर्य की बात है जैसे मैं यहाँ आकर जादू देख रही हूँ. घर में जब बीमार थी तब एक दिन यही आदमी मेरे सिरहाने खडा होकर सर पर हाथ फेरता रहा. मुझे घोर आश्चर्य हुआ कि ये आदमी आखिर घर में घुस कैसे गया. लेकिन दुसरे ही क्षण इसने मुझे सहारा देकर बिस्तर पर जब बैठाया तो मेरी सारी बीमारी दूर हो गयी. मुझे अजीब सा लगा. इसने कहा- बेटी तुम बिलकुल ठीक हो गयी हो. अब तुम्हें कोई कष्ट नहीं होगा. भारत में तुम्हारे पति बड़े बेचैन हैं. उन्हें अभी पत्र लिख कर पोस्ट कर दो. कल ही जहाज़ का टिकट बुक करा कर भारत चली जाओ, वरना साहब नौकरी छोड़ कर वापिस आ जायेंगे.

ये थे क्रिया योग के माध्यम से ईश्वरत्व को पाने वाले हाल के एक और संत। जिन्होंने गृहस्थ जीवन में आने के बाद दीक्षा ली और फिर हिन्दू मुस्लिम ईसाई सभी का इनके आसपास जमावड़ा लगा रहता।

भक्तों को प्रत्यक्ष रूप से दीखता था कि घंटो से उनकी नाड़ी और धड़कन बंद है, कभी घंटों तक पलक नहीं झपकते थे। कभी वो कई दिनों तक जागते रहते, सोते नहीं थे। कभी श्वास ही लेना बंद रहता था।।

लाहिड़ी महाशय का पूरा नाम श्यामाचरण लाहिड़ी था।
परमहंस योगानंद के गुरु स्वामी युत्तेश्वर गिरी लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे। श्यामाचरण लाहिड़ी का जन्म 30 सितंबर 1828 को पश्चिम बंगाल के कृष्णनगर के घुरणी गांव में हुआ था। योग में पारंगत पिता गौरमोहन लाहिड़ी जमींदार थे। मां मुक्तेश्वरी शिवभक्त थीं। बचपन से ही लाहिरी महाशय अपनी प्रतिभा का परिचय देने लगे. बँगला, अंग्रेजी, हिन्दी के अलावा फारसी भाषा की शिक्षा आप लेने लगे. यहाँ शिक्षा सम्पूर्ण कर संस्कृत कालेज में संस्कृत का अध्ययन करने लगे.

काशी में उनकी शिक्षा हुई। विवाह के बाद नौकरी की। 23 साल की उम्र में इन्होंने सेना की इंजीनियरिंग शाखा के पब्लिक वर्क्स विभाग में गाजीपुर में क्लर्क की नौकरी कर ली।

23 नबंबर 1868 को इनका तबादला हेड क्लर्क के पद पर रानीखेत (अल्मोड़ा) के लिए हो गया। प्राकृतिक छटा से भरपूर पर्वतीय क्षेत्र उनके लिए वरदान साबित हुआ। एक दिन श्यामाचरण निर्जन पहाडी रास्ते से गुजर रहे थे तभी अचानक किसी ने उनका नाम लेकर पुकारा। श्यामाचरण ने देखा एक संन्यासी पहाड़ी पर खड़े थे। वे नीचे की ओर आए और कहा- डरो नहीं, मैंने ही तुम्हारे अधिकारी के मन में गुप्त रूप से तुम्हें रानीखेत तबादले का विचार डाला था। उसी रात श्यामाचरण को द्रोणागिरि की पहाड़ी पर स्थित एक गुफा में बुलाकर दीक्षा दी। दीक्षा देने वाला कोई और नहीं, कई जन्मों से श्यामाचरण के गुरु महाअवतार बाबाजी थे। श्यामाचरण लाहिड़ी ने 1864 में काशी के गरूड़ेश्वर में मकान खरीद लिया फिर यही स्थान क्रिया योगियों की तीर्थस्थली बन गई। कहते हैं साईं बाबा के गुरु भी लाहिड़ी महाशय ही थे।

अशुद्ध और नीले रक्त संचय को रोककर योगी तंतुओं के अपक्षय को कम कर देने या रोक देने में समर्थ होता हिलप्रगट योगी अपने कोशाणुओं को जीवन शक्ति में रूपांतरित कर सकता है. क्रियायोग एक सुप्राचीन विज्ञान है. जो भारत वर्ष में लुप्त सा हो गया था. लाहिड़ी महाशय ने अपने गुरु बाबाजी से क्रियायोग प्राप्त किया.

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